सब्जी की खेती अब ‘रसदार नहीं
Kannauj News - कन्नौज के सब्जी किसान कीमतों में भारी गिरावट और संसाधनों की कमी से परेशान हैं। लागत निकालना मुश्किल हो रहा है और खाद संकट भी बड़ी समस्या बन गया है। फसल की सिंचाई के लिए पानी की कमी और मवेशियों से फसल...
कन्नौज। सेहत के लिए हमेशा से फायदेमंद रही सब्जी किसानों का सिरदर्द बन गई है। सब्जियों की कीमतों में भारी गिरावट के कारण मुनाफा छोड़िए लागत तक निकालना मुश्किल हो गया है। कम दाम मिलने के कारण उन्हें आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। फसलों की सिंचाई के लिए कभी नहर तो कभी ट्यूबवेल से पानी नहीं मिलता है। खाद संकट भी बड़ी समस्या है। फसल खेत में खड़ी है तो अन्ना मवेशियों से बचाने के लिए रतजगा करना मजबूरी है। सब्जी किसानों की परेशानी दिनों दिन बढ़ती जा रही है। फसलों की सिंचाई के लिए पानी की कमी एक बड़ी समस्या है। खाद की किल्लत भी उन्हें परेशान करती है। मवेशियों के साथ-साथ नीलगाय और बंदरों से भी फसल बचानी पड़ती है। हर साल ही सब्जी की फसल में जानवरों से खासा नुकसान होता है। फूलगोभी, बंदगोभी, टमाटर, शिमला मिर्च आदि सब्जियां उगाने वाले जिले के किसानों के पास बाजार भी नहीं है। बाहर सब्जियां लेकर जाते हैं तो भाड़ा बहुत लग जाता है। सब्जी की खेती करने वाले किसानों ने आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान के साथ चर्चा के दौरान यह दर्द बयां किया। इन्हीं में से एक सब्जी किसान दशरथ ने कहा कि सब्जी की खेती अब ‘रसदार नहीं जो पहले थी। सब्जी की खेती अब घाटे का सौदा बनती जा रहा है। खाद संकट के साथ ही पानी की कमी से सब्जी की उत्पादकता घट रही है। फसल की बीमारियों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी जाती है। अगर कोई ‘रोग लग गया तो समझो पूरी सब्जी की फसल खत्म। इत्र नगरी कन्नौज में तकरीबन पांच से सात हेक्टेयर भूमि पर सब्जी की फसल उगाई जाती है। इस व्यवसाय से जिले के तकरीबन 15 से 20 हजार किसान जुड़े हुए हैं। कड़ी मेहनत और महंगी लागत से तैयार की गई सब्जी के बावजूद इन किसानों को इसका वाजिब मूल्य नहीं मिल पाता है। इसके अलावा कई बार तेज बारिश और भीषण गर्मी से सब्जी की फसल बर्बाद हो जाती है। यही वजह है सब्जी किसान को अक्सर घाटा झेलना पड़ता है। वहीं जागरूकता की कमी एवं प्रचार प्रसार के अभाव के चलते सब्जी की खेती को बढ़ावा देने के लिए संचालित योजनाओं से भी सब्जी किसान महरूम हैं। सब्जी किसान आदित्य ने कहा कि हम छोटे किसान हैं यहां पर बड़े किसान आलू, गेहूं, मक्का आदि फसलों की खेती करते हैं। वहीं अधिकतर छोटे किसान ही मुख्य रूप से सब्जी के कारोबार से जुड़े हुए हैं। जब भी योजनाओं की बात आती है तो विभागीय अधिकारी, ग्राम प्रधान एवं बड़े किसानों को ही बुलाकर गोष्ठी आयोजित करते हैं और उन्हें ही शासन की योजनाओं का लाभ भी दे देते हैं। इस बीच वास्तविक रूप से परेशान सब्जी किसानों को कोई लाभ नहीं मिल पाता है। हम लोग जैसे-तैसे महंगी लागत और कड़ी मेहनत से सब्जी उगाते हैं और मंडी तक पहुंचने में भाड़ा भी खर्च करते हैं। बावजूद इसके हम किसानों को लागत की अपेक्षा अच्छे दाम नहीं मिल पाते। किसान प्रमोद कुमार ने बताया कि उद्यान विभाग से भी कोई सहायता नहीं मिलती है। खाद-बीज के लिए किसान इधर-उधर भटकने को मजबूर होते हैं। हर साल ही यूरिया और डीएपी के लिए सहकारी समितियों में लंबी-लंबी लाइन लगानी पड़ती है। उसके बाद भी खाद नहीं मिलती है। बाहर से महंगे दाम पर खाद खरीदनी पड़ती है। बताया कि जैविक खेती में जो फसल हम पैदा करते हैं, उसका बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल पाता। सरकार कोई अनुदान नहीं दे रही है। यदि अनुदान मिले तो बहुत से किसानों का रुझान जैविक खेती की तरफ बढ़ेगा। कोल्ड स्टोर न होने से भी होती परेशानी: गोभी, टमाटर व शिमला मिर्च के किसानों को अधिक उपज हो जाने पर सड़ने से काफी नुकसान उठाना पड़ता है। किसान लालसिंह का कहना है कि यदि जिले में आलू की भांति ही टमाटर व गोभी आदि के लिए कोल्ड स्टोर खुल जाएं तो किसानों को होने वाली परेशानियों से निजात मिल सकती है। किसानों ने कई बार इसके लिए प्रयास भी किए लेकिन कोई रास्ता न निकल सका। सब्जी किसानों के मुताबिक सब्जी में अक्सर बीमारियां लग जाती हैं और इन बीमारियों की सही पहचान न होने के कारण इसका इलाज भी समय पर नहीं हो पाता है।
पशु आश्रय स्थलों के सीसीटीवी जोड़ें
कन्नौज। किसान यूनियन ने कहा कि शासन और प्रशासन के निर्देशों से सभी आश्रय स्थलों में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं पर अभी भी अधिकांश आश्रय स्थलों में लगाए गए सीसीटीवी कैमरे कंट्रोल रूम से नहीं जोड़े जा सके हैं। किसानों ने मांग करते हुए कहा, जब तक सीसीटीवी कैमरों को कंट्रोल रूम से नहीं जोड़ा जाता है तब तक ग्राम पंचायतों के जिम्मेदार मनमानी करते रहेंगे। पशुओं की उचित देखरेख भी नहीं होगी।
शिकायतें
1. यूरिया और डीएपी महंगे दामों पर बिकती है। इससे फसल की लागत बढ़ती है।
2. अन्ना पशु गोशाला से छूटकर खेतों में पहुंच जाते हैं। सब्जी की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
3. फार्मर आईडी बनवाने के लिए कई-कई दिनों तक भटकना पड़ रहा है। शासन स्तर से संचालित योजनाओं की जानकारी का अभाव।
4. मौसम की मार से बर्बाद हुई सब्जी की फसल का कोई मुआवजा नहीं मिलता है।
5. परंपरागत और पुराने तौर तरीके से ही खेती करने को सब्जी किसान मजबूर हैं।
6. जिला मुख्यालय पर सब्जी बिक्री के लिए कोई स्थायी मंडी नहीं है जिससे वााजिब मूल्य नहीं मिल पाता।
सुझाव
1. सब्जी किसानों को जागरूक करने के लिए बड़े स्तर पर गोष्ठी का आयोजन करना चाहिए।
2. मौसम की मार झेल रहे सब्जी किसानों के नुकसान की भरपाई के लिए फसल का बीमा करवाया जाए।
3. मुख्यालय से काफी दूर ठठिया में आलू मंडी बनाई गई है। मुख्यालय पर सब्जी की स्थायी मंडी बनाई जाए।
4. ट्रांसपोर्टेशन की बेहतर व्यवस्था हो ताकि किसानों की सब्जियां बड़े शहरों तक पहुंचे और उन्हें वाजिब दाम मिले।
5. कृषि विभाग के अधिकारी निजी खाद विक्रेताओं और थोक दुकानों पर छापेमारी करें। किसान बनकर जाएं तो सारा सच सामने आ जाएगा।
6. रजबहे में टेल तक पानी पहुंचाने के लिए दूसरे विभाग के अधिकारी निरीक्षण करें। ड्रोन कैमरे की मदद लें।
बोले किसान
हम लोगों को किसी भी योजना का न लाभ मिला न ही कोई अनुदान मिला । यहां तक कि कोई भी अधिकारी हमारे हाल को पूछने नहीं आता। -पूसेलाल
हम छोटे किसानों को कभी भी गोष्ठी में नहीं बुलाया जाता है। जिस कारण हमें योजनाओं के विषय में जानकारी नहीं मिल पाती। -मोहनलाल
फॉल्टों की वजह से सिंचाई के लिए पर्याप्त बिजली नहीं मिल पाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जर्जर लाइनों की मरम्मत होनी चाहिए। -सनी,सब्जी किसान
हमें सब्जी की फसल में लगने वाली बीमारियों की सही जानकारी नहीं मिल पाती। ऐसे में हमारी फसल खराब हो जाती है। -उदय ,सब्जी किसान
सब्जी का कोई भी निर्धारित मूल्य नहीं है जिसके चलते अक्सर घाटा उठाते हैं। हम लोगों को लागत भी निकालना मुश्किल हो जाता है। - राजेंद्र
फसल बीमा नि:शुल्क किया जाए। फसल बीमा करने वाली कंपनियां अधिक प्रीमियम लेकर कम बीमा देती हैं। - आदित्य, सब्जी किसान
बोले जिम्मेदार
जिला उद्यान अधिकारी सीपी अवस्थी ने बताया कि सब्जी किसानों को प्रोत्साहन के लिए एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के तहत प्रति हेक्टेयर 20000 का अनुदान किसानों को दिया जाता है। इसमें किसानों को सब्जी के अच्छे और उपजाऊ बीज खाद एवं कैरेट आदि सामग्री के अतिरिक्त अनुदान भी दिया जाता है। इसके लिए किसानों को ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है।
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