बोले कुशीनगर: कम मानदेय और अनियमित भुगतान से घर चलाना मुश्किल
Kushinagar News - कुशीनगर में आशा कार्यकर्त्रियां स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ हैं, लेकिन कम वेतन, सुरक्षा की कमी और बढ़ते कार्यभार से जूझ रही हैं। कोरोना काल में उन्होंने जान की परवाह किए बिना सेवाएं दीं। हाल ही में सरकार...
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Kushinagar News: आशा कार्यकर्त्रियां ग्रामीण और शहरी स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ हैं, लेकिन खुद कई समस्याओं से जूझ रही हैं। नाममात्र की प्रोत्साहन राशि, वह भी समय से नहीं मिलती। उस पर बढ़ता कार्यभार, सुरक्षा की कमी और सरकारी कर्मचारी का दर्जा न मिलने से वे निराश हैं। कोरोना काल के दौरान उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर सेवाएं दीं, लेकिन उनके अधिकारों और सुविधाओं को लेकर अब भी उदासीनता बनी हुई है। अस्थिर भविष्य और कम संसाधनों के बावजूद आशा कार्यकर्ता मातृ-शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण और जनजागरूकता अभियानों में जुटी रहती हैं। 'हिन्दुस्तान' से बातचीत में उन्होंने अपनी समस्याएं रखीं।
कुशीनगर जिले में 14 ब्लॉकों में 3649 आशा कार्यकर्त्रियां कार्यरत हैं। स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की नींव मानी जाने वाली आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्त्रियां मातृ और शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण, कुपोषण, परिवार नियोजन और संक्रामक रोगों की रोकथाम जैसी सेवाओं में अग्रणी भूमिका निभाती हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का दायित्व निभाने वाली आशा सरकार और आम जनता के बीच सेतु का काम करती हैं। इसमें उन्हें कई चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कम वेतन, सुरक्षा की कमी, कार्य के बोझ और अस्थिर भविष्य की चिंता हमेशा बनी रहती है।
'हिन्दुस्तान' से बातचीत में आशा कार्यकर्त्रियों ने कहा कि वे महज 1500 रुपये के अल्प मानदेय पर काम कर रही हैं। इसके अलावा उन्हें गर्भवती महिला की देखभाल करने, प्रसव के दौरान सहायता देने, नवजात शिशु की देखभाल करने, टीकाकरण करवाने और परिवार नियोजन की जानकारी देने के बदले प्रोत्साहन राशि मिलती है। उनका कहना है कि उन्हें महीने में 1500 रुपये मानदेय मिलता है। इसे मिलाकर मुश्किल से तीन हजार से लेकर 3500 के बीच कुल प्रोत्साहन राशि दी जाती है। यह भुगतान भी कई महीनों के बाद आता है। इतनी कम आमदनी में परिवार चलाना कठिन हो जाता है।
कोरोना महामारी के दौरान आशा कार्यकर्त्रियों की जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं। कार्यकर्त्रियों के मुताबिक उन्हें घर-घर जाकर सर्वेक्षण करना, संक्रमित मरीजों की पहचान करना, जागरूकता फैलाना और दवाएं वितरित करने का कार्य सौंपा गया था, लेकिन उस दौरान उन्हें न तो पर्याप्त संसाधन मिले और न ही अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि दी गई। उन पर नियमित रूप से टीकाकरण, पोषण अभियान, परिवार नियोजन और मातृ-शिशु देखभाल जैसी जिम्मेदारियां हैं। अधिक कार्यभार होने के बाद भी उनकी मांगों पर सरकार ध्यान नहीं देती है। इससे अब असंतोष बढ़ रहा है। गांवों और दूरदराज के इलाकों में काम करने के दौरान कई बार असहयोग और दुर्व्यवहार का सामना भी करना पड़ता है। परिवार नियोजन जैसे विषयों पर जानकारी देने के दौरान कई बार लोग व्यक्तिगत टिप्पणियां करने से भी बाज नहीं आते हैं। महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में समझाने के लिए उनके घर पर जाते हैं, लेकिन कुछ जगहों पर लोग उनकी बात नहीं सुनते और अपमानित करते हैं। देर रात प्रसव के मामलों में गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सुरक्षा की भी चिंता रहती है।
बजट में बीमा का तोहफा, अन्य मांगों पर ‘आशाओं की ‘उम्मीदें
पडरौना। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पेश किए गए बजट में आशा कार्यकर्त्रियों के लिए एक बड़ी घोषणा की गई है। अब उन्हें पांच लाख तक बीमा कवर की सुविधा मिलेगी। इससे आशा कार्यकर्त्रियां और उनके परिवार के लोग खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे। बजट में हुई इस घोषणा के बाद ‘आशाओं की ‘उम्मीदें बढ़ गई हैं। उनका कहना है कि अब सरकार मासिक मानदेय में बढ़ोतरी कर दें और स्थायी कर्मचारी का दर्जा दे तो हमारी तकदीर बदल जाएगी।
स्वास्थ्य सेवाओं की अहम कड़ी मानी जाने वाली आशा कार्यकर्त्रियां लंबे समय से बीमा और अन्य सुविधाओं की मांग कर रही हैं। उनके काम की चुनौतियों को देखते हुए प्रदेश की भाजपा सरकार ने अब उन्हें पांच लाख तक का बीमा कवर देने का फैसला किया है। इस योजना के तहत दुर्घटना, स्वास्थ्य और जीवन बीमा की सुविधाएं शामिल होंगी, जिससे उन्हें किसी भी आपात स्थिति में आर्थिक मदद मिल सकेगी। सरकार के इस फैसले से आशा कार्यकर्त्रियों को न केवल सुरक्षा मिलेगी, बल्कि उनका मनोबल भी बढ़ेगा। आशा कार्यकर्त्री रंजना यादव और रंजीता का कहना है कि बजट में बीमा कवर दिए जाने की घोषणा से खुशी हुई है। सरकार के इस कदम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती मिलेगी और आशा कार्यकर्त्रियां अधिक आत्मविश्वास के साथ अपनी जिम्मेदारियां निभा सकेंगी। सरकार का यह फैसला उनके योगदान को सम्मान देने और उनके कल्याण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। ऐसे ही अन्य लंबित मांगों पर भी सरकार विचार करे तो निश्चित ही हमारी तकदीर बदल जाएगी और हम भी आजीविका चला पाने में सक्षम होंगी।
सरकारी कर्मचारी का दर्जा मांग रहीं आशाएं :
आशा कार्यकर्त्रियों ने कहा कि उन्हें कर्मचारी का दर्जा देने और 21 हजार रुपये मानदेय की मांग वर्षों से की जा रही है, लेकिन अब तक कोई विचार नहीं किया गया। वे सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की स्वैच्छिक कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत हैं और उनके पास कोई स्थायी नौकरी नहीं है। उनका कहना है कि अल्प मानदेय और प्रोत्साहन राशि की बजाय उन्हें निश्चित मानदेय मिले। अगर उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए तो निश्चित ही वेतन, पेंशन और अन्य सुविधाएं भी मिलेंगी।
एक से डेढ़ हजार की आबादी पर एक आशा :
शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की अलख जगाने वाली आशा कार्यकर्त्री भले ही समस्याओं-चुनौतियों से घिरी हैं, लेकिन विभाग द्वारा मिलने वाली जिम्मेदारी का निवर्हन करने से नहीं चूकतीं। विभाग द्वारा एक हजार से लेकर डेढ़ हजार के बीच की आबादी पर एक आशा कार्यकर्त्री को क्षेत्र में तैनात किया गया है।
सीएचसी पर बैठने तक की व्यवस्था नहीं :
स्वास्थ्य विभाग की कड़ी में शामिल आशा कार्यकर्त्रियां बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। न तो उनके लिए सीएचसी-पीएचसी में बैठने की जगह है और न ही उन्हें अन्य सुविधाएं मिल पाती हैं। प्रसूता को अस्पताल लाने के दौरान उनका ज्यादातर समय लेबर रूम में ही खड़े-खड़े बीत जाता है। उनका कहना है कि कम से कम अस्पतालों में लिए उनके लिए बैठने की व्यवस्था की जाए और अन्य जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं।
शिकायत :
1. आशा कार्यकर्त्रियों को बहुत कम प्रोत्साहन राशि मिलती है और कई बार भुगतान महीनों तक अटका रहता है। इससे काफी परेशानी होती है।
2. स्वास्थ्य अभियान, टीकाकरण, प्रसव सहायता, पोषण योजना, जनगणना जैसी जिम्मेदारियों के बाद अतिरिक्त मेहनत का कोई भुगतान नहीं मिलता।
3. ग्रामीण व दूरदराज के क्षेत्रों में काम करते समय कई बार दुर्व्यवहार, अपमान और असहयोग का सामना करना पड़ता है। इससे तकलीफ होती है।
4. कई वर्षों की सेवा के बाद भी आशा कार्यकर्त्रियों को स्थायी कर्मचारी का दर्जा नहीं मिला है। इससे वे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से वंचित रहती हैं।
5. प्रोत्साहन राशि में शहरी और ग्रामीण आशाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। ग्रामीण कार्यकर्त्रियों को छह सौ और शहरी को चार सौ रुपये ही मिलते हैं।
सुझाव :
1. आशा कार्यकर्त्रियों के लिए न्यूनतम निश्चित मासिक मानदेय तय कर देना चाहिए ताकि वे आर्थिक रूप से सुरक्षित रहकर आजीविका चला सकें।
2. कार्यों का सही ढंग से बंटवारा किया जाए और अतिरिक्त काम के लिए अलग से प्रोत्साहन राशि दी जाए। इससे भी आशाओं को सहूलियत मिलेगी।
3. गांवों में कार्यरत आशा कार्यकर्त्री के लिए सुरक्षा के उपाय किए जाएं, उन्हें हेल्पलाइन तथा कानूनी सहायता उपलब्ध कराने पर भी जोर दिया जाए।
4. आशा कार्यकर्त्रियों को स्थायी सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए ताकि उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं, पेंशन और अन्य तरह के लाभ मिल सकें।
5. आशा कार्यकर्त्रियों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाए और उन्हें आवश्यक चिकित्सा उपकरण, सुरक्षा किट, डिजिटल साधन उपलब्ध कराया जाए।
यह दर्द गहरा है
1500 रुपये मानदेय और अन्य प्रोत्साहन राशि मिलाकर तीन हजार से 3500 रुपये मिलते हैं। इतने से परिवार चलाना आज के समय में मुश्किल है।
-निर्मला चौबे
विभाग द्वारा समय पर काम कराया जाता है, लेकिन भुगतान में महीनों तक दौड़ाया जाता है। इस महंगाई में कम आमदनी में परिवार चलाना कठिन हो गया है।
-रंजीता
काम का बोझ बढ़ा दिया गया है। इसके बदले कोई अतिरिक्त भत्ता नहीं मिलता। हमारी मांगों पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। इससे अब असंतोष बढ़ रहा है।
-शकीला
काम करने के दौरान कई बार असहयोग व दुर्व्यवहार भी झेलना पड़ता है। परिवार नियोजन के प्रचार-प्रसार के दौरान लोग व्यक्तिगत टिप्पणी करते हैं। इससे कष्ट होता है।
-शायरा खातून
हमें सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिले। इसके लिए वर्षों से मांग की जा रही है, लेकिन सरकार इस पर कोई विचार नहीं कर रही है। हमारी सेवा का कोई मोल नहीं है।
-नीलम त्रिपाठी
कार्यों का सही ढंग से बंटवारा हो और अतिरिक्त काम के लिए अलग से प्रोत्साहन राशि बढ़ाकर दी जाए ताकि आशा कार्यकर्त्रियां भी आर्थिक रूप से मजबूत हो सकें।
-चंद्रावती
कोरोना काल में हम सभी ने अपनी जान जोखिम में डालकर स्वास्थ्य विभाग के लिए काम किया, लेकिन उसका भी कोई भुगतान आज तक नहीं हुआ।
-रंजना यादव
कोई भी योजना लागू होती है तो विभाग आशा कार्यकर्ताओं पर जिम्मेदारी थोपता है। अतिरिक्त काम के बदले विभाग द्वारा अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि नहीं दी जाती।
-सुशीला देवी
ग्रामीण आशा को 600 और शहरी को 400 रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है। विभाग का यह भेदभाव पूरी तरह गलत है।
-पुष्पा मिश्रा
आशा कार्यकर्त्री के लिए सीएचसी में बैठने की भी कोई व्यवस्था नहीं होती। प्रसूता को अस्पताल ले जाने के बाद पूरा समय लेबर रूम में खड़े-खड़े ही बीत जाता है।
-गीता देवी
फोटो 21 पीएडी 116 मनोरमा मिश्रा
आशा कार्यकर्त्रियों को प्रोत्साहन राशि नहीं, बल्कि निश्चित मासिक मानदेय तय कर देना चाहिए ताकि आर्थिक रूप से मजबूत होहर अपनी आजीविका चला सके।
-मनोरमा मिश्रा
हमें नियमित प्रशिक्षण भी नहीं मिलता है। आवश्यक चिकित्सा उपकरण, सुरक्षा किट, डिजिटल संसाधन उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किए जाने की जरूरत है।
फोटो 21 पीएडी 118 डॉ. आरडी कुशवाहा
आशा कार्यकर्त्रियां स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ हैं। योजनाओं को हर घर तक पहुंचाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। विभाग द्वारा समय-समय पर उन्हें सम्मानित भी किया जाता है। राज्य सरकार की तरफ से 1500 रुपये मासिक मानदेय दिया जाता है। इसके अलावा उन्हें कार्य के आधार पर प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। अधिक काम करने वाली आशा कार्यकर्त्री को अधिक प्रोत्साहन राशि का लाभ भी मिलता है। रही बात, मासिक मानदेय तय करने और सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिए जाने की तो यह शासन स्तर का मामला है। स्थानीय स्तर पर आशा कार्यकर्त्रियों की जो भी समस्याएं हैं, उन्हें स्वास्थ्य विभाग द्वारा समाधान करने का प्रयास किया जाएगा।
-डॉ. आरडी कुशवाहा, डिप्टी सीएमओ/नोडल एनएचएम
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