शिवमहापुराण की कथा में यज्ञदत्त का सुनाया वर्णन
Chandauli News - मसोई गांव में चल रही श्री शिव महापुराण की कथा में यज्ञ दत्त नामक ब्राह्मण के पुत्र गुणनिधि की कहानी सुनाई गई। गुणनिधि जुआ खेलकर सब कुछ खो देता है। उसके पिता उसे घर से निकाल देते हैं। अंततः गुणनिधि...

शहाबगंज, हिन्दुस्तान संवाद। विकास खण्ड के मसोई गांव में चल रही सात दिवसीय श्री शिव महापुराण की कथा में श्री शिवम शुक्ला जी महाराज ने तीसरे दिन यज्ञ दत्त नामक ब्राह्मण की कथा सुनाई। कहा कि वह बड़े विद्वान और नियम धर्म से रहते थे। उनका एक बालक था जिसका नाम गुननिधि था। वह कुसंगति में पड़कर जुआ खेलने लगा। वह घर की सब वस्तु जुआ में हार गया। स्वर्ण की अंगूठी पीतल की थाली चांदी की गहने सब जुए में हार गया। जब भी यज्ञ दत्त अपने पुत्र गुणानिधि के विषय में अपनी पत्नी से पूछते थे की गुननिधि कहां है? तो उनकी पत्नी डर के मारे अपने पति से झूठ कह देती थी की गुण निधि पढ़ने गया है। एक दिन यज्ञ दत्त ब्राह्मण यज्ञ कर कर लौट रहे थे उन्होंने देखा कि एक जौहरी के हाथ में स्वर्ण की अंगूठी है जो कि यह पंडित जी को यज्ञ में मिली थी। यज्ञ दत्त ने पूछा उनसे की भैया यह उनकी तुम्हारे पास कहां से आई तो उसे ज्वारी ने सारा वृत्तांत बता दिया कि आपका पुत्र रोज जुआ खेलते हैं वह हुए में यह सब वस्तुएं सोने की चांदी की हर की चला जाता है। पंडित जी को बड़ा बुरा लगा बड़े क्रोध से घर आए अपनी पत्नी से सब पूछा कि वह स्वर्ण के अंगूठी कहां है वह साड़ी कहां है और चांदी की पायल कहां है सब लेकर आओ मुझे देखना है। उनकी पत्नी समझ गई की पतिदेव को अब सब पता चल गया है। पंडित जी ने कहा बेटा नालायक हो गया कोई बात नहीं लेकिन तुमने भी बेटे का साथ दिया मुझे एक बार भी नहीं बताया कि जुआ खेलता है। पंडित जी ने अपनी पत्नी अपने बच्चों को घर से बाहर निकाल दिया। जब घर से बाहर निकाल दिया तो सुबह से शाम हो गई कहीं भोजन नहीं मिला तो भूख से व्याकुल होने लगे गुननिधि विचार करने लगा इतने बड़े ब्राह्मण के घर जन्म प्रकार के भी मैंने अपने जीवन को नष्ट कर दिया। अचानक उसकी दृष्टि एक शिवालय पर पड़ गई वह वही जाकर के बैठ गया। वहां कुछ भक्तगण भगवान शिव का अभिषेक कर रहे थे। वह बैठा बैठा वह अभिषेक पूजन देखता रहा और सोचने लगा जब यह सब भोग लगा करके सो जाएंगे तब मैं उसे भोग को उठाकर के खा लूंगा। पूजन के बाद सब भक्तगण सो गए। शिवालय में गुननिधि गया और उसने देखा कि मंदिर में दीपक जल रहा है। शिवभक्तों की पिटाई से उसका शरीर शांत हो गया। अगले जन्म में गुणनिधि कलिंग देश के राजा अरिंदम के पुत्र दंभ हुए। उन्होंने अपने राज्य में घोषणा कर दी कि जो भी शिवालय में दीपक नहीं जलाएगा उसको मैं मृत्यु दंड दूंगा। आप सब लोग उनके राज्य में शिवालयों में मंदिरों में जाकर के दीपक दान करने लगे। दीप जलने लगे चारों तरफ उनका राज्य दीपकों से जगमगाने लगा चारों तरफ धर्म होने लगे सत्कर्म होने लगे यदि राजा धार्मिक हो तो प्रजा भी धार्मिक हो जाती है जैसा राजा होता है वैसी प्रजा हो जाती है। इसलिए राजा को धार्मिक विचार का होना चाहिए। जिससे प्रजा का भी कल्याण हो सके।
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