दिखावे का बालरोग विभाग का वेंटिलेटर, रेफर हो रहे नवजात
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बस्ती, निज संवाददाता। महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कॉलेज कैली के बालरोग विभाग में नवजात बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए (एनआइसीयू) में लगा वेंटिलेटर दिखावा साबित हो रहा है। वार्ड में लगे तीन वेंटिलेटरों में से सिर्फ एक सक्रिय है। ओपेक अस्पताल के बाल रोग विभाग के नवजात के लिए 10 बेड का एनआईसीयू वार्ड है। बेड के सापेक्ष वार्ड में चार सीपैप व तीन वेंटिलेटर स्थापित है। इस समय एक वेटिंलेटर के सहारे एनआईसीयू वार्ड चल रहा हैं। नवजातों की हालत गंभीर होने पर वेंटिलेटर के अभाव में उन्हें रेफर कर दिया जाता है। वार्ड में समय से पहले जन्मे या कमज़ोर शिशुओं को ऑक्सीजन वेंटिलेटर की आवश्कता पड़ती है। दो वेंटिलेटर खराब होने का हवाला देकर गंभीर नवजात को रेफर कर दिया जाता है। वार्ड के चिकित्सक ने बताया कि वेंटीलेटर खराब होने के बारे में मेडिकल प्रशासन को बताया गया है। सामान्य समस्या होने की दशा में सीपैप पर रखने की व्यवस्था है। अस्पताल में सीजर और नार्मल मिलाकर रोजाना 25 से 30 डिलीवरी होती है। इसमें चार से पांच नवजात की स्थिति खराब पाई जाती है। आवश्यकता को देखते हुए उन्हें रेफर करना पड़ता है। इस बाबत सीएमएस समीर श्रीवास्तव ने बताया कि वेंटिलेटर खराब होने का मामला संज्ञान में है। इंजीनियर को सूचित किया गया है, जल्द ही वेंटिलेटर सही करा दिया जाएगा।
निजी अस्पताल में देना पड़ा 15 हजार
सेमरियावां से आए एक नवजात के परिजन ने बताया वेंटिलेटर नहीं होने पर कैली के चिकित्सक ने निजी अस्पताल की गाड़ी बुलाकर वहां भर्ती कराया। निजी अस्पताल में एक दिन के लिए वेंटिलेटर की सुविधा लेने पर 15 हजार रुपया देना पड़ा।
बाहर के अस्पताल में वेंटिलेटर पर प्रतिदिन खर्च होता है आठ हजार रुपये
मेडिकल कॉलेज से रेफर नवजात को निजी अस्पताल के एनआईसीयू में वेंटिलेटर का खर्च प्रतिदिन आठ हजार रुपये पड़ता हैं। इससे अर्थिक रूप से कमजोर लोग खर्च उठाने में अक्षम होते हैं। इस कारण ऐसे नवजात अनहोनी के शिकार हो जाते हैं और माता-पिता के पास पछताने के सिवा कुछ नहीं बचता है।
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