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मशीनी युग में मंद पड़ी चाक की रफ्तार, कमजोर हुआ कारोबार

Lalitpur News - बोले ललितपुरफोटो- 1, 2, 11कैप्सन- काम करने के लिए जाता कुम्हार का परिवार, चाक चलाने की तैयारी करता वृद्ध ग्रामीण, सड़क किनारे मटके बेचता विक्रेतामशीनी

Newswrap हिन्दुस्तान, ललितपुरFri, 28 March 2025 05:59 PM
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मशीनी युग में मंद पड़ी चाक की रफ्तार, कमजोर हुआ कारोबार

बोले ललितपुर फोटो- 1, 2, 11

कैप्सन- काम करने के लिए जाता कुम्हार का परिवार, चाक चलाने की तैयारी करता वृद्ध ग्रामीण, सड़क किनारे मटके बेचता विक्रेता

मशीनी युग में मंद पड़ी चाक की रफ्तार, कमजोर हुआ कारोबार

जबरदस्त मेहनत के बावजूद अपेक्षित कीमत नहीं मिलने से छाने लगी घोर हताशा

कुम्हार तक नहीं पहुंच रहा सरकारी योजनाओं का लाभ, नहीं मिलती अच्छी मिट्टी

कई बार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को बताई समस्या पर नहीं हुआ समाधान

ललितपुर/ललितपुर। मिट्टी को विभिन्न प्रकार के आकार देकर अपने परिवार के भरण पोषण का इंतजाम करने वाले कुम्हारों का व्यवसाय बढ़ती आधुनिकता के चलते अब पिछड़ता जा रहा है। स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ होने बावजूद इनके बनाए मिट्टी के बर्तनों की मांग धीरे-धीरे कम हो गयी है। कभी भारतीय समाज और संस्कृतिक की प्रमुख पहचान रहे मिट्टी के दीपक, मूर्तियां अब धार्मिक अवसर पर ही मांगे जाते हैं। मिट्टी के बजाए प्लास्टर आफ पेरिस के दीपक और मूर्तियां लोगों को अधिक पसंद आने लगे हैं। चीनी मिट्टी, प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों ने इनके कारोबार को चौपट करके रख दिया है। इसी कारण, कुम्हार समाज पिछड़ता चला जा रहा है। पहले दिनभर चलने वाला चाक अब कुछ घंटे ही चलाया जाता है, जिससे होने वाला उत्पादन इनकी आजीविका के लिए पर्याप्त नहीं रहता। परिवार की यह हालत देख घर के युवा अब इर पारंपरिक पेशे से जुड़कर रहना नहीं चाहते हैं। वह किसी अन्य व्यवसाय नौकरी आदि में अपना भविष्य तलाशने लगे हैं। कोई मजबूरी में किसी दूसरे के यहां मजदूरी करने के लिए विवश है तो वहीं कोई शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं, जहां वह ईंट-गारा का काम याफिर अन्य छोटे-मोटे रोजगार कर रहे हैं। यह स्थिति केवल उनके आर्थिक संकट को ही नहीं दिखा रही बल्कि उनके पारंपरिक पेशे के खत्म होने को आगाह भी कर रही है। कुम्हारों ने अपनी समस्याओं को लेकर कई बार जनप्रतिनिधियों और विभागीय अधिकारियों से शिकायत दर्ज कराई लेकिन किसी ने उनकी पीड़ा नहीं समझी। इसी कारण वह हताश और निराश होकर किसी तरह जीवकोपार्जन कर रहे हैं।

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ललितपुर। ग्राम पंचायत साढ़ूमल निवासी राम सिंह प्रजापति ने बताया कि वह लोग केवल बर्तन बनाने तक सीमित नहीं थे, बल्कि विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां और मूर्तियां भी बनाते थे। उनके यह बर्तन, कलाकृतियां, मूर्तियां पूजन पाठ का प्रमुख हिस्सा थे लेकिन धीरे-धीरे इन सबका इस्तेमाल समाप्त होता जा रहा है। जिसका उनके कारोबार पर सीधा असर हुआ है।

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ललितपुर। रामस्वरूप प्रजापति निवासी साढ़ूमल ने बताया कि पहले गांवों में कुम्हारों की कारीगरी को बहुत सम्मान दिया जाता था। आयोजनों के पहले ही उनको बर्तन आदि बनाने के लिए आर्डर मिल जाया करते थे। जिसकी वजह से उनको वर्षभर काम मिलता रहता था। अब अन्य प्रकार की समग्रियां उपयोग में ली जाने लगी हैं। इस कारण वह लोग पिछड़ गए हैं।

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ललितपुर। साढ़ूमल ग्राम पंचायत में रहने वाले आसू प्रजापति ने बताया कि अब उनकी कला को कोई पूछने वाला नहीं है। सरकार और समाज दोनों ही इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठा पा रहे हैं, जिससे यह पारंपरिक पेशा विलुप्ति की कगार पर पहुंच गया है। उन लोगों ने कई बार जनप्रतिनिधियों व अफसरों के समक्ष अपनी बात रखी लेकिन कुछ नहीं हो सका।

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ललितपुर। मड़ावरा में रहने वाले कबोदी प्रजापति ने बताया कि कुम्हारों की नई पीढ़ी के सामने सबसे बड़ा सवाल रोजगार का है। पहले कुम्हार अपने पारंपरिक व्यवसाय से अच्छी आमदनी कमा लेते थे, लेकिन अब मिट्टी के बर्तनों की मांग घटने से उनकी आय बहुत कम हो गई है। इसके चलते कुम्हार समाज के युवा मजबूरी में मजदूरी करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

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ललितपुर। कांती प्रजापति निवासी मड़ावरा ने बताया कि परिवार की खराब होती हालत देख कई कुम्हारों के बेटे शहरों की ओर पलायन कर मेहनत मजदूरी करके किसी तरह अपना जीवनयापन कर रहे हैं। वह अपने घर वापस तो लौटना चाहते हैं लेकिन उनके पास किसी दूसरे काम का विकल्प मौजूद नहीं है और इस पारंपरिक कार्य में उनको आमदनी की संभावना है नहीं।

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ललितपुर। मड़ावरा में रहने वाले नीलेश प्रजापति ने बताया कि तमाम बार उन लोगों को मिट्टी का इंतजाम करने के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है। मिट्टी नहीं मिलने पर वह दीपक तक नहीं बना पाते हैं। इसको लेकर उन्होंने कई बार जिम्मेदारों से संपर्क किया लेकिन उनकी फटेहाल हालत देख कोई सीधे मुंह बात तक नहीं करता है। उनकी मिट्टी की जरूरत तो पूरी होनी ही चाहिए।

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ललितपुर। मड़ावरा निवासी मनके प्रजापति ने बताया कि पहले मकानों की छतों पर खपरैल रखे जाते थे। बारिश शुरू होने से पहले लोग अपने घर की छत दुरुस्त करते थे और इसकी मांग बहुत तेजी से बढ़ती थी। इससे उनके खपरैल अच्छी कीमत पर बिकते थे लेकिन अब खपरैल का स्थान कंक्रीट की छतों ने ले लिया है। इसी तरह से धीरे-धीरे उनका रोजगार कमजोर हो गया।

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ललितपुर। अमर सिंह प्रजापति ने बताया कि पुराने समय में हर घर में मिट्टी के बने घड़े, सुराही, कढ़ाई, मटका, गमला, कुल्हड़ और दिए आदि का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन, अब इनकी जगह स्टील, प्लास्टिक और कांच के बर्तनों ने ले ली। न केवल घरेलू उपयोग बल्कि धार्मिक और सामाजिक कार्यों में भी मिट्टी के बर्तनों की उपेक्षा की जा रही है।

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इस तरह से की जाए मदद

उचित बाजार उपलब्ध कराया जाए

तकनीकी और आर्थिक सहायता मिले

अच्छे बर्तन बनाने को मिले प्रशिक्षण

लोगों को मिट्टी के बर्तन के बताएं लाभ

त्योहारों में मिट्टी के उत्पादों को दें बढ़ावा देना

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यह समस्याएं आ रही आड़े

मिट्टी के बर्तनों की मांग में गिरावट

सरकारी योजनाओं का नहीं मिलता लाभ

परम्परागत पेशे को छोड़ने की मजबूरी

विभिन्न त्योहारों पर बिक्री में गिरावट

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