बोले देवरिया : ओवरब्रिज-जाम से चौपट हुआ बर्तन व्यवसाय
Deoria News - Deoria News: शहर का मालवीय रोड बर्तन कारोबार के लिए मशहूर रहा है। कुछ वर्ष पहले तक त्योहार और सहालग के साथ ही आम दिनों में भी यहां बर्तन खरीदने वालों
देवरिया। जिले में बर्तन की लगभग 500 दुकानें हैं। इन दुकानों से करीब आठ हजार लोगों की रोजी-रोटी चलती है। इनमें करीब एक हजार लोग ऐसे हैं, जिनकी कई पीढ़ियां बर्तन का कारोबार करती आ रही हैं। समय के साथ यह व्यवसाय भी चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। बाजार में बढ़ती महंगाई, जीएसटी की महंगी दर और ऑनलाइन शॉपिंग ने बर्तन व्यवसाय की चमक फीकी कर दी है। सबसे बड़ी मार ओवरब्रिज के रूप में पड़ी है। जब से मालवीय रोड पर ओवरब्रिज बना है, ग्राहकों ने आना कम कर दिया है। ओवरब्रिज के कारण दिनभर जाम लगा रहता है। पार्किंग के लिए जगह नहीं है। इसके कारण लोग अब यहां आने से कतराते हैं। मालवीय रोड के बर्तन व्यवसायी प्रमोद गुप्ता बताते हैं कि पहले बर्तन की बिक्री खूब होती थी। कृषि प्रधान क्षेत्र में किसान ही उनके मुख्य ग्राहक थे। अब खेती से आय पहले जैसी नहीं है। महंगाई काफी बढ़ गई है। इससे उनके व्यवसाय पर बुरा असर पड़ा है। रवि गुप्ता कहते हैं कि महंगाई काफी बढ़ जाने से बिक्री घट गई है। लोग अब बहुत जरूरी होने पर ही बर्तन खरीदने आते हैं।
व्यवसायी संजय कुमार का कहना है कि बर्तन व्यवसाय अब आसान नहीं रह गया है। बर्तन पर जीएसटी की दर 18 प्रतिशत हो गई है। इससे सामान महंगा हो गया है। बर्तनों की बिक्री धीरे-धीरे कम होती जा रही है। जिले में बर्तन का सबसे बड़ा मार्केट मालवीय रोड अब ढलान पर है। यहां ओवरब्रिज बनने कारण ग्राहकों का आना कम हो गया है। कुछ व्यवसायियों ने दूसरे स्थानों पर नई दुकानें शुरू की हैं।
तिलक की रस्म में बदलाव से बर्तन कारोबार प्रभावित
शादी, तिलक और धनतेरस बर्तन व्यवसाय की जान रहे हैं। कारोबार का बड़ा हिस्सा तिलक पर निर्भर करता था। समय के साथ परंपराएं बदल रहीं हैं। लोग तिलक की जगह अब रिसेप्शन और गोदभराई की रस्म पर खर्च करने लगे हैं। तिलक की परंपरा कम होने से बर्तन के कारोबार पर बुरा असर पड़ा है। मालवीय रोड में बर्तन का व्यवसाय करने वाले दिनेश गुप्ता ने बताया कि तिलक या तो चढ़ नहीं रही है, चढ़ती भी है तो कई लड़के वाले पहले से घर में बर्तन होने का हवाला देकर बर्तन नहीं लेने की शर्त रख देते हैं।
ऑनलाइन शॉपिंग के कारण कम हो गई बिक्री
हर व्यापार की तरह बर्तन कारोबार पर भी ऑनलाइन बाजार ने काफी असर डाला है। व्यवसायी हरिश्चंद्र गुप्ता की मानें तो ऑनलाइन शॉपिंग के कारण दुकानों से होने वाले बर्तन के व्यवसाय में 25 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। लोग दुकानों पर आने की बजाय ऑनलाइन बर्तन मंगाने लगे हैं। वहां उन्हें 10 प्रतिशत तक डिस्काउंट मिल रहा है। हम लोग 20 प्रतिशत तक डिस्काउंट देते हैं फिर भी पता नहीं क्यों लोग ऑनलाइन ही बर्तन खरीदना पसंद कर रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी बुजुर्गों को भी दुकानों पर आने से रोकते हैं। उन्हें ऑनलाइन शॉपिंग अधिक आकर्षित कर रही है। इसके कारण दुकानों पर बिक्री कम हो गई है।
जीएसटी के कारण छोटे व्यापारी समाप्त हो गए
मालवीय रोड के बर्तन कारोबारी प्रदीप बरनवाल ने बताया कि जीएसटी का सबसे बुरा असर छोटे व्यापारियों पर पड़ा है। बड़ी मंडियों से कारोबारियों को मिलने वाला क्रेडिट नोट अब नहीं मिल रहा है। नकद में व्यवसाय होने लगा है। इसके चलते छोटे व्यापारी समाप्त हो गए। अब बाजार में पूंजी वाले व्यवसायी ही बचे हैं। अंसारी रोड के व्यवसायी सतीश कुमार बरनवाल ने बताया कि ब्रांडेड कंपनियों में कटिंग का माल बाजार में खूब बिकने लगा है। इससे एजेंसी होल्डर व्यवसायी परेशान रहने लगे हैं। खुदरा दुकानदार कटिंग का माल कम दाम पर खरीद कर बेच रहे हैं। इससे व्यवसाय प्रभावित हो रहा है।
एल्युमिनियम के बर्तन की घट गई मांग
एल्युमिनियम के बर्तन के प्रति ग्राहकों की सोच बदल रही है। ग्राहकों में यह धारणा बन गई है कि एल्युमीनियम के बर्तन से स्वास्थ्य खराब हो रहा है। इसके चलते इनकी मांग काफी घट गई है। स्टील के बर्तन की मांग बढ़ गई है। यह बर्तन सालोसाल चलते हैं। इससे भी बिक्री पर असर पड़ा है। वहीं फूल के बर्तन काफी महंगे होने से ग्राहकों की पहुंच से बाहर हो गए हैं।
ठठेरी के धंधे से कारीगरों का होने लगा मोहभंग
शहर के ठठेरी गली में एक समय पांच परिवार बर्तन की कारीगरी और पॉलिश के काम से जुड़े हुए थे। इससे होने वाली आमदनी से इन कारोबारियों की गृहस्थी आराम से चलती थी। समय के साथ फूल और पीतल के बर्तनों की मांग घटने लगी। इसके चलते बर्तन कारीगरों की मुश्किलें बढ़ती गईं। ऐसे में निराश होकर इससे जुड़े करीगरों का भी मोहभंग होने लगा। जिला मुख्यालय पर अब ठठेरों के पांच में दो परिवारों ने कारीगरी का अपना पुश्तैनी काम बिल्कुल छोड़ दिया है।
बर्तन कारीगरी के काम में जो बच गए हैं उनमें से दो ने बर्तन बेचने का काम भी शुरू कर दिया है। सिर्फ एक परिवार ही बर्तन कारीगरी से जुड़ा हुआ है। इस परिवार के मुखिया राजकुमार बताते हैं कि ठठेरी गली में दादा लखीचंद कसेरा ने काम शुरू किया था। तब बड़ी संख्या में बर्तन सफाई और डिजाइन के लिए आते थे। मशीन सुबह से देर रात तक चलती थी। कोयले की भट्ठी को भी फुर्सत नहीं मिलती थी। हम सुबह से शाम तक भट्ठी पर बर्तन गरम करते और केमिकल डालकर उसकी सफाई करते थे। इस काम में मन भी लगता था। रुपये भी खूब मिलते थे। दादा के बाद पिता दीनदयाल कसेरा ने काम संभाल लिया। उनके समय में भी खूब बढ़िया काम चला। बीते 30 साल से लोगों की फूल, पीतल के बर्तनों रुचि कम होती जा रही है। तिलक में लोगों ने पीतल और फूल के बर्तन देना बंद कर दिया। अब केवल थारा बचा हुआ है। कुछ लोग कलश पीतल का देते हैं। अब कई बार पूरे दिन काम नहीं मिलता है। इससे आमदनी काफी घट गई है।
शिकायत
1. पहले बर्तन पर चार प्रतिशत टैक्स लगता था। जीएसटी आने के बाद से टैक्स बढ़कर 18 प्रतिशत हो गया है। इससे बर्तन काफी महंगे हो गए हैं। लोग पहले की तरह बर्तन नहीं खरीदते हैं।
2. मालवीय रोड पर ओवरब्रिज बनने के कारण दुकानें उसके नीचे आ गई हैं। इससे कारोबार पर बुरा असर पड़ रहा है। ग्राहकों की आवाजाही कम हो गई है।
3. एल्युमीनियम के बर्तनों की मांग घटने से बर्तन करोबारियों का टर्नओवर प्रभावित होने लगा है।
4. महंगाई बढ़ने से निवेश काफी बढ़ गया है और मुनाफा पहले से काफी कम हो गया है।
5. ऑनलाइन शॉपिंग के कारण दुकानों से बर्तनों की बिक्री 25 फीसदी तक कम हो गई है।
सुझाव
1. जीएसटी में क्रेडिट नोट की व्यवस्था बनाई जाए, इससे व्यापार में सहूलियत होगी। जीएसटी की दरें व्यवसाय के अनुकूल बनाई जाए।
2. बड़े मॉल की तरह बर्तन की दुकानों को भी सप्ताह में प्रत्येक दिन खोलने की अनुमति देनी चाहिए। इससे व्यापारियों को राहत मिलेगी।
3. ऑनलाइन बर्तन व्यवसाय को सीमित करने के लिए सरकार को गाइडलाइन बनानी चाहिए, जिससे दुकानदारों को राहत मिल सके।
4. बर्तन व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए सरकार को योजनाएं शुरू करनी चाहिए।
5. बर्तन व्यवसाय से जुड़े कारीगरों को सब्सिडी देकर सरकार इस कारोबार को आगे बढ़ाने का प्रयास कर सकती है।
हमारी भी सुनिए
बर्तन व्यवसाय पर जीएसटी अधिक है। यह दैनिक जरूरत की वस्तु है। इस पर जीएसटी की दरें कम की जाएं। संभव हो तो टैक्स हटा लिया जाए।
प्रमोद गुप्ता
समय के साथ बर्तन व्यवसाय बदला है। युवा पीढ़ी ऑनलाइन बाजार की ओर रुख कर रही है। इसके चलते खुदरा व्यवसाय काफी कम हो गया है।
दिनेश गुप्ता
जिनकी जेब में रुपये हैं वह महंगे डिजाइनर बर्तन ऑनलाइन खरीद रहे हैं। बाकी लोग पुराना बर्तन बदलकर नया ले रहे हैं। इससे बिक्री कम हो गई है।
रवि गुप्ता
एल्युमिनियम के बर्तन से ग्राहक मुंह मोड़ रहे हैं। स्टील के बर्तन अधिक चलते हैं। इसके चलते बिक्री कम होने लगी है। टर्नओवर कम हो गया है।
हरिश्चंद्र गुप्ता
किसान हमारे मुख्य ग्राहक हैं। खेती की दशा खराब है। इसके चलते किसानों की जेब में रुपये नहीं आ रहे है। इससे हमारी दुकानदारी भी बिगड़ रही है।
पिंटू
मालवीय रोड पर ओवरब्रिज बनने से इधर ग्राहकों का आना कम हो गया है। इससे दैनिक बिक्री समाप्त हो गई है। परंपरागत ग्राहक शादी की खरीदारी करते हैं।
संजय कुमार बरनवाल
आज की तारीख में किसान सुखमय नहीं हैं। उनकी आमदनी घट गई है। इससे बाजार में बर्तन की बिक्री घट गई है। सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए।
प्रदीप बरनवाल
तीन पीढ़ी से बर्तन की सफाई और कारीगरी में हमारा परिवार लगा है। अब इन बर्तनों की मांग नहीं रही। घर खर्च चलाना मुश्किल हो गया है।
राजकुमार
ऑनलाइन कंपनियों ने बर्तन बाजार को प्रभावित किया है। घर बैठे लोग बर्तन खरीद रहे हैं। जेब में रुपये हैं तो महंगा-सस्ता का हिसाब कोई नहीं करता है।
मनीष कुमार
45 साल से बर्तन का व्यवसाय कर रहे हैं। महंगाई इतनी बढ़ गई है कि रेट सुनकर ग्राहक झुंझला जाते हैं। चार की जगह जीएसटी में 18% कर देना पड़ रहा है।
राजेंद्र कुशवाहा
शादी-विवाह में बर्तन देने की परंपरा समाप्ति की ओर है। इससे बिक्री काफी घट गई है। महंगाई बढ़ने और मुनाफा घटने से बर्तन कारोबार में पहले जैसी बात नहीं रही। हम बर्तन कारोबारियों की रोजी-रोटी पर संकट आ गया है।
मनोज कुमार
बोले जिम्मेदार
बर्तन की ट्रेडिंग के लिए उद्योग विभाग में कोई योजना संचालित नहीं है। कोई बर्तन की मैन्युफैक्चरिंग करना चाहता है तो उसको विभिन्न योजनाओं के माध्यम से उद्यम स्थापित करने के लिए सुविधा मिलती है। विशेष जानकारी के लिए संबंधित व्यक्ति किसी भी कार्य दिवस में कार्यालय में सम्पर्क कर जानकारी प्राप्त कर सकता है और योजनाओं के बारे जान सकता है।
सतीश गौतम, उपायुक्त, जिला उद्योग व उद्यम प्रोत्साहन केंद्र, देवरिया
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