बोले आजमगढ़ : किराए के भवन में अस्पताल, डॉक्टर कर रहे फार्मासिस्ट की ड्यूटी
Azamgarh News - भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अस्पतालों में भवन, शौचालय और स्टाफ की कमी है। कई चिकित्सालय किराए के भवन में चल रहे हैं। डाक्टरों को दवा लिखने...
हजारों वर्षों से भारतीय जीवन में रची-बसी आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों के लिए वर्तमान दौर कठिनाई वाला है। उनका कहना है कि आयुर्वेदिक अस्पतालों में उनकी आयोग से तैनाती होती है। लेकिन उन अस्पतालों में उन्हें भवन, शौचालय और स्टाफ की किल्लत से जूझना पड़ता है। कहीं उधार के भवन में अस्पताल चल रहा, कहीं भवन जर्जर हैं। कई जगहों पर एकमात्र डॉक्टर की तैनाती है। वे इलाज के साथ दवाओं की पुड़िया भी बांधते हैं। वार्ड ब्वाय और स्वीपर का काम भी उन्हें ही करना पड़ रहा है। एक नजर
60 राजकीय चिकित्सालय जनपद में किए जा रहे हैं संचालित। इन अस्पतालों में आयुर्वेदिक पद्धति से मरीजों का होता है इलाज।
17 अस्पतालों को आयुष्मान आरोग्य केंद्र बना दिया गया। यहां ओपीडी के अलावा योगा की क्लास भी प्रतिदिन होती है संचालित।
02 योग प्रशिक्षकों की प्रत्येक आरोग्य आयुष्मान केंद्र पर है तैनाती। जिसमें एक महिला और एक पुरुष योग शिक्षक शामिल हैं।
नगर के एलवल स्थित राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय में ‘हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने अपनी समस्याएं साझा कीं। कोइनहां राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय के प्रभारी डॉ. मनीष राय ने बताया कि उनका चिकित्सालय परिसर में आवास न होने से बाजार में रहना पड़ता है। वहां से प्रतिदिन चिकित्सालय आना-जाना पड़ता है। चिकित्सालय में फार्मासिस्ट और वार्ड ब्वाय हैं, लेकिन चौकीदार न होने से असुरक्षा का खतरा रहता है। यूपी बोर्ड की परीक्षा स्टैटिक मजिस्ट्रेट बनाए दिए गए हैं। अगर रात में बोर्ड का पेपर केंद्र पर पहुंचता है तो वहां खुद मौजूद होकर सुरक्षित रखवाना पड़ता है। परीक्षा के दिन सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी होती है। वहीं, पेपर को स्ट्रांगरूम में सुरक्षित रखवाना पड़ता है। कई बार सुबह-शाम की पाली में भी ड्यूटी लग जाती है। इस दौरान आयुर्वेदिक चिकित्सालयों में मरीजों को देखने वाला कोई नहीं रहता। ज्यादातार आयुर्वेदिक चिकित्सालयों में प्रभारी ही एकमात्र डाक्टर होते हैं। वहां फार्मासिस्ट भी नहीं हैं।
जमीन तक लटक रहा बिजली का केबिल
नगर के राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय के प्रभारी अरुण पांडेय ने बताया कि यह अस्पताल 25 बेड का है, लेकिन चिकित्सकों के लिए आवास सुविधा नहीं है। यहां कुल 11 कर्मचारियों की तैनाती है। इनमें दो योग प्रशिक्षक हैं। इसी परिसर में स्वास्थ्य विभाग के अपर निदेशक और जिला होमियोपैथिक ऑफिसर का भी कार्यालय है। आयुर्वेद चिकित्सालय में सफाई रहती है, लेकिन अन्य कार्यालयों के स्थान पर झाड़-झंखाड़ हैं। सफाई प्रतिदिन नहीं हो पाती है। राजकीय चिकित्सालय भवन के बगल में ही बिजली का बड़ा केबिल एक पोल से दूसरे पोल तक जमीन तक लटका हुआ है। कई बार इसकी शिकायत की गई, लेकिन अभी उसे ठीक नहीं किया जा सका है। केबिल पर इंसुलेशन तो है, लेकिन जमीन तक लटकने से दुर्घटना का खतरा बना रहता है।
करते हैं क्षय रोगियों का सर्वे भी
राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय महराजगंज के प्रभारी डॉ. रमाकांत ने बताया कि उनके चिकित्सालय को वर्ष 2018 में आयुष्मान आरोग्य केंद्र बना दिया गया। तब यहां कुछ सुविधाएं बढ़ीं। यहां सीएचओ (कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर) की अब तक तैनाती नहीं हुई है। प्रभारी आयुर्वेदिक चिकित्सक को ही सीएचओ की जिम्मेदारी दे दी गई है। इससे कई दस्तावेज तैयार करने का काम बढ़ गया है। इसके अंतर्गत गांवों में सीबीएसी, प्रकृति परीक्षण करना है। इसके साथ टीबी और महिलाओं से संबंधित रोगों का सर्वे कराना है। आशा बहुओं को इस कार्य में लगाने का आदेश है। आशा बहुओं का कहना है कि सीएमओ कार्यालय जब तक आदेश नहीं देगा, तब तक वे इस काम में शामिल नहीं होंगी। टीबी जांच किट आ गई है लेकिन किसी आरोग्य केंद्र पर लैब टेक्नीशियन नहीं हैं।
दवाओं के स्टॉक की भी जिम्मेदारी
राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, ताहिरपुर रौनापार के प्रभारी अभिषेक कुमार यादव ने बताया कि अस्पताल में फार्मासिस्ट न होने से ओपीडी करने के बाद उन्हें मरीजों को दवाएं भी देनी पड़ती हैं। दवा स्टॉक रजिस्टर भी दुरुस्त करने के अलावा दवा का विवरण मोबाइल एप पर फीड करना पड़ता है। दवाओं के संबंध में कई बार ऊपर से पूछताछ और जांच होती है। इससे स्टॉक को व्यवस्थित करने का तनाव रहता है। चिकित्सकीय कार्य भी प्रभावित होते हैं। नैठी लारपुर के राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय के प्रभारी शशिप्रकाश ने बताया कि उनका चिकित्सालय अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र में वर्ष 2014 से संचालित है। अस्पताल में कर्मचारियों की कमी है। फार्मासिस्ट को यूनानी चिकित्सालय में अटैच कर दिया गया है। खुद उन्हें नैठी लारपुर के आयुर्वेदिक चिकित्सालय के साथ ही मुबारकपुर यूनानी अस्पताल का भी प्रभार देखना पड़ रहा है।
उधार के भवन में चिकित्सालय
राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय, शेरपुर कुटी जहानागंज के प्रभारी जितेंद्र यादव ने बताया कि उनका चिकित्सालय पंचायत भवन के अतिरिक्त कक्ष में चल रहा है। अपना भवन न होने से परेशानी होती है। पहले शेरपुर कुटी में ही किराए के भवन में चिकित्सालय चलता था। बाद में वीरभद्रपुर पंचायत भवन में चलने लगा। कुछ दिनों बाद प्रधान ने ब्लाक के अधिकारियों का हवाला देते हुए पंचायत भवन खाली करने के लिए कह दिया। तब अस्पताल बड़हलगंज पीएचसी में चला गया। वर्तमान में धनारबांध के जिस भवन में है, वहां शौचालय बंद रहता है। शौचालय के ऊपर टंकी भी नहीं लगी है। फार्मासिस्ट को दूसरे अस्पताल से अटैच कर दिया गया है। बताया गया है कि अस्पताल के लिए शेरपुर कुटी गांव में जमीन चिह्नित की गई है।
मरीज मांगते हैं च्यवनप्राश
राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, धनछुला के प्रभारी अनुरुद्ध कुमार ने बताया कि उनके यहां के फार्मासिस्ट को कहीं और तैनात कर दिया गया है। निजी भवन में चिकित्सालय नि:शुल्क चलता है। ओपीडी की समस्या नहीं है, लेकिन मरीजों को देखने के बाद खुद ही दवाएं देनी पड़ती हैं। लोग कोरोना काल में आए च्यवनप्राश की मांग करते हैं। जबकि आयुर्वेदिक दवाओं में कई रसायन आते हैं जो च्यवनप्राश की तरह दिखते हैं। मरीज कई बार इसे च्यवनप्राश मान कर डॉक्टर पर न देने का आरोप लगाने लगते हैं।
शौचालय न होने से परेशानी
राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, चंडेश्वर की प्रभारी डॉ. मोनिका गुप्ता ने बताया कि उनके यहां फार्मासिस्ट हैं, लेकिन वार्ड ब्वाय नहीं है। शौचालय की समस्या है। महिला होने के कारण और ज्यादा दिक्कत है। मरीजों को भी समस्या होती है। अस्पताल में ज्यादातर बुजुर्ग और जोड़ों की बीमारी से जूझ रहे लोग आते हैं। राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय बिलारी अहरौला के प्रभारी डॉ. धीरेंद्र प्रजापति ने बताया कि उनके यहां फार्मासिस्ट और वार्ड ब्वाय नहीं हैं। जर्जर भवन के चलते चिकित्सालय को पंचायत भवन ले जाया गया है।
आरोग्य मेला में ड्यूटी, बजट नहीं
राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, कप्तानगंज के प्रभारी अमरजीत पाल ने बताया कि उनका चिकित्सालय आरोग्य आयुष्मान केंद्र है, लेकिन यहां फार्मासिस्ट और योग प्रशिक्षक नहीं हैं। वार्ड ब्वाय और चौकीदार हैं। प्रत्येक रविवार को आसपास के गांवों में मुख्यमंत्री आरोग्य मेला लगता है, लेकिन इसके लिए अलग से बजट नहीं मिलता। खुद दवाएं लेकर मेले में जाना पड़ता है। जिन आरोग्य आयुष्मान केंद्र में फार्मासिस्ट और चिकित्साधिकारी दोनों हैं, उनकी तरफ से प्रत्येक शनिवार को आयुष्मान आपके द्वार के तहत गांवों में कैंप लगाया जाता है।
एक कमरे में ओपीडी, स्टोर रूम भी वहीं
डॉ. आरेश सिंह पटेल ने बताया कि उनकी तैनाती मूलत: 15 बेड के राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय जीयनपुर में है। पटखौली के राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय की प्रभारी डॉ. रोली मिश्रा को बांदा जिला के राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज में अटैच करने के बाद खाली हो गई। तब उन्हें पटखौली चिकित्सालय से अटैच कर दिया गया। इस अस्पताल का अपना भवन नहीं है। अस्पताल को अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भेज दिया गया। यहां एक कमरा मिला है। उसमें दवा और अन्य सामानों के बीच में बैठकर मरीजों का इलाज करते हैं। फार्मासिस्ट भी नहीं हैं।
सरकारी वैद्यों की पीड़ा
चिकित्सालय में चौकीदार नहीं है। रात में अनहोनी की आशंका रहती है। अराजकतत्वों से सतर्क रहना पड़ता है।
-डॉ. मनीष राय
ज्यादातर अस्पतालों में फार्मासिस्ट नहीं हैं। चिकित्सकों को दवा लिखनी पड़ती है और पुड़िया भी बांधनी पड़ती है।
-डॉ. अभिषेक कुमार
चिकित्सालय पंचायत भवन के अतिरिक्त कक्ष में चलता है। शौचालय चालू हालत में नहीं है। इस माहौल में ड्यूटी करनी पड़ती है।
-डॉ. जितेंद्र यादव
अस्पताल के फार्मासिस्ट को दूसरी जगह अटैच कर दिया गया है। दवा वितरण के बाद रजिस्टर, स्टॉक रजिस्टर भरने के लिए छुट्टी में काम करना पड़ता है।
-डॉ. शशिप्रकाश
किराए के भवन में राजकीय चिकित्सालय चल रहा है। इससे अंदाज लगा सकते हैं कि किन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है।
-डॉ. अनिरुद्ध कुमार
-अस्पताल में वार्ड ब्वाय के अलावा शौचायलय भी नहीं है। इस स्थिति में काम करना मुश्किल होता है। मरीज भी परेशान होते हैं।
डॉ. मोनिका गुप्ता
बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी लगाने से चिकित्सकों की ओपीडी प्रभावित होती है। सिफारिश करने पर कुछ लोगों की ड्यूटी काटी जाती है।
-डॉ. अरुण पांडेय
आयुष्मान आरोग्य मंदिर को गांवों में सर्वें की भी जिम्मेदारी दी गई है। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी सहयोग नहीं करते।
-डॉ. रमाकांत यादव
आयुष्मान आरोग्य मंदिर में चिकित्सकों को ही सीएचओ की भी जिम्मेदारी दी गई है। इससे काम करने में दिक्कत आती है।
-डॉ. अमरजीत पाल
चिकित्सकों के लिए अस्पताल कैंपस में आवास सुविधा नहीं है। प्राइवेट आवास लेना महंगा पड़ता है। आवास की व्यवस्था जरूरी है।
-डॉ. धीरेंद्र प्रजापति
एक कमरे के हास्पिटल में दवाएं रखकर मरीजों का इलाज हमारी मजबूरी है। गर्मी में इस हालात में काम करना मुश्किल होता है।
-डॉ. आरेश सिंह पटेल
महिला योग प्रशिक्षकों की कमी से कई अस्पतालों में दिक्कत आती है। महिलाओं को योग ट्रेनिंग दिलाने में कठिनाई होती है।
-डॉ. अजीत कुमार राय
सुझावः
स्टाफ की कमी दूर की जाए। इससे चिकित्सक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए मरीजों का समुचित इलाज करेंगे।
गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्तियों के सर्वे में आशा बहू और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का सहयोग मिलना चाहिए। सीएमओ इस संबंध में आदेश जारी करें।
आयुष्मान आरोग्य मंदिर में महिला योग प्रशिक्षकों की तैनाती की जाए जिससे योग के जरिए महिलाओं को स्वस्थ रखा जा सके।
राजकीय चिकित्सालयों में शौचालय, पानी की व्यवस्था हो ताकि मरीजों और कर्मचारियों को परेशानी का सामना न करना पड़े।
फार्मासिस्ट का भी काम कर रहे चिकित्सकों को दवा वितरण रजिस्टर मेंटेन करने के लिए समय दिया जाए। उन्हें अनावश्यक परेशान न किया जाए।
शिकायतेंः
चिकित्सा अधिकारियों को ही फार्मासिस्ट का भी काम करना पड़ता है। गलती होने पर कार्रवाई की तलवार लटकती है।
चिकित्सालयों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। अभावों के बीच मरीजों के उपचार में परेशानी होती है।
एक ही कमरे में अस्पताल है। दवाओं के बीच ओपीडी में मरीजों को देखना पड़ता है। गर्मी में परेशानी होती है।
जर्जर भवन में ड्यूटी के दौरान दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। मरीज भी कम आना चाहते हैं।
स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों का सहयोग नहीं मिलता है। सरकारी योजनाओं को अकेले अमल में लाना पड़ता है।
बोले जिम्मेदार :
नए भवनों की निर्माण प्रक्रिया शुरू
आयुर्वेद अस्पतालों का नया भवन बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। 20 से अधिक अस्पतालों के लिए जमीन चिह्नित हो गई है। 13 अस्पताल भवनों के निर्माण के लिए धनराशि भी स्वीकृत हो गई है। इनमें 11 आयुर्वेद और दो यूनानी अस्पताल के भवन हैं। इनके बनने के बाद चिकित्सकों की काफी समस्याएं दूर हो जाएंगी। नगर के अस्पताल में ढीले केबिल को जल्द ठीक कराया जाएगा।
डॉ. वीरेंद्र कुमार यादव, जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी
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