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क्या है पाकिस्तान में बने कटासराज मंदिर का इतिहास, भगवान शिव से क्या नाता; रवाना हुए 154 तीर्थयात्री

  • पाकिस्तान में स्थित कटासराज मंदिर का इतिहास बेहद पुराना है। पौराणिक मान्यता है कि सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव ने यहीं अपने आंसू बहाए थे। इसके अलावा पांडवों ने यहां वनवास का समय काटा था।

Ankit Ojha लाइव हिन्दुस्तानMon, 24 Feb 2025 11:14 AM
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क्या है पाकिस्तान में बने कटासराज मंदिर का इतिहास, भगवान शिव से क्या नाता; रवाना हुए 154 तीर्थयात्री

महाशिवरात्रि से पहले अमृतसर से 154 हिंदुओं का जत्था पाकिस्तान स्थित प्रसिद्ध कटासराज महादेव के मंदिर के लिए रवाना हो चुका है। पाकिस्तान उच्चायोग ने शुक्रवार को बताया था कि उसने अपने देश के पंजाब प्रांत स्थित श्री कटासराज मंदिर में दर्शन करने के लिए भारत के 154 तीर्थयात्रियों को वीजा जारी किए हैं। श्रद्धालु 24 फरवरी से दो मार्च तक मंदिर में दर्शन करेंगे।’

वैसे तो पाकिस्तान में कई हिंदू मंदिर हैं लेकिन कटासराज की कई पौराणिक मान्यताएं भी हैं। यह मंदिर पाकिस्तान के चकवाल गांव से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर कटस में है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है। इसके अलावा मंदिर के बगल ही पवित्र कुंड है जिसमें लोग स्नान करते हैं। हर साल हजारों यात्री यहां महादेव के दर्शन करने पहुंचते हैं। दिसंबर में भी भारतीय हिंदुओं का जत्था कटासराज गया था।

क्या है पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब दक्ष पुत्री और शिव पत्नी सती ने यज्ञ में आत्मदाह कर लिया तो भगवान शंकर अथाह शोक के सागर में डूब गए। उस समय उन्हें खुद की भी सुध नहीं रही। इसके बाद भगवान इसी स्थान पर पहुंचे और उन्होंने सती की याद में आसूं बहाए। कहा जता है कि उन आंसुओं से ही यहां दो कुंडों का निर्माण हो गया। एक का नाम कटाक्ष कुंड है जो कि यहीं स्थित है। इसके अलावा मान्यता है कि दूसरा कुंड राजस्थान के पुस्कर में स्थित है। कटासराज शब्द की उत्पति के पीछे भी कहानी है। दक्ष ने अपनी पुत्री सति और भगवान शिव पर कटाक्ष किए थे। इसी वजह से जगह का नाम कटास पड़ा। यहां बने हुए दोनों ही मंदिर की शिल्प कला बेहद पुरानी है। कहा जाता है कि पांडवों ने यहां सात मंदिरों का निर्माण करवाया था।

महाभारत काल से भी जुड़ी है कहानी

कटासराज मंदिर का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि पहली बार द्यूत में हारने के बाद पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास स्वीकार किया था। इस दौरान उन्होंने चार साल का वक्त यहां भी काटा। यह मंदिर निमकोट पर्वत श्रृंखला पर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण की प्रेरणा से ही यहां मंदिर का निर्माण हुआ था। इसके अलावा यही वह जगह है जहां यक्ष ने पांचों पांडवों और युधिष्ठिर से प्रश्न किए थे। चारों भाई जवाब नहीं दे सके तो उनकी मृत्यु हो गई। वहीं जब युधिष्ठिर ने सही उत्तर दिए तो यक्ष ने सभी भाइयों को जीवित कर दिया ।

विभाजन से पहले पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और तक्षशिला के अलावा अफगान क्षेत्र में रहने वाले लोग भी यहां दर्शन करने आते थे। बहुत सारे लोग पितरों का श्राद्ध और तर्पण भी इस कुंड में किया करते थे। वहीं इस मंदिर के आसपास सेंधा नमक की खदानें भी हैं। लोग व्रत के दौरान इस नमक का सेवन करते हैं। भारत में इसे आयात किया जाता है।

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