Hindi Newsदेश न्यूज़now bjp up president could from dalit community 3 names in race

UP में कोई दलित नेता बनेगा भाजपा अध्यक्ष! चर्चा में तीन नाम, अखिलेश यादव के PDA की होगी काट

  • जिलाध्यक्षों की लिस्ट में सिर्फ 6 नेता ही दलित समुदायों से हैं। ऐसे में अध्यक्ष इस समाज से बनाकर पार्टी बैलेंस बना सकती है। भाजपा नेतृत्व यूं भी अपने फैसलों से चौंकाता रहा है। ऐसे में इस बार दलित समाज के किसी तेजतर्रार लीडर को मौका मिल सकता है।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 26 March 2025 01:47 PM
share Share
Follow Us on
UP में कोई दलित नेता बनेगा भाजपा अध्यक्ष! चर्चा में तीन नाम, अखिलेश यादव के PDA की होगी काट

क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा का अध्यक्ष इस बार कोई दलित नेता बनेगा? भाजपा के निर्णय आमतौर पर पहले से खबरों में नहीं आते। अकसर पार्टी अचानक ही फैसला लेती है और शीर्ष नेतृत्व के फैसले को नेताओं से लेकर काडर तक मंजूर किया जाता है। लेकिन यूपी में भाजपा अध्यक्ष को लेकर यही कयास है कि किसी दलित लीडर को कमान मिल सकती है। इसकी वजह है कि भाजपा को अखिलेश यादव लगातार पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक यानी PDA के नाम पर घेर रहे हैं। ऐसे में भाजपा चाहती है कि किसी दलित लीडर को अध्यक्ष का पद देकर ऐसे नैरेटिव की काट की जाए। इसके लिए पार्टी ऐसे दलित नेता को मौका देना चाहती है, जो आरएसएस और भाजपा का पुराना कार्यकर्ता हो और वैचारिक दृढ़ता रखता हो।

ऐसे चेहरों के तौर पर फिलहाल तीन नेताओं के नाम चर्चा में हैं। कहा जा रहा है कि यदि पार्टी ने दलित कार्ड चला तो इनमें से ही किसी को मौका मिल सकता है। ये तीन नेता हैं- विद्या सागर सोनकर, रामशंकर कठेरिया और राम सकल। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कभी किसी दलित लीडर को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया था। ऐसे में इस बार यदि वह मौका देती है तो एक तरफ बसपा समर्थकों को लुभाने में सफलता पाएगी, जो लंबे समय से कमजोर चल रही है और उसके वोटबैंक पर सपा की भी नजर है। इसके अलावा अखिलेश यादव के पीडीए वाले नैरेटिव का भी मुकाबला किया जा सकेगा, जिसका नारा वह 2022 के चुनाव से ही देते आ रहे हैं।

भाजपा ने पिछले दिनों राज्य में 70 नए जिला और महानगर अध्यक्षों का ऐलान किया था। इनमें से 39 नेता सवर्ण जातियों के थे। इसे लेकर सपा औऱ बसपा ने उस पर हमला बोला था। अखिलेश यादव ने कहा था कि आखिर पिछड़ों और दलितों को मौका क्यों नहीं दिया गया। जिलाध्यक्षों की लिस्ट में सिर्फ 6 नेता ही दलित समुदायों से हैं। ऐसे में अध्यक्ष इस समाज से बनाकर पार्टी बैलेंस बना सकती है। भाजपा नेतृत्व यूं भी अपने फैसलों से चौंकाता रहा है। ऐसे में इस बार दलित समाज के किसी तेजतर्रार लीडर को मौका मिल सकता है। फिलहाल जाट समुदाय से आने वाले भूपेंद्र चौधरी प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनसे पहले महेंद्रनाथ पांडेय, केशव प्रसाद मौर्य और स्वतंत्र देव सिंहऔर लक्ष्मीकांत वाजपेयी अध्यक्ष रह चुके हैं।

इस नेता का नाम रेस में माना जा रहा सबसे आगे

इस तरह सवर्ण से लेकर पिछड़ा वर्ग तक के कई नेता प्रदेश अध्यक्ष लगातार बन चुके हैं। अब दलित समाज के किसी नेता को पार्टी मौका दे सकती है। भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी वर्ग को अपने साथ लाने में सफलता भी पाई है, लेकिन अब इस सीमा को बढ़ाने के लिए दलित वर्ग को लुभाने वाला फैसला हो सकता है। रामशंकर कठेरिया का नाम सबसे आगे माना जा रहा है और वह पार्टी की विचारधारा को अच्छे से समझने वाले नेता भी माने जाते हैं। पार्टी नेताओं ने इस बारे में पूछे जाने पर खुलकर कोई जवाब नहीं दिया। बस इतना कहा कि भाजपा तो सभी को मौका देती है। अब देखिए इस बार किसे अध्यक्ष पद दिया जाता है, लेकिन फैसला चौंकाने वाला जरूर होगा।

अगला लेखऐप पर पढ़ें