बोले जौनपुर : एक डंडे पर उठाते सुरक्षा का भार, मानदेय का महीनों इंतजार
Jaunpur News - प्रांतीय रक्षा दल (पीआरडी) के जवानों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। उन्हें समय पर मानदेय नहीं मिलता, चिकित्सा सुविधा नहीं है और छुट्टी लेने में भी दिक्कत होती है। महंगाई के इस दौर में 395 रुपये की...
हम खाकी पहनकर हर दिन ट्रैफिक व्यवस्था संभालते हैं, थानों में पहरा देते हैं, मुल्जिमों को कोर्ट-कचहरी पहुंचाने में पुलिस का सहयोग करते हैं, अफसरों की सुरक्षा में तैनात होते हैं। जब सुविधाओं की बात होती है, तो हमें कोई याद नहीं करता। हम पीआरडी यानी प्रांतीय रक्षा दल के जवान हैं, जिनकी पहचान एक डंडे और वर्दी तक सीमित है। महीनों बीत जाते हैं मानदेय के इंतजार में। किसी तरह घर चलता है, उधार लेना पड़ता है। न चिकित्सा सुविधा, न ठहरने की व्यवस्था, न बराबरी का वेतन। खाकी वर्दी पहने, कंधे पर जिम्मेदारी का बोझ उठाए प्रांतीय रक्षक दल (पीआरडी) के जवान अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं, लेकिन कोई उनकी समस्याओं पर चर्चा नहीं करता। उन्हें कसक रहती है कि प्रशासन भी उन्हें जरूरत के वक्त याद आने वाली टीम समझता है। जबकि थानों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों की सुरक्षा और यातायात संचालन में भी उनका जो रोल है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। विकास भवन के चतुर्थ तल पर जुटे पीआरडी के कर्मियों ने ‘हिन्दुस्तान के साथ चर्चा में अपनी समस्याओं को एक-एक कर गिनाया। उनका कहना है कि तमाम जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के बाद भी हमें न तो वेतन समय पर मिलता है और न कोई अन्य सुविधा। हम यहां नौकरी ही नहीं करते बल्कि हर रोज अपने आत्मसम्मान के लिए भी लड़ते हैं। अगर होमगार्ड के बराबर ही हमारा मानदेय बढ़ा दिया जाए तब भी हमारी कई परेशानियां दूर हो सकती हैं।
सिर पर चढ़ जाता है कर्ज
अशोक कुमार पाल ने कहा कि हमें 395 रुपये रोजाना की दर से मानदेय मिलता है, वह भी तीन-चार महीने बाद। इतनी महंगाई में 395 रुपये में हम कैसे अपना परिवार चलाते हैं, इसे कोई नहीं समझता। बात सिर्फ देरी की नहीं, बल्कि अमानवीय व्यवस्था की भी है। महीने भर काम करने के बाद पूरा मानदेय नहीं मिलता। एक या दो महीने का भुगतान कर दिया जाता है, बाकी लटका रहता है। यह राशि मिलने तक कर्ज सिर पर चढ़ चुका होता है।
दुखद घटना में भी छुट्टी नहीं
जवानों ने कहा कि छुट्टी लेना हमारे लिए किसी अपराध से कम नहीं। अगर अचानक कोई दुखद घटना हो जाए, रिश्तेदार की मौत हो जाए, तब भी छुट्टी नहीं मिलती। अमरनाथ पाल ने बताया कि अगर छुट्टी लेनी है तो अनुपस्थित दिखाकर लो, मानदेय कटने के लिए तैयार रहो। विवशता में छुट्टी लेते हैं लेकिन इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।
हम भी बनें ‘आयुष्मान
बलिराम यादव और उदयराज का दर्द उभरा कि अगर कोई हादसा या मौत हो जाए तो अफसर मुड़कर नहीं देखते। मरने के बाद भी हम जवानों को सम्मान नहीं मिलता। हमें आयुष्मान कार्ड जारी नहीं किया गया है। अशोक कुमार पाल ने कहा कि कम से कम आयुष्मान योजना में हमारा नाम जोड़ दिया जाए तो हमें राहत मिल सकती है। हमारे पास कोई सुरक्षा नहीं है, न वर्तमान की, न भविष्य की।
काम पुलिस का, सुविधाएं मजदूर से भी कम
पारसनाथ यादव कहते हैं कि यातायात नियंत्रण से अफसरों की सुरक्षा तक, हर जगह हमारी ड्यूटी होती है। लेकिन जब सुविधाओं की बात आती है तो हमें पीछे कर दिया जाता है। बोले, जब काम में कोई लापरवाही नहीं करते तो हमें भी होमगार्डों की तरह सुविधाएं, अधिकार मिलने चाहिए। महेश अग्रहरि बताते हैं कि हमारी ड्यूटी पुलिस की तरह ही होती है, लेकिन वेतन और सुविधाओं के मामले में हमें मज़दूर से भी कम दर्जा मिला हुआ है। पुलिस को जोखिम भत्ता मिलता है, हमें धैर्य रखने की सलाह दी जाती है। विनोद सोनकर ने सवाल किया कि जब पुलिस और होमगार्ड को जैकेट-जूते और अन्य जरूरी सामान दिए जाते हैं तो हमें क्यों नहीं दिया जा सकता। आखिर हम भी तो उतनी ही मेहनत कर रहे हैं।
मानदेय देने में भी कोताही
जिले में कुल 535 पीआरडी जवान हैं, लेकिन ड्यूटी 400 जवानों की ही लगती है। जिनकी ड्यूटी नहीं लगती, वे खाली बैठने पर विवश होते हैं। चंद्रप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि महंगाई बढ़ रही है, लेकिन हमारा मानदेय 395 रुपये ही है। यह तीन-चार महीने बाद मिलता है, वह भी एक या दो महीने का ही। शीला ने बताया कि हमारे मानदेय का निर्धारण करने वाले भी तो परिवार चला रहे होंगे। उन्हें सोचना चाहिए कि क्या हमें जितना मानदेय मिलता है, उतने में वे अपना परिवार चला सकते हैं? बीमार पड़ने पर इलाज भी खुद के पैसे से कराना होता है।
इज्जत नहीं, अपमान जरूर मिलता है
पीआरडी जवानों के मुताबिक ट्रैफिक ड्यूटी के दौरान लोगों को रोकना, चालान काटना या व्यवस्था संभालना उनके लिए सबसे मुश्किल काम होता है। पीआरडी पतिराम ने बताया कि कई बार मनबढ़ लोग गाली-गलौज और बदसलूकी पर उतर आते हैं, लेकिन हमारे समर्थन में कोई नहीं आता। ट्रैफिक पुलिस और होमगार्ड भी चुपचाप खड़े रहते हैं। हमें अपमान सहना पड़ता है, लेकिन कार्रवाई नहीं होती। पारस यादव ने कहा कि हम हर दिन ट्रैफिक व्यवस्था संभालते हैं, थानों में पहरा देते हैं। जब सुविधाओं की बात आती है, तो हमें याद नहीं किया जाता।
इन स्थानों पर देते हैं ड्यूटी
प्रांतीय रक्षक दल के कर्मी गांव से शहर तक तैनात होते हैं। शहर में बैंक, चौराहा, कलक्ट्रेट की बात हो या फिर मंडी परिषद, भीड़ भाड़ वाले इलाके, हर जगह इनकी तैनाती होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेल मैदान से लेकर अन्य जरूरी स्थानों पर प्रांतीय रक्षा दल के कर्मियों की तैनाती की जाती है।
सुझाव::
सरकार को एक निश्चित समय सीमा तय करनी चाहिए ताकि पीआरडी जवानों को हर महीने नियमित रूप से मानदेय मिले।
पीआरडी जवानों को आयुष्मान योजना या विशेष स्वास्थ्य बीमा से जोड़ा जाए, ताकि उन्हें मुफ्त चिकित्सा सुविधा मिल सके।
आपात स्थिति में छुट्टी देने की स्पष्ट नीति बनाई जाए ताकि जवानों का मानदेय न कटे और वे मानसिक रूप से सुरक्षित रहें।
जवानों को हेलमेट, जूता, जैकेट और संचार उपकरण दिए जाएं, ताकि वे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।
ड्यूटी के दौरान जवानों से बदसलूकी करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो। जवानों के कार्यों को सार्वजनिक रूप से सराहा जाए।
शिकायतेंः
पीआरडी जवानों को महीनों तक मानदेय नहीं मिलता, जिससे उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है।
बीमार पड़ने पर जवानों को अपनी जेब से इलाज कराना पड़ता है, क्योंकि उन्हें कोई चिकित्सा योजना या बीमा उपलब्ध नहीं है।
परिवार में आपात स्थिति होने पर भी छुट्टी लेने पर मानदेय काट लिया जाता है या अनुपस्थित दिखा दिया जाता है।
पीआरडी जवानों को केवल एक डंडा दिया जाता है। इससे वे अपराधियों या दबंगों के खिलाफ खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाते।
ड्यूटी के दौरान अपमान सहना पड़ता है, गाली-गलौज होती है, लेकिन जवानों के समर्थन में कोई कार्रवाई नहीं की जाती।
जवानों का दर्द :
हमें महीनों मानदेय नहीं मिलता। किसी तरह घर चला रहे हैं। कई बार उधार लेना पड़ता है। हमारी समस्याएं कोई नहीं सुनता।
-विनोद सोनकर
जब होमगार्ड के जवानों के बराबर ड्यूटी देनी पड़ती है तो हमें भी उनके बराबर मानदेय और सुविधाएं मिलनी चाहिए।
-अशोक कुमार पाल
हमारे पास न तो आयुष्मान कार्ड है और न ही भविष्य निधि। हमारी मृत्यु के बाद आश्रितों को कोई सहायता नहीं मिलती।
-महेश अग्रहरि
यातायात ड्यूटी के दौरान कई बार लोग अभद्रता करते हैं। अफसरों से शिकायत करने पर कार्रवाई नहीं होती।
-पतिराम
सर्दी में जैकेट और जूते नहीं मिलते। रात में ठहरने की जगह नहीं होती। छुट्टी लेने पर मानदेय काट लिया जाता है।
-अमरनाथ पाल
हम ट्रैफिक और सुरक्षा ड्यूटी में लगे रहते हैं। उस लिहाज से हमें सम्मान और समान अधिकार मिलने चाहिए।
-पारस यादव
इस महंगाई में 395 रुपये मानदेय से घर चलाना मुश्किल है। परिवार का गुजारा नहीं हो सकता।
-चंद्रप्रकाश त्रिपाठी
हमारी ड्यूटी ऑनलाइन लगाई जाती है और सर्विस नंबर भी जारी है, लेकिन हमारी स्थायी व्यवस्था नहीं की जाती।
-बलिराम
ड्यूटी के दौरान हादसा होने पर अफसर ध्यान नहीं देते। हमारे जवानों को मौत मरने के बाद भी सम्मान नहीं मिलता।
-उदयराज यादव
हमें सुरक्षा के नाम पर एक डंडा दिया जाता है। कई बार खुद को असहाय महसूस करना पड़ता है।
-शीला
बोले जिम्मेदार:
समय से मानदेय दिलाने का प्रयास होगा
यह सही है कि पीआरडी के जवानों के मानदेय का निर्णय हमारे स्तर पर नहीं होता। समय पर मानदेय देने के लिए हमने पहले भी ब्लॉक स्तर पर तैनात अधिकारियों को मास्टर रोल समय से प्रस्तुत करने की चेतावनी दी थी। अगर तीन से चार तारीख तक मास्टर रोल आ जाए तो अधिकतम 10 तारीख तक उनका मानदेय बैंक खाते में भेज दिया जाएगा। कभी-कभी जवानों की तैनाती अलग-अलग जगहों पर होती है तो उनका मास्टर रोल आने में थोड़ी देरी हो जाती है। इसके बावजूद, मैं सभी ब्लॉक अधिकारियों को फिर निर्देश दूंगा कि वे समय से मास्टर रोल भेजें अन्यथा उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
रामानुज यादव, जिला युवा कल्याण अधिकारी
एक नजरः
535 पीआरडी के जवान हैं जिले में
400 ड्यूटी अलग अलग विभागों में है पीआरडी के जवानों के लिए
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