बोले बाराबंकी:आधुनिक शिक्षा योजना खत्म होने से बदहाल हुई मदरसे की शिक्षा
Barabanki News - बाराबंकी जिले में 22 सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों का संचालन हो रहा है। 298 पंजीकृत और 169 गैर-पंजीकृत मदरसे हैं, लेकिन सरकार की आधुनिकीकरण योजना के बंद होने से बच्चों की संख्या घट रही है। शिक्षकों को...
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नम्बर गेम 22 सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों का संचालन बाराबंकी जिले में हो रहा है।
298 पंजीकृत मदरसे बाराबंकी जिले में विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे हैं
169 गैर पंजीकृत मदरसों का संचालन शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहा है
9 मदरसों में सरकार की योजना के तहत मिनी आईटीआई का होता है संचालन
बाराबंकी। मदरसों की बात होते ही जेहन में चटाई पर बैठकर टोपी लगाए तिलावत करते बच्चो की तस्वीर उभरती है। मगर अब मदरसे अपनी इस छवि से बाहर निकलने की लगार कोशिश कर रहे हैं। मदरसों के बच्चे गणित, विज्ञान, अग्रेंजी की पढ़ाई के साथ की कम्प्यूटर के की बोर्ड पर उंगलियां चलाते दिखते हैं। मगर सरकार की योजना बंद होने से इनकी स्थित बद से बद्तर होती जा रही है। खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित मदरसों में अब तो बच्चों की संख्या भी हर वर्ष घटती जा रही है।
मदरसा आधुनिकीकरण योजना ने बदली थी तस्वीर
मदरसों के शिक्षक ने बताया कि भाजपा में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में मदरसा आधुनिकीकरण योजना आई थी। इस योजना ने मदरसों का कायाकल्प कर दिया था। सभी मान्यता प्राप्त मदरसों में अंग्रेजी, गणित व साइंस के शिक्षक पन्द्रह हजार मानदेय पर रखे गए थे। इसमें बारह हजार रुपए केन्द्र सरकार और तीन हजार रुपए राज्य सरकार का अंशदान था। इस योजना के तहत मदरसों में कम्पयूटर तक लग गए और बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने की मुहिम शुरू हुई थी। शिक्षकों ने बताया कि मगर 2022 में उक्त योजना को अचानक समाप्त कर दिया गया। जिससे जहां जिले के मदरसों में तैनात एक हजार शिक्षक बेरोजगार हो गए। वहीं आधुनिक शिक्षा से बच्चे वंचित रहने लगे। कुछ मदरसों में अभी भी आधुनिक शिक्षा दी जा रही है। मदरसे के मौजूद शिक्षक ही बच्चों को शिक्षा देते हैं। सभी मदरसा संचलकों ने
कालिम-फाजिल की डिग्री पर रोक लगने से बच्चों का भविष्य अंधेरे में
मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों का कहना था कि कोर्ट के निर्देश पर आमिल व फाजिल की पढ़ाई पर रोक लगा दी गई है। जिससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसके कारण सैकड़ों छात्र-छात्राओं की पढ़ाई भी बाधित हो गई है। शिक्षकों का कहना था कि मदरसा बोर्ड द्वारा ख्वाजा मइनुददीन चिश्ती विश्वविद्यालय से इसको जोडने का प्रस्ताव भी विचाराधीन है। अगर विश्वविद्यालय से सम्बद्धता मिल जाए तो तमाम छात्र-छात्राओं को इसका लाभ मिलेगा।
फर्नीचर आदि सुविधाओं का अभाव झेल रहे मदरसे
मान्यता प्राप्त मदरसों के शिक्षकों का कहना है कि अधिकांश का संचालन दीनी लोग ही करते हैं। कान्वेंट की तरह कोई धनवान व्यक्ति मदरसे का संचालन नहीं करते हैं। संस्था ही उसका संचालन करती है। जिसके कारण मदरसे संशाधनों का अभाव झेलने पर मजबूर हैं। तमाम मदरसों में आज भी अच्छी फर्नीचर नहीं है। बच्चों के लिए वाटर कूलर आदि नहीं है। क्योंकि संस्था के पास इतना धन नहीं है। ऐसे में संस्था अपने ही संशाधनों से बच्चों को दीनी के साथ आधुनिक पढ़ाई करवा रही है। ऐसे में सरकार को मदरसों को आर्थिक मदद देकर इन्हें सुधारने का प्रयास करना चाहिए।
बकाया छह माह का मानदेय ही दिला दे सरकार
बाराबंकी। मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत रखे गए शिक्षकों को योजना बंद होते ही मदरसों ने हटा दिया था। ऐसे में इन शिक्षकों में कई मजदूरी तो कोई फेरी लगाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। मदरसों में साइंस, गणित व अंग्रेजी पढ़ाने वाले कई शिक्षक प्राइवेट नौकरी भी कर रहे हैं। ऐसे भूतपूर्व शिक्षकों ने कहा कि योजना बंद होने पर हमें हटा दिया गया, इसका मलाल नहीं है। मगर जब योजना चल रही थी उस समय करीब छह माह का मानदेय उन लोगों का बकाया था। यह मानदेय का भुगतान आज तक नहीं किया गया है। इसे लेकर कई बार आबकारी विभाग के चक्कर लगाते हैं। सभी ने कहा कि हम सभी आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। ऐसे में कम से कम हम लोगों का बकाया छह माह का मानदेय ही सरकार दे दे तो कुछ सहारा मिल जाएगा। शिक्षकों ने बताया कि पूरे जिले में योजना के तहत करीब एक हजार शिक्षकों की तैनाती हुई थी।
मदरसे के छात्रों को ड्रेस, वजीफा नहीं मिलने से मायूसी
बाराबंकी। जिले के अनुदानित मदरसों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को ड्रेस के अलावा जूता-मोजा,व स्कालर नहीं मिल रहा है। जिससे मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या पहले की अपेक्षा कुछ कम हो गई है। शिक्षकों ने बताया कि हकीकत तो यह है कि मदरसों में यतीम और गरीब घरों के ही बच्चे ही पढ़ने आते हैं। कई बच्चे ऐसे होते है जिनके सिर पर पिता का साया नहीं है। इन बच्चों को वजीफा, ड्रेस और जूता-मोजा नहीं मिलता है। जिससे मायूस सभी रहते हैं। समाजसेवी कुछ मदरसों में बच्चों की मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाते है। शिक्षकों ने कहा कि सरकार से कई बार मांग की गई है कि मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को वजीफा व ड्रेस मुहैया कराई जाए। लेकिन अभी तक इस पर कोई ठोस योजना नहीं बनी। यदि इन्हें भी सहूलियतें मिले तो मदरसों के छात्रों के शैक्षिक स्तर में काफी सुधार हो सकता है।
शिकायत
1. मदरसों में सांइस, विज्ञान, अग्रेजी विषय पढ़ाने के लिए लिए योग्य शिक्षकों का न होना
2- आयुनिक होते समय में अधिकांश मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे कम्प्यूटर के ज्ञान से अनभिज्ञ हैं।
3- मदरसों के निर्माण व मरम्मत के लिए सराकर द्वारा कोई अनुदान नहीं दिया जाता है। जिस कारण कई मदरसे जर्जर अवस्था में पहुंच गए हैं।
4- मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षको को सरकार द्वारा कोई विशेष योजना न दिए जाने से सभी हताश हैं।
5- मदरसे के शिक्षकों से काम इंटर के शिक्षको के बराबर लिया जाता है लेकिन उनको उतनी सुविधा नहीं मिल रही है।
सुझाव
1- मदरसों में पहले की भांति आधुनिकीकरण योजना शुरू कर अंग्रेजी, गणित व विज्ञान के शिक्षकों की की जाए नियुक्ति
2- कामिल और फाजिल की डिग्री को ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय से संबद्ध कर छात्रों के भविष्य को संवारा जाए
3. मदरसों को भी ड्रेस, किताब के साथ सरकार द्वारा नि:शुल्क खेल की सामग्री उपलब्ध करानी चाहिए।
3. मदरसे में उच्च शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए शिक्षकों की नियुक्ति निकालनी चाहिए।
4. मदरसो में अरबी पढ़ने के लिए वहीं निवास करने वाले छात्रों को प्रतिमाह भत्ता मिलना चाहिए।
5. मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षको का आयुष्मान कार्ड बनना चाहिए। जिससे वह भी अपने परिवार का ठीक से इलाज करा सके।
सरकार को मदरसे की योजनाएं शुरू करनी चाहिए
बाराबंकी। मदारिसे अरबिया शिक्षणोत्तर कर्मचारी एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष हसीब अहमद ने बताया कि सरकार का ऐसा
मानना है कि मदरसे में सिर्फ दीनी तालीम दी जाती है। लोग भी यहीं सोचते है कि मदरसे दीनी तालीम के लिए ही बने है। ऐसा सोचना गलत है। मदरसे में सभी तरह की शिक्षा दी जाती है। मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे भी आज कई अच्छे पदों पर तैनात है। मदरसे में समाज के सबसे गरीब कमजोर तबके के लोगों को शिक्षा दी जाती है और उन्हे पढ़ाई के लिए जागरुक किया जाता है। मदरसे में सराकर द्वारा लागू किए गए सारे नियमों का पालन किया जाता है। कक्षा एक से आठ तक परिषदीय किताबों से ही मदरसों के छात्र-छात्राओं को शिक्षा दी जाती है। जिले में संचालित मदरसों के निर्माण का पैसा मिलना तो दूर की बात मरम्मत का पैसा भी नहीं मिलता है। आज कई युवा मदरसों में दो से पांच हजार रुपए के मानदेय पर नौकरी कर रहे है। सभी उम्मीद लगाए है कि सरकार कोई योजना चलाए और उन्हें मदरसे में नौकरी मिल जाएगी। काफी समय सरकार द्वारा चलाई गई कई योजनाए आज बन्द हो गई है। जिन्हे दोबारा शुरू किया जाना जरुरी है।
लोग बोले
प्रशासन द्वारा मदरसों में कैम्प लगाकर पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों का आयुष्मान कार्ड बनना चाहिए। जिससें बच्चों को शिक्षित करने वाले भी अपने परिवार का इलाज ठीक से करवा सकें। क्योंकि कम वेतन मिलने के कारण कई शिक्षक अपना व परिवार वालों का इलाज अच्छे अस्पताल में नहीं करवा पाते है। आयुष्मान कार्ड बनने से उन्हे इलाज कराने में आसानी होगी।
मो. अकील
मदरसे में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं को वजीफा नहीं मिलता है। यही नहीं जो छात्र छात्राएं मदरसे में पढ़ रहे है, उन्हे ड्रेस भी नहीं मिलती है। जिसके चलते कई गरीब घरों के बच्चे पढ़ने से वांचित हो रहे है। अगर मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को वजीफा व ड्रेस मिलने लगे तो बच्चों की संख्या काफी बढ़ जाएगी।
मो. उमर
जन सहयोग करने वाले लोगों की मदद से मोहल्ले के बच्चों को दीनी तालीम दी जाती है। आजकल मदरसे में तीस बच्चे रोजाना अरबी ऊदू पढ़ने के लिए आते है। अगर दीनी तालीम हासिल करने वाले बच्चों को भी सरकार ड्रेस आदि की सुविधा दें तो बच्चे इससे लाभान्वित हो सकेंगे।
मो. अजीम
उर्दू से उच्च शिक्षा ले चुके लोगों को मदरसों में नौकरी मिलनी चाहिए। आज कई लोग उर्दू से उच्च शिक्षा लेने के बाद बेरोजगार घूम रहे हैं या फिर मजदूरी करके जीवन यापन कर रहे हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि मदरसों में रिक्त पदों पर नियुक्तियां करें ताकि शिक्षित लोगों को रोजगार मिले।
कारी मो. शरीफ
मदरसे में आधुनिकीकरण योजना बन्द होने से कई विषयों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। सरकार को चाहिए कि इस योजना को दोबारा शुरु किया जाए। इस योजना के शुरु होने से कई लोग रोजगार से जुडे़गे और मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को गणित, विज्ञान व अग्रेजी की अच्छी शिक्षा मिल सके। योजना बन्द होने के कई शिक्षक बेरोजगार हो गए है।
20 बीएनके 18
शहर हो या ग्रामीण सभी इलाके में स्थित मदरसों को हाइटेक बनाने की योजना बने। वहीं मदरसों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को भी सरकार की विभिन्न योजनाएं व सुविधाएं दी जाए। जिससे मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों का भी भविष्य उज्जल हो और वह भी अपना जिले कस्बे का नाम रोशन करें।
वर्ष 2005 के बाद भर्ती शिक्षकों व कर्मचारियों के लिए एमपीएम न्यू पेशन योजना को लागू करने का शासनादेश
2021 में जारी हुआ था। लेकिन कई साल बीत गए अभी तक इस योजना को लागू नहीं किया गया। अगर यह योजना लागू कर दी जाए तो मदरसे के शिक्षकों व कर्मचारियों को काफी सुविधा हो जाएगी।
मो. सुफियान
मदरसे में पढ़ाने वाले शिक्षक प्राथमिक, माध्यमिक व इंटर कालेज में पढ़ाने वाले शिक्षको के बराबर कार्य करते है। लेकिन मदरसे के शिक्षको को सिर्फ वेतन के अलावा कोई अन्य सुविधा नहीं मिलती है। जबकि प्राथमिक, माध्यमिक व इंटर कालेज के शिक्षकों को सरकार द्वारा कई सुविधाएं दी जाती हैं।
मो. नासिर
आम लोग यह मानते हैं कि मदरसों में सिर्फ उर्दू, अरबी की ही शिक्षा दी जाती है। जबकि लोगों का ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है। आज अधिकांश मदरसे में विज्ञान, अग्रेजी, विज्ञान सहित कम्प्यूटरकी भी अच्छी शिक्षा दी जाती है। यही नहीं उनकी गुणवत्ता का भी पूरा ख्याल रखा जाता है।
सरवर अली
आज मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे भी कई क्षेत्रों में अपने जिले का नाम रौशन कर रहे है। इसलिए मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को भी अच्छी सुविधा मिलनी चाहिए। मदरसे में खेल कूद के सामान के साथ एक शिक्षक की तैनाती होनी चाहिए। जिससे मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों में खेल प्रतिभाएं सामने आ सकें।
अबू उबैद
प्रस्तुति : यासिर अराफात कैफी
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