रायबरेली के इन 6 प्राचीन शिवालयों में महाशिवरात्रि पर उमड़ेंगे श्रद्धालु
- महाशिवरात्रि पर भगवान शंकर की विशेष पूजा अर्चना होती है। रायबरेली जनपद के दर्जनों ऐसे शिव मंदिर हैं, जहां मेला लगता है। इनमें से 6 ऐसे हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व है। जानिए क्यों हैं महत्वपूर्ण ये शिव मन्दिर
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महाशिवरात्रि पर भगवान शंकर की विशेष पूजा अर्चना होती है। रायबरेली जनपद के कई ऐसे शिव मंदिर हैं, जहां मेला लगता है। इन मंदिरों की अपनी मान्यता है। यहां लोग दूरदराज से आकर पूजा अर्चना करते हैं। जिले की चारों दिशाओं में शिव मन्दिर स्थित हैं। महाशिवरात्रि पर यहां मेला लगता है। इन शिवालयों का इतिहास अपने आप में अनूठा है।
मुगल शासक ने खंडित कर दी थी मूर्ति
जगतपुर के टांघन गांव झारखंडेश्वर प्राचीन शिव मंदिर में महाशिवरात्रि पर विशेष पूजा अर्चना होती है। इस मंदिर की मूर्ति को मुगल शासक ने क्षतिग्रस्त कर दिया था। सुबह लोग जलाभिषेक व शाम को आरती करते हैं। पर्यटन विभाग ने मंदिर के सुंदरीकरण करने के लिए स्वीकृति दे दी है। इससे क्षेत्र के लोगों में खुशी है।
जमींदार ने बनवाया बाल्हेश्वर मन्दिर
रेलकोच। शिव मन्दिर बाबा बाल्हेश्वर मन्दिर का पौराणिक इतिहास है। यह स्वयम्भू शिव लिंग है। मन्दिर के मुख्य पुजारी झिलमिल महाराज का कहना है कि हमारे पूर्वज बताते थे कि ऐहार गांव के जमींदार परिवार के जानवर को रोज चरवाहा जंगल लेकर जाता था। उसी में एक गाय जंगल में एक जगह रोज अपना दूध स्वयं से गिरा देती थी। जमींदार परिवार को लगा चरवाहा दूध निकाल लेता है। एक दिन जब इसकी तलाश की गई तो देखा गया की गाय खुद से दूध गिरा रही थी। उसी दिन रात में जमींदार को स्वप्न आया की मेरा मन्दिर वहां बनवा दिया जाय। आज उसी स्थान पर शिव लिंग बाबा बाल्हेश्वर के रूप में स्थापित है। इस शिव मंदिर का बड़ा महात्म है।
इसलिए नाम पड़ा तपेश्वर नाथ मंदिर
फुरसतगंज के बहादुरपुर की ग्राम पंचायत पीढ़ी में स्थित बाबा तपेश्वर नाथ का मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। शिवरात्रि पर दो दिवसीय मेला लगता है। यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था। मंदिर परिसर में शनि देव का मंदिर पार्वती गुफा मनोकामना कलश व विशालकाय हनुमान मंदिर स्थापित है। पीढ़ी गांव निवासी रामू दीक्षित ने बताया कि यहां पर कई बार धनाढ्य लोगों ने छत डालने का प्रयास किया परंतु प्रत्येक बार छत ढह गई। तभी से इस स्थान का नाम तपेश्वर नाथ पड़ा।
खुदाई में मिला था शिवलिंग
सरेनी विकास क्षेत्र के पलटी खेड़ा गांव स्थित सिहोलेश्वर धाम श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि यह शिवलिंग मजदूरों को खुदाई में मिला था फिर इसे आम राय से यही स्थापित कर दिया गया। धीरे-धीरे कई श्रद्धालुओं ने मंदिर का निर्माण शुरू कराया। मंदिर के दक्षिण दिशा में एक पक्का तालाब भी है। यहां प्रत्येक सोमवार को सुबह से ही शिवलिंग की पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। शिवरात्रि पर मंदिर में तिल रखने की जगह नहीं बचती है।
इसलिए अचल रहा शिवलिंग
लखनऊ प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर हरचंदपुर कस्बा से दक्षिण दिशा में सिरसा घाट मार्ग पर अचलेश्वर महादेव का भव्य मंदिर स्थित है। अकोहरी घनघोर जंगल में मिला स्वयंभू शिवलिंग अपने स्थान पर अचल रहा। तभी से शिवलिंग का नाम अचलेश्वर महादेव पड़ गया। रहवां रियासत के तत्कालीन राजा जगन्नाथ बक्श सिंह ने शिवलिंग को अपने राज महल ले जाने का हर संभव प्रयास लेकिन सफलता नहीं मिली। बताया जाता है शिवलिंग की खुदाई करने पर इसका आकार चौड़ाई में निरंतर और बढ़ता गया। पांच अरघा तक खुदाई करने के बाद जमीन के अंदर से पानी की धारा फूट पड़ी फिर भी शिवलिंग अपने स्थान से इधर-उधर नहीं हुआ। तब जन सहयोग से मंदिर का निर्माण कराया गया। शिवरात्रि को बाबा के दरबार में कई दिन तक मेला लगता है।
राजा ने कराया था निर्माण
शिवगढ़ कस्बे से पूर्व दिशा में एक किमी दूर स्थित बाबा बरखंडी नाथ शिव मंदिर अत्यंत प्राचीन और ऐतिहासिक है। इसका निर्माण राजा बरखंडी महेश प्रताप नारायण सिंह जू देव द्वारा कराया गया था। यहां प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। सावन के सोमवार व महाशिवरात्रि को दूर दराज से भी श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं।
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