संध्या नवोदिता को शीला सिद्धान्तकर कविता सम्मान
इस मौके पर शिवमंगल सिद्धान्तकर ने कहा कि साहित्य का दायित्व है कि वह अपने समय की समस्याओं से मुठभेड़ करे और व्यापक जन समुदाय को जागृत करे…

नई दिल्ली। नई दिल्ली स्थित साहित्य अकादमी सभागार में चर्चित कवि संध्या नवोदिता को 18वें शीला सिद्धान्तकर स्मृति कविता सम्मान से नवाजा गया। संध्या को प्रतीक चिह्न और इक्कीस हजार रुपये का चेक देकर सम्मानित किया गया। प्रो.नित्यानंद तिवारी की अध्यक्षता में शिवमंगल सिद्धान्तकर, ज्योतिष जोशी और ज्ञानचंद बागड़ी ने इस सम्मान का निर्णय लिया था।
समकालीन हिंदी कविता को विस्तार देती हैं संध्या की कविताएं
समिति के सचिव ज्योतिष जोशी ने अनुशंसा पढ़ते हुए कहा कि कवि संध्या नवोदिता की कविताएं समकालीन हिंदी कविता को विस्तार देती हैं। उनकी कविताओं में मानवीय चिंताएं, अकारथ होते जा रहे संबंध और मानवीय संघर्ष तथा स्वप्न को जिस तरह विन्यस्त किया गया है उससे हम सहज ही कविता के आयतन के विस्तार को देख सकते हैं उनका पहला कविता संग्रह 'सुनो जोगी तथा अन्य कविताएं'अपनी उपर्युक्त विशिष्टताओं के साथ-साथ कविता में अनुभूति और करुणा, प्रेम और स्मृति, सहजता और आत्मीयता तथा कथ्य और शिल्प की कुशलता के कारण भी आकर्षित करता है।
अपने समय की यातना और संक्रमण में जीते हुए कवि का यह कहना कितना समीचीन और अर्थपूर्ण है-
'एक जंगल -सा उग आया है, मेरे भीतर इनदिनों
कोई जल्दी नहीं, बेख़बर है यह दुनिया, समय की हलचलों से
या भारत को आँख भर देखना हो
'आँख भर देखती हूं अपना देश और भारत एक आंसू बन जाता है '
या सर्वत्र व्याप्त हिंसा,अनाचार और असमानता के विरुद्ध यह कहना
'मैं एक सुनहरी सुबह की तलाश में, एक सन्दली शाम को खोजते, चली जा रही हूं
जाने किस बहिश्त की आस में, मैं कहती हूं और रोती हूं और फिर फिर दुःख ही बोती हूं'
वृत्तचित्र दिखाया गया
समारोह की शुरुआत में स्वर्गीय शीला सिद्धान्तकर पर बने वृत्तचित्र को दिखाया गया जिसमें उनके जीवन और सृजन यात्रा के विभिन्न पड़ावों से परिचय हुआ। इस मौके पर शिवमंगल सिद्धान्तकर ने लेखकों से सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध लेखन की बात उठाई। उन्होंने कहा कि साहित्य का दायित्व है कि वह अपने समय की समस्याओं से मुठभेड़ करे और व्यापक जन समुदाय को जागृत करे। उसके बाद कवि संध्या नवोदिता को समर्पित की गई सम्मान समिति की अनुशंसा पढ़ी गई।
रचनाओं को जिम्मेवारी के साथ निभाने की कोशिश
संध्या ने अपने वक्तव्य में शीला सिद्धान्तकर की कविताओं और जीवन संघर्षों को याद किया और उनके व्यक्तित्व की विशिष्टताओं को रेखांकित किया। उन्होंने कविता को जीवन मर्म की संज्ञा दी और कहा कि वे अपनी रचनाओं को जिम्मेवारी के साथ निभाने की चेष्टा करती हैं। इस अवसर पर उन्होंने कश्मीर पर लिखी 'भारत के आंसू' शीर्षक कविता का पाठ किया जो हाल की दुःखद घटना से जुड़ती है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कुछ अन्य चर्चित कविताओं का पाठ भी किया। कार्यक्रम में आलोचक आशुतोष कुमार ने उनके कविता संग्रह 'सुनो जोगी तथा अन्य कविताएं ' पर विस्तार से बात की और कविता की अनुभूति की तरलता और उसमें विन्यस्त विचारों की सराहना की।
मुख्य अतिथि इतिहासकार उमा चक्रवर्ती ने कविता और इतिहास पर बात करते हुए दोनों की प्रासंगिकता के सूत्रों का विश्लेषण किया और स्वतंत्रता के पूर्व और बाद की स्थितियों को क्रमशः आशा और निराशा कहकर कविता के साथ व्यवस्था और नागरिकों की बड़ी जिम्मेदारी की बात की। उन्होंने भी संध्या नवोदिता को इस सम्मान के लिए बधाई दी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नारायण कुमार ने शीला सिद्धान्तकर के जीवट और सृजन पर बात की और कविताओं की चर्चा के क्रम में सम्मानित कवि की रचनाधर्मिता की सराहना भी की। इस अवसर पर ' देशज समकालीन ' पत्रिका का लोकार्पण भी हुआ जिसके बाद संपादक आशुतोष राय सहित कुछ अन्य कवियों ने अपनी कविताएं सुनाईं। कार्यक्रम का संचालन सम्मान समिति के सचिव ज्योतिष जोशी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन व्यवस्थापक ज्ञानचन्द बागड़ी ने किया। श्रोताओं की बड़ी उपस्थिति ने यह सिद्ध किया कि शीला सिद्धान्तकर के नाम पर दिया जानेवाला यह सम्मान कितना प्रासंगिक और प्रतिष्ठित है।
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