बोले मैनपुरी: ये इश्क बिखरना था बिखर गया घाटे के सौदे का हिसाब क्यों करें
Mainpuri News - मैनपुरी। मैनपुरी की जमीन कवि, रचनाकारों, कथाकारों और हिन्दी साहित्य को दुनिया भर में सम्मान दिलाने वालों से जुड़ी है।
मैनपुरी की जमीन कवि, रचनाकारों, कथाकारों और हिन्दी साहित्य को दुनिया भर में सम्मान दिलाने वालों से जुड़ी है। मैनपुरी के कुसमरा से जुड़े हिन्दी के सशक्त हस्ताक्षर महाकवि देव की कृतियों की दुनिया दीवानी है तो वहीं हिन्दी के श्रेष्ठ रचनाकार कमलेश्वर भी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। मैनपुरी की पहचान देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में चमकाने वाली यहां की माटी में जन्मी बुकर पुरस्कार से सम्मानित गीतांजलि का नाम भी पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है। लेकिन नई पीढ़ी कथा और कहानियों के साथ काव्य रचनाओं से दूरी बना चुकी है। यही वजह है कि यहां कवि कोई बनना ही नहीं चाहता। इस विधा से जुड़े कवियों का अपना दर्द है। मैनपुरी में साल में 10 से 12 बड़े कवि सम्मेलन आयोजित होते हैं। अपना दिवस और कवि सम्मेलन जैसे आयोजनों के साथ-साथ मुशायरा का भी अपना एक बड़ा वर्ग है। काव्य गोष्ठियों, काव्य संध्या के जरिए इस विधा से जुड़े जानकार अपनी बात रखने के लिए मंच तलाशते हैं। लेकिन बाहरी लोगों को तवज्जो देने की प्रथा के चलते देशी कलाकारों की प्रतिभाएं दम तोड़ने लगती हैं। मैनपुरी में दीन मोहम्मद दीन, लाखन सिंह भदौरिया सौमित्र, जगत प्रकाश चतुर्वेदी जैसे रचनाकारों ने काव्य विधा को जीवित रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन वर्तमान कवियों को अपनी उपेक्षा का दर्द हमेशा सताता रहता है।
गीतकार मनोज कुमार सक्सेना बताते हैं कि हिन्दी साहित्य के नजरिए से मैनपुरी की बड़ी पहचान है। लेकिन एक-दो कवियों को छोड़कर किसी भी साहित्यकार व कवि को उचित सम्मान नहीं मिला। प्रदेश सरकार राज्य के प्रत्येक जिले के कम से कम दो साहित्यकारों, कवियों को प्रतिवर्ष सम्मानित करके कवियों को प्रोत्साहित करे। इससे कवियों का मनोबल बढ़ेगा। कवि विनोद महेश्वरी कहते हैं कि सम्मान न मिलने से अच्छे रचनाकार कविता से विमुख होकर अन्य रास्तों पर चले जाते हैं। जिससे हिन्दी साहित्य का विकास बाधित होता है। विद्याराम केसरी कहते हैं जिले में साहित्यिक आयोजनों के लिए कोई साहित्यिक सदन या ऑडीटोरियम नहीं है। जिले में साहित्यिक सदन का निर्माण हो और उसका नाम मैनपुरी के ही किसी प्रख्यात कवि के नाम से हो। ब्रजेंद्र सिंह सरल बोले कि कवियों के पास धन का अभाव होता है। जिससे उनकी रचनाएं पुस्तक का मूर्तिरूप नहीं ले पाती। रचनाकारों को पुस्तक प्रकाशित कराने के लिए सरकार की ओर से अनुदान की व्यवस्था हो।
हिन्दी भवन बने, मंचों पर मिले स्थान:कवि सत्येंद्र पाठक निडर, कवि शिव सिंह चौहान निसंकोच कहते हैं कि स्थानीय कवियों को मंच नहीं मिलता है। नुमाइश में जो अपना दिवस होता है उसमें कवियों को नहीं बुलाया जाता, कवि सम्मेलन होता हैं उसमें बड़े कवि बुलाए जाते हैं। जिससे हिन्दी साहित्य, कवियों की उपेक्षा होती है। शहर में हिन्दी भवन बने, जहां कवियों के बैठने की व्यवस्था हो। कवियत्री देवांशी माहेश्वरी, आशा माहेश्वरी ने कहा कि हिन्दी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक स्कूल में माह में एक बार कवि सम्मेलन हो ताकि आज की पीढ़ी भी हिन्दी साहित्य, काव्यपाठ आदि में अपना भविष्य देख सके।
बोले साहित्यकार
कविता सत्य सनातन सतत् चलने वाली भावनात्मक प्रक्रिया है। कविता का अंकुरण हृदय की नम भूमि पर होता है करुणा दया ओज, क्षमा, सहनशीलता का पर्याय है कविता। कविता इंसानियत का धर्म दिखलाती है मानव को मानव से जोड़ने का काम कविता करती है। वर्तमान दौर कविता को बचाने और स्थापित करने का है मानवीय मूल्यों की रक्षा किस तरह से कविता के माध्यम से हो यह चिंतन का विषय है बाजारू छिछलापन और चुटकुलों से कविता के पवित्र मंच की रक्षा करनी है।
-बलराम, श्रीवास्तव गीतकार
कविता की दुनिया में बयालीस वर्षों से हूँ बहुत सारे उतार चढ़ाव देखे हैं लेकिन इस सोशल मीडिया के युग में कविसम्मेलनों की गरिमा में ह्रास बहुत हुआ है। बहुत सारे प्रतिभाशाली रचनाकारों का आना इसका सुखद पक्ष भी है। प्रतिभाशाली पहले भी आते थे लेकिन वो एक सिस्टम से गुज़र कर आते थे तो बहुत सारी मर्यादाएँ, परिश्रम की ×कीमत,और कविसम्मेलनीय संस्कार और संवेदनाओं का भान होता था उन्हें। अब शायद उसमे कमी आई है। जब समाज के हर क्षेत्र में गिरावट होती है तो साहित्य भी तो समाज का दर्पण है ये कैसे अछूता रह सकता है।
-डा. विष्णु सक्सेना, गीतकार
कविता का महत्व इंसान के जीवन में होने वाले बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सालों पहले लोग कविता, कहानी को किताबों का हिस्सा नहीं बल्कि जीवन का हिस्सा मानते थे। मगर वह दौर अब दफन होने की ओर बढ़ने लगा है।
-डा. एसी तिवारी
रात होते ही घर के बच्चों की जिद अपने बड़ों से कविता या कहानी सुनने की जब शुरू होती थी तो बड़ों की आंखों में किस्से, कहानी तैरने लगते थे। कहानी और कविताओं के जरिए बच्चों का शुद्ध मनोरंजन होता था।
-डा. आनंदप्रकाश शाक्य
प्रेरणादायी कविता और कहानियों का दौर इतनी जल्दी खत्म होने लगेगा इसकी उम्मीद नहीं थी। जीवन बदलाव के इस दौर में संघर्ष से भले ही भर गया है लेकिन कविताएं इस संघर्ष को बेहद आसान बनाने की ताकत रखती हैं।
-डा. अरविंद पाल
इंटरनेट के इस दौर में जिस कदर अश्लीलता फैल रही है वह आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। निश्चित रूप से इंटरनेट ज्ञान का खजाना है। लेकिन इस पर दूसरे विषय पीढ़ी को भड़काने की सिवाए कोई और रास्ता नहीं दे रहे।
-देवांशी माहेश्वरी
हमने अपने जमाने में महादेवी वर्मा, कबीर, प्रेमचंद जैसे रचनाकारों की प्रेरणादायी कहानियां और कविताओं को पढ़ा है। आज का युवा इन रचनाकारों और उनकी गाथाओं को समझने की कोशिश ही नहीं कर रहा।
-डा. हरिश्चंद्र शाक्य
महंगाई, बेरोजगारी के इस दौर में काव्य पाठ का हुनर और कविता के शब्दों का महत्व नहीं समझ पा रहे तो इस पेशे में लंबे समय तक खाली हाथ नहीं रहा जा सकता। स्थानीय काव्य मंडली का हिस्सा बनना पड़ेगा।
-डा. महालक्ष्मी मेघा
अब पुराने जमाने जैसे न तो श्रोता रहे और न कवियों का उदय हो पा रहा है। कवि और उसकी कविता की ताकत लोगों को आज भी आपके घर से बाहर काव्य स्थल तक ले जाएगी। लेकिन इसके लिए शब्दों को पिरोने की कला लानी होगी।
-डा. संतोष द्विवेदी
मैनपुरी की धरती कवियों, रचनाकारों की धरती कही जाती है। यहां कितने पाकिस्तान जैसे उपन्यास की रचना करने वाले कमलेश्वर पैदा हुए। यही धरती महाकवि देव के हिन्दी साहित्य के इतिहास को पैदा करने वाली है।
- ओमप्रकाश वर्मा
हिंदी काव्य साहित्य को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रयास नहीं कर रही। मैनपुरी में स्थानीय कवियों के लिए एक हिंदी भवन बनाया जाए। जहां कवि एकत्रित होकर काव्य और हिंदी पर विचार विमर्श कर सकें।
-विनोद माहेश्वरी
गांव हो या कस्बा या फिर शहर, हर जगह, हर व्यक्ति में गीत गुनगुनाने की चाहत रहती है। लोग कहना चाहते हैं, बोलना चाहते हैं लेकिन उन्हें अपेक्षित मंच नहीं मिलता। जिले में मंच की दरकार है। यहां हिन्दी भवन की बड़ी जरूरत है।
-इंजी. धर्मवीर सिंह राही
मैनपुरी ने महान कहानीकार और मुक्तक सम्राट दिए हैं। कमलेश्वर जैसे विद्वान कहानीकार का नाम स्थानीय युवाओं की जुबां से गायब हो रहा है। उनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए किसी संस्थान का नाम कवियों, साहित्यकारों के नाम पर किया जाए।
-मुक्तेश जैन
मैनपुरी नुमाइश में स्थानीय कवियों को जगह नहीं मिलती। अपना दिवस मनाया जाता है लेकिन प्रशासन महज औपचारिकता करता है। स्थानीय कवियों के लिए एक दिन निश्चित होना चाहिए। जहां सभी कवि अपनी कविताओं को पेश कर सकें।
-शिव सिंह चौहान निडर
कविता को जीवित रखने के लिए सरकार और स्थानीय लोगों को भी प्रयास करना चाहिए, जो नए कवि निकल कर आ रहे हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाए ताकि अन्य युवा भी साहित्य में भविष्य खोज कर आगे आएं।
-रुचि असीजा रत्ना
स्थानीय कवियों द्वारा बहुत ही अच्छी-अच्छी कविताएं लिखी गई हैं लेकिन उनका प्रचार प्रसार और मंच ना मिलने से उचित स्थान नहीं मिल पाया। सरकार कवियों को प्रत्येक माह प्रोत्साहन राशि दे।
-राजकिशोर राज
सोशल मीडिया का दौर है, फूहड़ता अधिक फैल रही है। ऐसे में हिंदी को बचाने के लिए प्रत्येक स्कूल में काव्य पाठ अनिवार्य किया जाए। समय-समय पर प्रशासन भी बड़े स्तर पर कवियों से जुड़ा कार्यक्रम कराए।
-रमेश चंद्र चक
सोशल मीडिया पर जिस तरह से अश्लीलता फैल रही है उसने समाज के एक बड़े वर्ग के सामने आने वाली पीढ़ी के भविष्य की चिंता पैदा कर दी है। मोबाइल, अश्लील बातों से भर रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे अश्लीलता का शिकार हो रहे हैं।
-उपेंद्र
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।