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हलाल प्रमाणीकरण मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आस्था और प्रथा से जुड़ा है- जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट

जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हलाल प्रमाणीकरण मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आस्था से जुड़ा है और इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण प्राप्त है। ट्रस्ट ने केंद्र...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 25 Feb 2025 09:07 PM
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हलाल प्रमाणीकरण मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आस्था और प्रथा से जुड़ा है- जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि ‘हलाल प्रमाणीकरण न सिर्फ मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आस्था और प्रथा से जुड़ा हुआ है बल्कि इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में हलाल प्रमाणीकरण ट्रस्ट ने कहा है कि हलाल की अवधारणा को एक बहुत बड़े समुदाय के ‘व्यवहार और जीवनशैली की बुनियादी आवश्यकता माना जाता है, जिसमें आमतौर पर खानपान की आदतें और उपभोग की प्रवृत्ति शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाबी हलफनामे जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने केंद्र सरकार के उन दलीलों को विरोध किया है, जिसमें कहा गया था कि लोहे की छड़ और सीमेंट जैसे मांस-रहित उत्पादों के हलाल प्रमाणीकरण किया जा रहा है। ट्रस्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील अफसोसजनक एवं निंदनीय बताया है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाबी हलफनामे में ट्रस्ट ने कहा कि हलाल प्रमाणीकरण भारतीय नागरिकों के एक बड़े समुदाय की धार्मिक आस्था और प्रथा से जुड़ा हुआ है तथा इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण हासिल है। इसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 25 जहां अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, उसका पालन करने एवं उसका प्रचार-प्रसार करने से संबंधित है, वहीं अनुच्छेद 26 धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता निर्धारित करता है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 20 जनवरी अपना पक्ष रखते हुए, शीर्ष अदालत को बताया था कि हलाल प्रमाणीकरण ट्रस्ट द्वारा ‘लोहे की छड़ और सीमेंट जैसे मांस-रहित उत्पादों के हलाल प्रमाणीकरण किया जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया था कि जिन लोगों का इस अवधारणा से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें हलाल-प्रमाणित उत्पादों के लिए अधिक कीमत क्यों चुकानी चाहिए।

ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में, ऐसे किसी भी प्रमाणीकरण से इनकार किया है। ट्रस्ट ने कहा है कि हम स्पष्ट शब्दों में यह साफ करते हैं कि याचिकाकर्ता (ट्रस्ट) ने लोहे की छड़ या सीमेंट को कोई हलाल प्रमाणीकरण जारी नहीं किया है। ट्रस्ट ने कहा है कि भोजन और उसे तैयार करने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री का चयन किसी व्यक्ति या लोगों के एक समूह का अधिकार है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण हासिल है। ट्रस्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, किसी व्यक्ति की यह तय करने की आजादी नहीं छीन सकते कि वह क्या खाना चाहता है।

अपने जवाब में ट्रस्ट ने कहा कि शाकाहार हो या मांसाहार, यह किसी व्यक्ति के अधिकार का मामला है कि उसे खाद्य वस्तुओं में इस्तेमाल सामग्री के बारे में जानकारी दी जाए। साथ ही कहा कि ‘मिसाल के तौर पर, तुलसी जल, लिप्स्टिक, चॉकलेट युक्त या चॉकलेट रहित बिस्कुट, पानी की बोतलों को हलाल प्रमाणीकरण के हास्यास्पद विस्तार के रूप में पेश किया जाता है। जबकि उक्त आलोचना बेबुनियाद है और आम जनता के तथ्यों से वाकिफ न होने का नतीजा है। ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि हलाल प्रमाणीकरण अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य से भी जुड़ा हुआ मसला है। उसने कहा कि जहां तक ​​प्रमाणन एजेंसियों के शुल्क वसूलने और इस प्रक्रिया में एकत्र की गई कुल राशि के लाखों करोड़ रुपये होने के आरोपों का सवाल है, तो हम कहना चाहेंगे कि ये आरोप बहुत-बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है और इनका आधार केंद्र सरकार का बेबुनियाद मौखिक निर्देश है। शीर्ष अदालत को बताया गया कि केंद्र सरकार को याचिकाकर्ता ट्रस्ट के वित्तीय विवरणों की जानकारी थी, क्योंकि इसे आयकर और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) प्राधिकारियों के समक्ष दाखिल किया गया था। जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के उस अधिसूचना को चुनौती दी गई है, जिसके तहत निर्यात के लिए उत्पादित वस्तुओं को छोड़कर, हलाल प्रमाणीकरण वाले खाद्य उत्पादों के विनिर्माण, भंडारण, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस मामले की सुनवाई 24 मार्च से शुरू हो रहे सप्ताह में होगी।

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