Delhi HC said encroachers cannot claim right to continue occupying public land सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण करने वालों के लिए पुनर्वास की मांग करना संवैधानिक अधिकार नहीं : HC, Ncr Hindi News - Hindustan
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सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण करने वालों के लिए पुनर्वास की मांग करना संवैधानिक अधिकार नहीं : HC

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण करने वालों के लिए पुनर्वास की मांग करना संवैधानिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पुनर्वास के लिए पात्रता का निर्धारण सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाने से अलग प्रक्रिया है।

Sun, 8 June 2025 03:55 PMSubodh Kumar Mishra पीटीआई, नई दिल्ली
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सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण करने वालों के लिए पुनर्वास की मांग करना संवैधानिक अधिकार नहीं : HC

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण करने वालों के लिए पुनर्वास की मांग करना संवैधानिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पुनर्वास के लिए पात्रता का निर्धारण सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाने से अलग प्रक्रिया है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि अतिक्रमणकारी तब तक सार्वजनिक भूमि पर कब्जा जारी रखने का दावा नहीं कर सकते, जब तक कि उनके पुनर्वास के दावों का समाधान नहीं हो जाता। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी डीडीए को दक्षिण दिल्ली के कालकाजी में भूमिहीन कैंप में कानून के अनुसार तोड़फोड़ की कार्रवाई करने की इजाजत देते हुए की।

जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा कि रिट याचिकाएं न केवल कई पक्षों के गलत तरीके से जुड़े होने के कारण त्रुटिपूर्ण थीं, बल्कि पुनर्वास और पुनर्वास के लिए पात्र माने जाने के लिए दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति द्वारा प्रदान की गई आवश्यक सीमा को भी पूरा करने में विफल रहीं।

हाई कोर्ट कोर्ट ने 6 जून को पारित अपने आदेश में कहा कि किसी भी याचिकाकर्ता को जे.जे. क्लस्टर पर लगातार कब्जा बनाए रखने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, जिससे आम जनता को नुकसान हो। कोर्ट ने लगभग 1200 लोगों से जुड़ी याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।

इन याचिकाओं में डीडीए को आगे किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ गतिविधि को रोकने, यथास्थिति बनाए रखने और याचिकाकर्ताओं को उनके संबंधित 'झुग्गी झोपड़ी' से बेदखल नहीं करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने डीयूएसआईबी को प्रभावित निवासियों का उचित और व्यापक सर्वेक्षण करने और 2015 की नीति के अनुसार उनका पुनर्वास करने का निर्देश देने की भी मांग की।

हाई कोर्ट ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ताओं को पुनर्वास की मांग करने का कोई निहित अधिकार नहीं है। यह उनके जैसे अतिक्रमणकारियों के लिए पूर्ण संवैधानिक अधिकार नहीं है। पुनर्वास का अधिकार पूरी तरह से उस प्रचलित नीति से उत्पन्न होता है जो उन्हें बांधती है। पुनर्वास के लिए पात्रता का निर्धारण सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाने से अलग प्रक्रिया है।

कोर्ट ने कहा कि अतिक्रमणकारी लागू नीति के तहत अपने पुनर्वास दावों के समाधान तक सार्वजनिक भूमि पर कब्जा जारी रखने का अधिकार नहीं मांग सकते। इससे सार्वजनिक परियोजनाओं में अनुचित रूप से बाधा उत्पन्न होगी। हालांकि, कोर्ट ने उनमें से कुछ के पुनर्वास की अनुमति दी और डीडीए को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के फ्लैट आवंटित करने का निर्देश दिया। भूमिहीन कैंप में लगभग तीन दशक से उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के प्रवासी रहते हैं।