मशीन के दौर में सिमट गई हाथरस के मशहूर बूरे की मिठास
कभी शहर के हलवाई खाना की पहचान यहां भट्ठियों पर तैयार होने वाले बूरे की मिठास से होती थी। हलवाई खाना बाजार न केवल स्थानीय व्यापारियों के लिए बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों की व्यापारिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है।
एक दौर था जब यहां 150 से दुकानों में भट्ठियों पर कारीगर बुरा तैयार करते थे, लेकिन आज वीरानी पसरी है। बदलते समय, घटती बूरे की मांग और चीनी के बढ़ते उपयोग ने इस ऐतिहासिक बाजार को हाशिए पर ला खड़ा कर दिया है। रविवार को शहर के हलवाई खाना में हिन्दुस्तान के अभियान ‘बोले हाथरस’ के तहत टीम ने हलवाई खाना बाजार का हाल जाना। जहां कभी बूरे की खुशबू कारोबार की पहचान हुआ करती थी।
शहर के सबसे पुराने व प्राचीन हलवाई खाना बाजार की पहचान बूरा कारोबार से होती थी। व्यापारी किशनलाल वार्ष्णेय और गिरिराज किशोर गुप्ता ने बताया कि हलवाई खाना बाजार में बनने वाला बूरा हाथरस सहित आसपास के जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में जाया करता था। लेकिन समय के साथ यह कारोबार धीरे-धीरे खत्म होता गया। आज हालत यह हैं कि हलवाई खाना बाजार से बूरा की भट्ठी पूरी तरह से गायब हो गई हैं। अधिकांश बूरे की भट्टियां बंद हो गईं। राम प्रकाश और बनवारीलाल ने बताया कि हलवाई खाना में बनने वाला बूरा भट्ठियों में बनाया जाता था। इस बूरे की काफी ज्यादा मिठास के साथ क्वालिटी अच्छी हुआ करती थी, लेकिन आज के दौर में आने वाले बूरे में ऐसा कुछ भी नहीं है। बूरा महंगा होने के साथ ही अब पहले जैसे ही गुणवत्ता नहीं है। लेकिन समय में बदलाव आने के साथ बूरा तैयार करने वाली भट्ठियां बंद हो गईं और बूरे की महक गायब होती गई। अब बाजार में मशीनों पर तैयार होने वाले बूरे का कारोबार फल फूल रहा है। व्यापारी बताते हैं कि भट्ठियों से बनने वाले बूरा कारोबार प्रभावित होने के साथ ही मशीन से तैयार होने वाले बूरा कारोबार का चलन बढ़ता जा रहा है और यह दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। व्यापारी कहते हैं कि किसी समय में भट्ठियों पर बूरा तैयार करने के लिए कई-कई मजदूर रात और दिन मेहनत किया करते थे, लेकिन अब मशीन आने के बाद ऐसा नहीं होता है। कई-कई मजदूरों का काम एक ही मशीन कर रही हैं। भट्ठी और मशीन से तैयार होने वाले बूरे की गुणवत्ता में काफी अंतर है। मशीन से बूरा तैयार होने से कई-कई लोगों का काम बच रहा है। साथ ही मशीन से एक बार में कई कुंटल बूरा तैयार हो जाता है। कुल मिलाकर समय के बदलाव ने हाथरस के हलवाई खाना के प्रसिद्ध बूरे की मिठास को छीन लिया है।
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किसी समय में हुआ करती थी 150 बूरा की दुकान
शहर के प्रमुख और प्राचीन हलवाई खाना बाजार की पहचान बूरा के बाजार के लिए होती है। जानकार बताते हैं कि किसी समय हलवाई खाना बाजार में 150 से अधिक छोटी-बड़ी बूरा की दुकान हुआ करती थी। इन दुकानों पर लगी भट्टियों पर बूरा तैयार हुआ करता था। सुबह से शाम और रात तक भट्टियों पर बूरा तैयार करने का कार्य हुआ करता था। सैकड़ों की संख्या में मजदूर बूरा तैयार करने में लगे रहते थे, लेकिन अब इस बाजार में कुछ ही दुकान बूरे की बची हैं, जिन दुकानों पर बूरा की बिक्री होती है वह भी मशीन से तैयार होता है।
मशीनों ने धधकती भट्ठियों को कर दिया शांत
किसी समय में हलवाई खाना बाजार में 24 घंटे बूरा की भट्टिया चला करती थी और शहर सहित आस-पास के देहात क्षेत्र से आने वाले मजदूर रात और दिन काम कर बूरा तैयार करते थे, लेकिन समय में बदलाव आने के साथ ही मशीन का दौर आ गया। बूरा तैयार करने वाली मशीन आने के साथ ही हर समय धधकने वाली भट्टियां शांत हो गईं और बाजार में मशीन से तैयार होने वाले बूरे की मांग बढ़ती गई।
प्रदेश के अन्य जिलों में महकती थी बूरे की महक
किसी सयम में हाथरस के हलवाई खाना बाजार में भट्ठियों पर तैयार होने वाला बूरा हाथरस सहित प्रदेश के अन्य जिलों में भी सप्लाई हुआ करता था, लेकिन जैसे-जैसे मशीन से तैयार होने वाले बूरा का क्रेज बढ़ता गया, वैसे-वैसे हाथरस शहर से अन्य जिलों में जाने वाले बूरा की डिमांड कम होती गई। डिमांड कम होने के साथ ही बूरा तैयार करने वाली भट्टियां शांत होती गईं।
मशीन पर 20 कुंटल तो भट्ठी पर तैयार होता है दो कुंटल बूरा
भट्ठियों से लेकर मशीन से तैयार होने वाले बूरा कारोबार पर नजर रखने वाले जानकारों के मुताबिक किसी समय एक भट्ठी पर प्रतिदिन 02 कुंटल बूरा तैयार बमुश्किल से होता था, लेकिन मशीन से प्रतिदिन में 20 कुंटल बूरा तैयार हो जाता है। मशीन से बूरा तैयार होने में मजदूर भी कम लगाने पड़ते हैं और समय की भी बचत होती है, इसलिए भट्ठियों की अपेक्षा आज मशीन से बूरा तैयार करने का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है।
इनसेट:
चीनी के क्रेज ने कर दी बूरे की डिमांग कम
एक समय वह तक जब बूरा के बिना किसी मिठाई अधूरी हुआ करती थी। अधिकांश खाद्य पदार्थों में घर से लेकर मिठाई विक्रेताओं द्वारा बूरा का प्रयोग किया जाता था, लेकिन चीनी का चलन बढ़ने के साथ बूरा की महक कम होती गई। घर-घर से लेकर मिठाई विक्रेताओं के यहां बूरा की जगह चीनी पहुंचने लगी और लोगों द्वारा चीनी का प्रयोग किए जाने लगा और बूरा की महक कम होती गई।
फैक्ट फाइल:
150 से अधिक हलवाई खाना बाजार में दुकानें।
50 से 60 लाख रुपये का प्रतिदिन होता है कारोबार।
100-100 किलोमीटर दूर से हुआ करता था बूरा का व्यापार।
व्यापारियों के बोल:
एक समय बाजार में 150 से अधिक बूरा की दुकान हुआ करती थी। इन दुकानों पर भट्टियों पर पूरे दिन कारीगर बूरा तैयार करने में लगे रहते थे।
नीरज वार्ष्णेय।
हलवाई खाना बाजार को बूरा के लिए हाथरस सहित प्रदेश के अन्य जिलों में जाना पहचाना जाता था, लेकिन समय बदलने के साथ बूरा बनाने की अधिकांश भट्टी बंद हो गईं।
पवन कुमार।
किसी समय भट्टियों पर बूरा तैयार होता था। बूरा तैयार करने में रात और दिन कारीगर लगे रहते थे, लेकिन अब मशीन आने से यह सब कुछ बदले जामने की बात हो गई।
सोनू वार्ष्णेय।
हलवाई खाना बाजार में तैयार होने वाले बूरा की महक आस-पास के जिलों में महका करती थी, लेकिन अब ऐसा कुछ भी नहीं बचा है। अब मशीन से तैयार बूरा आ रहा है।
अशोक।
खान-पान में चीनी का चलन काफी तेजी के साथ बढ़ा है। चीनी का चलन बढ़ने के साथ बूरा की महक कम होती जा रही है। वैसे भी अब बूरा मशीन से ही तैयार होता है।
गिरीश अग्रवाल।
भट्टियों पर कड़ाई पर तैयार होने वाले बूरा की महक और गुणवत्ता काफी अच्छी हुआ करती थी, लेकिन मशीन से तैयार होने वाले बूरा में वह स्वाद नहीं है।
महेंद्र अग्रवाल।
भट्टियों पर तैयार होने वाले बूरा की काफी मांग रहती थी। आस-पास के जिलों के व्यापारी यहां बूरा खरीदने के लिए आया करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होता।
तरुण वार्ष्णेय।
एक समय वह हुआ करता था। जब हलवाई खाना सैकड़ों की संख्या पर भट्टियों पर कारीगार रात और दिन बूरा तैयार करने में जुटे रहते थे। बाजार में बूरा की महक रहती थी।
कैलाश बाबू।
चीना की मांग बढ़ने की वजह से बूरा की मांग कम होती जा रही है। आज भट्टी की जगह मशीन से तैयार होने वाला बूरा लोगों की ज्यादा पसंद नहीं है।
देव।
हलवाई खाना बाजार में किसी समय लाखों रुपये का बूरा ही का कारोबार हुआ करता था, लेकिन अब यह हजारों रुपये तक में कारोबार सिमट कर रह गया है।
गणेश।
पहले आस-पास के जिलों और कस्बों से लोग यहां बूरा खरीदने के लिए आया करते थे, लेकिन अब जगह-जगह मशीन से बूरा तैयार किया जा रहा है।
पंकज कुमार वार्ष्णेय।
प्रदेश के दूसरे जिलों से लोग शहर में आकर बूरा की खरीदारी किया करते थे, लेकिन अब उन्हें नजदीक से ही मशीन से तैयार बूरा मिल जाता है।
मुकेश कुमार।
भट्टी पर बूरा तैयार होने से कई लोगों को रोजगार मिलता था, लेकिन जब से मशीन से बूरा तैयार होना शुरू हुआ तब से कारीगारों के सामने रोजगार का भी संकट खड़ा हो गया है।
कन्हैया वार्ष्णेय।
एक समय वह हुआ करता था जब हलवाई खाना बाजार को बूरा बाजार के नाम से जाना पहचाना जाता था, लेकिन अब यह बाजार अपनी पुरानी पहचान खोता जा रहा है।
दुर्गेश कुमार।
हलवाई खाना बाजार में भट्टियों पर रात और दिन कारीगर मेहनत कर बूरा तैयार करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब मशीन के माध्यम से बूरा तैयार किया जा रहा है।
उमेश चंद्र वार्ष्णेय।
हलवाई खाना में भट्टियों पर तैयार होने वाले बूरा किसी समय प्रदेश के अलग-अलग जिलों में जाया करता था, लेकिन मशीन आने के बाद से इस कारोबार पर काफी ज्यादा असर पड़ा है।
विजय कुमार शर्मा उर्फ विजय गुरु।
कंटेंट: धवन वशिष्ठ, फोटो: विनोद शर्मा।
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