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बोले इटावा: कॉलेजों के क्लासरूम जर्जर और बंदर लैब के अंदर

Etawah-auraiya News - बोले इटावा: कॉलेजों के क्लासरूम जर्जर और बंदर लैब के अंदर बोले इटावा: कॉलेजों के क्लासरूम जर्जर और बंदर लैब के अंदर

Newswrap हिन्दुस्तान, इटावा औरैयाFri, 21 Feb 2025 06:20 PM
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बोले इटावा: कॉलेजों के क्लासरूम जर्जर और बंदर लैब के अंदर

शहर के माध्यमिक कॉलेजों में संसाधनों की कमी से शिक्षक परेशान हैं। शिक्षक रामऔतार बताते हैं कि समय के साथ फीस बढ़ोत्तरी न होने से हमारे विद्यालय सीबीएसई बोर्ड के विद्यालयों से काफी पीछे हैं। गैर सहायता प्राप्त विद्यालय भी सुविधाओं के नाम पर इनसे कोसों दूर हैं। बजट और बढ़ते संसाधनों की पूर्ति के लिए इन कॉलेजों के पास न तो अलग से कोई बजट है और न ही उनके पास फीस बढ़ाने का कोई अधिकार, सीबीएसई स्कूलों से टक्कर लेने की जिम्मेदारी शिक्षकों के कंधों पर डाल दी जाती है। एचएमएस इस्लामिया इंटर कॉलेज के शिक्षक कुश चतुर्वेदी बताते हैं हमारे कॉलेज से देश को हॉकी खिलाड़ी देवेश चौहान जैसी हस्ती मिली है कई अधिकारी यहां से पढ़कर देश सेवा कर रहे हैं। लेकिन अब पढ़ाई के संसाधन न होने से शिक्षकों का नाम खराब हो रहा है।

एसडी इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य डा.संजय शर्मा बताते हैं कि कॉलेज से पास आउट छात्रों ने करियर में अच्छा मुकाम पाकर इटावा का नाम रोशन किया। लेकिन अब जर्जर भवन, गंदे शौचालय, बंदरों का आतंक जैसी समस्याएं हैं। बंदर कॉलेजों में लैब के उपकरण तोड़ देते हैं। बच्चे मोबाइल पर घंटों समय बिता रहे। रोक के बाद भी चोरी छिपे बच्चे मोबाइल लाते हैं और रील बनाने में उनकी दिलचस्पी रहती है। इससे उनका पढ़ाई से मन उचटता है। अभिभावक भी इसके दुष्परिणामों को लेकर सजग नहीं है।

शहर में 54 एडेड कॉलेज हैं जिनमें संसाधनों की कमी से बच्चे और शिक्षक परेशान हैं। प्रधानाचार्य उमेश यादव बताते हैं कि हम बकाया एरियर से लेकर अन्य कई समस्याओं से जूझते हैं लेकिन हमारी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है। दूसरी ओर शिक्षक भी इस बात से परेशान हैं कि जिन विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने के लिए सरकार ने एडेड कॉलेज बनाए पर वहां विकास शुल्क के नाम पर आज भी महंगाई के इस दौर में पुरानी व्यवस्था चल रही है।

स्टेशनरी व अन्य स्कूली खर्चों को पूरा करने के लिए करना पड़ता चंदा: प्रवक्ता कुलदीप दुबे का कहना है कि स्टेशनरी के खर्चे तक जुटाना मुश्किल होता है। इसके अलावा बिजली का बिल, पेयजल व्यवस्था, खेलकूद, विज्ञान प्रयोगशाला के उपकरण, मेंटीनेंस जैसे जरूरी काम के लिये हम शिक्षकों को आपस में चंदा करना पड़ता है। शिक्षक जावेद खान ने बताया कि आयोग से लंबे समय से चयन प्रक्रिया ना होने के कारण कई विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में जहां संसाधनों की कमी से कॉलेज जूझ रहे हैं। इससे शिक्षकों पर लोड अधिक रहता है और बच्चों को भी बेहतर शिक्षा नहीं मिल पाती है। शिक्षिका डॉ. अमिता यादव ने बताया कि एडेड कॉलेजों के लिए पर्याप्त बजट नहीं होता। शिक्षकों को गैर-शैक्षणितक कार्यों से मुक्त किया जाए। पदोन्नति समय से दी जाए। राकेश चतुर्वेदी कहते हैं कि संविदा शिक्षकों को स्थाई करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। वर्षों से पढ़ा रहे शिक्षकों को उनका हक मिलना चाहिए। कई विद्यालयों में साल में दो महीने उन्हें शिक्षण कार्य से मुक्त कर दिया जाता है। उन्हें मानदेय नहीं मिलता। उस दौरान उनका घर का खर्च चलाना मुश्किल होता है। अनंत प्रकाश का कहना है कि संसाधनों की कमी की वजह से बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देना मुश्किल होती है। डिजिटल सुविधाओं का टोटा है। शिक्षक अरविंद कुमार त्रिपाठी का कहना है कि या तो सरकार विशेष पैकेज की व्यवस्था करें अथवा फीस वृद्धि करके विद्यालयों की दशा सुधारने को कदम आगे बढ़ाये तभी हम शिक्षकों और छात्रों का भला हो सकेगा।

कॉमर्शियल बिजली कनेक्शन का खर्च जुटाना होता है मुश्किल

प्रधानाचार्य डॉक्टर उमेश चंद्र यादव का कहना है कि महंगाई के दौर में एडेड विद्यालयों में कॉमर्शियल बिजली कनेक्शन से खर्च बढ़ रहा है। जबकि इस मद में कोई भी पैसा उन्हें अलग से नहीं मिलता। बच्चों की फीस भी इतनी नहीं है कि बिजली का बिल पूरा नहीं होता है। मजबूरन शिक्षकों को आपसी तालमेल बैठाकर पैसे आपस में चंदा करके जमा कराने की मजबूरी रहती है। कुछ शिक्षक पैसे नहीं देते हैं तो प्रधानाचार्य को अपने पास से पैसे देने पड़ते हैं। प्रवक्ता स्मिता यादव बताती हैं कि सरकार की ओर से स्कूलों में निशुल्क बिजली या सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की सुविधा उपलब्ध कराई जाए तो इन विद्यालयों की दशा सुधरने में समय नहीं लगेगा। गर्मी के दिनों में बिजली कटौती से छात्र-छात्राओं और शिक्षकों के साथ स्टाफ को दिक्कत होती है।

शिक्षकों की समस्याओं की जानकारी नहीं है। यदि स्कूलों में लैब, स्टेशनरी खर्च खुद से खर्च करना पड़ता है, तो इसके लिए माध्यमिक शिक्षक प्रबंधन से बात करें।

- मनोज कुमार, डीआईओएस

कोर्स में परिवर्तन हो गया पर शिक्षकों को प्रशिक्षित करने में सरकार की मंशा के अनुरुप कार्य नहीं हो रहे।

-सुनीता मिश्रा

विभाग के कार्यालय में सौतेला व्यवहार होता है। पुरुष शिक्षक से अलग व महिला शिक्षकों से कर्मी अलग पेश आते हैं।

-डा. अमिता यादव

अन्य विद्यालय फीस वृद्धि कर लेते हैं। हमारे स्कूलों में शिक्षकों को वेतन से खर्च करना पड़ता है।

-डॉ. शिवशंकर त्रिपाठी

हिंदी मीडियम में अभिभावक बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते स्टेटस सिंबल की सोच से बचना होगा।

-राकेश चतुर्वेदी

शिक्षकों का उत्तरदायित्व निर्धारित हो। अभिभावकों को भी शिक्षा के मूल्य को समझना चाहिए।

-रीतेश चतुर्वेदी

विद्यालय में मोबाइल के प्रयोग से बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति व अनुशासनहीनता बढ़ रही। कठोर कदम उठाने होंगे।

-सुलक्षणा यादव

खेलकूद के मद में आज भी एक व दो रुपये लिए जा रहे हैं जबकि अधिक बजट की आवश्यकता है।

-त्यागी नारायण

विज्ञान प्रयोगशाला व कैमरे को बंदरों ने तोड़ दिया। बंदर क्लासरूम में भी घुस कर हमला कर देते हैं।

-प्रमेंद्र कुमार

चयन प्रक्रिया लंबे समय से न होने से कई जगहों पर शिक्षकों की कमी है विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में।

-अनंत प्रकाश

खेलकूद, प्रयोगशाला, स्कूल मेंटेनेंस का शुल्क न बढ़ने से बच्चों को जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं।

-राजेंद्र कुमार

विद्यालय में बिजली का खर्च कमर तोड़ देता है। शिक्षक आपसी पैसे से बिल भुगतान करते हैं।

-शैलेन्द्र कुमार

बकाये का भुगतान लंबे समय तक नहीं हो पाता। कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं।

-अनिमेष वर्मा

सुझाव---

1. स्कूलों में छात्रों के मोबाइल फोन लाने पर रोक है लेकिन फिर भी लाते हैं। बच्चों का नाम काटने की छूट होनी चाहिये।

2. विज्ञान प्रयोगशाला में सुधार को अलग से बजट की व्यवस्था की जाए जिससे हर विद्यालय में एक जैसी सुविधा हो।

3. बच्चों के कोचिंग पढ़ने की प्रथा को रोकने के लिए जरूरी है कि सभी विद्यालयों को बेहतर सुविधायें मिलनी चाहिये।

4. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों का उत्तरदायित्व तय किया जाए। साथ ही अभिभावक भी जागरूक बनकर बच्चों के शिक्षा स्तर को बनाए रखने में सहभागी बने।

5. विद्यालय में स्टेशनरी का खर्च बहुत अधिक आता है जबकि इसके लिए मद निर्धारित नहीं।

समस्या--

1. एडेड स्कूलों के पास बजट न होने से वर्षों से भवन की पुताई और मरम्मत का काम नहीं हो पा रहा। जिसके चलते विद्यालयों में भवन जर्जर हो चुके हैं।

2. विज्ञान प्रयोगशालाओं के लिए बजट के अभाव में कई विद्यालयों में अब तक उपकरण नहीं खरीदे जा सके।

3. एडेड स्कूलों में सफाईकर्मी नहीं हैं, इससे शौचालय की साफ सफाई न होने के कारण यहां गंदगी रहती है।

4. स्कूल में बच्चे मोबाइल न लाएं अभिभावक जागरूक नहीं है। बच्चे मोबाइल लेकर आते हैं और रील बनाने में उनका ध्यान रहता।

5. प्राइवेट स्कूलों को अंधाधुंध मान्यता मिल जाने से सरकारी स्कूलों की हालत खराब हो

रही है।

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