बोले लखीमपुर खीरी: ईपीएफ और स्वास्थ्य बीमा का लाभ चाहते हैं रोजगार सेवक
Lakhimpur-khiri News - ग्राम रोजगार सेवक पंचायतों के कामों को प्राथमिकता से पूरा करने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, लेकिन उन्हें बहुत कम मानदेय मिल रहा है। महंगाई के दौर में भी उन्हें यात्रा भत्ता और अन्य सुविधाएं नहीं मिल...
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रोजगार सेवकों के कंधों पर पंचायतों का काम प्राथमिकता से पूरा कराने की जिम्मेदारी है। काम समय से हो और मानक के अनुसार हो, यह देखने के लिए रोजगार सेवकों की तैनाती की गई है। पंचायतों की समस्याओं का समाधान करने वाले रोजगार सेवक खुद कई परेशानियों से जूझ रहे हैं। उनकी पगार कम है, भत्ता मिलता नहीं है और स्थायीकरण की मांग करते-करते 19 साल बीत चुके हैं, पर अब तक सुनवाई नहीं हुई। बोले लखीमपुर खीरी में रोजगार सेवकों ने अपनी समस्याएं बताईं, उनके समाधान के सुझाव दिए। जिले की 1167 ग्राम पंचायतों में 788 रोजगार सेवक तैनात हैं जो पंचायतों के काम समय से पूरा करने के लिए अपनी सेवाएं दे रहें हैं। पंचायतों के काम में कोई समस्या आने पर उसे दूर करने की पहली जिम्मेदारी रोजगार सेवकों पर है, पर उनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं। हिन्दुस्तान अखबार के ‘बोले लखीमपुर खीरी अभियान के तहत रोजगार सेवकों ने अपनी परेशानियां गिनाईं। रोजगार सेवकों का दर्द है कि सरकार रोजगार सेवक केन्द्रीय योजना के कर्मचारी कहती हैं। केन्द्र सरकार कहती है कि मनरेगा कर्मचारियों के मानदेय के लिए राज्य सरकार को अलग से बजट जारी करने का अधिकार है। लेकिन न तो उन लोगों का आवश्यकता के अनुसार वेतन निर्धारित किया जा रहा है और न ही नौकरी स्थाई हो रही है। रोजगार सेवक कहते हैं कि ग्राम पंचायतों में सहायक सचिव, ग्राम विकास सहायक का पद सृजित कर ग्राम रोजगार सेवकों को समायोजित करते हुए राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। साथ रोजगार सेवकों को मोबाइल फोन रिचार्ज के रुपये, ब्लॉक तक आने जाने का भत्ता, मृतक आश्रितों को नौकरी देने का काम किया जाए। रोजगार सेवक बताते हैं कि 7788 रुपये के अल्प मानदेय में वह अपनी जीवन की गाड़ी नहीं चला पा रहे हैं। इतने कम मानदेय में ही उन्हें ब्लॉकों तक आने-जाने का खर्च, मोबाइल रिचार्ज, फाइलें बनाने में आने वाला खर्च इत्यादि सब उठाना पड़ता है। इतने कम मानदेय में यह संभव नहीं पा रहा है। रोजगार सेवकों की हालत मनरेगा के मजदूर जैसी होती जा रही है। आर्थिक हिसाब-किताब भी वैसा ही है। यह अलग बात है कि वे मनरेगा का हिसाब-किताब देखते हैं।
महंगाई के दौर में कम मानदेय पर निभा रहे जिम्मेदारी
ग्राम पंचायतों में तैनात रोजगार सेवक कहते हैं कि महंगाई के दौर में कम मानदेय में भी वह गांवों के विकास में अहम जिम्मेदारी निभा रहें हैं। वहीं अपनी सैलरी से ही वह संबंधित कार्यालयों तक आने-जाने का खर्च भी निकाल रहे हैं। मोबाइल रिचार्ज इत्यादि सभी खर्चे वह स्वयं ही उठा रहें हैं। इसके लिए विभाग से उन्हें कोई धनराशि नहीं मिलती है। उनका कहना है कि उनको कोई भत्ता नहीं मिलता। उनकी पगार का आधा हिस्सा तो कार्यस्थल तक जाने में ही खर्च हो जाता है। उनको यात्रा भत्ता मिले, स्टेशनरी का खर्च मिले, मोबाइल रिचार्ज के लिए अलग से रुपये मिले तो कुछ सहूलियत हो।
काम की लंबी लिस्ट, मानदेय कम
रोजगार सेवक बताते हैं कि ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत पक्के काम, इंटरलाकिंग, चकरोड, तालाब, पौधारोपण, तालाब खुदाई, खड़ंजा, अन्य 256 काम रोजगार सेवकों को कराने होते हैं। इस दौरान मस्टर रोल तैयार करना होता है, जिसमें मजदूर का नाम, कितने दिन काम करेंगे, बैंक खाता आदि डिटेल लिखना होता है। जो काम होते हैं, उसका प्रस्ताव ग्राम पंचायत समिति तय करती है। समिति के सदस्य व प्रधान काम तय करते हैं, सचिव उस काम पर अपनी मुहर लगाते हैं। इतने काम के बदले उनको मिलने वाला मानदेय बहुत कम है। इसे बढ़ाया जाना चाहिए।
नियमित करते हुए मिले राज्य कर्मचारी का दर्जा
रोजगार सेवक कहते हैं कि उन्हें नियमित करते हुए राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। इसके अलावा पदनाम ग्राम विकास सहायक किया जाए। उन्होंने कहा कि जब तक ग्राम रोजगार सेवकों का नियमितिकरण न हो तब तक उन्हें विभागीय कर्मी घोषित कर मानदेय अलग बजट से दिया जाए। इससे ग्राम रोजगार सेवकों की स्थिति में सुधार हो सकता है।
मृतक आश्रितों को नहीं मिली तैनाती
ब्लॉक फूलबेहड़ की ग्राम पंचायत बालूडीहा निवासी मृतक आश्रित मो. आयान कहते हैं कि उनके पिता मो. नाजिस रोजगार सेवक थे। उनकी मौत 18 नवंबर 2024 को हुई थी। लेकिन अभी तक आयान को नौकरी नहीं मिली है। ऐसे ही ब्लाक मितौली की ग्राम पंचायत संडिलवा निवासी मृतक आश्रित पम्मी देवी बताती हैं कि उनके पति की मौत 10 मार्च 2013 में हुई थी। न तो उनको पेंशन मिलती है और न ही उन्हें नौकरी मिली है। कागजी कार्रवाई होने के बाद भी इनकी दयनीय स्थिति का कोई संज्ञान नहीं ले रहा है। ऐसे ही नकहा ब्लाक के ग्राम पंचायत रौलिया गांव निवासी मृतक आश्रित रंजीत मौर्य बताते हैं कि उनके पिता की मौत 22 अप्रैल 2024 को हुई थी। कागजों की पूरी फाइल तैयार है, लेकिन इनको भी नौकरी नहीं मिल सकी। रंजीत कहते हैं कि यदि अधिकारी इसमें दिलचस्पी लें तो उन्हें भी काम करने का मौका मिल जाएगा और घर की आजीविका चलाने का साधन।
ईपीएफ, बोनस, हेल्थ, बीमा आदि की मिले सुविधा
रोजगार सेवक कहते हैं कि प्राइवेट कर्मचारी को ईपीएफ, बोनस, हेल्थ, बीमा आदि की सुविधा मिलती है। लेकिन हम लोगों को ऐसी कोई सुविधा नहीं मिलती है। ग्राम रोजगार सेवकों से जॉब चार्ट में अन्य कार्य जोड़ा जाए और हमे विभागीय कर्मचारी घोषित किया जाए।
शिकायतें:
- रोजगार सेवकों का मानदेय बहुत कम है। इससे दिक्कत होती है।
- ब्लाक तक आने का भत्ता आदि नहीं मिल पाता है।
- पंचायतों में मनरेगा का लॉगिंग आईडी, पासवर्ड रोजगार सेवक के पास नहीं है।
- महिला रोजगार सेवकों का स्थानांतरण नहीं किया जा रहा है, इससे उनको काफी परेशानी हो रही है।
- मृतक आश्रित की नियुक्ति में विभाग धीमी गति से फाइल चलाता है।
सुझाव:
- मनरेगा के तहत ऑनलाइन कार्य करने के लिए इंटरनेट सहित मोबाइल दिया जाए।
- रोजगार सेवकों की पगार बढ़ाई जाए और यह समय से मिले।
- रोजगार सेवकों को स्मार्ट फोन दिया जाए और वाहन भत्ता मिले।
- रोजगार सेवक की मृत्यु होने पर उसके परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी दी जाए।
- विभागीय पोर्टल के पंचायत स्तर का लॉगिन और पारवर्ड दिया जाए।
हमारी भी सुनिए:
ग्राम रोजगार सेवक वारिस अली ने बताया कि 4 अक्टूबर 2021 को मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि मनरेगा कर्मचारियों के लिए एचआर पॉलिसी लागू की जाएगी, जो अभी तक लागू नहीं हुई है। हम सब जहां के तहां हैं।
मुनीश कुमार ने कहा कि कई बरसों से हम ग्राम रोजगार सेवकों की बदौलत मनरेगा योजना में प्रदेश नंबर वन पर है। लेकिन हम ग्राम रोजगार सेवकों की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। हमारी समस्या पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है।
रोजगार सेवक सुनीता यादव का कहना है कि ग्राम रोजगार सेवक के रूप में काम करते हुए हम लोगों को 19 वर्ष हो गए हैं, लेकिन अब तक उन्हें नियमित नहीं किया गया है। सरकार हमें अनदेखा कर रही है। पगार इतनी कम है कि घर नहीं चलता है।
सईद अंसारी ने बताया कि सरकारी योजना को डिजिटलाइजेशन किया गया है, लेकिन मनरेगा का संचालन कर रहे ग्राम रोजगार सेवकों को न तो मोबाइल या टैबलेट दिए गए हैं और न ही मोबाइल रिचार्ज का रुपया दिया जाता है।
सुधाकर मिश्रा का कहना है कि ग्राम रोजगार सेवकों को पंचायत स्तर पर लॉगिन पासवर्ड दिए जाने के आदेश अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने दिए थे। इस आदेश को अब तक लागू नहीं किया गया है। ग्राम पंचायत स्तर पर मनमानी जारी है।
ग्राम रोजगार सेवक प्रभा देवी ने बताया कि शासन द्वारा एनएमएमएस ऐप का उपयोग श्रमिकों की उपस्थिति के लिए आदेशित है। यह काम हम लोगों का है, लेकिन शासन के आदेशों की अनदेखी कर प्रधान या प्राइवेट व्यक्ति को इसका लॉगिन पासवर्ड दे दिया गया है।
बलराम किशोर ने बताया कि ग्राम रोजगार सेवकों को स्वास्थ्य बीमा और दुर्घटना बीमा मिलना चाहिए। जिससे किसी अनहोनी की दशा में उनका परिवार सड़क पर न आ जाए। इसके साथ ही परिवार को भी स्वास्थ्य बीमा में शामिल किया जाए।
जफर अली ने बताया कि कई ब्लॉकों में वर्ष 2008 में ग्राम रोजगार सेवकों का चयन किया गया, लेकिन ब्लॉक स्तरीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण अनुमोदन नहीं हो पाया और वर्ष 2016 में उन्हें हटा दिया गया। अभी तक उन्हें बहाल नहीं किया जा सका है।
दीपक कुमार ने बताया कि हम लोगों का काम रोजगार सेवक का है लेकिन हम लोगों से जिओ टैग का कार्य भी करवाया जाता है। इसके लिए हमें अलग से भत्ता भी नहीं किया जाता। हमको सिर्फ पंचायत के काम ही दिए जाएं, ये हमारी मांग है।
रोजगार सेवक संजय गुप्ता ने बताया कि प्रशासन की मंशा के अनुसार हम लोगों ने गांव में अन्नपूर्णा भवन, हॉट बाजार, अमृत सरोवर, खेल के मैदान और आंगनवाड़ी वितरण में मदद की। जिससे हमारे जनपद का नाम उत्तर प्रदेश में रोशन हुआ। लेकिन हम लोगों की दशा नहीं सुधरी।
दिनेश कुमार ने बताया कि जब कोई शासनादेश हम रोजगार सेवकों के पक्ष में आता है तो जिला व ब्लॉक में उसका पालन नहीं किया जाता। सरकार ने रोजगार सेवकों की मांगों को लेकर हामी तो भरी, लेकिन अब तक उन पर अमल नहीं किया गया।
रोजगार सेवक पम्मी मौर्या ने बताया कि मृतक आश्रितों के संबंध में शासन द्वारा पत्र जारी किया गया, लेकिन जनपद से ब्लॉक तक आदेश का अनुपालन नहीं कराया जा रहा है। हमारी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
अखिलेश गुप्ता ने बताया कि मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2018 में पंचायती राज एवं मनरेगा के द्वारा कराए जाने वाले समस्त कार्यों का अभिषरण कराए जाने का आदेश जारी हुआ था, लेकिन 2-4 आदेशों को छोड़कर यह आदेश पूर्ण रूप से पालन नहीं कराया जा रहा है।
रोजगार सेवक मनोज वर्मा ने बताया कि हम ग्राम रोजगार सेवकों की जिम्मेदारियां पहले से कई गुना बढ़ा दी गई है, लेकिन मानदेय नहीं बढ़ाया गया। हमसे अतिरिक्त कार्य भी लिए जाते हैं, लेकिन तमाम सेवाओं का मेहनताना नहीं मिल पाता है।
रोजगार सेवक आशीष कनौजिया का कहना है कि कोर्ट के आदेश के बावजूद ग्राम रोजगार सेवकों को समान काम समान वेतन से दूर रखा जा रहा है। हम लोग पूरी जिम्मेदारी निभाते हैं, हमें राज्य कर्मचारियों की तरह ही पूरे अधिकार चाहिए।
उत्तर प्रदेश ग्राम रोजगार सेवक संघ के जिला अध्यक्ष शिव शंकर ने कहा कि 6 फीसदी प्रशासनिक मद से छह प्रकार के कर्मचारियों को मानदेय आधारित मानदेय व्यवस्था खत्म करके अलग बजट से मानदेय देने की व्यवस्था की जाए।
रोजगार सेवक अवधेश पांडे ने कहा कि राजस्थान राज्य की तरह यूपी में भी हम लोगों को नियमित किया जाए। साथ ही हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा की तरह ग्रेड पे के अनुसार वेतन दिया जाए।
रोजगार सेवक लक्ष्मीकांत वाजपेई ने बताया कि ऑनलाइन व्यवस्था जो लागू की गई है वह वरदान कहकर लागू की गई थी, लेकिन यह अब खिलवाड़ बन गई है। इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।
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