अब हम क्या करेंगे; भगदड़ में 11 साल की बेटी खोने वाले पिता ने पुलिस की देरी पर उठाए सवाल, 30-45 मिनट बाद पहुंची मदद
ब्लॉक सीढ़ियां, एस्केलेटर और प्लेटफॉर्म के पास बेतहाशा भीड़, सांस लेने के लिए हांफते यात्री, एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते लोग, यह खौफनाक मंजर शनिवार रात को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर देखने को मिला। स्टेशन पर मची भगदड़ में कम से कम 18 यात्रियों की मौत हो गई।
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ब्लॉक सीढ़ियां, एस्केलेटर और प्लेटफॉर्म के पास बेतहाशा भीड़, सांस लेने के लिए हांफते यात्री, एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते लोग, यह खौफनाक मंजर शनिवार रात को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर देखने को मिला। स्टेशन पर मची भगदड़ में कम से कम 18 यात्रियों की मौत हो गई, जो प्रयागराज के महाकुंभ जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए आए थे। हादसे में 12 लोग घायल भी हो गए हैं। भगदड़ के कारण हजारों लोग नई दिल्ली स्टेशन पर फंस गए, जबकि उनके पास लगभग 30-45 मिनट बाद मदद पहुंची। तब तक, असहाय लोगों ने अपने रिश्तेदारों को फोन किया, पीड़ितों को होश में लाने और रेलवे/पुलिस अधिकारियों को मदद के लिए बुलाने की कोशिश की। ज्यादातर पीड़ित महिलाएं थीं, जो या तो दोस्तों या परिवार के साथ थीं। वे गंभीर चोट लगने या दम घुटने के कारण मर गईं।
यात्रियों ने बढ़ती भीड़ को बताया जिम्मेदार
यात्रियों ने आरोप लगाया कि शाम 6-7 बजे के बाद भीड़ बढ़ती गई और स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस और भुवनेश्वर राजधानी जैसी ट्रेनें देरी से चलने लगीं, जिससे और ज्यादा परेशानी हुई, क्योंकि भीड़ 'बेकाबू' हो गई। टिकरी बॉर्डर पर फैक्ट्री में काम करने वाले मनोज शाह को दोपहर करीब 12.45 बजे लोक नायक अस्पताल ले जाया गया। भगदड़ में उनकी 11 साल की बेटी सुरुचि शाह और उनके ससुराल पक्ष से विजय शाह और कृष्णा शाह की मौत हो गई।
मैंने अपनी बच्ची को खो दिया
मनोज शाह ने कहा, 'मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैंने अपनी बच्ची खो दी है। मेरी पत्नी टूट चुकी है और अंदर है। वे (अस्पताल प्रशासन) मुझे अंदर जाने भी नहीं दे रहे हैं। जब मेरे साले ने फोन किया तब तक देर हो चुकी थी। वह मेरे ससुराल वालों और सुरुचि के साथ महाकुंभ जा रहे थे। उसने मुझे फोन करके बताया कि 'भगदड़ हो रही है भैया। सब अलग हो गए। प्लीज बचाओ।' मैं लगभग फर्श पर गिर गया। मैंने उसे फिर से फोन किया और उसने मुझे बताया कि लोग एक-दूसरे को कुचल रहे थे। मैंने उससे कहा कि पहले मेरी बेटी को ढूंढो।'
अब हम क्या करेंगे
परिवार को एक-दूसरे को ढूंढने में लगभग एक घंटा लगा। शाह ने आरोप लगाया कि अधिकारी बहुत देर से पहुंचे। वे पीड़ितों को लोक नायक और अन्य अस्पताल ले गए। उन्होंने कहा, 'मैं बस अपने साले को फोन करता रहा और किसी तरह उसतक पहुंचा। सुरुचि मेरी इकलौती बेटी थी। अब हम क्या करेंगे? मेरी पत्नी ने अपने माता-पिता को खो दिया। वे सभी सिर्फ महाकुंभ जाना चाहते थे। उनका क्या दोष था? पुलिस इतनी देर से क्यों आई? मेरी बेटी बच सकती थी, लेकिन उसे कई लोगों ने कुचल दिया, वह 5वीं क्लास में पढ़ती थी। मैं अभी बात नहीं कर सकता।'
दिल्ली की रहने वाली 30 वर्षीय नर्स संगीता मलिक भी अपनी सहेलियों (दूसरी नर्सों) के साथ महाकुंभ जाने वाली थी। हाल ही में उनकी नौकरी चली गई थी, लेकिन उनके परिवार ने कहा कि वह आध्यात्मिक हैं उन्हें जाना चाहिए। मलिक सोनीपत में अपने पति के घर से रोहिणी में अपनी मौसी के घर आई थीं। उनकी मौसी कविता सहगल की आंखों में आंसू थे, जब उन्होंने पीड़ितों से मिलने के लिए एक-दूसरे को धक्का देते परिवारों को देखा। वह अपने बेटे के पीछे खड़ी थीं और अस्पताल के अधिकारियों से मलिक को लेकर पूछ रही थीं।
यकीन नहीं हो रहा वो अब नहीं है
सहगल ने कहा, 'वह आज मेरे घर आई थी। मैं उससे बहुत प्यार करती हूं और हमेशा उससे बात करना पसंद करता थी। लेकिन उसने मुझसे कहा कि उसे ट्रेन पकड़ने के लिए जल्दी निकलना है। उसने मुझे टिफिन देने और उसकी पसंदीदा साग सब्जी बनाने के लिए कहा। मैंने उसके लिए साग बनाया और वह चली गई। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा कि वह अब नहीं है। मुझे लगता है कि उसकी सहेलियां भी मर गई हैं। वे सभी प्यारी लड़कियां थीं जो कुंभ जाना चाहती थीं। उसने हाल ही में टिकट लिया था। ऐसा कैसे हो सकता है? पुलिस ने हमें सूचित भी नहीं किया। हमें एक अनजान आदमी का फोन आया जिसने शव देखने के बाद उसका फोन उठाया और मुझे फोन किया।'