नई नियुक्तियां हुई नहीं, अतिरिक्त प्रभार से कर्मचारी परेशान
Kausambi News - डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के जनपद में मनरेगा योजना के लिए एपीओ और सहायक लेखाकार की कमी है। लंबे समय से रिक्त पदों के कारण योजना का काम प्रभावित हो रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि एपीओ और सहायक...
यह जिले का दुर्भाग्य ही है कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के जनपद में उनके ही विभाग में पर्याप्त कर्मचारी नहीं है। मनरेगा योजना में अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी (एपीओ) व लेखाकार के पद लंबे समय से रिक्त हैं। अतिरिक्त प्रभार देकर यानी संबद्धता से काम चलाया जा रहा है। इसका दुष्परिणाम यह है कि एपीओ व सहायक लेखाकार अब मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं। बीडीओ ही नहीं बल्कि ब्लाक प्रमुख से लेकर ग्राम प्रधानों से भी उचित व्यवहार नहीं करते। कई मर्तबा इसकी शिकायत हो चुकी है। कोई दस साल से एक ब्लाक में जमा है तो कोई तैनाती के बाद से यहीं का होकर रह गया। मनरेगा योजना पर इसका सीधा असर पड़ रहा हे। इससे गांवों में मनरेगा योजना रफ्तार नहीं पकड़ पा रही है।
मनरेगा योजना गांवों में मजदूरों को अधिक से अधिक रोजगार देने के उद्देश्य से बनाई गई है। योजना के संचालन के लिए पूरी टीम तैयार की गई। खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) को मानीटरिंग पॉवर तो दी गई, लेकिन बोझ हल्का करने व योजना के संचालन में किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो, इसके लिए ब्लाकों में अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी (एपीओ) तैनात किए गए। इनके साथ ही लेखा-जोखा दुरुस्त रखने के लिए सहायक लेखाकार भी तैनात किए गए थे। अब स्थिति यह है कि तीन ब्लाकों में न तो एपीओ हैं, न ही पांच ब्लाकों में सहायक लेखाकार तैनात हैं। सभी एपीओ व सहायक लेखाकारों को ब्लाकों का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। अतिरिक्त प्रभार होने की वजह से ब्लाकों का कार्य प्रभावित हो रहा है। मनरेगा योजना की प्रगति पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। सबसे ज्यादा परेशान मनरेगा मजदूर हैं। जिम्मेदार एपीओ व सहायक लेखाकार की नई तैनाती के लिए कोई प्रयास ही नहीं कर रहे हैं। वह बस ग्राम्य विकास विभाग के आयुक्त की ओर से जारी होने वाले शासनादेश का इंतजार कर रहे हैं। एपीओ व सहायक लेखाकार इसका फायदा उठाकर योजना से अब पूरी तरह से खिलवाड़ करने में लग गए हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि मनरेगा के भुगतान के लिए सीधे कमीशन की मांग होती है। कमीशन न मिलने पर प्रधान व अन्य कर्मचारियों को तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है।
प्रधानों से है 36 का आंकड़ा
एपीओ व सहायक लेखाकारों की प्रधानों से बन नहीं पा रही है। सामग्री की खरीद में एपीओ व सहायक लेखाकार अपनी मनमानी करते हैं। कई बार इसको लेकर हो-हल्ला भी मच चुका है। साथ ही कलक्ट्रेट में प्रदर्शन भी प्रधानों ने किया है। शिकायतों का दौर लगातार चल रहा है। इसके बावजूद मनरेगा के संविदा कर्मियों की मनमानी कम होने का नाम नहीं ले रही है।
2010 में हुई थी तैनाती, दोबारा नहीं हुई भर्ती
मनरेगा में संविदा पर एपीओ व सहायक लेखाकार पद पर वर्ष 2010 में तैनाती हुई थी। तब से लेकर अब तक एपीओ व सहायक लेखाकार काम कर रहे हैं। इस दौरान कई लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ी और दूसरे जॉब पर चले गए। एपीओ व सहायक लेखाकार के पद पर भर्ती होने का लोगों का इंतजार है। भर्ती न होने से तैनात एपीओ व सहायक लेखाकार मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं।
तीन साल में तबादला करने का है निर्देश
मनरेगा योजना में संविदा पर तैनात एपीओ व सहायक लेखाकारोंाक तबादला तीन साल में एक ब्लाक से दूसरे ब्लाक होना था, लेकिन इनका नियमित तबादला नहीं हो रहा है। ग्राम्य विकास आयुक्त योगेश कुमार ने बाकायदा निर्देश जारी कर रखा है, इसके बावजूद कोई दस साल से तो कोई 14 साल से ब्लाकों में तैनात है।
चहेती फर्म से खरीदारी कराने का रहा है आरोप
एपीओ व सहायक लेखाकार पर चहेती फर्मों से सामग्री की खरीदारी कराने का हमेशा आरोप लगा है। 60 व 40 प्रतिशत का अनुपात इसीलिए हमेशा गड़बड़ाता रहा है। शिकायतों के बाद भी इस मामले में कभी कोई सुधार नहीं हो सका। इसके अलावा एमआईएस फीडिंग आदि की प्रगति भी खराब ही रही है।
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