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बोले देवरिया : रसोइयों को दो हजार रुपये मानदेय, वह भी साल में सिर्फ 10 माह

Deoria News - Deoria news : सरकारी विद्यालयों में मध्याह्न भोजन (मिड-डे-मील) बनाने के लिए रसोइया की नियुक्ति की गई है। इन्हें हर माह सिर्फ दो हजार रुपये मानदेय मिलत

Newswrap हिन्दुस्तान, देवरियाSat, 22 Feb 2025 05:17 AM
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बोले देवरिया : रसोइयों को दो हजार रुपये मानदेय, वह भी साल में सिर्फ 10 माह

देवरिया। प्रदेश में एक सितंबर 2004 से सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील योजना की शुरुआत हुई। इसके तहत स्कूलों में रसोइयों का चयन किया गया। इन्हें दो हजार प्रति माह मानदेय दिया जाता है। देखा जाय तो एक दिन का करीब 70 रुपए पारिश्रमिक। देवरिया के कुल 2120 परिषदीय, 72 एडेड जूनियर, 17 एडेड मदरसा और 139 माध्यमिक जूनियर विद्यालयों में 6303 रसोइया कार्यरत हैं। इनमें 6091 महिलाएं और 212 पुरुष हैं। करनी पड़ती है मजदूरी: विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए भोजन बनाने और उन्हें खिलाने की जिम्मेदारी रसोइयों की है। सलेमपुर क्षेत्र की मालती देवी बताती हैं कि रसोइयों को विद्यालय खुलने से करीब आधा घंटा पहले पहुंचना होता है। करीब पांच से छह घंटे तक उन्हें हर रोज काम करना पड़ता है। लेकिन मानदेय रोज का 70 रुपये से भी कम। पथरदेवा क्षेत्र के मलवाबार की रसोइया पानमती बताती हैं कि आज भी कई रसोइया स्कूल से छूटने के बाद दूसरों के खेतों में मजूदरी करती हैं। विद्यालय के बच्चों को भोजन कराने वाली रसोइयों के अपने बच्चे कई बार आधा पेट खाना खाकर सो जाते हैं।

कई माह का मानदेय बाकी: तरकुलवा क्षेत्र के कम्पोजिट विद्यालय नारायनपुर में कार्यरत रीता देवी का कहना है कि रसोइयों को समय से मानदेय भी नहीं मिलता है। आज भी किसी का पांच माह तो किसी का सात माह का मानदेय बाकी है। मुन्नी देवी का कहना है कि रसोइयों को विद्यालय के कमरों और परिसर की साफ-सफाई भी करनी पड़ती है। उसके बाद ग्राम प्रधान के घर से खाद्यान्न और अन्य सामग्री लाकर उन्हें दोपहर तक मिड-डे-मील तैयार करना होता है। शीलवती देवी बताती हैं कि कई बार भोजन कम पड़ जाता है। ऐसी दशा में हर बच्चों को खिलाना रसोइयों के सामने चुनौती होती है।

कोई सुनवाई नहीं: भटनी क्षेत्र की सोना देवी और गणेश का कहना है कि अपनी मांगों को लेकर रसोइयों ने जिले से लेकर प्रदेश स्तर तक संघर्ष किया लेकिन सरकारों ने उनकी बात नहीं मानी।

मानदेय कटने के साथ होती है नए साल की शुरुआत: कम्पोजिट विद्यालय नारायनपुर की रसोइया सुग्गी देवी कहती हैं कि एक तरफ जहां आम लोग हर्ष-उल्लास से नए साल का जश्न मनाते हैं। वहीं रसोइयों के लिए इसकी शुरुआत उनके पंद्रह दिन का मानदेय कटने से होती है। चूंकि बीते कुछ वर्षों से परिषदीय स्कूलों में 31 दिसंबर से लेकर 14 जनवरी तक शीतकालीन अवकाश कर दिया जाता है। लिहाजा रसोइयों को इन दिनों का मानदेय नहीं प्राप्त होता है। इसके अलावा जून माह में ग्रीष्मकालीन अवकाश का भी उन्हें पारिश्रमिक नहीं मिलता है।

प्रधान के रहमो करम पर नौकरी: अधिकतर रसोइयों की नौकरी प्रधान और प्रधानाध्यापकों के रहमों-करम पर निर्भर है। किसी बात को लेकर अगर रसोइयों का ग्राम प्रधान या शिक्षकों से सामंजस्य न बैठे तो नौकरी पर संकट आना निश्चित है। मजबूरी में रसोइयों को प्रधानों की जी हजूरी करनी पड़ती है। कई बार गंवई राजनीति की खेमाबंदी की वजह से भी रसोइयों को अपने काम से हाथ धोना पड़ता है।

शिकायतें

1. रसोइयों को काफी कम मानदेय मिलता है। इतने कम मानदेय में घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है।

2. विद्यालय में किसी पाल्य के नहीं पढ़ने पर रसोइयों को काम से हटा दिया जाता है।

3. प्रधानाध्यापक और प्रधानों की मनमानी के चलते हमेशा नौकरी खोने का डर सताता है।

4. वर्ष में दस माह का मानदेय ही दिया जाता है। इससे दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दूसरे के यहां मेहनत-मजदूरी करनी पड़ती है।

5. भोजन बनाने के दौरान किसी भी प्रकार की दुर्घटना होने पर रसोइया खुद इलाज कराते हैं। मृत्यु होने पर उनके आश्रितों को कोई मदद नहीं दी जाती है।

सुझाव

1. रसोइयों को प्रति माह दस हजार रुपए मानदेय मिलना चाहिए ताकि वे अपने बच्चों की पढ़ाई और परिवार का खर्च उठा सकें।

2. पाल्य की व्यवस्था खत्म होनी चाहिए। विद्यालय में उनके पाल्यों का नामांकन नहीं होने पर नौकरी से न निकाला जाए।

3. राज्यकर्मचारी का दर्जा देकर पीएफ, बीमा और गंभीर बीमारी होने पर आर्थिक मदद की व्यवस्था हो।

4. विद्यालयों में भोजन बनाने के अलावा अन्य कोई काम न लिया जाए। विद्यालय की सफाई करने से मुक्त किया जाए।

5. उच्च न्यायालय के निर्देश का पालन करते हुए रसोइयों को न्यूनतम मानदेय दिया जाए। वर्ष 2005 से जोड़कर भुगतान हो।

रसोइयों का दर्द

बच्चों का नामांकन कम होने पर शिक्षक की जवाब देही तय हो। नामांकन को आधार बनाकर रसोइयों को निकालना गलत है।

लाची देवी

नौकरी बचाने के लिए प्रधान व प्रधानाध्यापक की हर बात माननी पड़ती है। स्कूल खोलने की भी जिम्मेदारी हमें दे दी गई है।

एैसुन निशा

जाड़े व गर्मी की छुट्टी को मिलाकर करीब दो माह का मानदेय काट दिया जाता है। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।

रामावती

रसोइयों को कम से कम दस हजार रुपये मानदेय दिया जाए। साथ ही पूरे वर्ष मानदेय देने की व्यवस्था की जाए।

सिरजावती

प्रधान के घर से खाद्यान्न और अन्य सामग्री लानी पड़ती है। इसमें समय बर्बाद होता है। यह व्यवस्था गलत है।

उमा यादव

भोजन बनाते समय कभी भी दुर्घटना घट सकती है। सुरक्षा संसाधन की कोई व्यवस्था नहीं है। इस पर ध्यान देना चाहिए।

सावित्री देवी

हम रसोइया विद्यालय में अहम भूमिका निभाते हैं। तमिलनाडु की तर्ज पर हमें राज्य कर्मचारी का दर्जा देने की पहल हो।

माला

रसोइया काफी कम मानदेय पर काम करते हैं। छ: माह का मानदेय बाकी है। इसके चलते खर्च चलाने में दिक्कत हो रही है।

आरती देवी

कभी-कभी भोजन बनाने में देरी होती है तो शिक्षक नाराज हो जाते हैं, लेकिन मानदेय समय से देने की बात कोई नहीं सुनता है।

ललिता

रसोइया की नौकरी इसलिए की थी कि घर के आर्थिक हालत सुधर जाए लेकिन दो दशक बाद भी स्थिति जस की तस है।

मालती

कई जगहों पर लकड़ी पर खाना बनाना पड़ता है। धुएं व गर्मी से कई रोगों का खतरा रहता है। हम लोगों का भी स्वास्थ्य बीमा हो।

बादामी

विद्यालय से खाली होने या छुट्टी के दिनों में घर का खर्च और रोजी-रोटी चलाने के लिए दूसरों के खेतों में मजदूरी करनी पड़ती है।

इसरावती

रसोइया की नौकरी में पाल्य का नामांकन अनिवार्य रखा गया है। पाल्य व्यवस्था समाप्त हो ताकि नौकरी की गारंटी बनी रहे।

नयनपति

शासनादेश में रसोइयों को विद्यालय की साफ-सफाई कराने का उल्लेख नहीं है, फिर भी हमसे सफाई का काम लिया जाता है।

राधा

रसोइयों से छ: घंटे काम लिया जा रहा है। बच्चों को भोजन कराने के बाद उन्हें विद्यालय से मुक्त कर दिया जाना चाहिए।

संतरा

पांच माह का मानदेय बाकी है। बकाया मानदेय भुगतान कर नियमित मानदेय भेजा जाए, जिससे हम अपना काम कर सकें।

शकुंतला

बोलीं जिम्मेदार

वर्तमान में जिले में 6303 रसोइया कार्यरत हैं। हर शैक्षिक सत्र में दस माह तक इनसे काम लिया जाता है। मानदेय देने की व्यवस्था शासन स्तर से तय है। पहले इन्हें मानदेय एक हजार रुपए मिलता था। वर्ष 2022 में सरकार ने इसे बढ़ाकर दो हजार कर दिया। सुरक्षा के मद्देनजर रसोइघरों में अग्निशमन यंत्र की व्यवस्था है।

शालिनी श्रीवास्तव, बीएसए, देवरिया

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