बोले बस्ती - माह में सिर्फ 12 दिन काम, कैसे चलाएं परिवार
Basti News - Bole Basti मुंडन, जनेऊ, शादी-विवाह जैसे आयोजनों में नाई समाज अहम भूमिका निभाता था।

Bole Basti मुंडन, जनेऊ, शादी-विवाह जैसे आयोजनों में नाई समाज अहम भूमिका निभाता था। गांव-मोहल्ले और रिश्तेदारों तक सूचनाएं पहुंचाता था। न्योता बांटता था। अब व्हाट्सएप के जरिए न्योता बांट दिया जा रहा है। जब नाई समाज के लोग न्योता लेकर जाते थे तो नेग पाते थे। हर घर से गेहूं-चावल व अन्य सामान मिलता था। अब यह प्रथा समाप्त हो रही है। नाई समाज के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इस समाज के कुछ लोग रोजी-रोजगार के लिए गांव छोड़कर शहरों में चले गए। सैलून खोलकर अपना और परिवार का गुजारा कर रहे हैं। ‘हिन्दुस्तान‘ से बातचीत में नाई समाज ने अपना दर्द साझा किया।
Basti News
बस्ती। जिले में हजारों सैलून खुल गए हैं। सैलूनों में नाई समाज के लोग हेयर कटिंग करते हैं। इस व्यवसाय में अन्य जातियों के लोगों की भी भागीदारी बढ़ रही है। इसकी वजह से नाई समाज के लोग सैलूनों में मजदूर भी बनने को मजबूर हैं। नाई समाज चाहता है कि उनका पंजीकरण हो और कार्ड जारी कर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाए। उन्हें कम ब्याज पर बैंकों से लोन दिया जाए। हेयर सैलून को लेकर कारोबार में काफी बदलाव आया है। कई बड़े ब्रांड के सैलून जनपद में खुल गए हैं। सुंदर दिखने के लिए लोग इन सैलूनों में अच्छी-खासी रकमे खर्च कर रहे हैं। हालांकि इन सैलूनों में काम करने वाले ज्यादातर की आर्थिक स्थिति खराब है। कचहरी में हेयर सैलून चलाने वाले दिलीप का कहना है कि लोग महंगे सैलूनों में एक-दो हजार तो बात ही दूर 10-20 हजार तक खर्च कर रहे हैं लेकिन आम सैलूनों में 30-50 रुपये देने में हिचकते हैं। इस व्यापार में प्रोडक्टों की महंगाई के कारण लागत बढ़ गई है। ग्राहकों के भागने के डर से लगभग 20 वर्षों से मजदूरी में मामूली बढ़ोतरी कर किसी तरह से काम चलाया जा रहा है। दिलीप बताते हैं कि हेयर कटिंग, मसाज आदि कर हम लोगों को सुंदर बनाते हैं। इसके बाद भी सम्मान नहीं मिलता है।
सरकार की योजनाओं में भी नाई समाज के लिए अलग से कुछ खास लाभ नहीं दिया जा रहा है। इस सामाज के 80 वर्षीय लालजी और 85 वर्षीय रंगबिहारी निवासी भिउरा बताते हैं कि 30 वर्ष पूर्व सस्ती का जमाना था। इस दौर में कई गांवों से जौरा (अनाज) हर यजमान के घर से मिलता था। जौरा के रूप में गेहूं, चावल, चना, अरहर, मटर, आलू और अन्य खाने की सामग्री देते थे। पहले जमाने में उतना साधन नहीं था जैसे रेजर, इलेक्ट्रानिक मशीनें नहीं थीं। हम सब पिछले कई दशकों से पहले कई गांवों के लोग पूरे दिन यजमानों का बाल काटते और दाढ़ी बनाते थे। इसके बदले में सभी यजमान सीजन के हिसाब से भरपूर राशन देते थे। जिससे हमारे परिवार का भरण-पोषण आसानी से हो जाता था। लेकिन अब हम इस जमाने की बात करें तो न ही कोई हम लोगों से न्योता बंटवाता है, न ही अब बाल-दाढ़ी बनवाता है। वहीं, लालजी नाई का यह भी कहना है कि हम जबसे होश सम्भाले हैं, तब से यही काम करते आ रहे हैं।
उस्तरे के साथ बीती उम्र, अब नजर भी कमजोर
रंगबिहारी नाई का कहना है कि सारी उम्र हम बाल काटते रहे हैं। अब उम्र ज्यादा होने के कारण यह काम करना मुश्किल हो रहा है। धीरे-धीरे हाथों की उंगलियां काम करना बंद कर रही हैं। अन्य कोई काम नहीं करने की वजह से परिवार के भरण-पोषण में भी कठिनाई हो रही है।
सैलून संचालकों का कहना है कि इस काम के लिए पूंजी की जरूरत पड़ती है। सैलून को डेकोरेट करने के लिए अच्छी-खासी रकम लगती है, तब जाकर लोग आते है। वहीं यह भी बताते हैं कि हमारे समाज के लोग जब बैंकों में लोन लेने जाते हैं तो उन्हें तमाम कागजात मांगकर परेशान किया जाता है और अंत में मना कर दिया जाता है।
यदि जिला उद्योग के माध्यम से हमें कम ब्याज और आसान किस्तों पर लोन की सुविधा मिले तो अच्छा होता। प्रशासन की ओर से शहर के हर मुख्य चौराहे जैसे- रोडवेज, रेलवे स्टेशनों के पास सहित अन्य सरकारी दफ्तरों के पास दुकान के लिए जगह उपलब्ध कराई जानी चाहिए। जिससे नाई समाज के लोगों को बढ़ावा मिल सके।
इस पेशे से जुड़े बुजुर्गों का कहना है कि हमारे समाज के लोगों का अब इस धंधे से भरण-पोषण करना कठिन हो गया है। जब तक जवानी व ताकत रहती है हम दिन-रात मेहनत कर अपना गुजारा कर लेते हैं लेकिन बुढ़ापे में हमें काफी कष्ट उठाना पड़ता है।
कुछ बुजुर्गों का कहना है कि अब आलम यह है कि नजर नहीं काम करती और हाथ कांपने की वजह से घर पर बैठना मजबूरी है। हम बुजुर्गों को किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता है। सरकार को चाहिए इस समाज के वरिष्ठ लोगों का सर्वे कराकर उनके लिए योजनाएं चलाई जा जिससे बुढ़ापे में किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो। बुजुर्गों के लिए सरकार पेंशन, इलाज व जीविकोपार्जन की बेहतर व्यवस्था करें।
बड़े सैलूनों में मजदूर बनकर रह गया नाई समाज
बुजुर्ग रामदीन बताते हैं कि नाई समाज के लोग आर्थिक मामले में काफी कमजोर हैं। इस वजह से मामूली पूंजी लगाकर लकड़ी की गुमटी बनाकर काम करते हैं। तीन दशक पूर्व समाज के लोग घर पर ही काम करते थे। उस वक्त सस्ती का जमाना था, लिहाजा कम खर्चे में इनको अच्छा मुनाफा मिल जाता था। अब मौजूदा समय की बात करें तो आधुनिकता की दौड़ में पूंजी नहीं होने के कारण नाई समाज के युवा बड़े-बड़े सैलूनों में महज मजदूर बनकर रह गए हैं।
दिन के हिसाब से लोग बनवाते हैं दाढ़ी और बाल
हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार बुधवार, शुक्रवार और रविवार को बाल-दाढ़ी बनवाना शुभ माना जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार इन दिनों में बाल-दाढ़ी कटवाने से यश, लाभ और उन्नति मिलती है। इसलिए नाई समाज को एक सप्ताह में तीन दिन व एक माह में सिर्फ 12 दिन का ही काम मिल पाता है। जिसमें प्रतिदिन काम नहीं मिलने से आर्थिक संकट का बोझ बढ़ता जा रहा है।
मेहनत के हिसाब से नहीं मिलती मजदूरी
सैलून संचालकों का दर्द है कि उन्हें मेहनत के हिसाब से मेहनताना नहीं मिल रहा है। सामान्य तौर पर बाल कटिंग 40 से 60 रुपये है तो वहीं शेविंग 30 से 50 रुपये तक है। कुछ चुनिंदा बड़े सैलून को छोड़ दें तो आम सैलून में सेविंग और हेयर कटिंग की दरें पांच साल से बढ़ी नहीं हैं। मंगलवार को साप्ताहिक बंदी होती है। इसके अलावा गुरुवार और शनिवार को हेयर कटिंग कराने वाले कम आते हैं। कई ऐसे भी लोग होते हैं, जो नामी सैलून में तो सैकड़ों रुपये दे देते हैं लेकिन हम वाजिब दाम मांगे तो काफी हुज्जत करते हैं। ऐसे में पूरे महीने की आय से परिवार चलाना मुश्किल है।
सैलून वालों को बिना गलती के भी सुननी पड़ती खरी-खोटी
अजय शर्मा, शैलेश, करन के साथ तमाम लोग बताते हैं कि शादियों के दौरान तमाम युवा हमारे सैलून में अच्छा दिखने के लिए बाल, शेविंग, मसाज से लेकर अन्य फेसियल का काम करवाते हैं। इन युवाओं में किसी- किसी को स्किन की भी दिक्कत होती है, जिससे इनके चेहरों पर क्रीम का प्रभाव पड़ने लगता है और उन्हें परेशानी उठानी पड़ती है। इस वजह से ग्राहक सैलूनवालों को खरी-खोटी सुनाते लगते हैं। इसमें सैलून वालों की कोई गलती नहीं होती है।
दुकान हटाने से रोजी-रोटी खुले आसमान तले
बुजुर्ग जहील ने बताया कि 50 वर्षों से शास्त्री चौक पर लकड़ी की दुकान बनाकर बाल कटिंग व शेविंग का काम कर रहे थे। इस दुकान से हमारा व परिवार का भरण-पोषण होता था, लेकिन पिछले महीने से दुकान की जमीन पर पुलिस चौकी बन रही है। इस पुलिस चौकी के निर्माण के लिए अधिकारी आए थे। अधिकारियों ने मेरी दुकान को वहां से हटावा दिया। साथ में बोले अब कहीं और जाकर दुकान लगाओ। समझ में नहीं आ रहा है कि दुकान कहां लगाएं। जगह नहीं मिलने के कारण महीनों बीत गए हैं, निर्माणाधीन चौकी के बगल में बेंच-कुर्सी लगाकर शेविंग व बाल काट रहा हूं। अब यह कह पाना मुश्किल है कि कितने दिन यहां दुकान लगा पाऊंगा। इसके लिए मुझे भी कहीं जगह दिला दी जाए, जिससे मेरी रोजी-रोटी चल सके।
विदेश में सीखा हुनर, कोविड ने डुबो दिए 14 लाख रुपये
बस्ती। कोविड-19 महामारी सभी को याद होगी, जिसमें कई नए व्यवसाय बंद हो गए थे। कई कारोबार आज भी बंद पड़े हैं। इस महामारी में तमाम लोगों का बंद व्यवसाय में काफी नुकसान हुआ है। विदेश में काम सीखने के बाद मुंबई में लगभग 14 लाख रुपये लगाकर सैलून खोला था। काम रफ्तार पकड़ ही रहा था कि एक ही महीने में कोविड-19 का दौर आ गया। इस वजह से दुकान बंद करके घर वापस आना पड़ गया।
मोहम्मद यूसुफ सलमानी बताते हैं कि हमें सैलून के क्षेत्र में काम करते हुए लगभग 29 वर्ष बीत गए हैं। अपने काम को और भी बेहतर बनाने के लिए मैं विदेश में जाकर सैलून के काम की बारीकियों को सीखा। अनुभव और प्रशिक्षण लेने के बाद भारत में आकर गुजरात में एक सैलून में काम करने लगा। गुजरात में काफी दिनों तक काम करने के बाद कुछ रुपये इकट्ठा किया। अपने सपनों में रंग भरने के लिए मुंबई चला गया। वहीं पर एक दुकान की जगह तलाशी। दुकान की जगह मिलने के बाद इसको आधुनिक तरीके से डेकोरेट करवाया। डेकोरेशन में लगभग 14 लाख रुपये की लागत आई। अपनी दुकान का बाकायदा सात फरवरी 2019 में उद्धाटन करवाया। उद्धाटन के बाद मुश्किल से एक महीने तक ही दुकान को चला पाया था। इसके बाद कोविड-19 महामारी आ गई। कोविड के कारण 21 मार्च को सैलून बंद करना पड़ा। कई माह तक इंतजार करने के बाद भी सैलून बंद रहा। दुकान बंद होने के कारण आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। बाद में सैलून को बेचकर वापस अपने गांव बस्ती चला आया। कुछ रुपये का जुगाड़ करके अब अपने ही जिले में सैलून चलाकर परिवार का गुजारा कर रहा हूं।
महंगाई से परेशान हैं सैलून वाले
शेविंग से लेकर कटिंग में प्रयोग होने वाले सामान की महंगाई से नाई समाज परेशान हैं। इं. संजय शर्मा व अन्य सैलून वाले बताते हैं कि शेविंग फोम पहले की अपेक्षा ज्यादा महंगा हो चुका है। इसके साथ ही शेविंग करने के बाद लगने वाले स्प्रे की कीमतों में भी इजाफा हो गया है। जागरूक ग्राहक अच्छे सामानों को लेकर सतर्क रहते हैं। सेविंग स्प्रे 200 रुपये से अधिक दामों में मिलते हैं।
शिकायतें
हर बाजार, नगर पालिका, नगर पंचायत में दुकानें एलाट हों।
नाई समाज को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
राजनीति के क्षेत्र में सांसद, विधायक का सीट रिजर्व नहीं है।
नाई समाज के कार्य का व्यवासयिक दर्जा नहीं है।
नाई समाज के उत्पीड़न के दौरान सुनवाई नहीं होती है।
महिलाओं को रोजगार के क्षेत्र में कोई व्यवस्था नहीं है।
सुझाव
हर बाजार व निकाय में कम से कम दो दुकानों को आरक्षित करके उसे नाई समाज को दिया जाए।
कर्पूरी ठाकुर फार्मूला को सरकार लागू करे, नाई समाज को 12 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए।
सांसद, विधायक सीटों में नाई समाज की भागीदारी निश्चित की जाए।
इस कार्य को व्यावसायिक दर्जा दिया जाए, उत्पीड़न होने पर प्रजा एक्ट लागू किया जाए।
महिलाओं के रोजगार के क्षेत्र में कोई ठोस कदम उठाया जाए।
अभिलेखों में नाई शब्द हटकार न्यायी लिखने का अधिकार दिया जाए।
बोले नाई समाज के लोग
सड़क किनारे जब हम कुर्सी डालकर अपना काम शुरू करते हैं तो भगा दिए जाते हैं। जिससे हमें काफी परेशानियां उठानी पड़ती है।
- दिलीप ठाकुर
सरकार को समाज के लोगों को बैंक से सस्ते दरों में ऋण सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए जिससे हम रोजगार सृजन कर सकें।
- शैलेश शर्मा
नगर निकायों के हर मार्केट में हमारे लिए अलग से दुकान आरक्षित हो जिसमें सभी सैलून संचालकों को कोटा दिया जाए।
- पिंटू शर्मा
साप्ताहिक बंदी के दिन सभी सैलून बंद होने चाहिए। प्रशासन इसका पालन नहीं करने वाले सैलूनों के खिलाफ ठोस कदम उठाए।
- हरीश शर्मा
ट्रेनिंग के नाम पर उद्योग विभाग में सिर्फ खानापूर्ति होती है। ट्रेनिंग के दौरान दिये गये सभी सामान नकली होते हैं। इससे सुधार की जरूरत है।
- करन
सैलून चलाना आसान नहीं है, शुरुआती दौर में युवकों को काफी कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। पूंजी के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए।
- सेराज
उद्योग विभाग की ओर से ट्रेनिंग तो कराई जाती है लेकिन सुविधाएं न के बराबर मिलती हैं। अच्छी कमाई न होने से कारीगर शहर चले जाते हैं।
- मो. हसीम
सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोग सिर्फ बुधवार, शुक्रवार और रविवार को ही सैलून पर आते हैं। बाकी चार दिन बहुत कम काम होता है।
- रामकरन
उद्योग विभाग द्वारा ट्रेनिंग में जो सैलून टूल किट दिया जाता है वह सही नहीं होता। इसकी जांच करके कार्रवाई करनी चाहिए।
- अजीज सलमानी
पढ़ाई के साथ बचपन में ही हेयर कटिंग सीखा, सैलून चला रहा हूं। आमदनी कम होने से परिवार पालने में काफी दिक्कत होती है।
- अजय शर्मा
सैलून व्यवसाय करना आसान नहीं है। हर साल सामानों के दाम बढ़ जा रहे हैं जबकि बाल-दाढ़ी कटिंग के चार्ज पांच वर्षों में पुराने ही हैं।
-अखिलेश कुमार
सैलून के काम से परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी नहीं हो पाती है। सरकार को नाई समाज के लिए योजनाएं चलानी चाहिए।
- नंदलाल
पूरी उम्र लोगों का बाल-दाढ़ी बनाकर सेवा किया। वृद्धावस्था में रोजी-रोटी के लिए आर्थिक मदद होनी चाहिए।
- रंगबिहारी
जिले में भारतरत्न कर्पूरी ठाकुर की मूर्ति स्थापना, एक पार्क एवं छात्रावास और किसी एक सड़क का नामकरण किया जाए।
- ठाकुर प्रेम
मुंबई में लगभग 14 लाख रुपये लगाकर सैलून खोला था। कोविड-19 में सब बंद करना पड़ा। अभी तक कर्ज में डूबा हूं।
- मो. यूसुफ
बोले जिम्मेदार
नाई समाज को आर्थिक और सामाजिक के साथ कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ग्राहकों की बदलती उम्मीदें और मुनाफे के लगातार दबाव में काम करने के बावजूद, नाई समाज को अक्सर उनके काम की सही मजदूरी नहीं मिल पाती है। इसके साथ ही बढ़ती महंगाई से इनकी कठिनाइयां कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। इसके लिए सरकार को एक सामाजिक सर्वेक्षण कराकर नाई समाज को उचित लाभ दिया जाना चाहिए।
इं. संजय शर्मा, जिलाध्यक्ष, राष्ट्रीय नाई महासभा
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।