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बोले प्रयागराज: अलंकरण की बाट जोह रहे करछना के पौराणिक स्थल

Gangapar News - करछना क्षेत्र में कई ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल हैं, जो पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण हैं। स्थानीय लोग चाहते हैं कि इन स्थलों का जीर्णोद्धार किया जाए ताकि वे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकें। महाकुंभ...

Newswrap हिन्दुस्तान, गंगापारSun, 23 Feb 2025 05:06 PM
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बोले प्रयागराज: अलंकरण की बाट जोह रहे करछना के पौराणिक स्थल

पतित पावनी मां गंगा और तमसा के बीच स्थित करछना क्षेत्र के बड़े भू भाग में कई ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल मौजूद हैं। यहां वर्षभर में विभिन्न पर्वो पर बड़े मेलों का भी आयोजन किया जाता है। इनमें से कई ऐसे पौराणिक स्थल है जो उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के मानचित्र में भी अंकित हैं। साथ ही अपने अतीत की विरासत को सहेजते पौराणिक शिव मंदिरों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। अभी तक ऐसे स्थलों का जीर्णोद्धार और अलंकरण न किये जाने से स्थानीय लोगों में भी इसके प्रति नाराजगी है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि यदि इन ऐतिहासिक स्थलों का विधिवत अलंकरण कराकर इन्हें सजाया संवारा जाए तो पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनने के साथ स्थानीय विकास और सरकार के राजस्व में भी बढोत्तरी हो सकती है। इस बार महाकुम्भ को लेकर कुछ माह पूर्व लोगों में एक आशा जरूरी जगी थी लेकिन सरकार द्वारा विशेष ध्यान न दिये जाने से स्थिति पहले जैसी ही बनी है।

करछना। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में संस्कृत विभागाध्यक्ष रहे मेजा के समहन गांव निवासी प्रो. रहस बिहारी द्विवेदी एवं मेजा अटखरिया निवासी स्व डा.चंडिका प्रसाद शुक्ल द्वारा तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री डा.मुरली मनोहर जोशी के समक्ष कई पेज का शोधपत्र प्रस्तुत करने के बाद इन सबकी की पहल से गंगा तमसा संगम समीप लकटहा, पनासा में महर्षि वाल्मीकि रचना प्रेरणा स्थली की स्थापना हुई। इसके लिए प्रमुख रूप से जमुनापार जागृति मिशन के संयोजक डॉ.भगवत पांडेय के प्रयासों की क्षेत्र में खूब सराहना की गई। मिशन द्वारा उक्त स्थली पर समय-समय पर रामलीला, कवि सम्मेलन, वाल्मीकि मेला भी आयोजित किया जाता रहा है। महर्षि की जयंती पर शासन के निर्देश पर स्थानीय प्रशासन द्वारा भजन, संकीर्तन आदि के आयोजन भी किए जाते है। आज यह प्रेरणा स्थली दशकों पूर्व यहां स्थापित होने और प्रदेश पर्यटन मानचित्र में अंकित होने के बावजूद अलंकरण की बाट जोह रही है।

उधर करछना मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर डीहा गांव में गंगा तट पर स्थित पौराणिक मनपूरन धाम स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए कई वर्षो से आस्था का केंद्र है। यहां प्रतिवर्ष सावन माह और महाशिवरात्रि पर बड़ी संख्या में रुद्राभिषेक जैसे अनुष्ठान के लिए महीनेभर भक्तों का तांता लगा रहता है। साथ ही कई पर्वो पर भजन कीर्तन और अभिषेक के लिए भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। स्थानीय प्रबुद्धजनों द्वारा भी समय-समय पर ज्ञान भक्ति और आस्था से जुड़े कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। उधर क्षेत्र के रामपुर से कोहडार घाट मार्ग पर करछना मुख्यालय से सात किलोमीटर पर स्थित प्राचीन शिवधाम कुशगढ़ भी लोगों के लिए अपनी प्रचीनता के साथ-साथ आस्था का विशेष केंद्र है। कई वर्षो से लगातार पूसी तेरस के अवसर पर दो दिवसीय विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है। साथ ही साथ सैकड़ो गांव के कांवड़ियों द्वारा यहां शिवलिंग के जलाभिषेक की विशेष परंपरा चली आ रही है। स्थानीय प्रतिनिधियों और शासन द्वारा जहां इस पौराणिक स्थल के प्रति अभी तक कोई ध्यान नही दिया गया वहीं कुछ स्थानीय समाजसेवियों ने मंदिर के जर्जर आकार के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया है। बीते तीन वर्षो से भव्य मंदिर निर्माण का कार्य प्रगति पर है। इसी तरह क्षेत्र के अरई स्थित प्राचीन जरकुटी नाथ धाम के प्रति दूर-दूर से अपने मन में रची बसी आस्था को लेकर भक्तों का आन जाना लगा रहता है। यहां भी पूसी तेरस मेले के साथ-साथ प्रत्येक सोमवार को बड़ी संख्या में शिवभक्त जुटते हैं और भजन कीर्तन, भंडारे का विशाल आयोजन किया जाता है। अभी यहां तक पहुंचने में मुख्य सड़क से कोई चौड़ा मार्ग भी नही बनवाया जा सका है। रामगढ़ स्थित मां शीतला धाम में भी पूरे सावन महीने के अलावा प्रत्येक सोमवार को मेले का आयोजन किया जाता है और भुंडा स्थित प्राचीन बौलिया देवी धाम भी उपेछित है। करछना में स्थित इन अति पौराणिक स्थलों को लेकर जन प्रतिनिधियों द्वारा तरह-तरह के वायदे जरूर किये गये लेकिन अभी तक जितना विकास होना था वह नही दिख रहा। स्थानीय लोगों का कहना है कि हमारे आस्था के यह केंद्र पौराणिक मान्यताओं से जुड़े हैं। आज समय कि मांग है कि जहां सरकार भी अपनी संस्कृति और विरासतों को सहेजने के लिए बड़े पैमाने पर पहल कर रही है। वहीं प्रयागराज के पूर्वी छोर पर मुख द्वार पर स्थित करछना क्षेत्र में ऐसे अति पौराणिक स्थलों तक सड़क, बिजली, पानी, यात्री शेड़, परिसर की साफ-सफाई, पौधरोपण, अलंकरण जैसे कार्य कराकर अपने आस्था के केंद्रों का बहुमुखी विकास करवाना बहुत जरूरी है।किंतु अभी तक मंदिरों का समुचित जीर्णोद्धार देखने को नही मिल रहा।कुछ मंदिर पर स्थानीय जन प्रतिनिधियों द्वारा सोलर लाइट जरूर लगवाई गई।लेकिन अभी तक मंदिरों के परिसर में सुंदरीकरण या अलंकरण को लेकर कुछ खास नहीं किया जा रहा है।

ग्रामीण बोले

कई प्रकार के उद्धरण और प्रामाणिकता के अनुरूप गंगा तमसा के अति समीप लकटहा पनासा स्थित वाल्किमी रचना प्रेरणा स्थली हमारे अतीत की गौरवशाली विरासत है। उक्त स्थली का अंलकरण और जीर्णोद्धार करने के बाद पंचकोसी परिक्रमा में आने वाले पर्यटकों के लिए यह आकर्षण के केंद्र बनेगी और क्षेत्र का भी बहुमुखी विकास होगा।

-प्रो. रहस बिहारी द्विवेदी, समहन

यह गौरवशाली छण होगा कि जहां अपनी प्राचीनता को संजोने के लिए अपने ऐसे धार्मिक स्थलों का समुचित विकास किया जाए।पनासा लकटहा में वाल्मिकी अकादमी की स्थापना जरूरी है। जिससे अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक और पौराणिक पहचान को कायम रखा जाए।

- डॉ.भगवत पांडेय, रामपुर

करछना क्षेत्र के कई पौराणिक स्थल हमारी अतीत की विरासत हैं।सरकार को चाहिए कि ऐसे एतिहासिक और पौराणिक स्थलों को सजा संवारकर आस्था और आकर्षण का केंद्र बनायें जिससे स्थानीय विकास के साथ-साथ अपनी इसी पूंजी को संजोया जा सके।

-अशोक सिंह, महेवा

बाबा मनपूरन नाथ, वाल्मिकी आश्रम सहित तरहार क्षेत्र के प्राचीन स्थलों के विकास किये जाने से स्थानीय लोगों के विकास को भी गति मिलेगी। साथ ही पर्यटकों के लिए भी यहां पहुंचने से क्षेत्र का गौरव बढेगा।

-नितेश कुमार मिश्र, डीहा

हम सबका का सौभाग्य है कि करछना के हमारे पौराणिक स्थल अतीत की विरासत और क्षेत्र की पहचान है। स्थानीय जन प्रतिनिधियों को इनके विकास के लिए सार्थक पहल करने की जरूरत है।

-डा.अभय तिवारी, अरई

प्रदेश के पर्यटन मानचित्र में अंकित वाल्मिकी आश्रम हमारे क्षेत्र की पौराणिक थाती है। इसके समुचित विकास के लिए सरकार और जन प्रतिनिधियों द्वारा विशेष पहल की जरूरत है। इससे क्षेत्र का सम्मान बढ़ने के साथ-साथ स्थानीय लोगों का भी बहुत विकास होगा।

- अखिलेश यादव, लकटहा

क्षेत्र के एतिहासिक और आस्था से जुड़े हमारे प्राचीन मंदिरों का विकास बहुत जरूरी है। इससे बाहर से आने वाले लोगों के लिए यह आकर्षण का केंद्र बनेगे और सरकारी राजस्व में भी बढोत्तरी होगी।

-अवधेश कुशवाहा, रामगढ़

कुशगढ़ शिव मंदिर की प्राचीनता क्षेत्र में चर्चित है।यहां प्रतिवर्ष विशाल पूषी तेरस मेले का लाखों लोगों को आकर्षित करता है।इन दिनों स्थानीय समाजसेवियों द्धारा मंदिर का जीर्णोद्धार का कार्य बहुत ही सराहनीय है।इससे लोगों को सीख लेनी चाहिए।

-सूर्य प्रकाश पांडेय पंकज, प्रधान निदौरी, कुशगढ़

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