अपने ही बच्चे को अगवा नहीं कर सकती है मां; हाईकोर्ट ने मां को सौंपी बेटे की कस्टडी
मां ने यह भी तर्क दिया कि चूंकि गुरुग्राम की पारिवारिक अदालत में अभिभावक से जुड़ा मामला विचाराधीन है, इसलिए वह अब भी बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक हैं और उन्हें कस्टडी का अधिकार है।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि कोई माता-पिता अपने ही बच्चे को अगवा नहीं कर सकते, जब तक कि कोई सक्षम अदालत उन्हें अभिभावक के अधिकार से वंचित न कर दे। यह फैसला न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बराड़ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया। गुरुग्राम के रहना वाले राजा रेखी ने याचिका दायर की थी। वह बच्चे के चाचा है। उन्होंने 12 वर्षीय बच्चे की उसकी ऑस्ट्रेलिया निवासी मां की कस्टडी से रिहाई की मांग कर रहे थे।
राजा रेखी का आरोप था कि जब बच्चे के पिता अमित रेखी बेल्जियम दौरे पर थे, तब मां ने उनके ऑफिस में जबरन घुसकर बच्चे का पासपोर्ट लिया और उसे अपने साथ ले गई। उन्होंने यह भी दावा किया कि महिला ने पुलिस को झूठ कहा कि वह कुछ समय के लिए बेटे को दिल्ली स्थित अपने माता-पिता से मिलाने ले जा रही है। दिल्ली में उनकी मां रहती ही नहीं।
बच्चे की मां ने अदालत में कहा कि वह बेटे के अनुरोध पर भारत आई, क्योंकि उसे घर पर नौकरों के भरोसे छोड़ दिया गया था। उन्होंने कॉल लॉग्स और संदेशों को अदालत में पेश किया जो इस बात को दर्शाते हैं कि बेटा उनसे संपर्क में था और चाहता था कि वह उसके पास आएं।
मां ने यह भी तर्क दिया कि चूंकि गुरुग्राम की पारिवारिक अदालत में अभिभावक से जुड़ा मामला विचाराधीन है, इसलिए वह अब भी बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक हैं और उन्हें कस्टडी का अधिकार है।
अदालत ने मां को बताया लीगल अभिभावक
अदालत ने स्पष्ट किया कि, "किसी भी कृत्य को अपहरण तभी माना जा सकता है जब वह किसी वैधानिक अभिभावक से बच्चे को छीनने का मामला हो। एक मां जब तक अदालत से उसका अधिकार छीना न गया हो लीगल अभिभावक होती है।"
अदालत ने यह भी माना कि बच्चा 12 वर्ष का है और अपनी इच्छाओं को तर्कसंगत रूप से व्यक्त करने में सक्षम है। ऐसे में उसकी भलाई और इच्छा को प्राथमिकता देना न्यायोचित होगा। कोर्ट ने अंततः बच्चे को उसकी मां की कस्टडी में सौंप दिया।