बोले बलरामपुर -छह माह से बंद पड़ी एक करोड़ 56 लाख की पेयजल परियोजना
Balrampur News - समस्या हर्रैया सतघरवा, संवाददाता। स्थानीय ब्लाक के ग्राम पंचायत नन्दनगर जुम्मनडीह में शुद्ध पेयजल संसाधन

समस्या हर्रैया सतघरवा, संवाददाता।
स्थानीय ब्लाक के ग्राम पंचायत नन्दनगर जुम्मनडीह में शुद्ध पेयजल संसाधन का टोटा है। पानी टंकी के निर्माण का शुभारंभ तो हुआ, लेकिन परियोजना पिछले छह महीने से बंद पड़ी है। यह परियोजना एक करोड़ 56 लाख 15 रुपए की है। प्राप्त बजट से कार्यदायी संस्था आधे गांव में पाइप लाइन बिछाने का काम कर सकी है। वहीं आधे गांव में अभी पाइप लाइन का कार्य ही शेष बचा हुआ है। अब कार्यदायी संस्था बजट के अभाव में कार्य बंद किए हुए है। बताया जाता है कि यह परियोजना सितंबर 2024 में पूरी हो जानी चाहिए, लेकिन बजट के अभाव में कार्य रफ्तार नहीं बन रही है। स्थिति यह है कि लोगों को साधारण हैंडपंप के पानी से प्यास बुझानी पड़ रही है। तमाम लिखा पढ़ी के बावजूद परियोजना शुरू नहीं की जा रही है।
नंदनगर व जुम्मन में लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक की शुरू हुई पेयजल परियोजना परवान चढ़ने का नाम नहीं ले रही है। जो काम छह माह पूर्व ही पूर्ण हो जाना चाहिए था, वह बजट के अभाव में आधा अधूरा पड़ा हुआ है। इन दोनों मजरे के लोगों के सामने पेयजल का संकट खड़ा हुआ है। गांव में लगे हैंडपंप का पानी खराब है। नल से पीले रंग का पानी निकलता है। साफ करने पर कपड़ों का रंग भी पीला हो जाता है। वर्ष 2020 में सर्वेक्षण कराया गया, जिसमें हैंडपंप का पानी खराब पाया गया था। वर्ष 2022 में गांव के लिए पेयजल परियोजना स्वीकृत की गई। परियोजना पर 156.15 लाख रुपए खर्च किए जाने हैं। गांव में पेयजल व्यवस्था की जिम्मेदारी मेसर्स दारा ईको प्रोटक्सन को दी गई थी। परियोजना माह सितंबर 2024 में ही पूरी होनी थी, लेकिन आधे गांव में अभी तक पाइप लाइन बिछाने का काम ही अधूरा पड़ा हुआ है। पानी टंकी निर्माण अभी शुरू नहीं हो सका है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव का पानी बेहद खराब है। दस इंडिया मार्का हैंडपंप लगे हैं, जिनमें से पांच खराब हैं। दोनों मजरों के लगभग आठ हजार आवादी को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि पेयजल आपूर्ति शुरू कराने के लिए कई बार आवाज उठाई गई, लेकिन लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। गांव के लोग आज भी दूषित पेयजल के सहारे प्यास बुझा रहे हैं। गांव में पेट सम्बन्धी बीमारियां लोगों को अधिक हो रही हैं। ग्रामीणों की मानें तो कोई घर ऐसा नहीं बचा जहां गैस के मरीज न हों। लीबर, पित्ताशय, त्वचा व गैस रोगी फर्जी चिकित्सकों के जाल में फंसकर समय व पैसा दोनों बर्बाद कर रहे हैं। यदि परियोजना पूरी होकर चालू हो जाए तो शुद्ध पेयजल मिलने पर तमाम प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकेगा।
काम शुरू होने के छह माह बाद गायब हो गए ठेकेदार व मजदूर
ग्रामीणों ने बताया कि कार्यदायी संस्था के लोगों में निर्माण के दौरान उत्साह दिख रहा था। उनका दावा था कि निर्धारित अवधि के पहले ही परियोजना पूरी कर लेंगे, लेकिन छह माह बाद ठेकेदार व मजदूर गायब हो गए। निर्माण के नाम पर केवल बोरबेल बनाया गया है। पाइप लाइन आदि बिछाने का काम अधूरा पड़ा हुआ है। वहीं पानी टंकी का भी निर्माण शुरू नहीं हो सका है। ग्रामीणों का कहना है कि अब उन्हें शुद्ध पेयजल मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही है। ग्रामीण कई बार निर्माण शुरू कराने की मांग को लेकर प्रदर्शन भी कर चुके हैं, जिसपर कोई सुनवाई नहीं हुई। परियोजना सितंबर 2024 में पूरी हो जानी चाहिए थी, जो अभी तक अधूरा पड़ा हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि शुद्ध पेयजल मिलने पर ही उन्हें तमाम प्रकार की बीमारियों से फुरसत मिलेगी। दोनों गांव की आवादी लगभग आठ हजार है। हर घर में साधारण हैंडपंप लगा है। जिससे शुद्ध पानी नहीं निकल रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि हैंडपंप लगवाना काफी खर्चीला साबित होता है। अधिकांश लोगों ने 20 से 25 फीट तक बोरिंग कराई है। गर्मी शुरू हो चुकी है, अब वाटर लेबल नीचे चला जाएगा, जिसके बाद लोगों के सामने पेयजल का संकट खड़ा हो सकता है।
आरोप - भुगतान लेकर भाग गई कार्यदायी संस्था
ग्रामीणों का आरोप है कि कार्यदायी संस्था भुगतान प्राप्त कर भाग गई है। अब आगे का निर्माण कार्य होना मुश्किल है। आरोप यह भी है कि मिशन के अधिकारी सुस्त बने हुए हैं। अधिकारी चाहते तो निर्माण कब का शुरू हो गया होता। विभाग की लापरवाही ग्रामीणों पर भारी पड़ रही है। ग्रामीणों का तमाम प्रयास रंग नहीं ला सका। अधिकारी एक कान से बात सुनकर दूसरे से निकाल देते हैं। गांव में इंडिया मार्का हैंडपंप न होते तो स्थिति और भी खराब होती। गांव के बगल में पहाड़ी नाला है। जिसका पानी भूगर्भ में समाहित हो जाता है। वही पानी हैंडपंप से निकलता है। किसी-किसी घर में साधारण नल से बदबूदार पानी निकल रहा है, जिसे ही लोग पीने को विवश हैं।
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