बोले इटावा: स्कूलों की रसोई में अपने अभाव पकाते हैं हम
Etawah-auraiya News - बोले इटावा: स्कूलों की रसोई में अपने अभाव पकाते हैं हम बोले इटावा: स्कूलों की रसोई में अपने अभाव पकाते हैं हम
विद्यालय में बच्चों के लिए खाना बनाकर खिलाने की जिम्मेदारी दी गई पर हमसे ही एजेंसी से रसोई गैस भी मंगवाई जाती है। स्कूल में सफाई कराई जाती है। यहां तक कि मेन्यू के हिसाब से राशन, फल और दूध भी मंगवाया जाता है। महज दो हजार रुपये प्रति माह में और कितना काम लिया जाएगा। जो महंगाई को देखते हुए बहुत कम है। यह दुश्वारियां परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत रसोइयों ने आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में कही। रसोइया अंजू देवी ने बताया साल के 12 महीनों में सिर्फ दस महीने का मानदेय ही दिया जाता है, वह रुक-रुककर मिलता है। रसोइया ममता देवी बताती हैं कि सरकार ने हमारी सुविधा के लिये गैस सिलेंडर की सुविधा दी है, लेकिन प्रधानाचार्य पैसे बचाने के चक्कर में कई-कई दिनों तक गैस सिलेंडर नहीं भरवाते हैं और हमको चूल्हे में खाना बनाना पड़ता है। लकड़ी की व्यवस्था भी उनको अपने ही गांव से करनी पड़ती है। विरोध करने पर काम से हटाने की धमकी दी जाती है। प्रधान से शिकायत पर वे भी प्रधानाध्यापक का ही पक्ष लेते हैं।
रेखा देवी ने कहा कि बच्चों के लिए एमडीएम बनाकर खिलाने के बाद भी अन्य काम के दबाव बनाए जाते हैं। बात नहीं मानने पर हटाने की धमकी दी जाती है। विद्यालय खुलने से छुट्टी होने तक बने रहने का दबाव बनाया जाता है। हम लोगों से काम अधिक लिया जाता है पर काम के हिसाब से मानदेय नहीं दिया जाता है। साफ तौर पर कहें तो स्कूलों की रसोई में हर रोज अपने अभाव हम पकाते हैं। शांति देवी ने बताया उम्र के आधार पर कार्यरत रसोइयों को निष्कासन पर दस लाख रुपये ग्रेच्युटी नकद धनराशि का भुगतान करते हुए, 10 हजार रूपये मासिक पेंशन लागू की जाए।
ऊषा देवी ने बोलीं कि अनाज साफ करने से लेकर खाना बनाने और बर्तन में धुलने में ही उनका पूरा समय निकल जाता है। इसके बावजूद उन्हें दो हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय ही मिलता है। आज दो हजार रुपयों में एक आदमी महीने भर का खर्च नहीं चला सकता है। कहा कि सैकड़ों बच्चों को खिलाते हैं, इतना मानदेय हो कि हमारे भी बच्चे भूखे न रहें। श्रीकांती ने कहा कि तमाम शिक्षक स्कूलों में झाड़ू भी उन्हीं से लगवाते हैं। बच्चों के बर्तन भी धुलने पड़ते हैं।
किरन ने कहा स्कूलों में ही राशन, गैस व सब्जियां पहुंचानी चाहिए। रसोइयों से ही सारा सामान मंगवाया जाता है। राज रानी ने बताया परिवार में अगर कोई सदस्या बीमार पड़ जाए तो भी स्कूल जाना पड़ता है। खुद भी अगर बीमार हो जाएं तो भी उन्हें अस्पताल में कोई सुविधा नहीं मिलती है। रसोइयों के लिए आयुष्मान कार्ड योजना लागू होना चाहिए। इससे रसोइयों को काफी सुविधा मिलेगी।
1. रसोइयों को दस माह की जगह 12 माह का मानदेय समय से मिले।
2. रसोइयों को सरकारी कर्मी का दर्जा देकर 26 हजार रुपये वेतन मिलना चाहिए।
3. कम छात्र संख्या के बहाने रसोइयों को स्कूल से
नहीं हटाना चाहिए, शिक्षकों को बच्चों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
4. रसोइयों को साल में दो जोड़ी ड्रेस व चार जोड़ी गलब्स समय से मिलना चाहिए।
5. सभी रसोइयों को आयुष्मान कार्ड व अंत्योदय कार्ड के दायरे में लाया जाए।
6. सिर्फ रसोई का काम लिया जाए, विद्यालय के अन्य काम न लिए जाएं, इस पर सख्ती से रोक लगे।
1. रसोइयों को मातृत्व अवकाश और मेडिकल की सुविधा नहीं मिलती है, परेशानी का सामना करना पड़ता है।
2. स्कूलों के ताले खुलवाने से छुट्टी तक रसोइया को रोका जाता है। उनका काम सिर्फ लंच तक होता।
3. दो हजार रुपये मानदेय में घर का खर्चा नहीं चलता है। पूरा दिन स्कूल में ही चला जाता है।
4. नवीनीकरण और कम छात्र संख्या के नाम पर रसोइयों को स्कूल से निकाल दिया जाता है।
5. रसोइयों से ही स्कूल का सारा सामान मंगवाया जाता है। और पूरे स्कूल की सफाई भी करवाई जाती है।
6. मेन्यू के अनुसार स्कूल प्रशासन सारी सामग्री नहीं देता, इससे दिक्कतें होतीं, सवाल हमसे होते हैं
26 से 100 छात्र संख्या पर दो रसोइया जरूरी
रसोइयों ने बातचीत के दौरान बताया कि 25 बच्चों पर एक, 26 से 100 पर दो और 101 से 200 तक छात्र संख्या होने पर तीन रसोइयों का प्रावधान है। पर जनपद में बहुत से स्कूल ऐसे हैं, जहां इन नियमों को दरकिनार रख काम लिया जा रहा है। हालात ऐसे हैं कि जिस स्कूल में 40 बच्चे हैं, वहां भी एक रसोइये से ही खाना बनवाया जा रहा है। जहां डेढ़ सौ बच्चे हैं, वहां पर दो रसोइयों से काम लिया जा रहा है। विभागीय अधिकारियों की ओर से मॉनिटरिंग नहीं की जाती। रसोइयों की मांग है कि उनके लिए भी हेल्प डेस्क हो जिससे वह समस्याएं बता सकें।
खाना बनाने में झुलस रहे हाथ, नहीं दिए जाते दस्ताने
नेमा देवी ने बताया रसोइया के लिए सरकार साल में दो ड्रेस, एप्रॉन और कैप जैसी बेसिक चीजों की धनराशी शिक्षकों के खाते में भेजती है। जो हमें नहीं दी जा रही। स्कूलों में बच्चों की संख्या ज्यादा होती है। बर्तन भी बड़े होते हैं। खाना बनाने में काफी समय भी लगता है। इसमें कई बार हाथ भी झुलस जाते हैं। फिर भी उन्हें समय से ड्रेस व दस्ताने नहीं दिए जाते हैं। चूल्हे के धुएं में हानिकारक गैसें होती हैं इससे हमें श्वसन संबंधी और आंखों में जलन, संक्रमण की बीमारी हो जाती है। हममें से बहुत सी ऐसी है जो दमा, खांसी और फेफड़े संबंधी बीमारियों से जूझ रही हैं।
खाना बनवाने के साथ झाड़ू-पोछा भी लगाते: सरिंदा कहती है कि हमें विद्यालयों में बच्चों के लिए खाना बनाने के काम के लिए रखा जाता है। पर खाना बनवाने के साथ स्कूल में परिसर व कक्षाओं में झाडू-पोछा भी लगवाया जाता है, जिसका कोई मानदेय नहीं मिलता है। जबकि यह काम सफाई कर्मचारी का है। साफ-सफाई के काम को मना करने पर निकालने की धमकी दी जाती है। इसलि मजबूरी में यह काम करना पड़ता है। वहीं रामश्री कहती हैं कि हमें उपाधि भोजन माता की दी जाती है। पर मानदेय के लिए कई-कई बार दौड़ाया जाता है। हमारी हेल्प डेस्क हो जहां हम शिकायत कर सकें।
समय से सिलेंडर न भरने से चूल्हा जलवाकर खाना बनवाया जाता है। ये लापरवाही न हो तो चूल्हा न जलाना पड़े।
-सुमन
बीमार होने के बाद भी स्कूल में खाना बनाने जाते हैं। शिक्षक पूरे दिन स्कूल में ही बैठाते हैं, छुट्टी के बाद ही छोड़ते हैं।
- स्वाती
स्कूल की रसोई में खाना बनाने में हाथ झुलस जाते हैं, कई बार प्रधानाचार्य से कहते हैं कि ड्रेस और गलब्स दिलवा दें।
- ममता
मिड-डे मील बनाने के बदले में रसोइयों को दो हजार रुपये माह मानदेय देना सबसे बड़ा मजाक है। ये अन्याय है।
- सावित्री
कहने को तो हमें भोजन माता कहा जाता है, मानदेय महीनों का अटककर मिलता है। इसे निकलवाने को चक्कर काटने पड़ते हैं।
- रामश्री
मानदेय नियमित रूप से महीने के प्रथम सप्ताह में ही दिया जाए। मानदेय समय से न मिलने पर बहुत दिक्कत होती है।
- कुसुमलता
मातृत्व अवकाश की सुविधा मिले। मेडिकल की सुविधा भी मिलनी चाहिए,रसोइयों की समस्या कोई सुनने वाला नहीं है।
- सुनीता
रसोइयों को निष्कासन पर दस लाख रुपये ग्रेच्युटी का भुगतान करते हुए, 10 हजार मासिक पेंशन लागू की जाए।
- सरिंदा देवी
कुछ स्कूलों में रसोइयों से साफ सफाई का काम भी लिया जाता है जो कि गलत है। यह कार्य रसोइयों का नहीं है।
- सरोज
कुछ स्कूलों में रसोइयों से साफ सफाई का काम भी लिया जाता है जो कि गलत है। यह कार्य रसोइयों का नहीं है।
- सरोज
साल भर का मानदेय देने के साथ ही मिड डे मील बनाने के अलावा अन्य कार्य न कराए जाएं। समय से छुट्टी दी जाए।
-राधा देवी
10 माह की जगह 12 माह का मानदेय दिया जाए। हमारे साथ नाइंसाफी न हो। हमारी मेहनत को ध्यान में रखा जाए।
- प्रेम सती
दो हजार रुपये माह मानदेय काफी कम है, इतने कम मानदेय से घर का खर्च नहीं चलता है। मानदेय में वृद्धि की जाए।
- कमला देवी
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