बोले हाथरस: चालान और डग्गेमारों की मनमानी से परेशान रोडवेज के चालक-परिचालक
अपनी जान को जोखिम में डालने वाले रोडवेज के चालक और परिचालको को बस के संचालन करने में काफी दिक्कतों का सामना रास्ते में उठाना पड़ता है। इतना सब कुछ झेलने के बाद भी चालक व परिचालक यात्रियों को उनके स्थान पर सुरक्षित पहुंचाते है।
बारिश,जाम व कोहरा आदि समस्याओं के बाद भी समय से बस को वापस लाने का दबाव चालक व परिचालकों पर रहता है। चालक व परिचालकों के लिए डग्गेमार वाहन और पुलिस के चालान काफी परेशान कर रहे है। यदि पुलिस के स्तर से चालान रोडवेज बस का कर दिया जाए तो उसे चालक को अपनी जेब से जमा खजाने में करना पड़ता है। लोड फैक्टर पूरा न होने पर अपने वेतन से कटौती करानी पड़ती है। संविदा के चालक व परिचालकों को किलोमीटर के अनुसार मानदेय मिलता है। जोकि समय से चालक व परिचालकों को नहीं मिल पाता।
यात्रियों को उनके गतंव्य तक पहुंचाने के लिए रोडवेज की स्थापना कराई गई। हाथरस डिपो के बाडे में कुल 81 बसे है,जिनके संचालन के लिए रोडवेज की ओर से चालक और परिचालकों को जिम्मेदारी सौंपी गई। रोडवेज के चालक व परिचालक तमाम परेशानियों से जूझ रहे है। लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई तैयार नहीं है। दूसरे जिलों में बसों का वे वजह चालान यातायात पुलिस के स्तर से कर दिया जाता है। यदि सड़क किनारे बस खड़ी हो तो नियम तोड़ने का हवाला देकर चालान यातायात पुलिस के स्तर से कर दिया जाता है। इतना ही नहीं समय से बस को बाडे में लाने का दबाब चालक और परिचालकों पर रहता है। यदि चालक व परिचालक देरी से बस को लेकर डिपो में पहुंचते है,तो उन्हें पैनल्टी तक भरनी पड़ती है। चालकों को अपनी जेब से पैसा जमा करना पड़ता है। हिन्दुस्तान की टीम जब रोडवेज बस चालकों व परिचालकों की समस्याओं को जानने के लिए पहुंची तो उनका दर्द झलक आया। एक स्वर में चालक व परिचालकों ने कहा कि पुलिस के स्तर से किये जाने वाला चालान खत्म होना चाहिए। क्योंकि वो भी सरकार का ही कार्य कर रहे है। इसके बाद भी उनका चालान दूसरे जिलों में कर दिया जाता है। इसके साथ ही डग्गेमार वाहन संचालकों की खुली दंबगई चलती है। दूसरे जनपदों में जबरन बस के आगे अपना डग्गेमार वाहन लगा देते है। बसों के अंदर से जबरन सवारियों को उतारकर डग्गेमार वाहन चालक उतार कर ले जाते है। इस व्यवस्था पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। सरकार के अलावा डग्गेमार वाहन संचालक उनकी जेब पर डाका डाल रहे है। यदि लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है तो विभागीय कार्रवाई का दंश झेलने को मजबूर होना पड़ता है। चालक और परिचालकों की समस्याओं का समस्या खत्म हो जाए तो बसों का संचालनों काफी हदों तक कम हो जाए।
---
पुलिस का चालान होना चाहिए खत्म
रोडवेज बस के चालक और परिचालकों को सबसे अधिक दिक्कतों का सामना दूसरे जनपदों में करना पड़ता है। जहां चालक यदि बस को सड़क किनारे पर खड़ा करके यात्रियों का इंतजार करते है। तो यातायात पुलिस के स्तर से नियमों का उल्लंघन का हवाला देते हुए रोडवेज बसों का चालान कर देते है। जब चालकों को पता पड़ता है कि बस का चालान हो गया है। तो उनकी परेशानियां अधिक बढ़ जाती है। चालकों को अपनी ओर से ही चालान को सरकारी खजाने में जमा कराना पड़ता है। रोडवेज बसों के चालक व परिचालक चाहते है कि पुलिस के स्तर से किए जाने वाले चालान की व्यवस्था को खत्म करना चाहिए। क्योंकि वो भी सरकार का ही काम कर रहे है। पूर्व में कई मर्तबा पुलिस के आला अधिकारियों से इस बाबत रोडवेज महकमा कह चुका है,लेकिन बसों के होने वाली चालान प्रक्रिया को खत्म नहीं किया जा रहा।
--
रात के वक्त प्राइवेट वाहन चालक करते है मनमानी
रोडवेज बसों का संचालन करने में चालक व परिचालकों को सबसे अधिक परेशानी रात के वक्त आती है। जब चालक व परिचालक बस को लेकर दूसरे जिलों में जाते है। तो वहां रात के वक्त जब चालक व परिचालक यात्रियों का इंतजार करते है। तो उस समय प्राइवेट और डग्गेमार वाहन चालकों की मनमारी रहती है। प्राइवेट बसों के चालक व परिचालक मनमानी करते है। जबरन रोडवेज बसों से यात्रियों को उतारकर अपने वाहन में बैठा ले लेते है। जब यदि रोडवेज बस के चालक व परिचालक मना करते है। तो आए दिन उनके साथ बदसलूकी व गलत व्यवहार करते है। रोडवेज बस के चालक व परिचालक चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते है। दूसरे जिलों में पुलिस की सांठगांठ की वजह से प्राइवेट बस संचालकों की मनमानी चलती है।
--
लक्ष्य को पूरा करने का रहता है दबाव
रोडवेज बसों को चालने वाले चालकों व परिचालकों को लक्ष्य पूरा करने का दबाव रहता है। यदि लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाते है तो कार्रवाई का दंश झेलना पड़ता है। बसों का संचालन करते समय चालक व परिचालकों को दूसरे जनपदों में तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यदि जाम लग जाये तो काफी समय बसों के चालकों व परिचालकों को उठाना पड़ता है। जाम में फंस जाने की वजह से किलोमीटर का जो लक्ष्य दिया जाता है। उस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाते है। यदि रास्ते बस खराब हो जाए या टायर में पंचर हो जाये तो निर्धारित समय सीमा में बस वापस डिपो पर नहीं पहुंच पाती है। जिस वजह से कार्रवाई का दंश झेलना पड़ता है। चालक व परिचालक चाहते है कि किलोमीटर का जो लक्ष्य दिया जाता है। वो खत्म होना चाहिए,क्योंकि समय से बसों के वापस न आने पर कार्रवाई झेलनी पड़ती है। इसके साथ ही तेज रफ्तार में बसों को चलाने का दबाव रहता है।
--
डग्गेमार वाहनों पर लगना चाहिए अंकुश
सड़कों पर सरपट दौड़ रहे डग्गामार वाहनों ने रोडवेज व्यवस्था को चौपट कर रखा है। परिवहन निगम के अफसरों की सख्ती के बाद भी हर माह लोड फैक्टर गिर रहा है। इससे चालक और परिचालकों के मानदेय से कटौती हो रही है। इतना ही नहीं चालक-परिचालक विभाग के नियमों में इतने जकड़े हैं कि नुकसान कोई भी हो, आधा जुर्माना इन्हीं से लिया जाता है। पूर्वाचल की ओर जाने वाली बसों के चालक व परिचालकों को सबसे अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। डग्गामार वाहनों पर रोक लगे तो चालकों का वेतन न कटे। चालक -परिचालकों की सबसे बड़ी समस्या है शासन-प्रशासन के कड़े नियम। हर जिले में जगह जगह पर डग्गामार वाहन चल रहे हैं। रोडवेज बस के पहुंचने से पहले सवारियां उठ जाती हैं। दो-चार रूट को छोड़ अन्य के चालक-परिचालकों को 50 फीसदी से ऊपर लोड फैक्टर कर पाना टेढ़ी खीर है।
---
हर माह हो रहा 50 हजार से अधिक का जुर्माना
रोडवेज बसों पर दूसरे जनपदों में नियमों का हवाला देकर पुलिस के स्तर से चालान कर दिया जाता है। जिसे चालक को अपनी जेब से भरना पड़ता है। बात यदि हाथरस डिपो की करें तो हर माह करीब 50 हजार रुपये का चालान के रूप में जुर्माना सरकारी खजाने में जमा करना पड़ रहा है। यदि रोडवेज बसों पर लगने वाले चालान को खत्म कर दिया जाए तो बेहतर रहेगा। चालक और परिचालकों ने एक स्वर में बताया कि जेब से जुर्माने का चालान जमा करना पड़ता है। हम भी तो सरकार के लिए ही कार्य कर रहे है। तो रोडवेज बसों पर चालान नहीं करना चाहिए।
--
शिकायत
- पुलिस के स्तर से किए जाने वाले चालान से होती है दिक्कत।
- जाम में बसों के फंस जाने से नहीं हो पाता है लोड फैक्टर पूरा।
- डग्गेमार वाहनों की मनमानी के कारण होती है चालकों को दिक्कतें।
- परिवहन निगम के स्तर से जो लक्ष्य दिया जाता है वो नहीं हो पाता पूरा।
- कम किलोमीटर बस चलाने पर कट जाता है संविदा चालकों व परिचालकों का मानदेय
---
सुझाव
- पुलिस के द्वारा किए जाने वाले चालान को खत्म किया जाना चाहिए।
- जाम में फंस जाने पर लोड फैक्टर में मिलनी चाहिए राहत।
- डग्गेमार वाहन चालकों की मनमानी पर लगना चाहिए अंकुश।
- रोडवेज विभाग के द्वारा दिए जाने वाला लक्ष्य होना चाहिए कम।
- कम किलोमीटर बस के संचालन होने पर नहीं कटना चाहिए मानदेय।
----
क्या बोले जिम्मेदार
दूसरे जनपदों में बसों के चालान पुलिस के स्तर से कर दिए जाते है,जिसे चालकों को अपनी जेब से खजाने में जमा करना पड़ता है। तो वहीं डग्गेमार वाहनों पर कार्रवाई की जाए तो रोडवेज की आय में और अधिक वृद्धि हो। पुलिस को रोडवेज बसों के चालान न करने के बाबत पूर्व में उच्च अधिकारियों को अवगत कराया जा चुका है।
राजवीर सिंह,स्टेशन अधीक्षक,हाथरस डिपो।
----
डिपो के कर्मचारियों की पीड़ा
रात-दिन जान हथेली पर रखकर सवारियों को मंजिल तक पहुंचाते है। इसके बाद भी डग्गेमार वाहन चालकों पर अंकुश नहीं लग पा रहा। यदि अंकुश लगे तो रोडवेज की आय में काफी इजाफा हो और खंजाने में पैसा भी बढ़े।
उमेश गौतम,लिपिक
--
चालान बसों का कर दिया जाता है,जिसे जेब से सरकारी खंजाने में जमा करना पड़ता है। चालान व्यवस्था खत्म होनी चाहिए। दूसरे जनपदों में चालान सड़क किनारे खड़ी होने पर भी पुलिस के स्तर से कर दिया जाता है।
ओमप्रकाश,चालक
--
बस चालक और परिचालकों की हालत दयनीय है। बस चालकों को सड़क पर खराब मौसम, जाम और बस में तकनीकी खराबी जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है। इसके बाद भी बस अड्डे पर सोने की जगह नही मिलती।
ब्रहमदेव,कैशियर
--
तमाम दिक्कतें झेलनी पड़ती है,दूसरे जिलों में बैठने की भी जगह नहीं मिलती। साथ ही मानदेय भी नहीं तय है, जितने किलोमीटर बस चलाते हैं उतना ही मानदेय मिलता है। लोड फैक्टर पूरा न होने पर हर माह वेतन में कटौती कर ली जाती है।
वीरेश कुमार श्रोती,चालक
---
दूसरे जनपदों में यदि बस सड़क किनारे पर खड़ी है,तो भी पुलिस के स्तर से चालान कर दिया जाता है। जिस वजह से तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चालान की व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाना चाहिए।
जुगेन्द्र सिंह,चालक
--
डग्गेमार वाहनों की वजह से दूसरे जनपदों में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। डग्गेमार वाहन संचालकों पर कार्रवाई कागजों में होती है। जबकि पुलिस के संरक्षण में डग्गेमार वाहन संचालित होते है।
कप्तान सिंह,चालक
--
बसों के जाम में फंस जाने के कारण भी चालकों व परिचालकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दूसरे जिलों में बसों को जाम यदि न झेलना पड़े तो तमाम समस्याओं का समाधान हो सकता है। व्यवस्था सुधरनी चाहिए।
रवि कुमार सैनी,चालक
---
सबसे ज्यादा परेशानी बसों के संचालन में लंबे रूट पर होती है। यहां लग्जरी बसों ने व्यवस्था को बिगाड़ रखा है। उन बसों पर किसी भी प्रकार का अंकुश नहीं लग पा रहा। जिस वजह से रोडवेज महकमे को नुकसान उठाना पड़ता है।
मानिक चंद,चालक
--
विभाग ने नियमों में इतना बांध रखा है कि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते हैं। अगर संचालन के दौरान बस का फ्रंट या फिर ब्रेक का कोई शीशा या अन्य कोई टूट-फूट हो जाए तो आधा पैसा चालक-परिचालकों के मानदेय से कटता है।
राजेश कुमार,परिचालक
--
हर संभव प्रयास करते हैं कि लोड फैक्टर मानक से ज्यादा हो जाए, पर ऐड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी ऐसा नहीं हो पाता। जाम व पुलिस के चालान से तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है,व्यवस्था सुधरनी चाहिए।
रमाकांत,परिचालक
--
दूसरे जनपदों में जाने पर डग्गेमार वाहन संचालकों की दंबगई झेलनी पड़ती है। ऐसे संचालकों पर पुलिस के स्तर से कठोर कार्रवाई नहीं की जाती है। यदि कार्रवाई डग्गेमार संचालकों पर की जाए तो हालात कुछ बेहतर हो जाए।
नवदीप,चालक
--
आए दिन पुलिस रोडवेज बसों का चालान कर देती है,जिस वजह से चालकों को अपनी जेब से खजाने में पैसे जुर्माने वाले जमा कराने होते है। यदि पुलिस चालान करना बंद कर दें तो डिपो की आय में काफी इजाफा हो सके।
रवेन्द्र कुमार,परिचालक
फैक्ट फाइल
- 33 नयमित चालक
- 20 नियमित परिचालक
- 123 संविदा चालक
- 107 संविदा परिचालक
- 81 बसें है डिपो पर
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।