अजमेर को राष्ट्रीय जैन तीर्थ घोषित करने की मांग, गरीब नवाज दरगाह के दीवान ने पीएम मोदी को लिखा पत्र
- आबेदीन का कहना है कि यहां गरीब नवाज की दरगाह है और दूसरी ओर पुष्कर जी महाराज हैं। इसी तरह से ये स्वामी दयानंद सरस्वती जी, विवेकानंद जी और दूसरे महापुरुष जितने भी रहे हैं उनके लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल रहा है।
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अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के दीवान सैयद ज़ैनुल आबेदीन ने एक बयान जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अजमेर को राष्ट्रीय जैन तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग की है। इस मांग को लेकर उन्होंने पीएम मोदी को एक पत्र भी लिखा है। आबेदीन का कहना है कि जैन समाज के सबसे बड़े संत रह चुके विद्या सागर जी महाराज की दीक्षा अजमेर में ही हुई है, तो उनके नाम पर अजमेर को तीर्थ नगरी घोषित किया जाना चाहिए।
इस बारे में न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए सैयद जैनुल आबेदीन ने कहा, 'अजमेर पहले से ही तीर्थ नगरी के नाम से मशहूर है। क्योंकि यहां गरीब नवाज की दरगाह है और दूसरी ओर पुष्कर जी महाराज हैं। इसी तरह से ये स्वामी दयानंद सरस्वती जी, विवेकानंद जी और दूसरे महापुरुष जितने भी रहे हैं उनके लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल रहा है। हमारे जैन समाज के जो विद्या सागर जी महाराज रहे हैं, उनकी दीक्षा जो है वो अजमेर में ही हुई थी। उसके बाद उन्होंने जैन धर्म के विचारों का प्रचार जिस तरह से किया, वो सब आप लोगों के सामने हैं।'
आगे उन्होंने कहा, ‘इसी सिलसिले में सर्वधर्म मैत्री संघ से जुड़े प्रकाश जी जैन मैत्री संघ की तरफ से एक प्रस्ताव लाए कि हम अजमेर को विद्या सागर जी महाराज के नाम पर तीर्थ नगरी घोषित करवाना चाहते हैं। तो मैंने कहा कि कोई अगर आगे नहीं आए तो मैं पहल करता हूं, मैं प्रधानमंत्री जी को लिखता हूं, कि जब इतने स्थल जहां पर मौजूद हैं, तो जैन समाज के जो विद्या सागरजी महाराज हैं, उनके नाम पर भी इसे राष्ट्रीय स्तर पर एक तीर्थ घोषित किया जाए, तो हमें बहुत खुशी होगी और बड़ा सहयोग मिलेगा। साथ ही यहां जो इतने धर्म मौजूद हैं उनको एक मंच पर लाने में भी मदद मिलेगी। हम यह चाहते हैं कि जैन समाज भी इसमें अग्रणी रहे।’
विद्यासागर जी महाराज जैन समुदाय की दिगंबर शाखा के सबसे बड़े संतों में से एक थे जो आचार्य पद को सुशोभित कर चुके थे। उन्होंने पिछले वर्ष 17 फरवरी को छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ में अपना शरीर त्यागा था। उनकी पहली पुण्यतिथि के मौके पर अजमेर नगरी को जहां पर उन्होंने दिंगबर मुनि दीक्षा ग्रहण की थी, को तीर्थ नगरी घोषित करने की मांग की जा रही है। उन्होंने 30 जून 1968 में अजमेर में 22 साल की आयु में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से दीक्षा ली थी। आचार्य विद्यासागर को नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा ही आचार्य पद दिया गया था। उन्हें संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, मराठी और कन्नड़ सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषा में बहु संख्या में रचनाएं की थीं। सैकड़ों की संख्या में शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।