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स्ट्राबेरी खेती से लहलहा रही मझार की माटी

Maharajganj News - वीरेन्द्र चौरसिया ने लक्ष्मीपुर के मठिया ईदू में स्ट्राबेरी की खेती में सफलता प्राप्त की है। उन्होंने दो एकड़ में 40 हजार पौध लगाए हैं और अब व्यापारी उनकी फसल खरीदने के लिए आने लगे हैं। उनकी मेहनत से...

Newswrap हिन्दुस्तान, महाराजगंजMon, 24 Feb 2025 09:27 AM
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स्ट्राबेरी खेती से लहलहा रही मझार की माटी

महराजगंज, हिन्दुस्तान टीम। एक ओर जहां लोग काम की तलाश में बाहर की राह नाप रहे हैं वहीं लक्ष्मीपुर के मठिया ईदू के वीरेन्द्र चौरसिया ने सब्जी की खेती में मिसाल बन गए हैं। स्ट्राबेरी की खेती में वीरेन्द्र का एक बड़ा नाम हो गया है। हाईस्कूल तक शिक्षित वीरेन्द्र ने बेरोजगारी के जंग में फावड़ा व मझार की माटी का सहारा लिया और सफलता उनके कदम चूमने लगी। मझार की माटी स्ट्राबेरी की खेती से लहलहाने लगी है।

वीरेन्द्र कहते हैं कि कमाई के लिए हाथ-पांव मारने के दौरान उन्होंने सब्जी खेती की राह पकड़ी। सीजनवार सब्जी की खेती अच्छी आय अर्जित हो जाती है। सब्जी में लौकी, बोडा, खेवडा, करैला, बैगन, टमाटर, गोभी, बन्द गोभी, आलू आदि की खेती समयानुसार करने के बाद पिछले पांच साल से स्ट्राबेरी की खेती कर रहे हैं। हिमांचल प्रदेश, महाराष्ट्र के पुणे से पौध मंगवाकर जिले के बृजमनगंज, पनियरा, लक्ष्मीपुर आदि क्षेत्रों में लगभग 70 हजार स्ट्राबेरी के पौध किसानों को मुहैया कराकर खेती को बढ़ावा देने की कोशिश में जुटे हैं।

दो एकड़ में लगाया है 40 हजार पौध

वीरेन्द्र ने अपनी दो एकड़ कृषि भूमि में 15 अक्टूबर को 40 हजार पौध लगाया। इस समय फूल लग गये हैं जो बरबस अपनी तरफ लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। फसल इसी माह से तैयार हो जाएगी। अभी से खरीद करने वाले व्यापारी आने लगे हैं।

बलुई दोमट मिट्टी होती है बेहतर

इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। स्ट्रॉबेरी की खेती उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में की जाती है। सामान्य तौर पर स्ट्रॉबेरी की बुआई सितंबर और अक्टूबर में की जाती है। लेकिन ठंडी जगहों पर इसे फरवरी और मार्च में भी बोया जा सकता है।

स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी टिप्स

कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत में व्यावसायिक खेती करने वाले किसान कमारोसा, चांडलर, ओफ्रा, ब्लैक मोर, स्वीड चार्ली, एलिस्ता और फेयर फॉक्स जैसी किस्मों का इस्तेमाल करते हैं। भारत के मौसम के लिहास से ये किस्में सही रहती हैं। पौध लगाने के डेढ़ महीने बाद स्ट्रॉबेरी से फल आने लगते हैं और यह क्रम चार महीने तक चलता है।

एक हेक्टेयर पर दस लाख की लागत

किसान वीरेन्द्र चौरसिया ने बताया स्ट्राबेरी के एक हेक्टेयर पर उद्यान विभाग द्वारा पचास हजार सब्सिडी है, जो काफी कम बताया जा रहा है। एक हेक्टेयर पर दस लाख की लागत लग रही है। बताया कि इस समय स्ट्राबेरी की मांग बढ़ गयी है। प्रतिदिन तुड़ाई चल रही है। नेपाल सहित पूर्वांचल के सभी जनपदों में इसकी मांग है। इस समय इसका मूल्य 250 रुपये प्रति किग्रा तक है।

बोले जिम्मेदार

लक्ष्मीपुर बीडीओ मृत्युंजय यादव कहते हैं कि लक्ष्मीपुर ब्लाक के किसान व्यावसायिक खेती से जुड़कर अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। किसानों की स्थिति आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो रही है। विभाग इसके लिए मदद करता है। वहीं, एडीओ कृषि रामदुलारे ने बताया अब किसान परंपरागत खेती से हटकर व्यवसायिक खेती पर ध्यान देते हुए अच्छी व ताजी उपज बाजारों में बेंचकर अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। किसानों को समय-समय पर विशेषज्ञों का मार्गदर्शन दिलाया जाता है।

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