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बोले रायबरेली: पार्किंग न ट्रांसपोर्ट नगर,कहां जाएं ट्रांसपोर्टर

Raebareli News - भारी वाहनों से सरकार को सबसे अधिक राजस्व मिलने के बावजूद ट्रांसपोर्टरों को कोई सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। पार्किंग की कमी और मनमाने टैक्स से परेशान ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि अगर उनकी समस्याओं का...

Newswrap हिन्दुस्तान, रायबरेलीMon, 24 Feb 2025 10:40 PM
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बोले रायबरेली: पार्किंग न ट्रांसपोर्ट नगर,कहां जाएं ट्रांसपोर्टर

भारी वाहनों से सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व मिलने के बाद भी ट्रांसपोर्टरों को सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं मिल रहा है। जिले में उनके पास न तो पार्किंग की व्यवस्था है और न ही अन्य बड़े शहरों की तरह ट्रांसपोर्ट नगर की। ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की बिना सहमति और जानकारी दिए जब चाहा तब टैक्स की बढ़ा दिया जाता है। ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि परिवहन विभाग की ओर से वाहनों की फिटनेस, रि-रजिस्ट्रेशनप, परमिट जारी करने, हैवी ड्राइविंग लाइसेंस बनाने आदि के नाम पर परेशान किया जाता है। इनसे ट्रांसपोर्टरों पर लगातार आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है। तमाम तरह के टैक्स उनके व्यापार में बाधा बन रहे हैं। उनका कहना है कि अगर उनकी समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर समाधान किया जाए तो उन्हें काफी सहूलियत मिले और वह व्यापार भी ठीक ढंग से कर सकें।

रायबरेली, संवाददाता। जिले में ट्रांसपोर्ट व्यवसाय एक बड़ा रूप ले चुका है और सरकार को इससे सबसे ज्यादा राजस्व मिलता है। इसके बावजूद ट्रांसपोर्टरों को सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं दिया जा रहा है। पार्किंग की कोई स्थाई व्यवस्था न होने से मजबूर होकर चालक अपने वाहन को सड़क किनारे खड़ा कर देते हैं जिसके कारण उनका टायर, बैटरी व तेल की चोरी होते रहने के मामले सामने आते रहते हैं। चोरी की रिपोर्ट लिखाने जाओ तो पहले पुलिस उन्हें ही शक की नजर से देखती है फिर येन-केन-प्रकारेण लिख भी लिया तो एफआर (फाइनल रिपोर्ट) लगवाने के लिए थाने के बार-बार चक्कर काटने पड़ते हैं। अगर ट्रांसपोर्ट नगर हो तो इनकी अधिकतर समस्याओं का निराकरण हो सकता है।

आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने जब ट्रांसपोर्टरों से उनकी समस्याओं के बारे में बातचीत की तो उनका दर्द खुद-ब-खुद सामने आ गया। ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि अधिकांश जिलों में सुबह से रात तक शहर के अन्दर नो इंट्री जोन होने से वाहनों को आउटर पर ही रोक दिया जाता है। इससे ट्रांसपोर्टरों को काफी नुकसान होता है। यदि इन व्यावसायिक वाहनों से सबसे अधिक मनमाफिक राजस्व लिया जा रहा है तो शहर के बाहर से बाईपास क्यों नहीं बनवाए जा रहे हैं, ताकि वाहनों के घंटों खड़े रहने से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।

सड़क किनारे खड़े ट्रक का प्रशासन और परिवहन विभाग द्वारा मनमानी तरीके से जुर्माना वसूला जाता है। राज्य सरकार किसी भी ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की सहमति और जानकारी दिए बिना मनमाने तरीके से टैक्स की बढ़ोतरी भी कर देती है। वाहनों की फिटनेस, रि-रजिस्ट्रेशन, परमिट जारी करने, हैवी ड्राइविंग लाइसेंस बनाने आदि के नाम पर काफी दौड़ाया जाता है। शहर और जिले की सड़कों को छोड़िए नेशनल हाईवे तक में बिना किसी रुकावट के वाहनों को निर्धारित गति सीमा से नहीं चलाया जा सकता है। यही नहीं जिले में 40 प्रतिशत पॉल्यूशन की वजह ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री को माना जाता है। सरकार इसे नियंत्रित करने के लिए तरह-तरह के कानून लागू करती है। जिसका खामियाजा वाहन मालिकों को उठाना पड़ता है। इन सब कारणों से छोटे ट्रांसपोर्टरों पर लगातार आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है और वह कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं। कई ने अपने वाहन औने-पौने दामों में बेच कर दूसरा व्यवसाय शुरू कर दिया है तो कुछ वाहन बेचने के मूड में हैं।

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सड़क किनारे डंप कूड़े से वाहनों के सामने आते हैं मवेशी

रायबरेली, संवाददाता।

सड़क किनारे लोगों और नगर निकाय के कर्मचारियों द्वारा कूड़ा-कचरा डंप कर दिया जाता है। भोजन की तलाश में पालतू और आवारा जानवर कूड़े-कचरे के ढेर तक पहुंच जाते हैं। कई बार जानवर अचानक सड़क की ओर दौड़ देते, जिस कारण दुर्घटना होती है और दोषी ड्राइवर बनता है। सड़क किनारे डंपिंग को नगर पालिका और नगर पंचायत को अविलंब बंद करना चाहिए, नहीं तो सदैव दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। रही सही कसर सड़क की पटरियों तक किए गए अवैध अतिक्रमण से पूरी हो जाती है।

अतिक्रमण के कारण शहर और कस्बों की सड़कें संकरी होकर गलियों का रूप ले चुकी हैं। सिविल लाइन से डिग्री कालेज चौराहा, जीजीआईसी चौराहा होकर राजघाट और दरीबा तक ऐसी ही स्थिति हो गई है। वहीं डिग्री कालेज चौराहा से हाथी पार्क, सुपर मार्केट, रामकृपाल तिराहा, घंटाघर, कैपरगंज से होकर खोया मंडी और बस स्टेशन चौराहा से जहानाबाद चौकी होकर त्रिपुला तक सड़कों की पटरियों पर हुए अतिक्रमण से सभी परेशान हैं। ऐसे में पांच सौ मीटर से एक-दो किलोमीटर की दूरी तय करने में आधे से एक घंटे तक का समय लग जाता है। इससे समय के साथ ही पैसे की बर्बादी होती है। शासन और प्रशासन इस ओर ध्यान न देकर केवल ट्रांसपोर्टरों से राजस्व की प्राप्ति के नए-नए तरीके खोजने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाता है।

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योजनाएं बनती हैं, लेकिन धरातल पर नहीं आतीं

रायबरेली। जिले और विशेषकर शहर में भारी वाहनों की पार्किंग की कोई सुविधा नहीं है। वर्षों से ट्रांसपोर्ट नगर बनाने की मांग अब महज एक सपना बनकर रह गई है। इसे पूरा होने में और कितना समय लगेगा यह किसी को भी नहीं पता है। ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि उनके हित के लिए सिर्फ योजनाएं ही बनती हैं, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता है। मजबूर होकर वाहन चालकों को अपनी गाड़ी सड़क किनारे खड़ी करना पड़ रही है। जिले में सड़कों की मरम्मत और पुनर्निर्माण की राह देख रहे वाहन चालकों को बरसात में जान जोखिम में डालनी पड़ती है। अब तक कई वाहन इन गड्ढायुक्त खराब सड़कों में धंस या फिर पलट चुके हैं। शहर की सड़कों को देखकर यह नहीं बताया जा सकता है कि सड़क में गड्ढे हैं या फिर गड्ढे में सड़क है। लापता सड़क पर धूल उड़ती रहती है।

इससे सड़कों के आसपास बसे मोहल्लों के 50 से 60 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। क्षेत्रीय लोगों के साथ ट्रांसपोर्टरों ने भी कई बार शासन और प्रशासन के अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन समस्या नहीं सुलझी। सड़क में बड़े-बड़े गड्ढे हैं। ऊंचा-नीचा रास्ता होने से वाहन एक तरफ झुक जाते हैं। इससे वाहन पलटने का खतरा रहता है। इलाके में जल निकासी न होने के कारण सड़कों में बरसात में पानी भर जाता है। इसको लेकर ट्रांसपोर्टरों में नाराजगी है। ऑटो और ई-रिक्शा चालक इन सड़कों पर आने से कतराते हैं। शिकायत या फिर सड़क बनवाने या उसकी मरम्मत के नाम पर हर बार सिर्फ आश्वासन मिलता है।

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शिकायत

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-पार्किंग की व्यवस्था न होने से मजबूरन चालकों को अपने वाहन को सड़क किनारे जैसे-तैसे खड़ा करने के लिए जगह बनानी पड़ती है।

-जिले में सुबह से रात तक शहर के अन्दर नो इंट्री जोन होने से वाहनों को आउटर पर ही रोक दिया जाता है। इससे ट्रांसपोर्टरों को काफी नुकसान होता है।

-शहर के बाहर से बाईपास न बनवाए जाने से वाहनों को घंटों आउटर पर ही रोक दिया जाता है। इससे समय की बर्बादी के साथ ही आर्थिक नुकसान भी होता है।

-जिले और नेशनल हाईवे की सड़कें ऐसी हैं कि वाहनों को निर्धारित गति सीमा से चलाया जा सकता है। ऐसे में वाहनों के मेंटिनेंस का खर्चा तो बढ़ता ही है, डीजल की बर्बादी होती है वह अलग है।

-छोटे ट्रांसपोर्टरों पर लगातार आर्थिक बोझ बढ़ने से वह कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं। इससे कई ने अपने वाहन बेच दिए हैं तो कई बेचने के मूड में हैं।

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सुझाव

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-शहर में ट्रांसपोर्ट नगर बनवाया जाए, ताकि भारी वाहनों की पार्किंग में कोई दिक्कत न हो और बेवजह होने वाली दुर्घटनाओं से बचा जा सके।

-शहर में सुबह से रात तक नो इंट्री जोन करने के स्थान पर भारी वाहनों को गुजारने के लिए कोई वैकल्पिक रास्ता देने की व्यवस्था की जाए।

-शहर के बाहर से बाईपास बनवाया जाए ताकि वाहनों को घंटों आउटर पर ही रोके जाने से निजात मिल सके और समय की बर्बादी न हो।

-जिले और नेशनल हाई-वे की सड़कों को गड्ढामुक्त कराकर इनकी मरम्मत कराई जाए ताकि वाहनों को निर्धारित गति सीमा से चलाया जा सके।

-छोटे ट्रांसपोर्टरों पर लगातार आर्थिक बोझ न बढ़े इसके लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने के साथ ही कम ब्याज दर पर आसानी से मिलने वाले कर्ज की व्यवस्था करानी चाहिए।

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ट्रांसपोर्टर बोले--

पार्किंग की समस्या, ईएमआई का बोझ, टोल और परिवहन विभाग के टैक्स में बेतहाशा बढ़ोत्तरी से हम लोग परेशान हो चुके हैं। स्थिति यह है कि आमदनी कम होती जा रही है और खर्च ज्यादा बढ़ गया है।

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जिले में करीब 12 हजार भारी और 03 हजार से अधिक हल्के माल वाहक वाहन आरटीओ में पंजीकृत हैं। इनमें से बमुश्किल 40 से 50 फीसदी ही सड़कों पर फर्राटा भर रहे हैं। इससे ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है।

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कई हल्के और भारी वाहन ईएमआई निर्धारित समय पर ईएमआई चुकता न कर पाने से खड़े हो गए हैं तो कई ओवर लोडिंग या फिर अन्य किसी कारण से चालान होने से थानों में सड़कर कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं।

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ट्रांसपोर्ट व्यवसाय सरकार को सबसे अधिक राजस्व देता है। सड़क पर इस उद्योग को एक पॉइंट से दूसरे पॉइंट में जाने के लिए जो सुविधाएं चाहिए उसमें बहुत सी अड़चनें हैं उनकी इन समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार को पहल करनी होगी।

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जिले में मालवाहक हल्के और भारी वाहनों के लिए यदि ट्रांसपोर्ट नगर बसा दिया जाए तो इधर-उधर बिखरे इस व्यवसाय को एक जगह पर लाया जा सकता है। इससे आम नागरिकों के साथ ही ट्रांसपोर्टरों को काफी सहूलियत होगी।

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पार्किंग की कोई व्यवस्था न होने से हल्के और भारी वाहनों को सड़क किनारे इधर-उधर खड़ा करना पड़ता है। इससे आए दिन वाहनों से टायर, डीजल, बैट्री सहित अन्य मोटर पार्ट चोरी होने की घटनाएं हो रही हैं।

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पहले फास्ट टैग में 10 फीसदी कैशबैक था, फिर उसे साढ़े सात फीसदी कर दिया गया। वर्तमान में यह पांच फीसदी है। इससे मुनाफे पर काफी असर पड़ा है और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है।

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डीजल, टोल टैक्स से लेकर मजदूरी तक में बढ़ोतरी के बाद भी थोक कारोबारियों द्वारा भाड़े में इजाफा नहीं किया जा रहा है। कुछ बड़े कारोबारियों के पास अधिक काम होने से उनकी मनमानी के चलते भाड़ा नहीं बढ़ाया जा रहा है।

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शहर में रोज करीब 6 से 7 सौ ट्रक मौरंग, गिट्टी, सीमेंट और सरिया आदि लेकर आते हैं। पार्किंग की सुविधा नहीं होने से इन्हें सड़क किनारे खड़ा करना पड़ता है और हमेशा चालान होने का डर बना रहता है।

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अलग-अलग रूट पर नो-एंट्री की टाइमिंग तो तय है लेकिन उसका अनुपालन नहीं हो रहा है जिससे ट्रक को घंटों खड़ा रखना पड़ता है। इससे आर्थिक नुकसान के साथ ही समय की भी बर्बादी होती है।

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ट्रक संचालित करने में टोल टैक्स और महंगे डीजल के साथ आरटीओ के टैक्स की बढ़ोतरी ट्रांसपोर्टरों के लिए मुसीबत बनी हुई है। लाखों रुपये कर्ज लेकर मालवाहक वाहन ट्रक खरीदने वाले अब दूसरे व्यवसाय का रुख करने को मजबूर हैं।

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मालवाहक वाहनों के बीमा की राशि काफी अधिक बढ़ा दी गई है। इन्हें लेने के लिए बैंकों से कर्ज भी काफी अधिक ब्याज पर मिलता है, जिसे समय से चुकाना काफी मुश्किल भरा कार्य है। ऐसे में फाइनेंस कंपनी कब वाहन खींच ले पता नहीं रहता।

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पार्किंग की समस्या, ईएमआई का बोझ, टोल और परिवहन विभाग के टैक्स में बेतहाशा बढ़ोत्तरी से हम लोग परेशान हो चुके हैं। स्थिति यह है कि आमदनी कम होती जा रही है और खर्च ज्यादा बढ़ गया है।

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जिले में करीब 12 हजार भारी और 03 हजार से अधिक हल्के माल वाहक वाहन आरटीओ में पंजीकृत हैं। इनमें से बमुश्किल 40 से 50 फीसदी ही सड़कों पर फर्राटा भर रहे हैं। इससे ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है।

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कई हल्के और भारी वाहन निर्धारित समय पर ईएमआई चुकता न कर पाने से खड़े हो गए हैं तो कई ओवर लोडिंग या फिर अन्य किसी कारण से चालान होने से थानों में सड़कर कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं।

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ट्रांसपोर्ट व्यवसाय सरकार को सबसे अधिक राजस्व देता है। सड़क पर इस उद्योग को एक पॉइंट से दूसरे पॉइंट में जाने के लिए जो सुविधाएं चाहिए उसमें बहुत सी अड़चनें हैं उनकी इन समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार को पहल करनी होगी।

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नंबर गेम

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16 हजार के करीब हैं जिले में हल्के व भारी व्यावसायिक वाहन

06 नेशनल हाईवे गुजरते हैं जिले से होकर

01 भी ट्रांसपोर्ट नगर नहीं है जिले में

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जिले में यदि विकास प्राधिकरण की ओर से ट्रांसपोर्ट नगर की व्यवस्था करवा दी जाए तो भारी वाहनों के लिए पार्किंग की समस्या का समाधान स्वत: हो जाएगा। वहीं सड़कों के किनारे सीमेंट, मौरंग, गिट्टी, सरिया आदि लदे ट्रकों के खड़े न होने से लोगों को काफी सहूलियत होगी और दुर्घटनाओं पर रोक लगेगी। वाहन मालिकों को चालान का सामना भी नहीं करना पड़ेगा। विभागीय स्तर से ट्रांसपोर्टरों की समस्याओं के समाधान के लिए जो भी संभव हो सकता है उसके लिए प्रयास किया जा रहा है।

मनोज कुमार सिंह, एआरटीओ प्रवर्तन

सरकार की कोई स्पष्ट नीति न होने के कारण ट्रांसपोर्ट व्यवसाय काफी बुरी स्थिति में है। वर्तमान में खर्च ज्यादा है और मुनाफा कम होता जा रहा है। यदि सरकार मनचाहा राजस्व ले रही है तो उसे ट्रांसपोर्टरों की सुविधा के लिए ट्रांसपोर्ट नगर और पार्किंग की व्यवस्था करनी चाहिए। वहीं नो इंट्री के समय वैकल्पिक मार्ग तय किया जाए ताकि वाहन चालकों को दिन भर घंटों रुक कर इंतजार न करना पड़े। आवश्यक वस्तुओं को लाने और ले जाने वाले वाहनों के लिए नियमों में ढील देना चाहिए।

राम मोहन श्रीवास्तव उर्फ रामू दादा

अध्यक्ष, ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन

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