बोले देवरिया : डिपो में शौचालय न रेस्टरूम, बस में सोते कर्मचारी
Deoria News - Deoria News : उत्तर प्रदेश परिवहन निगम आम लोगों का सफर तो आसान बना रहा है, लेकिन उसके कर्मचारियों की जिन्दगी में समस्याओं की भरमार है। देवरिया डिपो का
देवरिया। देवरिया डिपो की बसों से प्रतिदिन करीब 10 हजार लोग यात्रा करते हैं। डिपो की रोज की औसत आमदनी करीब 25 लाख रुपये है। इतनी आय के बावजूद डिपो के पास उसका अपना भवन नहीं है। निगम और संविदा कर्मियों को दिन हो या रात, यहां आसमान तले ही रहना पड़ता है। उनके ठहरने के लिए देवरिया डिपो ने कोई इंतजाम नहीं किए हैं। इसके चलते कर्मचारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। होटल और बस में भोजन करने के बाद कर्मचारी बस में ही सोने को मजबूर होते हैं। चालक राणा प्रताप सिंह का कहना है कि हम यात्रियों की सुविधाओं का ख्याल रखते हैं, पर हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। राज्य कर्मचारियों का दर्जा न मिलने से हम लोग बोनस से भी वंचित हैं। परिचालक प्रिंस कुमार कहते हैं कि बाहर से बस लाने के बाद जब हम लोगों को शौचालय जाना होता है तो दिक्कत होती है। डिपो परिसर में कर्मचारियों के लिए कोई शौचालय नहीं है। सुलभ शौचालय का सहारा लेना पड़ता है। इसके लिए हम लोगों को पैसा देना होता है। बारिश में जलभराव के बीच बड़ी मुश्किल से निकल पाते हैं।
परिचालक सुनील मिश्रा का कहना है कि पूरी नौकरी करने के बाद जब कोई रिटायर होता है तो उसको पेंशन के नाम पर प्रति माह 2800 से 3400 रुपये मिलते हैं, पर वह भी समय से नहीं मिलता। चालक सुनील कुमार का कहना है कि रोडवेज का पुराना भवन तोड़ दिया गया। पहले हम लोग लौटते थे तो वहां पर आराम कर लेते थे। अब आते हैं तो बस में ही नाश्ता कर उसी में सोते हैं।
रोडवेज का नया भवन बनाया जाना है, मगर इसके निर्माण के लिए बजट तक नहीं मिला है। कर्मचारियों का कहना है कि टोंटी अधिकांश समय सूखी रहती है। हैंडपंप और नगर पालिका द्वारा लगाई गई आरओ मशीन खराब है। कहा कि हम लोगों को शुद्ध पानी के लिए भी अपनी जेबें ढीली करनी पड़ती हैं।
समान काम, समान जोखिम, पर वेतन और सुविधाएं असमान
देवरिया डिपो में तीन तरह के कर्मचारी कार्य कर रहे हैं। इसमें परिवहन निगम के कर्मचारी, संविदाकर्मी व ऑउटसोर्सिंग कर्मचारी शामिल हैं। परिवहन निगम के जो चालक व परिचालक हैं, उन्हें समय से वेतन मिलता है, जबकि संविदा परिचालक व चालक को किलोमीटर के हिसाब से मानदेय मिलता है। अगर उनका लक्ष्य पूरा नहीं हुआ तो मानदेय में कटौती भी होती है। ऑउटसोर्स कर्मचारी भी उपेक्षित हैं। इनका कहना है कि 20-20 वर्ष से संविदा कर्मी के रूप में काम कर रहे हैं। एक साथ एक समान काम करने वाले इन तीन वर्ग कर्मचारियों को अलग-अलग सुविधाएं दी जाती है। अगर हम 22 दिन महीने में काम न करें तो सीएल से भी वंचित रह जाएंगे।
असुरक्षित महसूस करती हैं महिला परिचालक
देवरिया डिपो में पांच महिला परिचालक रोडवेज बसों की कमान संभाल रही हैं। महिला परिचालकों का कहना है कि उनकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। कभी-कभी यात्री विवाद को उतारू हो जाते हैं। विवाद की स्थिति में अपनी ही गलती मान कर महिला परिचालक शांत हो जाती हैं। डिपो परिसर में भी उनके लिए शौचालय आदि का इंतजाम ठीक नहीं है।
परिचालक बोले, खुद को सुरक्षित रखें या कैश
सबसे अधिक परेशानी रोडवेज बसों के परिचालकों को होती है। परिचालक अशोक कुशवाहा कहते हैं कि अगर रात को नौ बजे के बाद यहां बस लेकर आते हैं तो उनके सामने कैश सुरक्षित रखने का संकट उत्पन्न हो जाता है, क्योंकि नौ बजे के बाद कैश काउंटर बंद हो जाता है। कई बार समझ में नहीं आता कैश की सुरक्षा करें या खुद की? रोडवेज परिसर में कर्मचारियों के लिए भवन भी नहीं है। जिससेे वह सुरक्षित सो भी नहीं पाते हैं।
बरसात में सर्वाधिक दिक्कत झेलते हैं कर्मचारी
देवरिया डिपो परिसर में समस्याओं को अंबार है। रोडवेज कर्मचारियों के लिए हर मौसम में काफी परेशानी होती है। डिपो का भवन न होने के चलते कड़ी धूप में खड़ा होकर परिचालक सवारी भरते हैं। बरसात में भीग कर यात्रियों को बस में बैठाते हैं। ज्यादा बारिश होने पर परिसर में जलभराव हो जाता है। रोडवेज कर्मचारियों के लिए सर्वाधिक दिक्कत बरसात के मौसम में ही होती है।
शिकायतें
1 रोडवेज परिसर में कर्मचारियों के लिए रेस्टरूम का इंतजाम नहीं है। इसके कारण कर्मचारियों को आराम नहीं मिल पाता है।
2. रोडवेज कर्मियों के लिए डिपो में अलग से शौचालय का इंतजाम नहीं है।
3. चालकों और परिचालकों को एक समान काम का एक समान वेतन अथवा मानदेय नहीं दिया जाता है।
4. रोडवेज के कर्मचारियों को महंगाई के अनुरूप वर्दी भत्ता नहीं दिया जा रहा है।
5. रात में कैश रखने के लिए डिपो में कोई सुरक्षित इंतजाम नहीं है। रोडवेज कर्मचारियों को बस में ही कैश रखना पड़ता है।
सुझाव
1. रोडवेज परिसर में कर्मचारियों को आराम करने के लिए रेस्टरूम का निर्माण कराया जाए।
2. रोडवेज कर्मचारियों के लिए विशेष शौचालय और बेहतर स्नान घर का इंतजाम कराया जाए।
3. निगम, अनुबंधित और आउटसोर्स चालक-परिचालकों को एक समान वेतन मिलना चाहिए।
4. महंगाई के अनुरूप चालकों और परिचालकों को वर्दी भत्ता दिया जाए। अभी इस मद में बहुत कम धनराशि दी जा रही है।
5. महिला परिचालकों के लिए सुरक्षा के बेहतर इंतजाम किए जाएं।
कर्मचारियों का दर्द
हम हर मौसम में सवारियों को सुरक्षित पहुंचाने का कार्य करते हैं पर सरकार हमें न्यूनतम वेतन नहीं दे पा रही है।
अशोक शाह, परिचालक
पुलिस रोडवेज कर्मियों के साथ अभद्रता करती है। डग्गामार वाहन सड़क पर सवारी भरते हैं तो उन पर कार्रवाई नहीं होती।
राणा प्रताप सिंह, चालक
रोडवेज कर्मियों को राजकीय कर्मचारियों के बराबर सुविधा नहीं मिलती है। हमें भी मेडिकल की सुविधा मिलनी चाहिए।
राकेश साहनी, परिचालक
सरकार प्राइवेट बसों से प्रत्येक सवारी का डेढ़ रुपये टैक्स लेती है, रोडवेज से छह रुपये टैक्स लिया जाता है।
अशोक कुशवाहा
रोडवेज चालकों को त्योहार के सीजन में लगातार कई घंटे तक बस चलानी पड़ती है। उनके आराम का इंतजाम नहीं है।
गिरिजेश तिवारी
अनुबंधित बस चालकों की समस्याओं पर जिम्मेदार ध्यान नहीं देते हैं, जबकि रोडवेज की आय में वे महत्वपूर्ण हैं।
मुन्ना प्रसाद, चालक
अनुबंधित बस चालकों को कोई सुविधा नहीं मिलती है। हम भोर से ही ड्यूटी करते हैं पर हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता।
हरेन्द्र यादव,चालक
रोडवेज परिसर की स्थिति ठीक नहीं है। हमारे लिए न तो रुकने का इंतजाम है और न ही शौचालय का कोई प्रबंध है।
सतीश चंद यादव
दिन भर यात्रियों की यात्रा सुलभ करते हैं, लेकिन हमारी समस्याओं को लेकर डिपो प्रशासन गंभीर नहीं है।
संदीप मणि
रोडवेज के बसों की स्थिति पहले से ठीक हुई है, लेकिन चालक व परिचालकों की समस्याओं का भी समाधान हो।
सुरेमन शर्मा, चालक
रोडवेज डिपो में रेस्टोरेंट व रेस्टरूम होना चाहिए ताकि चालक व परिचालक नाश्ता और आराम भी कर सके।
संतोष सिंह
परिचालकों के लिए ठहरने का इंतजाम होना चाहिए। देर से आने पर कैश काउंटर बंद हो जाता है। इससे दिक्कत होती है।
रामसहारे, परिचालक
वर्दी, जैकेट, जूता समेत अन्य सामानों के लिए 1800 रुपये मिलते हैं। इसमें तो केवल वर्दी ही आ पाती है।
शरद यादव
पुलिस आए दिन सड़क पर सवारी भरने पर चालान कर देती है। कम सवारी होने पर मालिक परेशान करते हैं।
भृगुनाथ प्रसाद
बोले जिम्मेदार
देवरिया डिपो को मॉडल बनाने का प्रस्ताव है। पीपीपी मॉडल पर इसका विकास होना है। इसके लिए शासन स्तर पर प्रक्रिया चल रही है। भवन न होने से कर्मियों को दिक्कत हो रही है। उनके लिए विशेष शौचालय का इंतजाम नहीं है। भवन बनने के बाद उनके लिए बेहतर शौचालय, रेस्टरूम समेत अन्य सुविधाएं मिल जाएंगी। उन्हें हर संभव सुविधाएं मुहैया कराने की पहल की जा रही है। वेतन और अन्य सुविधाएं कर्मचारियों को उपलब्ध कराना मुख्यालय स्तर का मामला है।
-कपिलदेव, एआरएम, देवरिया
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