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दिव्यांगता का दर्द भूल अपनी लेखनी से बनाई पहचान

Kannauj News - छिबरामऊ की सोनम प्रजापति ने अपनी लेखनी से दिव्यांगता को मात दी है। उन्होंने कई रचनाएं लिखी हैं, जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उनकी तीन पुस्तकें भी विमोचित हो चुकी हैं। सोनम का...

Newswrap हिन्दुस्तान, कन्नौजMon, 2 Dec 2024 07:30 PM
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दिव्यांगता का दर्द भूल अपनी लेखनी से बनाई पहचान

छिबरामऊ, संवाददाता। प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। कोई बंधन उसे रोक नहीं सकता। दिव्यांगता भी नहीं। नगर की होनहार सोनम ने अपनी लेखनी के बलबूते इत्र नगरी की सुगंध पूरे प्रदेश में फैलाकर दिव्यांगता के दर्द को पूरी तरह भुला दिया है। अब तक उनकी तमाम रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कई पुस्तकों का विमोचन भी हो चुका है। साथ ही, कई प्रतिष्ठित सम्मान भी उन्हें मिल चुके हैं। नगर के मोहल्ला कटरा निवासी सत्यप्रकाश प्रजापति और कमला देवी की पुत्री सोनम प्रजापति पर मां सरस्वती की विशेष कृपा है। यही कारण है कि आज सोनम ने अपनी कलम से उन तमाम रचनाओं को लिखा, जो आज उसकी पहचान बन चुकी हैं। पिछले कई वर्षों से सोनम प्रजापति विभिन्न विधाओं में सामाजिक कुरीतियों देश के प्रदृश्य और बेटियों की पीड़ा पर प्रहार करती अपनी रचनाएं लिख चुकी हैं। उनकी विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएं और कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं। माता-पिता और भाइयों के सहयोग से उनकी पहली कविता संग्रह जिंदगी के जज्बात का विमोचन हो चुका है। उनके इस काव्य संग्रह में सब कुछ है, जो हिंदी साहित्य को गौरवांवित कर सकता है। बिना किसी के सहयोग और बिना किसी गुरू के कागजों पर पीड़ा उकेरने वाली इस लेखनी को यदि मार्गदर्शक मिल जाता, तो निश्चित रूप से हिंदी साहित्य को एक नई महादेवी वर्मा मिल सकती है, जो दर्द महादेवी वर्मा की कविताओं में था, वह सोनम की कविताओं में भी झलकता है। सोनम गीत और गजल के साथ मुकतक लिखती हैं। स्वतंत्र रूप से उनकी कलम मन की चेतना विचारों को शब्दों की माला में पिरोकर कविता का रूप दे रही है। 25 सितंबर 1995 को जन्मीं सोनम के लिए यह पंक्तियां काफी सटीक बैठती हैं।

घायल पंक्षी भी उड़ान भरते देखे हैं।

बिना हाथों के लोग काम करते देखे हैं।।

बिना पैरों के मंजिल को पाया है तुमने।

तुमसे भाई-बहन नाम करते देखे हैं।।

तुम बनो प्रेरणा, उनकी जो जीवन से हो जाते निराश।

जिंदगी से लड़ना और संवरना सीख लिया

अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर जब सोनम प्रजापति से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वह एक सामान्य परिवार से होते हुए भी उसकी जिंदगी सबसे अलग है। बचपन से ही वह दिव्यांग हैं, लेकिन उसने इसे अपनी कमजोरी नहीं माना। उन्होंने कहा कि वह अपनी दिव्यांगता को भी अपना शस्त्र बनाना चाहती है। उसने जिंदगी से लड़ना और संवरना सीख लिया है। भगवान ने उसे शरीर दिव्यांग जरूर दिया, लेकिन मन से तो वह बहुत मजबूत है।

-तीन पुस्तकें हो चुकीं प्रकाशित

सोनम प्रजापति ने बताया कि केवीएस प्रकाशन द्वारा उनकी रचनाओं की तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

-ये मिल चुके सम्मान

कवि हम तुम द्वारा काव्य संग्रह के लिए सम्मान पत्र और 18 कहानियां कार्य के लिए भी सम्मानपत्र प्राप्त हो चुका है। साहित्यकारों का ग्रुप नवसृजन एक सोच में क्षणिका प्रतियोगिता में भी दो बार सम्मान हासिल हो चुका है। अखिल भारतीय कुंभकार महासंघ के प्रांतीय सम्मेलन में जिंदगी के जज्बात का विमोचन हुआ था। निखार पब्लिकेशंस नई दिल्ली द्वारा उत्कृष्ट कलमकार पुस्कार से सम्मानित की जा चुकी हैं। कवि हम तुम पुस्तक लोकार्पण एवं सम्मान समारोह काव्य गौरव सम्मान मिल चुका है

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