बोले देवरिया : डीजे के शोर में दब गई बैंडबाजे की मधुर आवाज
Deoria News - Deoria news : शादी समारोह की रौनक बढ़ाने वाले बैंड-बाजा संचालक और कलाकार अपने पेशे की धूमिल होती चमक से चिंतित हैं। हर खुशी के मौके पर लोगों को आनंदित

देवरिया। करीब एक दशक पूर्व तक शुभ के हर कार्यक्रम में लोग बैंड-बाजा बुक कराते थे, लेकिन बदलते परिवेश में आर्केस्ट्रा और डीजे इसकी जगह लेते जा रहे हैं। इसका सीधा असर बैंड-बाजा कारोबार पर पड़ा है। बुकिंग कम होने से कुछ संचालक खर्च घटाने को जहां कलाकारों की संख्या में कटौती करने लगे हैं वहीं कई ने तो धंधा ही छोड़ दिया है। औराचौरी के रहने वाले महाराजा बैंड के मालिक अलीशेर सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं। उनका कहना है कि इस विरासत और परंपरा को बचाने के लिए सरकार ठोस कदम उठाए, जिससे इसे बचाया जा सके। उनका कहना है कि हम लोग सहालग के दिनों में जो कमाते हैं उसी कमाई से पूरे साल रोजी-रोटी का इंतजाम करना पड़ता है। अगर सहालग में कमाई नहीं हुई तो कलाकारों के परिवार के सामने भुखमरी का संकट खड़ा हो जाता है।
गौरीबाजार के सरस्वती बैंड के मालिक वीरेंद्र प्रताप राव कहते हैं कि हाल के वर्षों में डीजे के बढ़ते प्रचलन के कारण बैंड बाजे की मधुर धुन गुम होती जा रही है। पहले के मुकाबले कमाई घटी है। बैंडबाजा संचालक सैय्यद अली का कहना है कि डीजे के प्रचलन से पहले शादी-ब्याह समेत अन्य मांगलिक कार्यों की रौनक बैंड-बाजे और शहनाई से ही बढ़ती थी। एक बैंड पार्टी में 12 से लेकर 25 लोग काम करते थे लेकिन अब डीजे के प्रचलन से पेशा बंदी की कगार पर पहुंच गया है। पहले सारी रात बैंड बाजा बजाते थे। कई बार तो एक दिन में दो से तीन जगहों पर बुकिंग मिल जाती थी। अब कई बार लगन के दिन बुकिंग नहीं होने से घर बैठने की नौबत आ जाती है। पूरे वर्ष में बमुश्किल दो से तीन महीने ही सहालग होती है उसमें भी काम नहीं मिलने पर अलग संकट खड़ा हो जाता है।
महंगाई का असर बैंड पार्टी पर भी दिख रहा: मंहगाई का असर बैंड पार्टी पर भी पड़ता दिख रहा है। विगत एक दशक के भीतर वाद्य यंत्रों की कीमत में 25 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है। खराब होने पर वाद्य यंत्रों की मरम्मत करवाने के लिए भी दूर जाना पड़ता है। बैंड पार्टी चलाने वाले वाजिद अली ने बताया कि महंगाई के हिसाब से जब शादी विवाह में बुकिंग का रेट बताते हैं तो ग्राहक झेंप जाते हैं। बुकिंग का रेट पूछने के बाद कुछ बैंड बाजे की जगह डीजे की ही बुक कर लेते हैं। सच यह है कि आर्केस्ट्रा की मार के बीच वाद्य यंत्रों की बढ़ रही कीमत बैंड-बाजा के लिए कोढ़ में खाज साबित हो रही है। राहत तब मिलती है जब अच्छे कद्रदान बुकिंग कराने आते हैं। यह सच है कि जब बारात द्वार लगने के समय जब सुसज्जित परिधान से लैस बैंड पार्टी के लोग अपने वाद्य यंत्रों से सुरीली तान निकालते हैं, तो उस समय का माहौल बेहद ही खुशनुमा होता है। राकेश यादव कहते हैं कि मनोरंजन के नाम पर अब लोग डीजे व आर्केस्ट्रा की बुकिंग कर रहे हैं।
मजदूरी बढ़ी लेकिन दाम नहीं : बैंड बाजा संचालकों का दर्द है कि बैंड बाजा के कारीगरों से लेकर मजदूरों का मेहनताना तो बढ़ गया है, लेकिन उनकी बुकिंग की रकम में खास इजाफा नहीं हुआ है। बैडबाजा संचालक जमशेद का कहना हैं कि अस्सी के दशक में 1500 से 2000 रुपये में बुकिंग होती थी। भुगतान करने के बाद 500 रुपये बच जाते थे। लेकिन अब 25000 से 40000 रुपये बुकिंग के बाद भी 1000 से 1500 रुपये नहीं बचते हैं।
बिहार तक गूंजती थी शिमला बैंड की धुन
बैतालपुर के शिमला बैंड के मालिक हमीद खान का कहना है कि उनके पिता ने 1980 में बैंड-बाजे की शुरुआत की थी। तब और आज में जमीन आसमान का अंतर है। आज रोजमर्रा की जरूरतें भी इस पेशे से पूरी नहीं हो पा रही है। पहले हमारा बैंड देवरिया ही नहीं, महराजगंज, कुशीनगर, गोरखपुर, मऊ, बलिया जनपद के अलावा पड़ोसी प्रांत बिहार के सिवान, गोपालगंज, छपरा समेत अन्य जगहों पर भी जाता था। लेकिन आज बमुश्किल पूरे सीजन में 20 से 22 ही बुकिंग हो पाती है। इसमें भी कुछ बिचौलिए दलाली करने लगते हैं। यही हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा बैंड भी बंद हो जाएगा।
बाहरी कलाकारों को देते है पूरे सीजन का एडवांस
बैंड मालिकों का कहना है कि पहले नर्तकी से लेकर अन्य कलाकार आसानी से मिल जाते थे, लेकिन अब कलाकार बिहार व पश्चिम बंगाल से बुलाने पड़ते हैं। वहां एक ही बार में पूरे सीजन की रकम जमा करा लेते हैं। किसी लगन पर बुकिंग भले ही न हो, लेकिन उन्हें कलाकार को पूरा रुपया देना पड़ता है। इसके अलावा उनके खाने व रहने का भी इंतजाम बैंडबाजा संचालकों के जिम्मे ही होता है। अगर कलाकार पांच महीने रहते हैं तो उनके क्वाटर भाड़ा से लेकर खाना-पीना व वस्त्र तक की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। जिसके चलते इन्हें कई तरह की दिक्कतों का भी सामान करना पड़ता है।
शिकायतें
1. आर्केस्ट्रा और डीजे का प्रचलन बढ़ने से बैंड-बाजा की बुकिंग एक तिहाई ही रह गई है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो यह विरासत खत्म हो जाएगी।
2. वाद्य यंत्रों की महंगाई कलाकरों को भारी पड़ रही है। जिस हिसाब से वाद्य यंत्रों के दाम बढ़े हैं उस हिसाब से मेहनताना नहीं बढ़ा।
3. लंबे समय तक बैंड बाजा में काम करने से कलाकारों को कई बीमारियां घेर लेती हैं।
4. बैंड बाजा का काम सहालग और त्योहारों तक ही सीमित है। बाकी समय कलाकारों के पास काम नहीं होने से कोई आमदनी का जरिया भी नहीं रहता।
5. बैंडबाजा में कलाकार एक उम्र तक ही काम कर सकता है। उसके बाद आमदनी का कोई जरिया नहीं होने पर वह परिवार भी निर्भर हो जाता है।
सुझाव
1. बैंड बाजा परम्परा और विरासत से जुड़ा है। ऐसे में इस कला को संरक्षित करने के लिए सरकार की तरफ से पहल होनी चाहिए।
2. वाद्य यंत्रों पर सब्सिडी देकर सरकार इस कला को प्रोत्साहित करे। बैंक भी कर्ज उपलब्ध कराएं।
3. बैंडबाजा कलाकारों को पूरे साल काम मिले इसके लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। स्कूलों और सरकारी आयोजनों में बैंडबाजा कलाकारों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
4. कलाकारों की सेहत जांचने को समय-समय पर शिविर लगे। उन्हें आयुष्मान योजना का लाभ मिले।
5. मानक के विपरीत चले रहे डीजे और आर्केस्ट्रा पर रोक लगे। कलाकरों का भुगतान रोकने वालों पर प्रशासत सख्त कार्रवाई करे।
लोगों का दर्द
35 वर्ष पहले में पिता ने बैंड-बाजा खोला। उस समय अच्छी कमाई हो जाती थी, लेकिन अब खर्च चलाना भी मुश्किल हुआ है।
बिट्टू, बैंडबाजा संचालक
1980 में मेरे घर बैंड-बाजा पार्टी बनी थी। उस समय अच्छी मांग थी, लेकिन अब कलाकारों का भुगतान भी नहीं दे पा रहे।
हमीद खान, शिमला बैंड, बैतालपुर
हमारी कला को बचाने के लिए सरकार पहल करे। सरकार को बैंडबाजा कर्मियों के लिए भी कुछ योजनाएं शुरू करनी चाहिए।
सैय्यद अली खान, शमां बैंड, बलियंवा
हम शादी, त्योहारों और उत्सवों पर पूरी तरह से निर्भर हैं। आयोजनों की कमी से हमारा कारोबार प्रभावित होता है।
उमर रफीक अंसारी, रफीक बैंड
युवाओं का झुकाव डीजे और तड़कते-भड़कते संगीत की ओर है। बैंड से ग्राहकों को आकर्षित करना कठिन हो गया।
असलम खान, बैतालपुर, देवरिया
सरकार पुराने संगीत कार्यक्रम, प्रतियोगिता मेले का आयोजन करे, जिससे बैंड के कलाकारों को प्रदर्शन का अवसर मिले।
जमशेद, मधुर बैंड
हम आर्थिक रूप से असुरक्षित हैं, क्योंकि हमारी आमदनी का मुख्य स्रोत अनियमित है। डीजे पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
मोनू, फेंकू बैंड, देवरिया
डीजे स्वास्थ्य के साथ ही हमारे समाज को भी क्षति पहुंचा रहा है। इसे लेकर प्रशासन को सख्ती से पेश आना चाहिए।
वाजिद अली, सरगम बैंड, गौरीबाजार
सांस्कृतिक संस्थाओं और स्कूलों से समर्थन मिले, जिससे कि बैंड के प्रति नई पीढ़ी में आकर्षण बढ़े व हमें सेवा के अवसर प्राप्त हो। वीरेंद्र प्रताप राव, सरस्वती बैंड
हम लोगों को नियमित काम नहीं मिलता है। इसलिए काफी दिक्कत होती है। शादी के सीजन के बाद हम लोग बेकार हो जाते हैं। सद्दाम अंसारी, मुर्तुजा बैंड, करुअना
सरकार को बैंडबाजा को संरक्षण देना चाहिए। अभी दिहाड़ी मजदूरों से भी कम हमारी आमदनी हो रही है।
ताज मोहम्मद, ताज बैंड, तहसील रोड
बैंडबाजे की मांग कम होती जा रही है। वर्ष में दो से तीन महीने ही काम मिलता है। अब तो बच्चों को पढ़ाना भी मुश्किल हो गया।
सद्दाम खान, बैतालपुर
10 से 15 वर्ष यहां काम के बाद हमें बीमारी घेर लेती है। कलाकारों की नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं।
मैनुद्दीन, राजस्थान बैंड, हरैया बसंतपुर
डीजे का प्रचलन बढ़ने से बैंड कलाकारों की अहमियम कम हो गई है। तेज आवाज वाले डीजे पर प्रतिबंध लगे।
मुस्ताक अली, गौरीबाजार
कार्यक्रम के बाद पार्टी भुगतान के समय कमी निकाल कर राशि की कटौती कर लेते हैं। इस पर रोक लगे।
पंजाबी, पंजाबी बैंड, हरैया बसंतपुर
बोले जिम्मेदार
पंजीकृत श्रमिकों के लिए कई याोजनाएं हैं। कन्या विवाह सहायता योजना, मातृत्व, शिशु व बालिका मदद योजना, मृत्यु एवं दिव्यांगता योजना, संत रविदास योजना शिक्षा सहायता योजना व प्रधानमंत्री श्रम-योगी मानधन योजना सहित अन्य योजनाएं संचालित है। बैंड बाजा बजाने वाले कलाकार प्रधानमंत्री श्रम-योगी मानधन योजना में पंजीकरण कराकर विभाग की योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं।
शशि सिंह, जिला श्रम प्रवर्तन अधिकारी
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