बोले बलिया : कार्यस्थल से घर तक मिले सेफ माहौल, बनें पिंक शौचालय
Balia News - कामकाजी महिलाओं की पीड़ा अनकही है। घर और कार्यस्थल के बीच संतुलन बनाना कठिन है। उन्हें सुरक्षित परिवहन, अलग महिला शौचालय और काम के लिए उचित माहौल की जरूरत है। सरकारी और निजी क्षेत्रों में महिलाओं को...
कामकाजी महिलाओं की पीड़ा एक अनकही कहानी है। वे घर और कार्यस्थल के बीच झूलती रहती हैं। परिवार और काम के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती हैं। इसके लिए अक्सर संघर्ष करना पड़ता है। ‘नजर और ‘नजरिए से भी सामना होता है। किसी विभाग में महिला ग्रीवांस सेल नहीं है। कई प्रयासों के बाद भी इनके लिए सुरक्षित माहौल नहीं बन पाया है। वे चाहती हैं कि कार्यस्थल से घर-बाजार तक सुरक्षित माहौल मिले। शहर में जाम न लगे। दफ्तर और सार्वजनिक स्थलों पर पिंक शौचालय की सुविधा मिले। नगर के जगदीशपुर स्थित एक विद्यालय परिसर में ‘हिन्दुस्तान से चर्चा में सरकारी-गैर सरकारी विभागों तथा निजी कारोबार कर रहीं महिलाओं ने बेबाकी से अपनी बातें रखीं। उद्यान विभाग में अधिकारी अलका श्रीवास्तव ने बताया कि हमें घर-परिवार के साथ सामाजिक कार्यों के लिए टाइम मैनेजमेंट करना पड़ता है। महिलाओं को अब भी लोग अबला मानते हैं। इसे क्या कहें? विभागों में महिलाओं की संख्या नाममात्र की है। सहकर्मी स्थानीय होने का फायदा उठाते हैं। उनकी मनमानी से जूझना पड़ता है। थोड़ी चुटकी लेते हुए कहा, कार्यालय में आने वाला व्यक्ति पहले अपना राजनीतिक बैकग्राउंड बताता है, फिर काम की बात करता है। ज्यादतर विभागों में महिलाओं के लिए अलग प्रसाधन नहीं हैं।
चिकित्सकीय परामर्श केंद्र की डॉ. नीरु माथुर भटनागर ने कहा कि महिलाओं को वाहनों से आते-जाते एक साथ कई मुश्किलों से गुजरना होता है। वाहन लेकर चलते समय ‘नजरों व ‘नजरियों से भी सामना होता है। इससे काफी ठेस पहुंचती है। शहर में जाम और अतिक्रमण दिन को बोझिल बना देता है। कहीं भी वाहन स्टैंड नहीं हैं और यहां-वहां गाड़ी खड़ी कर दी तो चालान का संकट। एक दिन तो आधे घंटे के अंतराल पर दो बार ई-चालान किया गया।
हर विभाग में हो महिला पटल, बाजारों में शौचालय
शिक्षा क्षेत्र से जुड़ीं नंदिनी तिवारी ने बताया कि महिलाओं के प्रति जहां पुरुष वर्ग की सोच नहीं बदल रही, वहीं महिलाएं भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। पुरुष तो पीठ पीछे कुछ कहते हैं लेकिन महिलाएं उनसे भी एक कदम आगे ताना मारती हैं। इससे मनोबल कमजोर होता है। सरकारी विभाग हों या बैंक, कहीं भी महिलाओं के लिए अलग पटल नहीं होने से काम कराने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। बाजारों में महिलाओं के लिए कहीं भी शौचालय नहीं है। इसके चलते परेशान होना पड़ता है।
चुभता है यह सवाल-अकेले क्यों आईं
चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ीं अनिता सिन्हा और रंभा सिंह ने कहा कि महिलाओं के लिए अपने शहर में रोजगार की काफी कमी है। सरकारी विभागों में महिलाओं को काम कराने के लिए जूझना पड़ता है। वहां कर्मचारी का पहला सवाल होता है कि अकेले क्यों आईं? किसी को साथ लेकर आना चाहिए। वे महिलाओं को कम आंकते हैं। बहाना बनाकर काम लटकाते हैं। कहा कि शिक्षित महिलाओं के प्रति स्वीकार्यता की कमी है। हर जगह उनका किसी न किसी परेशानी से सामना होता है।
चले पिंक ऑटो, पिंक शौचालय हों दुरुस्त
अमृता ने बताया कि अकेले निकलने में अब भी हिचकिचाहट होती है। कार्यस्थल पर आते-जाते सुरक्षित परिवहन की कमी अखरती है। कई बार ऑटो में यात्रा के दौरान असहज महसूस होता है। ऑटो या ई-रिक्शा चालक के मुंह से शराब की दुर्गंध महसूस हुई तो उतरकर कुछ दूर पैदल जाना मुनासिब लगता है। यहां किसी मार्ग पर पिंक ऑटो की सुविधा नहीं है। शहर में पिंक शौचालय का भी अभाव है।
महिला शिक्षा के हों इंतजाम
महिला कल्याण विभाग की अंजली सिंह ने कहा कि महिला सुरक्षा से जुड़े कई तरह के कानून हैं लेकिन उनका दुरुपयोग भी बहुत हो रहा है। इसके चलते पात्र महिलाओं को कानून का लाभ लेने के लिए काफी मशक्कत करनी होती है। महिला और बालिका शिक्षा के बेहतर इंतजाम नहीं हैं। जिले में इकलौता राजकीय गर्ल्स डिग्री कालेज नगवा में है लेकिन वहां अध्यापक नहीं हैं।
रोजगार योजनाओं में मिले वरीयता
नायजीन कहती हैं कि सरकार ने रोजगार योजनाओं में महिलाओं को कई तरह की छूट का इंतजाम किया है लेकिन विभाग धरातल पर उन्हें उतारने में दिलचस्पी नहीं लेते। रोजगार के लिए आवेदन के बाद महिलाएं दफ्तरों का चक्कर काटती रहती हैं लेकिन उन्हें लाभ नहीं मिलता। योजनाओं में महिला आवेदकों को वरीयता देने की जरूरत है।
सेवानिवृत्त महिलाओं को मिले सहयोग
डॉ. अमिता सिंह ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग में काम करने वाली महिलाएं सेवानिवृत्ति के बाद भी इससे जुड़ा व्यवसाय करना चाहती हैं। सोच होती है कि आर्थिक लाभ के साथ समाजसेवा का मौका मिलेगा। लेकिन लाइसेंस और नवीनीकरण में जिम्मेदारों का सहयोग नहीं मिलता।
बच्चों की खातिर छोड़ दी नौकरी
बातचीत में अर्चना श्रीवास्तव ने अपने पुराने दिनों का जिक्र किया। बताया कि योगाचार्य की नौकरी करती थीं। उस समय संसाधनों की कमी बहुत थी। घर परिवार और नौकरी को मैनेज करना काफी कठिन था। कार्यस्थल पर बच्चों की चिंता सताती थी तो घर आने पर कामकाज की फिकर। आखिरकार बच्चों को संभालने के लिए नौकरी से इस्तीफा दे दिया। कहा कि महिलाओं के लिए घर और नौकरी या व्यवसाय को एक साथ साधना आसान नहीं होता। परिवार-समाज का साथ तथा सुरक्षित माहौल मिले तो बात बन सकती है।
स्कूलों-कालेजों के पास हो सख्त पुलिसिंग
स्कूल संचालिका रीना सिंह ने कहा कि तेजी से बदलती दुनिया में महिलाओं के प्रति सोच में बहुत बदलाव नहीं हो सका है। महिलाएं सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हों या निजी स्कूलों या खुद के कार्यस्थल पर, उन्हें मोहल्लों-कॉलोनियों और बस्तियों के मोड़, बाजारों में शोहदों की छींटाकशी, मनचलों की हरकतें और पुलिस की निष्क्रियता कचोटती है। असुरक्षित माहौल का एहसास होता है। समय-समय पर एंटी रोमियो स्क्वायड की कार्रवाई और पुलिस पेट्रोलिंग अच्छी बात है, लेकिन इसमें निरंतरता जरूरी है। स्कूलों-कालेजों के गेट पर पुलिस की सख्ती नहीं दिखती।
महिला सुरक्षा कानून का दुरुपयोग
कामकाजी महिलाओं ने महिला सुरक्षा से जुड़े कानून पर एतराज भी जताया। स्वीकार किया कि कई मामलों में पुरुष को बिना वजह परेशान होना पड़ता है। जैसा कि मधु श्रीवास्तव ने कहा, सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई कानून बनाए हैं। उनका लाभ भी उन्हें मिल रहा है। लेकिन यह भी सही है कि इसका दुरुपयोग हो रहा है। दहेज हत्या और दुष्कर्म जैसे मामलों में अक्सर यह बात सामने आती है। इससे पुरुष डरे, सहमे रहते हैं। महिलाओं के प्रति गलत नजरिया या नकारात्मकता की एक वजह यह भी है। ऐसे में पुलिस की भूमिका महत्वपूर्ण है।
‘प्रधान पति और ‘प्रतिनिधि जैसे शब्द बेमानी
अंजली सिंह और रम्भा सिंह ने कहा कि राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व तो दिया गया लेकिन काफी हद तक यह अब भी कागज पर ही है। गांव की महिलाएं प्रधान होती हैं, लेकिन काम उनके पति, पुत्र या परिवार का कोई अन्य सदस्य कर रहा है। ‘प्रधान पति या प्रधान प्रतिनिधि जैसे शब्द बेमानी हैं। अधिकारियों को इस पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए। काबिलियत होने के बाद भी महिलाएं आगे नहीं आ पा रही हैं।
शिकायतें
बाजारों में महिलाओं के लिए अलग सार्वजनिक शौचालय नहीं हैं। इससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ज्यादातर विभागों में महिला सुरक्षा सेल नहीं है जहां महिलाएं अपनी बात खुलकर रख सकें। यदि होगा भी तो इसकी जानकारी किसी को नहीं है।
नगर में महिलाओं के लिए पिंक ऑटो की सुविधा नहीं है। प्रमुख बाजारों और सार्वजनिक जगहों पर पिंक शौचालय का भी अभाव है।
शहर में लगे तमाम स्ट्रीट लाइट खराब पड़े हैं। शाम को कार्यस्थल या बाजार से लौटने पर खतरा महसूस होता है।
एंटी रोमियो स्क्वायड नहीं दिखते। स्कूलों-कालेजों के बाहर और बाजारों में महिला पुलिसिंग की कमी खटकती है।
सुझाव
बाजारों में महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय बनना चाहिए। पिंक शौचालयों की संख्या बढ़ाने के साथ वहां सफाई के इंतजाम हों।
कार्यालयों में महिला सुरक्षा सेल बनना चाहिए। इससे महिलाओं को काफी राहत मिलेगी, उनका काम आसान होगा।
नगर में महिलाओं के लिए पिंक ऑटो का संचालन होना चाहिए। इससे यात्रा सुरक्षित होगी।
शहर में जगह-जगह लगे स्ट्रीट लाइटों को दुरूस्त कराया जाय ताकि महिलाएं सुरक्षित आवागमन कर सकें।
एंटी रोमियो स्क्वायड को सक्रिय करने की जरूरत है। स्कूलों-कालेजों के गेट पर छुट्टी के समय तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर अनिवार्य रूप से उनकी तैनाती हो।
मन की बात
महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया बदला जरूर है लेकिन अब भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है।
-रीना सिंह
सरकारी विभाग में राजनैतिक दबाव के चलते महिलाओं का ड्यूटी कर पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
-डॉ. अमिता सिंह
-पुरुष कर्मचारियों का नजरिया सदियों पुराना ही है। उन्हें महिलाओं को अपना सहकर्मी मानते हुए व्यवहार करना चाहिए।
-चंद्रावती सिंह
कार्यस्थल से घर-बाजार तक सुरक्षित माहौल मिलना चाहिए। कार्यालयों में महिला पटल की स्थापना से राहत मिलेगी।
-विजयलक्ष्मी
एक गृहिणी के लिए सामाजिक कार्यों और घर-गृहस्थी में तालमेल बैठाना आसान नहीं होता।
-सारिका सिंह
शहर की यातायात व्यवस्था में सुधार की जरूरत है। जाम से कामकाजी महिलाओं को भी जूझना पड़ता है।
-नंदिनी तिवारी
कार्यालयों में राजनीतिक दबाव अधिक होने पर महिलाओं को ड्यूटी देना मुश्किल हो जाता है। इस पर सख्ती से रोक लगे।
-अल्का श्रीवास्तव
कामकाजी महिलाओं के लिए नगर में पिंक ऑटो का संचालन जरूरी है। इससे आवागमन सुरक्षित होगा।
-डॉ. नीरू माथुर भटनागर
बेटियों की उच्च शिक्षा के संबंध में ठोस योजना बननी चाहिए। इससे गरीब परिवार की बेटियों को भी लाभ मिलेगा।
-छवि सहगल
विभागों में महिलाओं की शिकायतों का निस्तारण वरीयता पर हो। इससे उन्हें बार-बार दौड़ना नहीं पड़ेगा।
-नीलम गुप्ता
महिला सुरक्षा के कानूनों का दुरुपयोग न हो। इससे पात्र महिलाओं को कानून का लाभ लेना आसान होगा।
-अंजली सिंह
सार्वजनिक स्थानों, स्कूल-कॉलेजों के पास एंटी रोमियो दस्ता का नियमित भ्रमण हो। इससे महिलाएं सुरक्षित महसूस करेंगी।
-अनिता सिन्हा
नगर के प्रमुख बाजार और सरकारी कार्यालयों के कैंपस में महिला टॉयलेट बनना चाहिए।
-अमृता सिंह
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