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बोले गोण्डा : दूसरों को न्याय दिलाने वाले खुद बुनियादी जरूरतों की जंग लड़ रहे

  • कानूनी-दांवपेंच और अपनी जोरदार दलीलों से मुवक्किलों को न्याय दिलाने वाले अधिवक्ता जिला मुख्यालय पर अपनी समस्याओं के लिए खुद बेबस नजर आते हैं। सर्दी, गर्मी, बरसात, आंधी-तूफान में आम जनमानस को न्याय दिलाने के लिए जूझने वाला यह प्रबुद्ध तबका खुद मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।

Pawan Shankhdhar हिन्दुस्तानThu, 20 Feb 2025 03:00 AM
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बोले गोण्डा : दूसरों को न्याय दिलाने वाले खुद बुनियादी जरूरतों की जंग लड़ रहे

गोण्डा। मंडल मुख्यालय पर कमिश्नर कोर्ट समेत आठ दर्जन से ज्यादा अदालतों में रोजाना ढेरों मुकदमों की सुनवाई होती है। इसके लिए कचहरी में रोजाना छह से सात हजार लोगों की आवाजाही रोज होती है। इनमें तीन हजार से ज्यादा अधिवक्ता शामिल नहीं है। सिर्फ दीवानी कहचरी की बात करें तो 32 अदालतों पर रोजाना बड़ी संखया में मुकदमे सुने जाते हैं। हालांकि यहां 22 अदालतों में पीठासीन अधिकारी नहीं है। इन अदालतों में लोगों के मुकदमों की पैरवी करने वाले अधिवक्ता कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। इनमें बैठने की उचित व्यवस्था, शौचालय, स्वच्छ पेयजल और चिकित्सा सुविधा जैसे जरूरी मुद्दें शामिल हैं।

जूनियर वकीलों को मिले प्रोत्साहन भत्ता: जिला बार एसोसिएशन सभागार में हिन्दुस्तान की ओर से आयोजित चौपाल में वकीलों ने कहा कि विधि व्यवसाय की शुरुआत करने में काफी संघर्ष झेलना पड़ता है। बार कौंसिल से पंजीकृत होकर आने वाले नए अधिवक्ताओं को जीविकोपर्जन के लिए काफी पापड़ बेलना पड़ता है। इसके बावजूद उन्हें अधिकांश दिन खाली हाथ वापस जाना पड़ता है। आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न होने के कारण वह न चैंबर बना पाते हैं और न ही जरूरी किताबें खरीद पाते हैं। इसलिए बार कौंसिल को जूनियर अधिवक्ताओं को स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन भत्ता अवश्य देना चाहिए।

वृद्ध वकीलों को मिले पेंशन: वकीलों ने कहा कि जब तक शरीर स्वस्थ रहता है तब तक वकील बैठने का नाम नहीं लेता। लेकिन जब वह बीमारी से लाचार अथवा वृद्ध हो जाता है तो उसका आय का स्रोत बंद हो जाता है। इसकी वजह से उन्हें दूसरे पर निर्भर होकर जीवन गुजारना पडता है। स्वाभिमान से जीने के लिए सरकार और बार कौंसिल को ऐसे वकीलों को पेंशन योजना का लाभ देना चाहिए।

इलाज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं: कलेक्ट्रेट या सिविल बार में स्वास्थ्य केंद्र या एंबुलेंस की व्यवस्था न होने से आए दिन वकीलों के साथ कचहरी में ही अप्रिय घटना घट जाती है। अधिकांश वकील बीमारी की हालत में भी कचहरी आते हैं और अचानक तबीयत बिगड़ने पर उनके प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था न होने के कारण अनहोनी हो जाती है।

शौचालय की व्यवस्था बदहाल : कचहरी परिसर हो अथवा कलेक्ट्रेट चारों तरफ गंदगी फैली रहती है। सफाई कर्मचारियों को अफसरों से नहीं फुर्सत मिलती। जिसका आलम यह है कि चारों ओर गंदगी का साम्राज्य फैला है। वकीलों ने बताया कि कचहरी में जो दो शौचालय हैं उसमें कोई गंदगी के कारण जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। सबसे ज्यादा समस्या महिला अधिवक्ताओं व वादकारियों को होती है।

एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने मांग: कचहरी में खूंखार अपराधियों के विरुद्ध मुकदमा लड़कर उन्हें जेल भिजवाने का काम वकील करता है चाहे वह अभियोजन की ओर से हो अथवा बचाव पक्ष खतरा दोनों को रहता है। लेकिन सरकार ने वकीलों की सुरक्षा के लिए कोई महत्वपूर्ण फैसला नहीं लिया। जबकि एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने के लिए वकील बरसों से मांग कर रहे हैं।

कचहरी परिसर के सीसी कैमरे खराब : वकीलों ने बताया कि कहने को कचहरी के सभी गेटों पर कैमरे लगे हैं लेकिन चालू हालत में नहीं हैं। जिससे आये दिन वकीलों व वादकारियों की साइकिल व मोटरसाइकिल गायब हो जाती है। यदि कैमरे चालू हालत में रहें तो चोर-उचक्कों का पता आसानी से लगाया जा सके। वहीं, कचहरी परिसर में स्थापित पुलिस चौकी सिर्फ नाम की है, जो कमजोर लोगों को भले रोक टोक करके परेशान करती है लेकिन प्रभावशाली व्यक्तियों के वाहन को न रोकती है न टोकती है जो धड़ल्ले के साथ कचहरी परिसर में घूमते रहते हैं।

पार्किंग व्यवस्था न होने से परेशानी, लगता है जाम:कलेक्ट्रेट में पार्किंग की व्यवस्था न होने के कारण बाहरी वाहनों का जमावड़ा रहता है जिससे अक्सर जाम की स्थिति उत्पन्न रहती है। बाहरी लोग अपना वाहन कलेक्ट्रेट में खड़ा करके दिन भर अपना काम निपटाते हैं और शाम को अपना वाहन लेकर चले जाते हैं। इन्हीं वाहनों के चक्कर में दो नंबर गेट के सामने अक्सर जाम लगा रहता है।

शौचालय बदहाल होन से महिला अधिवक्ता होतीं परेशान: वकीलों ने बताया कि नई बिल्डिंग में बनी अदालतों के शौचालय की इतनी नारकीय है कि भीषण दुर्गंध के कारण उधर से गुजरना मुश्किल होता है। कोई भी सफाई कर्मचारी साफ-सफाई करना मुनासिब नहीं समझता और न ही न्याय प्रशासन द्वारा ही इसके जिम्मेदारों के विरुद्ध कोई संज्ञान लिया जाता है। इससे महिला अधिवक्ताओं के साथ महिला वादकारियों को काफी दुश्वारी का सामना करना पड़ता है।

राजस्व अदालतों पर वकीलों ने मढ़े भ्रष्टाचार के आरोप: अधिवक्ताओं ने बताया कि राजस्व अदालतों पर काम करने वाले अफसरों और कर्मियों की कार्यशैली निरकुंश हो गई है। यहां पर कोई भी काम बिना सुविधा शुल्क दिए होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। आये दिन पेशकार व राजस्व अधिकारियों के घूस लेते वीडियो वायरल होते रहते हैं। यही नहीं इन अदालतों पर तैनात अफसर प्रशासनिक कार्य की आड़ में नियमित रूप से कोर्ट पर बैठते भी नहीं है। इससे वादकारियों को न्याय के लिए वर्षों तहसील का चक्कर लगाना पडता है।

मुकदमे के निस्तारण की आंकड़ेबाजी का होता खेल: वकीलों ने बताया कि राजस्व के वर्षों से लंबित मुकदमे पड़े हुए हैं। लेकिन शासन के चाबुक से बचने के लिए अधिकारियों ने उसकी तरकीब निकाल ली। एक ही दिन में लंबित पड़े सैकड़ों मुकदमों को खारिज कर निस्तारण कर दिया जाता है। फिर उन्हीं मुकदमों का वाद दायर स्वीकार कर नया मुकदमा नंबर जारी कर दिया जाता है। इस खेल में जनता भले फेल हो लेकिन अधिकारी शासन की नजर में पास हो जाते हैं।

इलाज के लिए एसोसिएशन से मिलती है मदद: जिला बार एसोसिएशन की तरफ से अपने सदस्य अधिवक्ताओं को गंभीर रूप से बीमार होने पर जरूरत के मुताबिक मदद दी जाती है। वहीं, सदस्य अधिवक्ता की मृत्यु पर साढ़े छह लाख रुपये की धनराशि पीड़ित परिजनों को दी जाती है। जिला बार की सदस्यता न लेने वाले अधिवक्ता इस लाभ से वंचित रह जाते हैं। हालांकि बार कौंसिल की तरफ से अधिवक्ताओं की मदद का प्रावधान है।

प्रस्तुति: सीपी तिवारी

बोले जिम्मेदार

कचहरी परिसर में साफ-सफाई न होने से गंदगी का साम्राज्य है। इसको लेकर न्याय प्रशासन को पत्र सौंपकर जल्द से जल्द उचित कार्यवाही का अनुरोध करेंगे। हमारे अधिवक्ता साथियों को विभिन्न समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। अगर हमारी मांगें न मानी गई तो हम आंदोलन का रास्ता अखित्यार करेंगे।

-सुरेंद्र कुमार मिश्रा, अध्यक्ष, सिविल बार एसोसिएशन

सिविल कोर्ट परिसर में वकीलों के बैठने की समुचित व्यवस्था न होने के कारण शारीरिक रूप से कमजोर वृद्ध वकीलों को काफी समस्या होती है। साथ ही कलेक्ट्रेट परिसर में अधिवक्ताओं को पार्किंग, साफ-सफाई जैसी कई दुश्वारियों से जूझना पड़ रहा है। इस दिशा में अफसरों को मांग पत्र देखकर उचित व्यवस्था करने का प्रयास किया जाएगा।

-राम बुझारत द्विवेदी, अध्यक्ष, जिला बार एसोसिएशन

सुझाव:

कचहरी परिसर व शौचालयों की साफ-सफाई के साथ आरओ प्लांट व्यवस्था कराई जाए।

कचहरी परिसर में वकीलों के बैठने के लिए चैंबर और कैंटीन की व्यवस्था कराई जाए।

जूनियर अधिवक्ताओं को तीन वर्ष तक प्रोत्साहन भत्ता मिले, वृद्ध वकीलों को पेंशन।

वकीलों की सुरक्षा के लिए एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट अविलम्ब लागू किया जाए।

बाहरी वाहनों का कलेक्ट्रेट व दीवानी कचहरी के अंदर प्रवेश की अनुमति न दी जाए।

शिकायतें:

कचहरी में सफाई की व्यवस्था चौपट, शौचालय बदहाल होने से महिला अधिवक्ता परेशान।

अदालतों पर वकीलों के बैठने के लिए समुचित व्यवस्था और कैंटीन न होने से परेशानी।

पीने के पानी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। जिसके कारण वकीलों, वादकारियों को काफी परेशानी का सामना करना पडता है।

कलेक्ट्रेट से दीवानी कचहरी तक बाहरी वाहनों के आने के कारण प्राय: जाम की स्थिति बनी रहती है, इससे होती परेशानी।

इनका कहना है

कलेक्ट्रेट अंतर्गत राजस्व न्यायालयों में कर्मचारियों की कमी से समय पर वादकारियों का कार्य नहीं हो पाता है। -संजय सिंह

कचहरी में सफाई कर्मचारी बेलगाम है। जिससे सफाई व्यवस्था ध्वस्त है। जिला प्रशासन अधिवक्ताओं के बैठने पर ठोस कदम उठाए।- मनोज कुमार मिश्रा

जूनियर अधिवक्ताओं को कचहरी में स्थापित करने के लिए शुरू के तीन वर्ष तक बार कौंसिल द्वारा उन्हें प्रोत्साहन भत्ता देना चाहिए।- रवि चंद्र त्रिपाठी

रेवन्यू कोर्ट हो अथवा सिविल कोर्ट वादकारियों को बरसों न्याय के लिए कचहरी की परिक्रमा करनी पड़ती है।- विंदेश्वरी प्रसाद दूबे

कचहरी परिसर में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था तक नहीं है। यहां कम से कम एक आरओ प्लांट होना अत्यंत आवश्यक है।- उपेंद्र कुमार मिश्रा

कचहरी परिसर में बाहरी लोगों के वाहनों के प्रवेश पर कोई रोक न होने से कलेक्ट्रेट से लेकर सिविल कोर्ट तक जाम लगता है।- विनय कुमार मिश्रा

जिले के सिविल कोर्ट में कुल 54 अदालतें स्वीकृत हैं। जिनमें से 22 अदालतें रिक्त हैं। जिससे लोगों को न्याय मिलने में देर होती है।- सुरेश चंद्र तिवारी

कचहरी में समस्याएं तो बहुत हैं लेकिन सबसे बड़ी समस्या साफ-सफाई न होना है। चारों तरफ गंदगी का साम्राज्य फैला हुआ है।- गिरवर चतुर्वेदी

सिविल कोर्ट में न्यायिक अधिकारियों की कमी से कई अदालतें रिक्त हैं। जिसके कारण मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है।- बृजेश कुमार मिश्रा

कलेक्ट्रेट व सिविल कोर्ट में सबसे ज्वलंत समस्या वकीलों के बैठने की है। जिनके लिए न कोई चेंबर है न व्यवस्था।- राजेश कुमार मिश्रा

कचहरी में वकीलों को न बैठने की व्यवस्था है न परिसर में सफाई की जाती है। इस तरफ प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।- राजेंद्र प्रसाद त्रिपाठी

कलेक्ट्रेट व सिविल कोर्ट परिसर में साफ-सफाई व्यवस्था लुंज-पुंज है। महिलाओं के लिए पिंक टॉयलेट जरूरी है।- पिंकी मौर्या

बार काउंसिल और सरकार दोनों मिलकर वृद्ध वकीलों के जीविकोपार्जन के लिए पेंशन की सुविधा देनी चाहिए।- सुरेश चंद्र त्रिपाठी

बार काउंसिल जब से निजी विद्यालयों को विधि स्नातक की मान्यता देने लगी तब से अधिकांश लोग जैसे-तैसे वकालत पेशे में आ जाते हैं।-जगदंबा प्रसाद पांडे

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