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बोले अयोध्या:रामनगरी में खो गया नन्हे फरिश्तों का बचपन

Ayodhya News - बोले अयोध्या बाल श्रमिक हेडिंग- रामनगरी में खो गया ‘नन्हें फरिश्तों का बचपन

Newswrap हिन्दुस्तान, अयोध्याSun, 23 Feb 2025 06:34 PM
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बोले अयोध्या:रामनगरी में खो गया नन्हे फरिश्तों का बचपन

बोले अयोध्या बाल श्रमिक हेडिंग- रामनगरी में खो गया ‘नन्हें फरिश्तों का बचपन

फोटो केप्शन:मवई ब्लाक के पचलो गांव के पास पंचर बनाता बालश्रमिक।

कामन इंट्रो-

जिन कोमल हाथों में कलम व किताबें होनी चाहिए, उन हाथों में जूठे बर्तन और टेम्पो व ई- रिक्शा की स्टेयरिंग थमा दी गई है। चेहरे पर मासूमियत लिए किशोर अन्य बच्चों की तरह स्कूलों में भविष्य गढ़ने का ख्वाब न देखकर परिवार के जीविकोपार्जन की रीढ़ बन चुके हैं और बालश्रम की भट्टी में खुद को तपा रहे हैं। रामनगरी अयोध्या सहित ग्रामीण इलाके में बालश्रम का कार्य धड़ल्ले से जारी है। चाय का होटल, ढाबा, पंचर की दकान हो या सड़कों व कबाड़ बीनते नौनिहाल सरकारी अमले के लिए चुनौती बन चुके हैं। सदियों से बालश्रम की रूढ़िवादिता चली आ रही है। जिसे खत्म करने के लिए बाश्रम कानून से लेकर शासन- प्रशासन, समाजसेवी संगठन व अन्य की तमाम कवायदें चल रही हैं, लेकिन महज औपचरिकता तक सिमटकर रह गया और धरातल पर सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है। बालश्रम को बढ़ाने में अशिक्षा, गरीबी, बढ़ती आबादी व बेरोजगारी का अहम रोल है। जिस पर अंकुश के लिए हर किसी को समाज में एक अगुवा की भूमिका निभाकर ‘नन्हें फरिश्तों के बालपन को वापस लौटना होगा।

इंट्रो-

अयोध्या। प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने के लिए सरकार की ओर से ऐतिहासिक कदम उठाए गए हैं। हर वर्ग के चेहरे पर मुस्कान लाने लिए रोजगार व शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने से लेकर तमाम जद्दोजहद की जा रही है। हमारे संस्कार में बच्चों को भगवान का दर्जा दिया जाता है, लेकिन भगवान राम की नगरी में नौनिहालों का बचपन खो गया है और खुद व परिवार की पेट पूजा के लिए बालश्रम मजबूरी बन चुकी है। जिले में बालश्रम पर अंकुश लगाने के बजाय ठेकेदार बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं और होटल, ढाबा, मैकेनिक शॉप व अन्य प्रतिष्ठानों पर बच्चे श्रम करते हुए नजर आ रहे हैं। बालश्रम को बढ़ावा देने वाले ठेकेदारों में खुद के बच्चों में मासूमियत झलकती है, लेकिन अन्य गरीब- असहाय बच्चों के चेहरे की सिकन नजर नहीं आती, बल्कि फायदा उठाने के लिए मजबूर बच्चों से मजदूरी कराकर शोषण किया जाता है। बालश्रम पर अंकुश के लिए प्रदेश सरकार की ओर से जिला स्तर पर योजनाएं चलाई जा रही है। तमाम समाजसेवी संगठन भी कोरम पूरा कर रहे हैं, लेकिन बालश्रम परंपरागत तरीके से फल- फूल रहा है और थमने का नाम नहीं ले रहा है।

विश्व पटल पर अपनी पहचान चुकी रामनगरी अयोध्या में रामराज्य की परिकल्पना बेमानी साबित हो रही है, क्योंकि नन्हें फरिश्तों का बचपन प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली पर खो गया है। जिला मुख्यालय से लेकर गांव की पगडंडियों तक संचालित होटल, ढाबा, रेस्टोरेंट, ठेला- खुमचा, मैकेनिक, मिस्त्री, ईंट भट्ठे व अन्य प्रतिष्ठानों सहित आटो चालक से लेकर ई-रिक्शा तक नन्हें हाथों से सड़कों पर फर्राटा भरते किशोर दिख रहे हैं। बालश्रम रोकने के लिए तमाम दावे किए जाते हैं, लेकिन ढाक के तीन पात के समान पुन: पुराने ढर्रे पर ही गाड़ी टिकी हुई है। ग्रामीण परिवेश में जहां मकान बनाने से लेकर अन्य जगहों पर मजदूरी करते नजर आ रहे हैं, वहीं नगर क्षेत्र में सुबह से शाम तक बच्चे स्कूलों की जगह सड़कों पर कूड़ों में भविष्य तलाशते नजर आएंगे। इसके लिए सिर्फ सरकार या समाजसेवी संगठन ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि इन किशोरों के माता- पिता भी जिम्मेदार है जो इन्हीं बच्चों की कमाई पर टिके हैं। इस बालश्रम के पीछे अशिक्षा और बेरोजगारी का अहम रोल है, क्योंकि जब नींव ही कमजोर है तो इमारत कहां से बुलंद होगी। जानकारों की मानें तो सरकार और समाजसेवी संगठनों को बच्चों के माता- पिता के दिमाग में सकारात्मक विचार भरना होगा, ताकि खुद श्रम करके बालश्रम पर अंकुश लगा सकें। कानून के जानकारों की मानें तो बाल श्रम को रोकने के लिए कठोर नियम बने हैं। बाल एवं किशोर श्रम अधिनियम 1986 व 2016 में बाल श्रम को एक अपराध बताया गया है। इसमें 14 साल से कम आयु के बच्चों से श्रम न कराने की सख्त हिदायत दी गई है। बाल श्रम कराते समय पकड़े जाने पर एक से तीन वर्ष तक की सजा व 10 से 50 हजार रुपए तक जुर्माने का प्राविधान भी है। इन नियमों का पालन कराने के लिए जिले स्तर पर अधिकारियों की तैनाती की गई है। अधिकारियों द्वारा समय-समय पर अभियान चलाकर मासूम बच्चों को बालश्रम से मुक्त कराकर उचित कार्यवाहियां भी की जाती है। इन सबके बावजूद बालश्रम रुकना बंद नही है। इस प्रयास की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम 2016 में बाल श्रम और किशोर (निषेध और विनियमन) एक संसोधित अधिनियम है। जरूरत है कि लोगों के बीच बाल अधिकारों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना। जब तक जन- जन जागरूक नहीं होगा बाल श्रम अभिशाप बना रहेगा और मासूमों का बचपन सड़क व फुटपाथों पर भटकता नजर आएगा।

प्रस्तुति- राममूर्ति यादव/ अनिल कुमार मिश्र, फोटो रवीन्द्र प्रताप सिंह।

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फोटो नंबर- रूदौली तहसील के रानीमऊ में होटल पर ग्राहक को चाय देता बाल मजूदर।

ए छोटू इधर आ एक चाय- नमकीन ला...

मवई। अक्सर होटल ढाबों पर छोटू मिल ही जाता है। यह नाम का ही नहीं, बल्कि काम में भी छोटे होते हैं, क्योंकि ये होटल- ढाबे व अन्य प्रतिष्ठानों पर बाल मजूदर के रूप में कार्यरत होते हैं। रविवार को ‘हिन्दुस्तान ने विशेष अभियान के तहत रूदौली तहसील के रानीमऊ चौराहे के एक होटल पर छोटू नाम सुनकर तमाम जगहों पर बालश्रम करने वाले छोटू की याद दिला दी। इसके अलावा वहीं रानीमऊ में दो मासूम बच्चे बाइक सर्विसिंग का काम करते नजर आए। कक्षा- चार व कक्षा छह में पढ़ाई करने वाले दोनों मासूम बच्चों ने बताया कि गरीबी से उबरने के लिए हुनर सीखने आया हूं। आगे बढ़ने पर ढाबे पर एक बुजर्ग को चाय पानी दे रहे दो मासूम ने बताया पैसे के लिए काम करता हूं। होटल व्यवसाई का कहना था कि कई बार मना किया, लेकिन ये दोनों नहीं जाते। रुदौली तहसील क्षेत्र के राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे भेलसर में स्थित एक होटल में तीन छोटू नामक बच्चे काम करतेनजर आए। होटल मालिक ने बताया कि मंहगाई में बड़े आदमी कहां रख पाएंगे। ये सभी बच्चे अपने माता- पिता से पूंछकर काम करते हैं। किसी को जबरदस्ती नहीं रखा गया है। अयोध्या में एक नाबालिक ई-रिक्शा चलाते हुए बताया परिवार के भरण- पोषण के लिए मजबूरी में ये काम कर रहा हूं।

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शादी- विवाह व पार्टियों में बालश्रम का मिलेगा नमूना

अयोध्या। शहरी या ग्रामीण इलाके में शादी-विवाह या पार्टियों में अब बेटर का प्रचलन काफी बढ़ गया है। विभिन्न आयोजनों में अधिकतर बालश्रमिक मेहमानों को चाय- पानी, खाना परोसते नजर आते हैं। जहां आयोजन होते हें उसी में तमाम तमगेदार अधिकारी व नेता शरीक होते हैं और उनकी खुशामद में ये बालश्रमिक जी- हुजूरी करते रहते हैं, लेकिन बालश्रम पर अंकुश के लिए उनकी निगाहें नहीं उठती, बल्कि बच्चों को बख्शीस देकर चलते बनते हैं। बताया जाता है कि बालश्रमिकों को बेटर के रूप में इस्तेमाल करने की वजह कम पैसे की मजदूरी का भुगतान होता है। इसलिए बच्चों को बेटर के काम में वरीयता दी जाती है।

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बालश्रमिकों के भविष्य को संवारने के दावा

अयोध्या। होटल- ढाबों, प्रतिष्ठानों व ईंट भट्ठों पर काम करने वाले बाल श्रमिकों को मुक्त कराकर उनके भविष्य को सरकारी योजनाओं से संवारने के दावा श्रम विभाग द्वारा किया जा रहा है। सहायक श्रम आयुक्त एनके चौधरी की मानें तो बालश्रमिकों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए समय- समय पर अभियान चलाकर होटलों, ढाबा, गैराज, कल-कारखानों में छापेमारी की जाती है। जहां बाल मजदूरी करते हुए मासूम श्रमिकों को मुक्त कराकर उन्हें सरकारी योजनाओं से आच्छादित किया जाता है। अब तक छापेमारी में बाल किशोर श्रमिकों को मुक्त कराकर नजदीकी परिषदीय विद्यालय में प्रवेश दिलाकर शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा गया है। वही कई किशोर श्रमिकों को कौशल विकास योजना के तहत पंजीयन कराकर उन्हें भी रोजगार परक प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है। बालश्रमिकों के उत्थान के लिए एक और कल्याणकारी बाल विद्या योजना लाई है। इस योजना के तहत चिन्हित बालक को प्रतिमाह एक हजार व बालिकाओं को 12 सौ रुपए देने का प्रावधान है।

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सुझाव-

- बालश्रम को रोकने के लिए गरीब अभिभावकों को जागरूक किया जाय

-बाल श्रम को रोकने के लिए बच्चों की शिक्षा पर जोर दें

- गरीबों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराएं

- बच्चों को सस्ती व अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराई जाए

- बालश्रम को रोकने के लिए नियम का सख्ती से पालन हो

शिकायतें-

- ग्रामीण स्तर पर कोई जागरूकता अभियान नहीं चल रहा

- बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने वाली योजनाएं संचालन में हीलाहवाली

- सरकार की कल्याणकारी योजनाएं गरीबों तक नहीं पहुंच रही

- निजी स्कूलों में शिक्षा के लिए फीस पर अंकुश लगे

- बालश्रम को रोकने के लिए बनाए नियमों का सख्ती से पालन न होना

बालश्रम पर बोले-

1- बाल मजदूरी का मुख्य कारण निर्धनता है। बच्चे परिवार की आर्थिक समस्या के कारण परिवार में सहयोग की भावना से कार्य करते हैं। कभी- कभी वह स्वयं स्वेच्छा से होता है और कभी परिवार का दबाव भी होता है। ऐसे परिवार को आर्थिक सहयोग व बच्चों के शिक्षा के लिए मुख्य्मंत्री बाल सेवा योजना, बाल श्रमिक विद्या योजना व केंद्र सरकार की स्पॉन्सरशिप योजना से जोड़कर उन्हें आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है। योजना से जोड़ने के बाद निरंतर उनका फॉलोअप भी सीडब्ल्यूसी द्वारा किया जाता है, ताकि वे पुनः बाल श्रम में न जुड़ सकें। जिले में भारी संख्या में बच्चों को बालश्रम से मुक्त कराया गया है और प्रयास जारी है।

- सर्वेश अवस्थी, सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष अयोध्या

2- बालश्रम से जुड़े कानूनों का सख्ती के साथ पालन किया जाना चाहिए। सामाजिक संगठनों के अलावा आम नागरिकों को बालरम पर रोकथाम के लिए जागरूकता लानी चाहिए। बालरम का उल्लंघन करने वाले को सख्त सजा का मिलनी चाहिए और सामाजिक चेतना के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। बालरम के आधा दर्जन मामले में कानूनी तैार पर हस्तक्षेप करके नौनिहालों के भविष्य को बचाया है। हाल ही बालश्रम से जुड़े एक मामले में छह हजार रुपए का जुर्माना कराया है।

- अरशद शेरा, अधिवक्ता

3- जिलाधिकारी के निर्देश पर रुदौली तहसील में गठित टीम द्वारा बालश्रम को रोकने के लिए लगातार काम किया जा रहा है। मैं स्वयं ईंट भट्ठों व दुकानों पर पहुंचकर लोगों को चेतावनी के साथ बालश्रम न कराने के लिए जागरूक कर रहा हूं। सभी विभागीय अधिकारियों को इसको लेकर जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया गया है। बालश्रम पर अंकुश के लिए सामाजिक संगठनों के साथ आम नागरिकों को भी आगे आना होगा, क्योंकि सभी के सहयोग से ही बालश्रम पर पूर्ण रूप से अंकुश लग सकेगा।

- प्रवीण कुमार यादव, एसडीएम रुदौली

4- हमारी सामाजिक संस्था लगातार ‘एक्सेस- टू- जस्टिस के तहत बाल श्रम व बाल शोषण के तहत काम कर रही है। अब तक जिले में बड़ी संख्या में बच्चे बालश्रम में संलिप्त पाए गए हैं। इनमें से कई बच्चे अनाथ है तो बहुतायत का परिवार आर्थिक रुप से कमजोर है। बालश्रम से मुक्त बच्चों के लिए प्रभावी पुनर्वास योजनाएं लागू करने की मांग की है। 25 से 30 बालश्रमिकों को मुक्त कराया गया है। इसमें तीन बालिकाओं को राजकीय बालिका गृह लखनऊ में शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। स्थानीय प्रशासन से बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने की भी मांग की गई है।

- कविता मिश्रा, जिला कोऑर्डिनेटर, अपराजिता

5- टीम द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है, लेकिन अशिक्षा व गरीबी बालश्रम का मुख्य कारण है। अशिक्षित माता-पिता बाल मजदूरी से उनके बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में नहीं जानते हैं। इसलिए बाल मजदूरी के लिए प्रेरित करते हैं। शासन की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही है। जिससे अभिभावकों को लाभान्वित कराया जाता है और बालरम पर रोकथाम के प्रयास किए जाते हैं।

- पल्लवी दीक्षित, कोऑर्डिनेटर चाईल्ड लाइन- 1098

6- बालश्रम को रोकने के लिए तहसील स्तर पर गठित नौ सदस्यीय टीम है। जिसमें मैं स्वयं शामिल हूं। मैंने मनरेगा योजना में किसी नाबालिग के जॉबकार्ड न बनाने न ही उनसे काम करवाने का सख्त निर्देश दिया गया है। यदि कोई गरीब बाल श्रमिक की सूचना मिलती है तो उसे टीम के संज्ञान में लाकर विधिक कार्यवाही की जाती है।

- अनुपम वर्मा, बीडीओ सोहावल

7- आरपीएफ के नन्हें फरिश्ते अभियान के तहत अयोध्या धाम जंक्शन पर विभिन्न प्रांत के बच्चों को रेस्क्यू किया गया। बच्चों से पूछताछ में बालश्रम की बात सामने आई, लेकिन सीडब्ल्यूसी के माध्यम से बच्चों के अभिभावकों को सुरक्षित सौंप दिया गया तथा जागरूक भी किया गया। पिछले वर्ष लगभग 22 बच्चों को बालश्रम के बचाने का आरपीएफ ने सफलतापर्वूक प्रयास किया है।

- यशवंत सिंह, आरपीएफ इंस्पेक्टर अयोध्या धाम

8- बालश्रम रोकने के लिए गठित टास्क फोर्स द्वारा बालश्रमिकों का अवमुक्तिकरण बालकल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुतिकरण निः शुल्क चिकित्सीय परीक्षण से लेकर चाइल्ड लाइन में संरक्षण व स्वाभाविक अभिभावकों को सुपुर्द करने की कार्यवाही श्रम विभाग द्वारा किया जाता है। इस पूरी कार्यवाही में हमारी एएचटीयू टीम पूरा सहयोग करती है।

- आशीष निगम, सीओ रुदौली

बोले जिम्मेदार-

जिले में डीएम के निर्देश पर सभी तहसों में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है। अप्रैल 24 से जनवरी 25 तक कुल 123 बाल एवं किशोर श्रमिक चिन्हित/अवमुक्त किए गए हैं। दोषी कुल 57 दुकानदारों/ सेवायोजकों के विरुद्ध मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष अभियोजन दायर किया गया गया। श्रम प्रवर्तन अधिकारी द्वारा नियमित निरीक्षण किए जा रहे हैं। सीडीओ द्वारा इसकी समीक्षा भी की जा रही है। बालश्रम की शिकायत मिलने पर तत्काल विघिक कार्रवाई की जाती है और लोगों को जागरूक किया जाता है।

- एनके चौधरी, सहायक श्रम आयुक्त

हाईवे पर डबल डेकर बस में मिले थे 97 बच्चे,जाँच के बाद सौंपे गए थे परिवार को

अयोध्या । दिल्ली के एक स्वयंसेवी संस्था की शिकायत और राज्य बाल आयोग के निर्देश पर गत वर्ष 26 अप्रैल को बाल कल्याण समिति, एएचटी थाना और सिविल पुलिस की संयुक्त टीम ने लखनऊ-गोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अयोध्या कोतवाली क्षेत्र में देवकाली स्थित एक होटल के सामने से एक डबल डेकर बस से अन्य सवारियों के साथ कुल 97 बच्चों को पकड़ा था। सभी बच्चों की काउंसलिंग और जिला अस्पताल में मेडिकल परीक्षण कराने के बाद बाल कल्याण समिति ने अभी को लखनऊ संरक्षण गृह भेजवाया था। हालाँकि बच्चों के परिजनों की ओर से लिखित रूप से स्वेच्छा से ले जाए जाने की बात कहे जाने के बाद सभी बच्चों को छोड़ना पड़ा था और कार्रवाई आगे नहीं बढ़ सकी थी।

बाल तस्करी की शिकायतों के मद्देनजर दिल्ली के एक एनजीओ मुक्ति फाउंडेशन की ओर से राज्य बाल आयोग को हुई शिकायत के बाद संयुक्त टीम ने अरुणांचल प्रदेश में पंजीकृत बस एआर 16 बी 1551 से गोरखपुर-लखनऊ के रास्ते बिहार प्रान्त के अररिया जिले से सहारनपुर स्थित मदरसे जा रहे चार साल से 12 साल उम्र के कुल 97 बच्चों को रेस्क्यू किया था। बस में अन्य सवारियों के साथ सहारनपुर जिला स्थित एक मदरसा के प्रबंधक और शिक्षक मिले थे। काउंसिलग और पूछताछ के दौरान आवश्यक कागजात व बच्चों के अभिभावकों का सहमति पत्र न प्रस्तुत कर पाने के चलते एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग थाना प्रभारी की रिपोर्ट पर बाल कल्याण समिति ने बच्चों को बाल संरक्षण गृह भेजवा दिया था। बाद में छानबीन के दौरान यह बात प्रकाश में आई थी कि डबल डेकर बस में मिले कुल 97 बच्चों में से 95 सहारनपुर स्थित मदरसे में तालीम हासिल करने के लिए जा रहे थे,जबकि दो बच्चे अपने अभिभावक के साथ बतौर सवारी सफर कर रहे थे। संबंधित मदरसा प्रबंधन की ओर से दाव किया गया था कि हर वर्ष की तरह मदरसे का नया सत्र शुरू होने के बाद बच्चों को उनके माता-पिता की मर्जी से लेकर जाया जा रहा था। इनमें 15 पूर्व से छात्र थे जो रमजान और ईद की छुट्टी पर घर आए थे तथा 80 बच्चों को उनके माता-पिता ने पढ़ाई के लिए भेजा है।

मामले में बिहार से बच्चों के जनपद पहुँचने तथा उनकी ओर से शपथ पत्र के साथ कागजात और लिखित रूप से दावा प्रस्तुत किये जाने पर जिला बाल कल्याण समिति की ओर से इसका परीक्षण किया गया था और परीक्षण के बाद बच्चों को उनके अभिभावकों के सुपुर्द किए जाने का आदेश जारी किया था। जबकि बच्चों के साथ सहारनपुर जा रहे मदरसे के प्रबंधक व मौलाना समेत पांच को पुलिस ने स्थानीय मददगारों के सुपुर्द कर दिया था। जिला बाल कल्याण समिति (सीडब्लूसी) के अध्यक्ष सर्वेश अवस्थी का कहना है कि शिकायत पर डबल डेकर बस से बच्चों को रेस्क्यू करवा निर्धरित प्रक्रिया के मुताबिक मेडिकल करवा सभी को बाल संरक्षण गृह भेजवाया गया था। बाद में अभिभावकों की ओर से बच्चों को स्वेच्छा से मदरसा भेजे जाने का लिखित दावा किये जाने के बाद बच्चों को उनके सिपुर्द कर दिया गया था।

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