भारत के पास भी हैं रूस की अत्याधुनिक S-400 मिसाइलें, अब पड़ोसी देश को भी मिलीं; क्या अंतर?
रूस ने कथित तौर पर चीन को S-400 का एक 'सामान्य वर्जन' प्रदान किया है, जिसमें कई एडवांस तकनीकी सुविधाएं जानबूझकर बंद कर दी गई हैं। जानिए फीचर्स।

रूस की S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली को दुनिया की सबसे एडवांस वायु रक्षा प्रणालियों में से एक माना जाता है। भारत के बाद अब चीन भी इस प्रणाली को हासिल कर चुकी है। लेकिन यहां एक दिलचस्प बात सामने आई है। दरअसल रूस ने चीन को जो S-400 मिसाइलें सप्लाई की हैं उनमें कुछ 'चौंकाने' वाले पहलू शामिल किए जाने की खबर है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने चीन को दी गई इन प्रणालियों में जानबूझकर कुछ एडवांस सुविधाओं को सीमित या अक्षम कर दिया है, जिससे बीजिंग कथित तौर पर हैरान और निराश है।
रूस-चीन सैन्य सहयोग में नया मोड़
2014 में, चीन ने रूस के साथ कई अरब डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था, जिसके तहत उसे S-400 'ट्रायम्फ' मिसाइल की कई यूनिट प्राप्त होनी थीं। यह सौदा रूस-चीन सैन्य सहयोग का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना गया था और इसे चीन की वायु रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया। हालांकि, चीनी विश्लेषकों ने हाल ही में देखा कि ये मिसाइलें चीनी सेना के सार्वजनिक प्रदर्शनों या रिपोर्टों में शायद ही नजर आती हैं। चीनी समाचार पोर्टल 'सोहू' के अनुसार, रूस ने चीन को S-400 का एक 'सामान्य वर्जन' प्रदान किया है, जिसमें कई एडवांस तकनीकी सुविधाएं जानबूझकर बंद कर दी गई हैं। यह कदम रूस द्वारा अपनी तकनीकी गोपनीयता की रक्षा करने और विदेशी सेनाओं को अपनी सैन्य क्षमताओं से प्रतिस्पर्धा करने से रोकने के लिए उठाया गया माना जा रहा है।
रूस ने क्यों किया ऐसा?
रूसी रक्षा सूत्रों की मानें, तो सभी एक्सपोर्ट की जाने वाली हथियार प्रणालियों को 'E' इंडेक्स के साथ चिह्नित किया जाता है और इनमें सीमित क्षमताएं होती हैं। उन देशों के लिए जो रूस के संभावित प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं, उनको दिए जाने वाले हथियारों की क्षमताएं भिन्न हो सकती हैं। उदाहरण के लिए भारत रूस का प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि विश्वसनीय साझेदार है। इस लिहाज से भारत को मिलने वाले हथियार चीन को मिलने वाले हथियारों से बेहतर हो सकते हैं। यह खुलासा इस बात की ओर इशारा करता है कि रूस ने जानबूझकर चीन को कम शक्तिशाली वर्जन प्रदान किया, ताकि वह इस तकनीक का दुरुपयोग या रिवर्स इंजीनियरिंग न कर सके।
चीनी सैन्य विशेषज्ञों ने इस खुलासे पर आश्चर्य और निराशा व्यक्त की है। बीजिंग ने इन प्रणालियों को अपनी राष्ट्रीय वायु रक्षा प्रणाली का मुख्य आधार बनाने की योजना बनाई थी। चीनी पत्रकारों का कहना है कि रूस का यह कदम न केवल तकनीकी रहस्यों की रक्षा के लिए है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि चीनी सेना रूसी सेना के साथ प्रतिस्पर्धा न कर सके। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि रूस का यह निर्णय दोनों देशों के बीच बढ़ते अविश्वास को दर्शाता है, खासकर तब जब चीन ने अतीत में रूसी हथियारों की नकल करने की कोशिश की है।
आखिर क्या है S-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम?
S-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम को नाटो ने SA-21 ग्रोलर नाम दिया है। यह रूस की अल्माज-एंटेय कंपनी द्वारा विकसित एक लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है। यह सिस्टम 2007 से रूसी सेना में तैनात है और विमान, क्रूज मिसाइलें, बैलिस्टिक मिसाइलें, ड्रोन, और स्टील्थ तकनीक से लैस लक्ष्यों को नष्ट करने में सक्षम है।
इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं:
रेंज: 40, 100, 200, और 400 किलोमीटर तक की चार प्रकार की मिसाइलें।
रडार क्षमता: 600 किलोमीटर तक 300 लक्ष्यों को ट्रैक करने की क्षमता।
मोबिलिटी: 8x8 ट्रकों पर तैनात, 5 मिनट में सक्रिय होने की क्षमता।
लक्ष्य: 36 लक्ष्यों पर एक साथ 72 मिसाइलें दागने की क्षमता।
S-400 की यह बहुमुखी प्रतिभा इसे वैश्विक सैन्य शक्तियों के लिए आकर्षक बनाती है।
भारत और S-400: सौदा और तैनाती
भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस के साथ $5.43 बिलियन (लगभग ₹35,000 करोड़) में पांच S-400 स्क्वाड्रन खरीदने का समझौता किया। यह सौदा भारत को तुर्की और चीन के बाद रूस से S-400 प्राप्त करने वाला तीसरा देश बनाता है।
अप्रैल 2023 तक, भारत को तीन स्क्वाड्रन मिल चुके हैं। पहला स्क्वाड्रन दिसंबर 2021 में और दूसरा अप्रैल 2022 में प्राप्त हुआ। चौथा स्क्वाड्रन 2025 के अंत तक और पांचवां 2026 तक मिलने की उम्मीद है।
भारत ने इन प्रणालियों को चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर तैनात किया है, विशेष रूप से लद्दाख और सिलिगुड़ी क्षेत्र में, जहां से चीन के साथ तनाव को कवर किया जा सकता है। एक स्क्वाड्रन पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान के खतरे को आसानी से एड्रेस कर सकता है।
भारत के लिए S-400 क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण है। यह पाकिस्तान की बैलिस्टिक मिसाइलों (जैसे शाहीन, गौरी) और चीन के J-20 स्टील्थ फाइटर जेट्स को निशाना बनाने में सक्षम है। यह भारत को अपनी हवाई सुरक्षा को मजबूत करने और न्यूक्लियर मिसाइलों को हवा में ही नष्ट करने की क्षमता देता है।
चीन और S-400: सौदा और तैनाती
चीन ने 2014 में रूस के साथ $3 बिलियन में छह S-400 स्क्वाड्रन खरीदने का समझौता किया, जिससे वह पहला विदेशी खरीदार बना। डिलीवरी 2018 में शुरू हुई और 2020 तक पूरी होने की बात कही गई थी।
ऐसा कहा जाता है कि चीन को सभी छह स्क्वाड्रन मिल चुके हैं। हाल ही में अप्रैल 2025 में रूस ने अतिरिक्त S-400 सिस्टम की आपूर्ति की खबरें सामने आई हैं, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई।
चीन ने इन प्रणालियों को ताइवान स्ट्रेट, दक्षिण चीन सागर, और भारत के साथ सीमा (विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख) के पास तैनात किया है। यह तैनाती अमेरिका, जापान, और भारत जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों को टारगेट करती है।
भारत vs चीन: S-400 की तुलना
भारत और चीन के बीच S-400 मिसाइल प्रणाली की तुलना उनके सौदों, तैनाती, और रणनीतिक उद्देश्यों में स्पष्ट अंतर दर्शाती है। भारत ने 2018 में $5.43 बिलियन में पांच स्क्वाड्रन का सौदा किया, जिसमें से तीन स्क्वाड्रन अप्रैल 2023 तक प्राप्त हो चुके हैं, और शेष दो 2025-26 तक मिलने की उम्मीद है। दूसरी ओर, चीन ने 2014 में $3 बिलियन में छह स्क्वाड्रन खरीदे, जो 2020 तक पूरे हो गए, और 2025 में अतिरिक्त आपूर्ति की खबरें हैं। भारत को मिलने वाले S-400 में संभवतः बेहतर मिसाइलें (जैसे 40N6E) शामिल हैं, जो अंतरराष्ट्रीय संधियों के कारण चीन के वर्जन से अधिक रेंज और सटीकता प्रदान कर सकती हैं। भारत ने अपनी प्रणालियों को लद्दाख, सिलिगुड़ी, और पश्चिमी सीमा पर तैनात किया है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान और चीन के हवाई और मिसाइल खतरों का रक्षात्मक मुकाबला करना है।
इसके विपरीत, चीन ने ताइवान स्ट्रेट, दक्षिण चीन सागर, और भारत सीमा पर तैनाती की है, जो अमेरिका, जापान, और भारत के खिलाफ आक्रामक क्षेत्रीय प्रभुत्व स्थापित करने पर केंद्रित है। जहां भारत को अमेरिकी CAATSA प्रतिबंधों से छूट मिलने की संभावना है, वहीं चीन पर 2018 में ये प्रतिबंध लागू हो चुके हैं, हालांकि उनका प्रभाव सीमित रहा। इस प्रकार, भारत की रणनीति रक्षात्मक और पड़ोसी खतरों पर केंद्रित है, जबकि चीन की तैनाती वैश्विक और क्षेत्रीय शक्ति प्रदर्शन की दिशा में है।
भारत की स्वदेशी पहल: प्रोजेक्ट कुश
S-400 पर निर्भरता कम करने के लिए, भारत प्रोजेक्ट कुश के तहत स्वदेशी लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (LRSAM) विकसित कर रहा है। यह प्रणाली 150, 250, और 350 किलोमीटर रेंज की मिसाइलों के साथ 2028-29 तक तैयार होने की उम्मीद है। यह S-400 के समकक्ष होगी और भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ाएगी।