कुछ काम संसद पर तो छोड़ दें... घरेलू और दहेज हिंसा कानून में सुधार की मांग वाली PIL कर्ता पर भड़के जज
अतुल सुभाष नामक एक व्यक्ति की खुदकुशी के मद्देनजर यह जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसने कथित तौर पर अपनी पत्नी और उसके घरवालों के उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर ली थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (27 जनवरी) को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से जुड़े कानून के दुरुपयोग से बचाव के लिए उसमें कानूनी सुधार की मांग की गई थी। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की पीठ ने याचिका कर्ता से कहा कि यह मामला अदालतों के अधिकार क्षेत्र में नहीं बल्कि विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए अर्जी को खारिज किया जाता है।
इस अर्जी में यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी कि पति और उसके परिवार के सदस्यों को घरेलू हिंसा और दहेज कानूनों के झूठे मामलों में परेशान न किया जाए लेकिन कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि ऐसी जनहित याचिका के माध्यम से आवेदक वकील विशाल तिवारी प्रसिद्धि पाने की कोशिश कर रहे हैं। कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब तिवारी ने अपना पक्ष रखने देने की मांग करते हुए याचिका वापस लेने की बात कही।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, व्यक्तिगत रूप से पेश हुए विशाल तिवारी ने पीठ के समक्ष दोहराया कि वे दहेज विरोधी कानून और घरेलू क्रूरता के फैसलों की समीक्षा की मांग कर रहे हैं। हालांकि, पीठ ने इस पर विचार न करते हुए उनसे कहा कि या तो वे अपना पक्ष वापस ले लें या फिर न्यायालय इसे खारिज कर देगा। जब तिवारी ने कहा कि उचित मंच पर अपना पक्ष रखने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, तो जस्टिस शर्मा ने उन्हें ऐसा न करने की चेतावनी दी।
जस्टिस शर्मा ने कहा, "संसद की सर्वोच्चता है। वे ही कानून बनाते हैं...फिर, आप अवमानना की दूसरी याचिका लेकर आएंगे कि वे आपके पक्ष पर निर्णय नहीं ले रहे हैं। आपका नाम अखबार और मीडिया में आता रहेगा। हम कानून नहीं बना सकते। संसद को कानून बनाना है, उसे ही बनाने दीजिए।"
बता दें कि अतुल सुभाष नामक एक व्यक्ति की खुदकुशी के मद्देनजर यह जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसने कथित तौर पर अपनी पत्नी और उसके घरवालों के उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर ली थी। यह याचिका विशाल तिवारी नामक एक वकील ने दायर की थी, जिसमें प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड राज्य (2010) और अचिन गुप्ता बनाम हरियाणा राज्य (2024) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को लागू करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई थी।