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बोले लखीमपुर खीरी: मिले भत्ता और बढ़े पगार, समस्या मुक्त हों चौकीदार

Lakhimpur-khiri News - ब्रिटिश हुकूमत के समय से गांवों में चौकीदारों की परंपरा जारी है, जो आज तीसरी-चौथी पीढ़ी में भी चल रही है। हालांकि, इन्हें केवल 2500 रुपये की मासिक पगार मिलती है, जिससे घर चलाना मुश्किल हो रहा है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखीमपुरखीरीTue, 25 Feb 2025 02:01 AM
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बोले लखीमपुर खीरी: मिले भत्ता और बढ़े पगार, समस्या मुक्त हों चौकीदार

ब्रिटिश हुकूमत के समय से गांव-गांव बदमाशों की निगरानी के लिए तैनात हुए थे चौकीदार, जिनकी आज तीसरी-चौथी पीढ़ी यह काम कर रही है। सिर पर लाल साफा और हाथ में डंडा लेकर रात भर ‘जागते रहो... की आवाज लगाने वाले ग्राम प्रहरी पुलिस की आंख-कान कहे जाते हैं। महंगाई के समय उनको सिर्फ 2500 रुपये प्रतिमाह पगार मिलती है। इससे घर-गृहस्थी चलाना कठिन हो जाता है। वर्दी भत्ता, थाने तक आने-जाने के लिए यात्रा भत्ता भी नहीं मिलता। हिन्दुस्तान से बातचीत में ग्राम प्रहरियों ने अपनी समस्याएं बताईं। पुलिस तंत्र का एक मजबूत आधार माने जाते हैं चौकीदार। उनकी सजगता से कई बार न केवल बड़े अपराध रुके हैं बल्कि बदमाश भी सलाखों के पीछे पहुंचे हैं। ब्रिटिश शासन काल में 1 रुपये प्रति माह की पगार पर चौकीदारों की गांव-गांव तैनाती हुई थी। गांव को कई परेशानियों से बचाने वाले, कई बार पुलिसवालों की गुत्थी सुलझाने वाले चौकीदारों का खुद का जीवन समस्याओं में उलझा है।

चौकीदारों में अब महिला चौकीदार भी शामिल होने लगी हैं। महिला चौकीदार न सिर्फ रात को पहरा देती हैं बल्कि गांवों में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों पर भी निगाह रखती हैं। चौकीदारों को वेतन के नाम पर सिर्फ 2500 रुपये माहवार मिलते हैं। उनको न वर्दी भत्ता मिलता है और न ही थाने पर हाजिरी के लिए आने-जाने का ही भत्ता दिया जाता है। चौकीदार वेतन बढ़ाने और जरूरी भत्तों की मांग लगातार करते आ रहे हैं। पर इस दिशा में अभी तक कोई ऐसा ठोस काम नहीं हुआ है जिससे चौकीदारों को राहत मिल सके। पुलिस अधिकारियों का भी मानना है कि पुलिसिंग सिस्टम में चौकीदार अहम किरदार होते हैं। उनकी नियुक्ति इस उद्देश्य के साथ की गई थी कि वे अपने आसपास होने वाली घटनाओं और संदिग्ध गतिविधियों की सूचना पुलिस को देंगे। चौकीदारों ने अपनी इस भूमिका को न सिर्फ बखूबी निभाया बल्कि कई ऐसे मौके भी आए जब चौकीदारों की सूचना पर बड़े-बड़े बदमाश पुलिस की गिरफ्त में आये। लेकिन अफसोस यह है कि इन चौकीदारों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं है। कुछ के पास साइकिल है भी, लेकिन ज्यादातर के पास वह भी नहीं है।

विरासतन कर रहे हैं गांव की चौकीदारी

खानीपुर गांव के चौकीदार पुत्तुलाल बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत में उनके बाबा कुंवरजी चौकीदार नियुक्त हुए थे। उन्हें 1 रुपया मासिक पगार मिलती थी। बताते हैं कि बाबा ने 30 साल तक चौकीदारी की। उनके बाद पिता रामलाल भी 30 वर्षों तक चौकीदारी करते रहे। अब पुत्तुलाल भी करीब 30 वर्षों से अपने दादा और पिता की विरासत आगे बढाते हुए गांव की चौकीदारी कर रहे हैं। पुत्तुलाल ने बताया कि नदी इलाके का गांव होने के कारण क्षेत्र में आए दिन चोरी, डकैती, लूट और हत्या जैसी बड़ी वारदातें होती थीं। वे बताते हैं कि उनकी सूचनाओं पर पुलिस ने बड़ी बड़ी कामयाबियां हासिल की हैं।

महिला चौकीदार बन रहीं हैं मिसाल

पुलिसिंग की अहम कड़ी चौकीदार में अब महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। चौकीदार बनी महिलाओं की जिंदगी आसान नहीं है। घर गृहस्थी के कामों के साथ बच्चों की परवरिश और चौकीदारी के साथ महिलाएं बेहतर सामंजस्य बनाकर काम करने की कोशिश रही हैं। पकरिया की चौकीदार श्रद्धा भारती बताती हैं कि दोहरी जिम्मेदारी से जीवनशैली प्रभावित जरूर होती है, पर समय प्रबंधन के साथ जिम्मेदारियां निभाई जा सकती है। हालांकि पुरुषों के मुकाबले अभी महिला चौकीदारों की संख्या काफी कम है। पर उम्मीद है कि आने वाले कुछ समय में महिला और पुरुष चौकीदारों की संख्या समान हो सकती है। पुलिस अधिकारी कहते हैं कि महिला चौकीदार अपनी भूमिका बखूबी निभा रही हैं। अभी तक ऐसा कोई प्रकरण सामने नहीं आया है जिसमें महिला और पुरुष का कोई अंतर होने से प्रभाव पड़ा हो। महिला चौकीदार भी समय पर सूचनाएं दे रही हैं जिनके आधार पर पुलिस अपनी कार्रवाई आगे बढ़ाती है।

चौकीदारों की समय-समय पर की जाती है ब्रीफिंग

गांवों में तैनात चौकीदारों में से कई स्नातक हैं। बहुत से चौकीदार पांचवीं, आठवीं कक्षा तक ही पढ़े लिखे हैं। ऐसे में कार्य प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए चौकीदारों को थानों पर प्रशिक्षित भी किया जाता है। थानेदार चौकीदारों के साथ बैठकों में नई कानून व्यवस्था के बारे में जानकारी देते हैं। साथ ही आपराधिक गतिविधियों पर कैसे निगाह रखी जाए, यह भी बताया जाता है। पुलिस अधिकारियों का मानना है कि चौकीदार घटनास्थल के सबसे नजदीक होते हैं। ऐसे में कई बार उनके पास पुलिस से ज्यादा मजबूत जानकारी होती है। पुलिस का प्रयास रहता है कि चौकीदारों की सूचनाओं पर आगे बढ़ते हुए अपराध की जड़ तक पहुंचा जाए। इसके लिए जरूरी होता है कि चौकीदार को पहले से ही इस तरह ट्रेंड कर लिया जाए कि किसी अपराध के बाद उसे मुख्य रूप से किन पहलुओं पर विशेष निगाह रखनी है।

तीसरी और चौथी पीढ़ी के लोग निभा रहे हैं चौकीदार की जिम्मेदारी

ब्रिटिश हुकूमत के जमाने से शुरू हुई चौकीदार व्यवस्था कुछ परिवर्तनों के साथ आज भी कायम है। जिले में दर्जनों ऐसे चौकीदार हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चौकीदारी की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। जिले के रसूलपुर गांव में रमेश कुमार चौकीदार हैं। उनके पिता रामदुलारे और और उनसे पहले बाबा बिहारी लाल गांव के चौकीदार रहे। मौजूदा समय में राजकिशोर चौथी पीढ़ी में ऐरा के चौकीदार हैं। राजकिशोर के पिता भगौती प्रसाद, बाबा सल्हू और परबाबा बिंद्रा प्रसाद भी चौकीदार बने रहे। इसी तरह बैबहा के छेदीलाल, शेरपुर के मुरलीधर भी अपनी तीसरी पीढ़ी में पुरखों की विरासत संभाले पुलिस का सहयोग कर रहे हैं।

शिकायतें:

- जोखिम का काम होने के बाद भी मेहनताना कम है।

- कोई वर्दी भत्ता आदि नहीं मिलता, सब जेब से खर्च होता है।

- गांव थाने से काफी दूरी पर हैं, वहां तक आने में पैसा खर्च होता है।

- चौकीदारों को अलग से कोई योजना का लाभ नहीं मिलता।

- बीमार या बुजुर्ग होने पर चौकीदारी का काम भी हाथ से चला जाता है।

- खतरे का काम होने के बाद भी किसी तरह की बीमा योजना का लाभ नहीं मिलता।

सुझाव:

- चौकीदारों को सम्मानजनक मेहनताना दिया जाए।

- वाहन और वर्दी भत्ता उपलब्ध कराया जाए।

- थाने बुलाकर हाजिरी की बजाय फोन से काम चलाया जाए।

- स्नातक कर चुके ग्राम प्रहरियों को पुलिस व होमगार्ड विभाग में समायोजन हो।

- सभी चौकीदारों का आयुष्मान कार्ड बनाया जाए। सभी को आवास में प्राथमिकता मिले।

हमारी भी सुनिए

चौकीदार की भूमिका निभा पाना आसान नहीं है। गांव में होने वाली घटना के तार गांव के लोगों से ही जुड़े होते हैं। प्राय: अपराधी और अपराध पीड़ित दोनों ही गांव के होते हैं। अपराधी चाहता है सूचना पुलिस तक न पहुंचे। सूचना देने पर गांव में रंजिश की स्थितियां बन जाती हैं। जिनसे पार पाना कई बार टेढ़ी खीर साबित होता है। -डोरेलाल चौकीदार

महिला होने के नाते जिम्मेदारी और रिस्क दोनों ही बढ़ जाते हैं। पर इन सबकी परवाह किए बगैर इस बात पर ध्यान रखा जाता है कि कोई अपराध न होने पाए। अप्रिय स्थितियों की सूचना समय पर पुलिस को देकर कई बार बड़ी वारदात होने से बचाई गई। गृहस्थी और चौकीदारी में सामंजस्य बिठाकर दोनों कामों को अंजाम तक पहुंचाना कोई मुश्किल काम नहीं है। - श्रद्धा भारती, महिला चौकीदार

मंहगाई के मद्देनजर चौकीदारी का काम करके मिलने वाली पगार काफी कम है। 2500 रुपये माहवार पगार से घर चलाना मुश्किल होता है। ऐसे में खेती किसानी या फिर मजदूरी करनी पड़ती है। पगार बढ़ जाये तो हमें अन्य कामों में समय न देना पड़े। ज्यादातर समय अपने मूल काम पर दिया जाए तो चौकीदारी का काम और ज्यादा बेहतर होता है। - रामनरेश चौकीदार

चौकीदारी का काम करने के बदले सरकार 2500 रुपये माहवार देती है। जो काफी कम है। कार्य को और बेहतर बनाने के लिए चौकीदारों का वेतन बढ़े और वर्दी भत्ता मिले। चौकीदारों को वर्दी अपने खर्च से बनवानी पड़ती है। एक जोड़ी वर्दी में महीने भर की पगार खप जाती है। इससे परिवार चलाने में मुश्किल होती है। -सोनेलाल, चौकीदार

चौकीदारी का काम आसान नहीं है। अपराधियों की तरफ से अनहोनी की आशंका बनी रहती है। सरकार चौकीदारों के लिए भी सुरक्षा का इंतजाम करे। मौके के अफसर चौकीदारों के साथ होने वाली ज्यादतियों पर ठोस कार्रवाई करे। जिससे चौकीदार खुद को सुरक्षित समझकर लगन के साथ अपना काम करते रहें। -मेवालाल, चौकीदार

चौकीदार भले ही सरकारी तंत्र का एक हिस्सा हैं। पर सरकारी कर्मचारियों की तरह मिलने वाली सुविधाओं से वंचित है। सरकार बेहतर काम करने के लिए प्रेरित तो करती है, पर सुविधाएं नहीं देती है। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए चौकीदार इधर उधर के काम करने को मजबूर होते हैं। इन स्थितियों से सरकार चौकीदारों को उबार ले तो चौकीदार पुलिसिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। -जितेंद्र कुमार, चौकीदार

चार पीढ़ियों से चौकीदारी की कमान हमारे पास है। ब्रिटिश हुकूमत में बाबा को मिलने वाली पगार भले ही 1 रुपया माहवार से 2500 रुपये तक पहुंच गई है। मगर मंहगाई को देखते हुए ये पगार काफी कम साबित होती है। पगार के सहारे घर के जरूरी खर्च भी नहीं पूरे होते हैं। जिसके लिए अन्य काम करने पड़ते हैं। -मोंगरे चौकीदार,राजापुर

न्यूनतम पगार पर कार्यरत चौकीदारों को शासकीय योजनाओं में वरीयता मिलनी चाहिए। आवास और कृषि योग्य भूमि के आवंटन के साथ सरकार चौकीदारों के परिवार समेत शासकीय व्यय पर स्वास्थ्य बीमा कराए। पैसों के अभाव में चौकीदार अपने परिजनों का इलाज तक सही जगह पर नहीं करा पाता है। चौकीदारों के घरों की हालत खस्ता है। -पन्नालाल, लुधौनी

कानून की मदद करते करते चौकीदारों के दुश्मन तैयार हो जाते हैं। कई बार हमको धमकाते हैं या मारपीट करते हैं। थानों पर ऐसे मामलों में चौकीदार को भी आम शिकायतकर्ता की तरह ही सामना करना पड़ता है। सरकार अपराध पीड़ित चौकीदारों की सुनवाई और कार्रवाई वरीयता के आधार पर करे जिससे चौकीदार बिना भय के अपने कामों को अंजाम दे सकें। -छेदीपुर, चौकीदार

पगार और खर्च में सामन्जस्य बिठाना चौकीदारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। पगार के मद में मिलने वाले ढाई हजार रुपयों में से एक अच्छा खासा बजट टार्च, छाता और थानों पर हाजिरी देने जाने में खर्च हो जाता है। रात भर पहरा और जरूरत पड़ने पर दिन भर थाने पर रुकने से काफी चीजें अव्यवस्थित हो जाती हैं। सरकार हमसे काम ले तो इतना जरूर दे दे जिससे किसी के आगे हाथ फैलाये बिना जीविकोपार्जन हो सके। -कल्लू, खनवापुर

प्रशासन को चौकीदारों की मदद करनी चाहिए। हम लोगों को सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता। हम लोगों के लिए कैंप लगाकर स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ दिया जाए। सभी को आयुष्मान कार्ड का लाभ दिलाया जाए। -मुरलीधर, शेरपुर

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