उपलब्धि : मीठे पानी का संकट दूर करेगी आईआईटी की सौर वाष्पीकरण तकनीक
आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने अलवणीकरण के लिए सौर वाष्पीकरण तकनीक विकसित की प्रो.

आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने अलवणीकरण के लिए सौर वाष्पीकरण तकनीक विकसित की प्रो. स्वतंत्र की टीम ने डुअल-साइडेड सुपरहाइड्रोफोबिक लेजर-इंड्यूस्ड ग्राफीन वाष्पीकरण तकनीक बनाई
बादल वाले दिनों में बिजली को भी हो सकता है उपयोग
मुंबई, एजेंसी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो खारे पानी को मीठे पानी में बदल देगी। वैज्ञानिकों ने हाइड्रोफोबिक ग्राफीन-आधारित पदार्थ विकसित किया है, जो मीठे पानी के संकट को दूर करने में सहायक है। प्रोफेसर स्वतंत्र प्रताप सिंह और ऐश्वर्या सी एल ने डुअल-साइडेड सुपरहाइड्रोफोबिक लेजर-इंड्यूस्ड ग्राफीन (डीएसएलआईजी) वाष्पीकरण (इवेपोरेटर) नामक तकनीक विकसित की है।
संस्थान ने बुधवार को बताया कि यह तकनीक पहले से उन्नत है और इसमें बड़े पैमाने पर अनुप्रयोगों की क्षमता है। इस वाष्पीकरणकर्ता को सौर ऊर्जा और बिजली (जिसे जूल हीटिंग के रूप में जाना जाता है) दोनों से गर्म किया जा सकता है।
मीठे पानी की कमी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। पृथ्वी की सतह पर पानी प्रचुर मात्रा में है। इसका केवल लगभग 3 प्रतिशत ही मीठा पानी है और उसमें से भी 0.05 प्रतिशत से कम आसानी से सुलभ है। समुद्री जल व खारे पानी से नमक (विलवणीकरण) को हटाना इस समस्या को दूर करने के समाधान के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि, अलवणीकरण से निकलने वाला नमकीन पानी (सांद्रित नमक का घोल) भूमि से घिरे स्थानों में एक बड़ी समस्या है और उद्योग शून्य तरल निर्वहन की तलाश कर रहे हैं।
प्रो. स्वतंत्र प्रताप सिंह ने बताया कि सौर विकिरण में उतार-चढ़ाव वाष्पीकरणकर्ता की सतह पर तापमान में बदलाव का कारण बनता है। बादल वाले दिनों में सौर ऊर्जा की कमी के कारण इंटरफेसियल सिस्टम का प्रदर्शन रुक जाता है। इसके अतिरिक्त, दिन के दौरान सौर विकिरण में बदलाव वाष्पीकरण प्रक्रिया को प्रभावित करता है। वाष्पीकरण दर आम तौर पर दोपहर 2 बजे के आसपास चरम पर होती है जब सौर तीव्रता सबसे अधिक होती है।
जब सूर्य की रोशनी कम या नहीं होती है तो वाष्पीकरणकर्ता को गर्म करने और समान तापमान बनाए रखने के लिए बिजली का उपयोग किया जा सकता है। डीएसएलआईजी में एक सुपरहाइड्रोफोबिक गुण है, जिसका अर्थ है कि यह कमल के पत्तों की तरह पानी को पीछे हटाता है। डीएसएलआईजी कम कार्बन उत्सर्जन, कम विषाक्तता और लागत प्रभावशीलता के साथ आता है। इससे यह बड़े पैमाने पर टिकाऊ विलवणीकरण अनुप्रयोगों और औद्योगिक अपशिष्ट जल के उपचार के लिए एक उन्नत तकनीक बन जाती है।
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