मार्च में अचानक पड़ने वाली गर्मी की वजह रास्बी वेव्स
आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने कहा है कि मार्च 2022 में पड़ी भीषण गर्मी का कारण रास्बी वेव्स हैं। यह अध्ययन आईआईटी बॉम्बे और जर्मनी की जोहान्स गुटनबर्ग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया।...

अध्ययन - आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने किया दावा
- आईआईटी बॉम्बे और जर्मनी की जोहान्स गुटनबर्ग यूनिवर्सिटी मैंज के वैज्ञानिकों का अध्ययन
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता। मार्च में अचानक पड़ने वाली गर्मी की वजह रास्बी वेव्स हैं जिनके चलते हवा में हलचल होती है। आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है। शोध मार्च-अप्रैल 2022 में पड़ी भीषण गर्मी पर केंद्रित है।
आईआईटी बॉम्बे और जर्मनी की जोहान्स गुटनबर्ग यूनिवर्सिटी मैंज के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन ने पहली बार यह साफतौर पर बताया है कि इन दो महीनों में हीटवेव अलग-अलग वजहों से आई थीं, लेकिन इन दोनों ने मिलकर हालात और भी ज्यादा बिगाड़ दिए।
प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: एटमोस्फियर्स में प्रकाशित इस शोध का शीर्षक है ‘कांट्रास्टिंग ड्राइवर्स ऑफ कोनसेक्युटिव प्री मानसून हीट वेव्स इन 2022। यह अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन द्वारा प्रकाशित होता है।
अध्ययन के मुख्य लेखक तथा आईआईटी बॉम्बे के सेंटर फॉर क्लाइमेट स्टडीज के पीएचडी छात्र रोशन झा बताते हैं कि मार्च 2022 की हीटवेव मुख्य रूप से एक खास तरह की वायुमंडलीय हलचल से जुड़ी थी। इसे रॉस्बी वेव्स कहा जाता है, ये ऊपरी वातावरण में बहने वाली बड़ी, घुमावदार हवाएं होती हैं जो समुद्र से लेकर जमीन तक मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती हैं।
रोशन ने बताया कि जब उत्तरी ध्रुव के पास बहने वाली एक्स्ट्रा-ट्रॉपिकल जेट स्ट्रीम और भूमध्य रेखा के पास बहने वाली सबट्रॉपिकल जेट स्ट्रीम आपस में करीब आती हैं, तो इन दोनों के बीच ऊर्जा का आदान-प्रदान तेज हो जाता है। इससे रॉस्बी वेव्स की ताकत अचानक बढ़ जाती है। यही तेजी मार्च की हीटवेव की वजह बनी।
मार्च के उलट, अप्रैल 2022 की हीटवेव की वजहें ज्यादा सतही थीं यानी जमीन और उसकी नमी से जुड़ी। इस बार ऊपरी वायुमंडल की हवाओं ने नहीं, बल्कि जमीन की हालत और पास के क्षेत्रों से आने वाली गर्म हवाओं ने भारत में तापमान को और बढ़ा दिया।
रास्बी वेव्स को ऐसे समझें
आईआईटी बॉम्बे की एसोसिएट प्रोफेसर अर्पिता मोंडल इस चक्र को समझाते हुए कहती हैं, जब जमीन में नमी होती है, तो सूरज की कुछ ऊर्जा उस नमी को उड़ाने में खर्च हो जाती है। इससे वातावरण में गर्मी उतनी नहीं बढ़ती। लेकिन अगर जमीन पहले से ही सूखी हो, जैसा मार्च के बाद हुआ तो सूरज की पूरी ताकत सीधे हवा को गरम करने में लग जाती है। मार्च की हीटवेव ने पहले ही मिट्टी से सारी नमी खींच ली थी। खुले आसमान, तेज धूप और लंबे दिन, इन सबने मिलकर जमीन को तपता हुआ बना दिया। इसके बाद जब अप्रैल आया, तो पाकिस्तान और अफगानिस्तान के इलाकों से गर्म हवाएं भारत में दाखिल हुईं और सूखी जमीन ने उन्हें और ताकतवर बना दिया।
हीटवेव
अध्ययन के सहलेखक और आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर सुबिमल घोष मानते हैं कि इस शोध से भारत और दक्षिण एशिया में हीटवेव को लेकर हमारी समझ कहीं बेहतर हुई है। हीटवेव को हम अक्सर एक अकेली घटना मानते हैं, लेकिन यह अध्ययन दिखाती है कि एक हीटवेव दूसरी को और भी खतरनाक बना सकती है। अगर हम इस प्रक्रिया को समझ लें, तो हीटवेव की भविष्यवाणी और तैयारी दोनों बेहतर हो सकती हैं।
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