बोले लखीमपुर खीरी: रोजगार के अवसर, समय पर पेंशन चाहते हैं दिव्यांग
Lakhimpur-khiri News - दिव्यांगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए कई सरकारी योजनाएं चल रही हैं, लेकिन इन योजनाओं का लाभ सभी दिव्यांगों को नहीं मिल पा रहा है। प्रमाण पत्र बनवाने, ट्राई साइकिल और पेंशन के लिए आवेदन करने...
दिव्यांगों का जीवन स्तर बेहतर करने, उनको रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए कई सरकारी योजनाएं चल रही हैं। सरकार प्रयास कर रही है कि उनकी शारीरिक अक्षमता उनके विकास में आड़े न आए। पर इसका लाभ सभी दिव्यांगों को नहीं मिल रहा है। प्रमाण पत्र बनवाने से लेकर ट्राई साइकिल और लोन के लिए आवेदन करने तक उनको कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हिन्दुस्तान से बात करते हुए दिव्यांगों ने अपनी समस्याएं बताईं और साथ ही ऐसे सुझाव बताए जिससे उनके जीवन को सरल बनाया जा सकता है। शारीरिक अक्षमता के बाद भी दिव्यांगजनों के हौसले, जज्बे में कमी नहीं है। कुछ स्वरोजगार कर अपनी गृहस्थी चला रहे हैं तो कुछ छोटी-मोटी नौकरी कर रहे हैं। जिले में 22 हजार दिव्यांगों को पेंशन मिल रही है। पर, जिले में दिव्यांगों की संख्या इससे कहीं अधिक है। उनके साथ सबसे बड़ी परेशानी है, सरकारी योजनाओं की जानकारी न होना और उसका लाभ लेने के लिए होने वाली भागदौड़। यही वजह है कि कई दिव्यांगों की तो पेंशन ही नहीं बन सकी है। पेंशन बनवाने के लिए रोजाना ही कार्यालय में दिव्यांगजन जुटते हैं।
दिव्यांगों को शिकायत है कि उनको हर महीना समय से पेंशन नहीं मिल पा रही है। इस वजह से कई बार उनको सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। ऐसे भी दिव्यांगजन हैं, जिनकी पेंशन तो बनी लेकिन किन्हीं कारणों के चलते कट गई। काफी समय से उनको पेंशन नहीं मिल रही है। ऐसे में बहुत से दिव्यांगजन हैं जिनको अपनी आजीविका चलाने में कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि शारीरिक अक्षमताओं को ध्यान में रखते हुए उनकी सुविधा के अनुसार रोजगार उपलब्ध करा दिया जाए जिससे वह अपना व अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें। इससे उनकी निर्भरता भी समाप्त होगी और समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकेंगे।
स्वरोजगार के लिए मिले लोन
दिव्यांगजन कहते हैं कि हम लोग छोटे स्तर पर अपना व्यवसाय करते हैं। ऐसे में यदि हमें प्रधानमंत्री मुद्रा लोन योजना का लाभ मिल जाए तो हम लोग अपने छोटे से व्यवसाय को बड़े स्तर पर कर अपना व अपने परिवार की देखभाल अच्छे से कर सकते हैं। कई दिव्यांगजन ऐसे हैं जो कास्मेटिक, चाय की दुकान, पान की दुकान, अण्डे की दुकान, साइकिल पंचर बनाने की दुकान इत्यादि जैसे अपनी सुविधा के अनुसार काम कर रोजमर्रा की जिंदगी जी रहे हैं। उनका कहना है कि यदि इनको सरकार से आर्थिक सहायता मिल जाए तो वह भी अपना काम शुरू कर सकते हैं। इससे न केवल उनको आर्थिक आजादी मिलेगी बल्कि समाज में भी सम्मान मिलेगा।
एक साल से नहीं मिल रही पेंशन
मितौली निवासी दिव्यांग दंपति लक्ष्मी देवी और मुनेन्द्र मिश्रा बताते हैं कि उनके दो बच्चे हैं। वह दोनों लोग दिव्यांग हैं। रोजगार न होने के चलते परिवार का भरण पोषण करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। मुनेंद्र ने बताया कि सरकार से मिलने वाली योजनाओं में प्रधानमंत्री आवास योजना, दिव्यांग पेंशन का लाभ मिल रहा है। लेकिन उनकी पत्नी लक्ष्मी की करीब एक साल से पेंशन कट चुकी है। कई बार कार्यालयों के चक्कर लगा चुकी हैं लेकिन पेंशन नहीं बन पाई है। कार्यालय आने जाने में भी कठिनाई होती है। दंपति कहते हैं कि सरकार रोजगार से जोड़ दे तो परिवार चलाना आसान हो जाए।
आत्मनिर्भर बनने को उत्सुक दिव्यांगजन
दिव्यांगजन कहते है कि प्रदेश सरकार जब समाज के हर वर्ग को रोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रही है। फिर हम लोगों को भी हमारी शारीरिक क्षमता के अनुसार रोजगार प्रदान करना चाहिए। इससे हम लोग भी आत्मनिर्भर बन सके। दिव्यांगों का कहना है कि हम लोगों को नगर पालिका की ओर से अस्थायी दुकानें दी जाएं। इसके अलावा लोन की व्यस्था भी हो, जिससे वे रोजगार कर सकें। कई बार इस बारे में वे मांग कर चुके हैं, लेकिन उसका हल नहीं निकल सका।
पैर से दिव्यांग सभी लोगों को मिले ट्राई साइकिल
दिव्यांग कहते हैं कि जब ट्राई साइकिल मिली है तब हम लोगों को कहीं भी आने-जाने में समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है। सरकार द्वारा दी गई ट्राई साइकिल से हमारा सफर आसान हुआ है। पर ट्राई साइकिल लेने के लिए उनको संस्थाओं का मुंह देखना पड़ता है। कई बार सरकार की ओर से भी कैंप लगता है। बावजूद इसके सभी को ट्राई साइकिल भी नहीं मिल पा रही है। जो भी लोग पैर से अक्षम हैं, चल नहीं सकते, उन सभी दिव्यांगों को अगर ट्राई साइकिल मिल जाए तो उनके लिए काफी सहूलियत होगी। इससे उनकी कहीं आने जाने के लिए दूसरे पर निर्भरता खत्म होगी। साथ ही अपना दैनिक कार्य भी कर सकेंगे। उनकी आत्मनिर्भरता के लिए भी यह जरूरी है।
समय से नहीं आती पेंशन, होते हैं परेशान
दिव्यांग कहते हैं कि कहने को सरकार जीवन यापन के लिए पेंशन देती है। लेकिन पेंशन तय समय नहीं मिल पाती है। इससे परिवार चलाने में परेशानी होती है। यदि समय से पेंशन आ जाय तो सभी काम समय से हो जाए। कभी पांच तो कभी छह माह बाद पेंशन आती है। दिव्यांगों को हजार रुपये महीने की महज पेंशन मिलती है और वह भी कई दफा अटक जाती है।
सहानुभूति नहीं, अवसरों की दरकार
दिव्यांगों का कहना है कि सशक्त बनाने के लिये सरकार कई योजनाएं चला रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर पात्र दिव्यांग को इसका पूरा लाभ नही मिल पा रहा है। उनके पास अवसरों की कमी है। यदि अवसर मिले तो वह भी सशक्त बनकर अपना व परिवार का भविष्य संवार सकते हैं। उनका कहना है कि सहानुभूति नहीं, उनको उचित अवसर दिया जाए। ऐसे काम में उनको जोड़ा जाए जहां उनकी शारीरिक अक्षमता आड़े न आए। कई दिव्यांग पढ़े लिखे हैं जो कंप्यूटर भी चला लेते हैं। कई अकाउंट का काम भी जानते हैं। दिव्यांगों को उनकी क्षमता के अनुसार अवसर मिलना चाहिए।
हेल्प डेस्क बने तो होगी काफी सहूलियत
दिव्यांगजनों के लिये एक हेल्प डेस्क की आवश्यकता है। साथ ही सरकारी विभागों के कार्यालय में उनकी सुविधा के लिये अलग से हेल्प विण्डो की जरूरत है, जो दिव्यांगों की समस्याओं की त्वरित सुनवाई कर उसका निदान करवा सकें। दिव्यांगों की यह भी मांग है कि दिव्यांग प्रमाणपत्र के लिए उनको जिला मुख्यालय पर न बुलाया जाए। तहसील स्तर पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से कैंप भी लगाया जाए।
विकास भवन की सीढ़ियां चढ़ अफसरों तक पहुंचते हैं दिव्यांग
लखीमपुर। विकास भवन के पहली व दूसरी मंजिल पर स्थित दफ्तरों में काम से जाने वाले दिव्यांगों को सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यहां लिफ्ट की व्यवस्था नहीं है। बताते हैं कि विकास भवन निर्माण के समय लिफ्ट की जगह तो छोड़ी गई लेकिन मानक पूरे न होने के कारण यहां लिफ्ट नहीं लग सकी है। दिव्यांग कल्याण विभाग का दफ्तर विकास भवन के ग्राउंड फ्लोर पर है जबकि अधिकारी दूसरी मंजिल पर बैठते हैं। कार्यालय तक तो दिव्यांग पहुंच जाते हैं लेकिन अगर फरियाद लेकर सीडीओ, डीडीओ, पीडी, डीपीओ, सीवीओ, डीपीआरओ व पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अधिकारी से मिलना हो तो सीढ़ियो चढ़कर जाना पड़ता है। विकास भवन में लिफ्ट लगाने के लिए प्रस्ताव कई बार भेजा गया लेकिन मानकों का हवाला देकर इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
शिकायतें:
- दिव्यांगों के लिए रोजगार के अवसरों की कमी है जिसके चलते वह आत्मनिर्भर नहीं बन पा रहे हैं।
- समाज में उनको मुख्यधारा से अलग रखा जाता है और सम्मान भी नहीं मिलता
- कई विद्यालय दिव्यांग बच्चों का एडमिशन लेने से झिझकते हैं।
- सार्वजनिक स्थलों पर दिव्यांगों के लिये रैंप, ब्रेल संकेत, श्रवण यंत्र की व्यवस्था नही है।
- कई दिव्यांगों के राशन कार्ड कट गए हैं और इसके चलते उनको राशन नहीं मिल रहा है।
-सरकारी योजनाओं में उनकी पूरी भागीदारी नहीं मिल पा रही है।
सुझाव:
- जिला स्तर पर सरकारी हेल्प डेस्क स्थापित हो।
- सरकारी योजनाओं में प्राथमिकता मिले।
- हर सरकारी विभाग में अलग से दिव्यांगजन काउंटर बनाया जाए।
- प्रत्येक माह तहसील स्तर पर स्वास्थ्य शिविर लगवाकर जांच करवाई जाए।
- दिव्यांगों के लिये रोजगार योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन हो।
- स्कूलों में जो दिव्यांग बच्चे पढ़ने में सक्षम हों, उनको दाखिले में वरीयता मिलनी चाहिए।
हमारी भी सुनिए
संतोष अवस्थी ने बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कई बार आवेदन किया, विभागों के चक्कर भी काटे लेकिन पात्र होने के बावजूद अब तक योजना का लाभ नही मिला है।
मितौली निवासी मुनेन्द्र मिश्रा ने बताया कि वह 85 प्रतिशत दिव्यांग हैं। वाणिज्य वर्ग से परास्नातक भी हैं, लेकिन बेरोजगार हैं। अगर हमें योग्यता के अनुसार नौकरी मिल जाए तो हमारा परिवार भी बेहतर जीवन गुजार सकेगा।
लक्ष्मी देवी ने बताया कि वह स्वयं और उनका पति मुनेन्द्र दोनो ही दिव्यांग हैं। हम लोगों के पास कोई रोजगार नही है, दिव्यांग पेंशन से परिवार का गुजारा हो रहा है। वह भी समय से न आने पर काफी परेशानी होती है। किसी भी योजना का लाभ लेने के लिये लोकल स्तर पर सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
बेढ़़नापुर निवासी हरपेन्दर सिंह का कहना है कि जिस तरह से जिला पुरुष अस्पताल में दिव्यांग लोगों के लिये अलग से विंडो या काउंटर है, उसी तरह से हर सरकारी कार्यालय में दिव्यांग लोगों के लिये अलग से काउंटर होना चाहिये।
शहर के मोहल्ला प्यारेपुर निवासी कुलदीप कुमार ने बताया कि हम लोग आम लोगों की तरह रोजगार या नौकरी करना चाहते हैं, लेकिन हमे अवसर नही मिलता है। हम लोगों को बैंक या किसी अन्य संस्था लोन उपलब्ध करवा दे तो हम लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी।
सद्दाम हुसैन ने बताया कि वह देउवापुर में साइकिल का पंचर जोड़ने का काम करके अपनी रोजी रोटी चलाते हैं। उन्होने मुद्रा लोन के लिये आवेदन किया था, लेकिन विभाग से बताया गया कि लक्ष्य पूरा हो गया है। यदि दिव्यांगों को किसी रोजगार का प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता मिल जाए तो उनका जीवन बेहतर बनेगा।
रामापुर निवासी रामकुमार ने बताया कि उन्हें 27 महीने से पेंशन नही मिली है। पहले केवाईसी करवाने के लिये बताया गया था। केवाईसी अपडेट होने के बाद भी पेंशन नही आ रही है। इसके लिये हम दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग कई बार जा चुके हैं, लेकिन कहीं सुनवाई नही हो रही है।
चांदापुर निवासी रमाकांत ने बताया कि चार महीने पहले राशन कार्ड बिना किसी सूचना के काट दिया गया। कोटेदार ने बताया कि राशन कार्ड निरस्त हो गया है। केवाईसी भी करवाई। तब से कोटेदार और डीएसओ कार्यालय के कई चक्कर चलाए। अभी तक राशन कार्ड नही बन पाया है।
विनोद कुमार ने बताया कि दिव्यांग जनों को मुर्गी पालन, बकरी पालन आदि रोजगार से जोड़ने की आवश्यकता है। इसमें वह परिवार के साथ काम करके आर्थिक रूप से सक्षम हो सकते हैं। मैने कई बार इसके लिये फाइल बनाकर विभाग को दी, लेकिन कहीं से कोई मदद नही मिली।
शहर के मोहल्ला ईदगार निवासी सियाराम ने बताया कि तीन माह से उनकी पेंशन अटकी है। विभाग का कोई अधिकारी कुछ नही बताता है, न ही मदद करता है। हमको बैटरी वाली ट्राई साइकिल भी नही मिली है। इसके लिये भी आवेदन किया था, लेकिन कुछ नही हुआ।
भारतीय दिव्यांग यूनियन के तहसील अध्यक्ष विकास कुमार का कहना है कि अभी तक सरकारी योजनाओं का लाभ सभी दिव्यांगजों को नहीं मिल पा रहा है। परिवार में एक आवास रहने के लिए पूरा नहीं पड़ता। परिवार के दिव्यांगों को अलग से आवास आवंटित किया जाए। उनको प्राथमिकता दी जाए।
जहानपुर की मिथिलेश ने बताया कि हम लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं होता। सिर्फ पेंशन और ट्राई साइकिल से काम नहीं चलेगा। हमारी समस्याएं सुनने को भी हेल्प डेस्क स्थापित की जानी चाहिए। इससे समस्याओं की समय पर सुनवाई हो सकेगी।
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