ट्रांसपोर्टर परेशान, ट्रांसपोर्ट नगर बसाकर हो समस्याओं का समाधान
Lakhimpur-khiri News - पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल के ट्रांसपोर्टर कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ईंधन की बढ़ती कीमतें, टोल टैक्स में वृद्धि और खराब सड़कें उनके व्यवसाय को प्रभावित कर रही हैं। ट्रांसपोर्ट नगर की कमी और...
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पंजाब, हरियाणा से लेकर पश्चिम बंगाल तक व्यापारियों का माल पहुंचाने और ले आने वाले ट्रांसपोर्टर कई परेशानियों में घिरे हैं। जिले 500 से अधिक ट्रांसपोर्टर हैं। स्थानीय समस्याओं के साथ ही ईंधन की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि, टोल टैक्स में इजाफा और मालभाड़े में स्थिरता जैसे कारणों ने उनके व्यवसाय को प्रभावित किया है। इसके अलावा, सड़कों की खराब हालत और अवैध माल वाहक वाहनों ने उनके सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। ट्रांसपोर्ट से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि शहर के ट्रांसपोर्ट नगर में जमीन इतनी महंगी है कि उसे खरीद पाना उनके बस में नहीं है। जनपद के ट्रांसपोर्ट व्यवसायी चौतरफा मार झेल रहे हैं। डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से ट्रांसपोर्ट लागत में भी भारी इजाफा हुआ है। ट्रक मालिकों का कहना है कि माल-भाड़े में कोई बढ़ोतरी नहीं होने के कारण उन्हें घाटे का सामना करना पड़ रहा है। ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि टोल टैक्स की दरें तेजी से बढ़ी हैं, जिससे परिवहन लागत में और भी इजाफा हुआ है। इसके अलावा, राज्यवार प्रवेश शुल्क और परमिट शुल्क भी उनकी समस्याओं को और बढ़ा रहे हैं। ट्रांसपोर्टरों ने सरकार से डीजल की कीमतों में स्थिरता लाने, टोल टैक्स की समीक्षा करने और मालभाड़े में उचित वृद्धि की मांग की है। उनका कहना है कि उनके ट्रक जो दूसरे दिन प्रयाग, वाराणसी, आगरा से लखीमपुर आ जाते थे वह अब जाम के कारण तीन से चार दिन तक फंसे रहते हैं। ट्रान्सपोर्ट व्यवसाय से जनपद के करीब दस हजार लोगों को रोजगार देता है, जो इस समय घाटे में चल रहा है। जनपद में कई ऐसी जगह हैं, जहां नो-एंट्री का बोर्ड तक नहीं लगाया जाता, जब चालक ट्रक लेकर प्रतिबंधित क्षेत्र में पहुंचता है तो उसका चालान कर दिया जाता है। यही नहीं, उनकी सबसे बड़ी समस्या अवैध माल वाहक वाहनों से है। उनका कहना है कि तमाम ऐसे वाहन भी माल ढुलाई में लगे हैं, जो न टैक्स देते हैं और न ही वे माल ढुलाई के काबिल भी नहीं हैं। इन वाहनों की वजह से जिले में उनका कारोबार पूरी तरह से प्रभावित हो जाता है। कई बार ज्ञापन के बाद भी अधिकारियों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
परमिट रिन्यूअल के लिये जाना पड़ता है लखनऊ
ट्रान्सपोर्ट व्यवसायियों के अनुसार उनको गाड़ियों के नेशनल परमिट का प्रतिवर्ष रिन्यूअल करवाना पड़ता है। सरकार ने इसके लिये आनलाइन व्यवस्था जरूर की है, लेकिन यह व्यवस्था सिर्फ आवेदन तक ही सीमित है। हम लोगों को अपने परमिट रिन्यूअल करवाने के लिये लखनऊ जाना पड़ता है। इसमें समय लगता है, आर्थिक खर्च बढ़ता है सो अलग। जनपद स्तर पर भी रिन्यूअल की व्यवस्था होनी चाहिये। जिससे समय और पैसा दोनो बच सके।
पार्किंग न साइन बोर्ड, हर कदम हो रहा चालान
ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि ट्रको की पार्किंग के लिये कोई स्थान नही बनाया गया है। ऐसे में जब ट्रक को आवश्यकता पड़ने पर इधर-उधर खड़ा कर दिया जाता है तो पुलिस चालान काट देती है। यह चालान भी दस हजार रुपये से लेकर पच्चीस हजार रुपये तक का होता है। इसी तरह यहां पर कई ऐसी जगह हैं, जहां पर बड़े वाहनों की इंट्री प्रतिबंधित है, लेकिन किसी तरह का साइन बोर्ड नही लगा है। जिससे ट्रक चालक कभी-कभी नो इंट्री में ट्रक लिये जाते हैं और ट्रैफिक पुलिस चालान कर देती है। जब वह मार्ग प्रतिबंधित है तो बाकायदा साइन बोर्ड लगना चाहिए। ट्रक चालक को आखिर कैसे पता चलेगा कि इस रास्ते पर जाने पर चालान कट जाएगा। जिन मार्गों पर साइन बोर्ड न लगा हो, वहां चालान कटना ही नहीं चाहिए।
जगह चिन्हित होने के बाद भी नही बना ट्रान्सपोर्ट नगर
ट्रांसपोर्ट व्यवसायियों ने बताया कि ट्रांसपोर्ट नगर न होना बड़ी समस्या है। कई बार इसके लिए कवायद हुई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इससे व्यवसाय में भी परेशानी हो रही है। लखीमपुर-बेहजम रोड पर कुछ समय पहले ट्रान्सपोर्ट नगर के लिये जगह आवंटित की गई थी, लेकिन वहां पर गैस प्लांट लग जाने से बची हुई जगह पर अब तक ट्रान्सपोर्ट नगर नही बन सका है। इसका एक कारण जमीनों के रेट का आसमान छूना भी है। ट्रान्सपोर्ट नगर में जगह इतनी महंगी है कि उसको खरीद पाना व्यवसायियों के बस के बाहर है। यही नहीं, उसके ऊपर से बिजली लाइन निकली है। इस वजह से वहां ट्रक ले जाने में भी डर लगता है।
साल में सिर्फ छह महीने रफ्तार पकड़ता है व्यवसाय
ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि अगर देखा जाए तो उनका व्यवसाय साल में सिर्फ छह महीने ही रफ्तार पकड़ता है। प्रति वर्ष सावन में होने वाली कांवड़ यात्रा, बरसात का मौसम, सर्दी में कोहरे की मार के साथ अन्य छोटी-बड़ी समस्याओं से हम लोगों की ट्रकों में ब्रेक लग जाता है। साल में छह महीनों में हुए व्यवसाय से ही हमें अपने खर्चे, कर्मचारियों का वेतन, बैंक की किस्त, रिन्यूअल और टैक्सों का भुगतान करना पड़ता है।
अनाधिकृत वाहन भी ढो रहे हैं माल
डग्गामार वाहनों की बढ़ती संख्या से ट्रक व्यापारियों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय ट्रक मालिकों का कहना है कि ये अनधिकृत वाहन बिना किसी नियम-कानून का पालन किए माल ढुलाई कर रहे हैं, जिससे उनकी आमदनी में भारी गिरावट आई है। व्यापारियों ने बताया कि डग्गामार वाहनों के कारण उन्हें प्रतिदिन हजारों रुपये का नुकसान हो रहा है। उन्होंने प्रशासन से इस समस्या पर सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। व्यापारियों के अनुसार डग्गामार वाहनों में न तो माल का सही बीमा होता है और न ही सुरक्षा मानकों का पालन किया जाता है, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ गया है।
शिकायतें:
- जिले में अनाधिकृत माल वाहक वाहनों की वजह से कारोबार प्रभावित हो रहा।
- कृषि कार्य के वाहनों से भी स्थानीय स्तर पर माल ढुलाई की जाती है।
- अधिकांश मार्गों पर कोई साइन बोर्ड नहीं लगा है और बिना किसी चेतावनी के भारी चालान कर दिया जाता है।
- शहर में कहीं भी ट्रक पार्किंग की व्यवस्था नही है।
- ट्रान्सपोर्ट नगर में जगह नही है, प्लाट महंगे हैं। ऊपर से बिजली लाइन निकली है।
सुझाव:
- अवैध माल वाहक वाहनों पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
- ट्रकों के लिये पार्किंग की व्यवस्था होनी चाहिये।
- नो इंट्री के बोर्ड लगे हों, ताकि चालान होने से बच सके।
- ट्रान्सपोर्ट नगर के लिये जगह चयनित कर उसे बनाया जाए।
- नेशनल परमिट का रिन्यूअल जनपद में ही हो।
- ट्रकों के चलने वाले रास्ते सही हों, गड्ढे होने से हादसे की आशंका होती है।
हमारी भी सुनिए
ट्रान्सपोर्ट व्यवसायी ज्ञान मिश्रा ने बताया कि हाई-वे और लंबी दूरी की बात तो छोड़ दीजिये, जनपद से निकलने से पहले ही टोल प्लाजा शुरू हो जाते हैं। जितना भाड़ा नही मिलता, उतना तो टोल चला जाता है।
राजू राना ने बताया कि डीजल लगातार महंगा हो रहा है, जीएसटी सहित कई सारे टैक्स देने पड़ रहे हैं। हम लोगों को गाड़ियों की किस्त तक निकालने में समस्या हो रही है। वहीं ट्रान्सपोर्ट नगर में जमीन इतनी महंगी है कि हम लोग उसे खरीद नही सकते।
बलवीर सिंह का कहना है कि जिस जगह नो इंट्री है, जहां कम से कम नो इंट्री का साइन बोर्ड तो लगा होना चाहिये। कई बार चालक जान ही नही पाता है और फोटो खींचकर दस हजार रुपये तक का चालान हो जाता है। कई बार ट्रैफिक पुलिस वाले चलते ट्रकों का चालान कर देते हैं।
ट्रान्सपोर्ट व्यवसायी पिंटू ने कहा कि सावन माह में बड़े वाहनों पर रोक लग जाती है। हम लोगों के ट्रकों के पहियों पर ब्रेक लगा दिया जाता है। हम लोगों को एक अलग रूट देने की व्यवस्था की जाए, जिससे हमारा कारोबार भी चल सके।
बॉबी राना ने बताया कि ट्रांसपोर्ट नगर में कोई व्यवस्था नहीं है। प्रशासन ने इस मामले का हल नहीं निकाला है। शहर में ट्रक खड़े करने के लिये कही भी पार्किंग की व्यवस्था नही है। पार्किंग न होने से हम लोगों को ट्रक खड़ी करने में समस्या होती है।
इन्दर सिंह ने बताया कि कुछ साल पहले बेहजम रोड पर ट्रान्सपोर्ट नगर बनाने के लिये जमीन एलॉट हुई थी, लेकिन बाद में वहां पर गैस प्लांट लग गया, जिससे ट्रान्सपोर्ट नगर सिर्फ नाम के लिये ही रह गया। यहां सिर्फ नाम के लिये ही ट्रान्सपोर्ट नगर बना है। कोई सुविधा नही है।
व्यवसायी दीपक शुक्ला ने कहा कि परिवहन विभाग ने टैक्स बढ़ा दिया है। सरकार को हम लोगों को आर्थिक परीक्षण करवाना चाहिये, उसके बाद टैक्स, ईंधन के रेट बढ़ाने चाहिये। हम लोगों को गाड़ी की किस्त, बीमा और कई तरह के खर्चे झेलने पड़ते हैं। इस तरह से तो हमारा व्यापार घाटे में चला जाएगा।
ट्रान्सपोर्ट व्यवसायी अली बहादुर का कहना है कि थर्ड पार्टी बीमा प्रीमियम के रेट कई गुना बढ़ा दिये गए है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिये। सड़कों पर गैर पंजीकृत वाहन दौड़ रहे हैं, जो किसी तरह का टैक्स नही देते हैं। ये डग्गामार वाहन व्यापार पर खराब असर डाल रहे हैं।
ट्रांसपोर्टर प्रभाकर शर्मा का कहना है कि ट्रांसपोर्ट नगर लखीमपुर में है ही नहीं। बस उसके लिए जगह एलॉट की गई थी। लेकिन कोई सुविधा दी नहीं गई। हम लोगों ने मांग उठाई थी कि बिजली के तार हटाए जाएं, वह भी पूरी नहीं हुई है। समस्याएं कोई नहीं सुन रहा।
ट्रांसपोर्टर अर्पित गुप्ता का कहना है कि हम लोग हजारों लोगों को रोजगार देते हैं, टैक्स देते हैं, लेकिन बदले में हमें ट्रक खड़ा करने की सरकारी जगह तक नहीं मिल पा रही। लंबी दूरी के अलावा स्थानीय स्तर पर ट्रांसपोर्टिंग का काम ही पूरा नहीं हो पा रहा है। इससे हमारी समस्या बनी हुई है।
ट्रांसपोर्टर सुरिंदर सिंह धीर का कहना है कि लखीमपुर में पार्किंग की सुविधा कोई नहीं है ना ही ट्रांसपोर्ट नगर है। जिसकी वजह से गाड़िया रोड के किनारे पर खड़ी होती हैं और चालान का नुकसान होता है। डीजल आदि की महंगाई से कारोबार पहले से प्रभावित है। स्थानीय स्तर पर इन मांगों पर गौर किया जाना चाहिए।
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