ना चुनाव, ना विधायक और ना CM; 37 साल तक कैसे चली थी 'दिल्ली सरकार'
दिल्ली में नियमित विधानसभा चुनाव होने के शुक्रवार को तीन दशक पूरे हो गए। यहां 37 साल तक कभी विधानसभा चुनाव नहीं हुए। क्योंकि, 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश में बदलकर सदन समाप्त कर दिया गया।
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दिल्ली में नियमित विधानसभा चुनाव होने के शुक्रवार को तीन दशक पूरे हो गए। यहां 37 साल तक कभी विधानसभा चुनाव नहीं हुए। क्योंकि, 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के साथ सदन को समाप्त कर दिया गया था।
विधानसभा रिकॉर्ड के अनुसार, दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था। राजधानी 1993 तक कभी भी विधानसभा का दोबारा चुनाव नहीं कर सकी। 1993 में सदन के अध्यक्ष चुने गए चरती लाल गोयल को पद की शपथ दिलाने के लिए जग प्रवेश चंद्र को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था। चूंकि, 37 साल बाद विधायकों की एक निर्वाचित सभा आकार ले रही थी। इसके लिए सचिवालय भवन में कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसने ब्रिटिश राज के तहत इंपीरियल विधान परिषद और केंद्रीय विधान सभा (1913-1926) या संसद की भी मेजबानी की थी। वहीं, राजधानी में 27 मार्च 1952 को पहला दिल्ली विधानसभा चुनाव हुआ
विधानसभा का गठन बड़ी छलांग
दक्षिणी दिल्ली के पूर्व महापौर सुभाष आर्य ने कहा कि विधानसभा का गठन दिल्ली के लोगों को उनके लोकतांत्रिक अधिकार प्राप्त करने में एक बड़ी छलांग थी। शहर के प्रशासन में लोगों की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होने के कारण एक निर्वाचित विधानसभा की बहाली की मांग उठने लगी। इन मांगों के कारण केंद्र सरकार को दिसंबर 1987 में सरकारिया समिति (जिसे बाद में बालाकृष्णन समिति कहा गया) का गठन करना पड़ा। दो साल बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बने रहना चाहिए।
48 सीटों पर चुनाव हुए, पांच लाख से ज्यादा थे मतदाता
1952 में 48 सीटों पर चुनाव हुए, जिनमें से छह निर्वाचन क्षेत्रों में दो सदस्यों का चुनाव हुआ और शेष 36 पर एक सदस्य चुना गया। चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार, दिल्ली में 5,21,766 पात्र मतदाता थे, जिनमें से 58.52 फीसदी ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। कांग्रेस ने 39 सीटों के साथ बहुमत हासिल किया। जनसंघ, हिंदू महासभा और सोशलिस्ट पार्टी ने मिलकर 10 सीटें हासिल कीं। 1956 और 1990 के बीच 61-सदस्यीय मेट्रोपॉलिटन काउंसिल ने दिल्ली का प्रशासन किया।
एलजी दवे ने किया था पहला संबोधन
दिल्ली विधानसभा के वर्तमान अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने कहा कि सदन के तत्कालीन अध्यक्ष चरती लाल गोयल सदन को दृढ़ता से चलाते थे। 15 दिसंबर 1993 को एलजी दवे ने पहला संबोधन किया। बल्लीमारान विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले हारून यूसुफ ने कहा कि उस समय राजनीतिक मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद सदस्यों ने व्यक्तिगत समीकरण साझा किए, जिससे सर्वसम्मति बनाने में मदद मिली।
1992 में परिसीमन समिति बनाई गई
केंद्र ने 1992 में एक परिसीमन समिति का गठन किया, जिसने दिल्ली में 70 विधानसभा सीटों का निर्धारण किया। नवंबर 1993 में शहर में विधानसभा चुनाव होने के साथ दिल्ली लोकतांत्रिक स्थिति में लौट आई। मदन लाल खुराना के नेतृत्व में भाजपा ने भारी बहुमत से जीत हासिल की।
वरिष्ठ नेताओं से सीखी कार्यवाही इकबाल
जनता दल से पहली बार विधायक बने और आम आदमी पार्टी (आप) से वर्तमान सदन के सदस्य शोएब इकबाल ने कहा कि शासन की जटिलताएं थीं, लेकिन सत्ता पक्ष के वरिष्ठ नेताओं ने कनिष्ठों को विधायी शासन सीखने में मदद की, जिससे चीजें आसान हो गईं। शोएब इकबाल छह बार के विधायक हैं।
वर्तमान की तरह पहले भी जाम की समस्या थी
1990 के दशक की शुरुआत में दिल्ली करीब 90.42 लाख लोगों का शहर था और लगातार देश के सभी हिस्सों से लोगों को आकर्षित कर रहा था। ट्रैफिक जाम तब भी एक समस्या थी। उस समय शहर में बीस लाख पंजीकृत वाहन थे, जो अभी भी मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के संयुक्त वाहनों से अधिक है। बढ़ती भीड़ के कारण रेल आधारित परिवहन प्रणाली की मांग उठने लगी।