बोले रांची : 20 घंटे तक की ड्यूटी, पर सुविधाएं बहाल नहीं
रांची रेलमंडल में 750 लोको पायलट 12 से 20 घंटे तक ड्यूटी कर रहे हैं, लेकिन उन्हें सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। साप्ताहिक आराम 14 घंटे है, जबकि उनकी मांगें अनसुनी हैं। सुरक्षा के लिए ड्यूटी घंटे घटाने की...
रांची, वरीय संवाददाता। एक अप्रैल 2003 में आद्रा मंडल से अलग होकर बने रांची रेलमंडल में 750 लोको पायलट-ट्रेन ड्राइवर अपनी ड्यूटी बखूबी निभा रहे हैं। हर दिन 50-50 कोचिंग रेलगाड़ी और 100 से 150 मालगाड़ियों को चलाकर एक लाख लोगों की यात्रा और सालाना 3.65 मिलियन माल ढुलाई का लक्ष्य पूरा कर रहे हैं। 12 से 20 घंटे तक ड्यूटी कराने के बावजूद इन्हें सुविधा के नाम पर कुछ नहीं मिल रहा। साप्ताहिक वश्रिाम के लिए मात्र 14 घंटे दिए जा रहे हैं। लंबे समय से सुविधा बढ़ाने की मांग तक को नजरअंदाज किया जा रहा है। दक्षिण पूर्व रेलवे अंतर्गत आने वाले रांची रेलमंडल में 55 से ज्यादा रेलवे स्टेशन हैं। झारखंड के साथ-साथ पश्चिम बंगाल तक फैले इस डिविजन में हर दिन वंदेभारत, राजधानी, जनशताब्दी और शताब्दी एक्सप्रेस जैसी कई ट्रेनें 80 से 100 किलोमीटर प्रतिघंटा के रफ्तार से चलाई जाती हैं। इसके लिए 24 घंटे रोस्टर के अनुसार लोको पायलट और सहायक लोको पायलट रेलगाड़ियों को सुरक्षित और समय पर गंतव्य तक पहुंचाकर अपनी जम्मिेदारी को पूरा कर रहे हैं। लाखों यात्रियों की सुरक्षित यात्रा और करोड़ों की माल ढुलाई का जम्मिा इनके कंधों पर होता है।
सरपट दौड़ती रेलगाड़ी में जब यात्री नींद लेते हैं या अपनी यात्रा का आनंद लेते हैं, तो ये लोको पायलट बिना आंख झपकाएं ट्रेन के मार्ग पर नजर गड़ाकर बिना थके यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने पर फोकस किए रहते हैं। लेकिन इस तरह की व्यस्त ड्यूटी करके मंडल रेलवे के लोको पायलट शारीरिक-मानसिक रूप से थक जा रहे हैं। ऐसा इसलिए कि इन्हें जो सुविधा, संसाधन और ड्यूटी नर्धिारण का लाभ मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा। ऐसे हालात में वे भूख हड़ताल, विरोध-प्रदर्शन करने जैसी कदम उठा रहे हैं।
रेलवे में आमतौर पर कर्मचारियों के लिए एक वस्तिार में 8 घंटे की ड्यूटी नर्धिारित है, लेकिन लोको पायलट और सहायक लोको पायलट के मामले में एक वस्तिार में नर्धिारण ड्यटी 11 घंटे है। विभन्नि हाईपावर समितियों ने ट्रेन परिचालन में सुरक्षा सुनश्चिति करने के लिए ड्राइवरों के ड्यूटी घंटे कम करने की सिफारिश की है, परंतु रेल मंत्रालय ने ध्यान नहीं दिया। जबकि व्यवहारिक रूप से लोको पायलट खासकर मालगाड़ियों में लगातार 12 से 20 घंटे ड्यूटी करने को विवश हैं। जबकि लोको पायलट की ड्यूटी के घंटे घटाकर 8 घंटे करने की संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश पर भी ध्यान नहीं दिया गया। रेलवे सेवक, काम के घंटे और आराम की अवधि नियम 2005, लगातार 10 घंटे की अधिकतम ड्यूटी नर्धिारित करता है। इसका भी रेलवे पालन नहीं कर रहा।
ट्रेन संचालन में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ड्यूटी के घंटे और आराम की अवधि पर हाई पावर कमेटी 2016 ने लगातार रात की ड्यूटी को घटाकर दो रात करने की सिफारिश की थी। इस पर भी रेलवे ने ध्यान नहीं दिया। चालक दल की नींद के कारण कई दुर्घटनाएं होने के बावजूद, लोको पायलट के लिए रेलवे ने लगातार 4 रात्रि ड्यूटी नर्धिारित की है। सभी रेलवे कर्मचारियों को 16 घंटे दैनिक आराम के अलावा 30 घंटे के साप्ताहिक आराम की अनुमति है। सभी रेलवे कर्मचारियों को 40 घंटे से 64 घंटे के साप्ताहिक आराम की ही अनुमति दी जा रही है। वहीं, लोको पायलट का साप्ताहिक वश्रिाम घटाकर 14 घंटे कर दिया गया है। आज तक लोको पायलट को 16 घंटे के दैनिक आराम के अलावा 30 घंटे के साप्ताहिक आराम से वंचित रखा जा रहा है। इसके चलते पायलट की अत्याधिक थकान रेलगाड़ी के परिचालन में उनकी एकाग्रता पर प्रतिबिंबित हो रही है। इसके चलते विगत दिनों कई रेल दुर्घटनाएं घट चुकी हैं। लोको पायलट रेलवे अधिकारियों और उपेक्षाओं का दंश झेल रहे हैं। ऐसे में यात्रियों की सुरक्षा से तो खिलवाड़ हो रहा है, लोको पायलट के स्वास्थ्य सहित रेलवे के मानकों की भी खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। लोको पायलटों की सुविधा में इजाफा नहीं होने से अनद्रिा से रेल हादसे, कर्मचारियों की परिवारिक दूरियां बढ़ने और कई तरह की स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न हो रही हैं। हालांकि रेलवे मानक यह है कि लोको पायलट को 11 घंटे तक ही ड्यूटी कराई जा सकती है।
केंद्र के नियमों की खुलेआम अनदेखी
उप मुख्य श्रम आयुक्त केंद्रीय नियमों की व्याख्या के लिए सक्षम प्राधिकारी है। उन्होंने घोषणा की थी कि लोको पायलट्स को 16 घंटे के दैनिक आराम के अलावा 30 घंटे साप्ताहिक आराम की अनुमति दी जानी चाहिए। आयुक्त के इस फैसले को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी बरकार रखा है। लेकिन रेलवे ने इस आदेश पर अमल तक नहीं किया। ऐसे में पायलटों को कई तरह की परेशानी हो रही है।
कई-कई दिनों तक घर से रहते हैं दूर
सामान्य रेलवे कर्मचारी रोजाना अपने परिवार के पास पहुंच जाते हैं, लेकिन लोको पायलट ड्यूटी के बाद तीन से चार दिन में एक बार अपने घर पहुंचते हैं। पायलटों ने दौरे से कम से कम 36 घंटे पहले घर वापस लाने के लिए रेलवे बोर्ड से कई बार अनुरोध किया है, लेकिन इन मामलों पर सुनवाई तक नहीं हो रही है।
महिला रनिंग स्टॉफ को बुनियादी सुविधा नहीं
महिला रनिंग स्टॉफ को काम के दौरान बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलती हैं। इस कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। महिला रनिंग स्टॉफ ने ड्यूटी अवधि अनुकूल रखने की बात कही। साथ ही रुट सुरक्षित हो और शौचालय, रेस्ट रूम जैसी सुविधा व्यापक तौर पर होने की बात कही।
लोको पायलट के वाहनों पड़ाव तक मुकम्मल नहीं
ह्यएक आंख में शूरमा, एक में काजलह्ण जैसी कहावत को रांची रेलमंडल में चरितार्थ किया जा रहा है। ऐसा इसलिए कि एक ओर हजारों रेल कर्मचारियों के वाहनों को उनके कार्यस्थल पर सुरक्षित रखने की बेहतर सुविधा प्रदान की जा रही है। जिन वाहनों से वे प्रतिदिन अपने घर से कार्यालय तक आना-जाना करते हैं, लेकिन लोको पायलटों को इससे महरूम रखा जा रहा है।
अधिकतर लोको पायलटों का स्टार्टिंग प्वाइंट हटिया स्टेशन नर्धिारित है। जहां से वे ट्रेन लेकर रवाना होते हैं। हटिया स्टेशन के सामने खुले आसमान में उनके लिए अलग से वाहनों को रखने के लिए पार्किंग बनाई गई है। ऐसे में बरसात, गर्मी और सर्दी में उनके वाहन 16 से 20 घंटे या 4-4 दिनों तक खुले में खड़े रहते हैं। वाहन रखने का शेड तक नहीं बना हैं। इसके चलते पेड़ की डाल और धूल तक उनके वाहनों में गिरते रहते हैं। उनके वाहनों की सुरक्षा की भी जम्मिेवारी तय नहीं की गई है। इस वजह से आए दिन वाहनों को क्षतग्रिस्त करने और चोरी होने की घटनाएं होने की समस्या बनी रहती है। लोको पायलटों ने कहा की स्टेशन पर गाड़ी खड़ी करने के लिए मुकम्मल व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे वे बिना चिंता के अपने काम पर ध्यान दे सकें।
ड्राइवरों के 22 हजार पद खाली
रांची रेलमंडल में जिस हिसाब से सामान्य पैसेंजर ट्रेनों, एक्सप्रेस-मेल ट्रेनों, मालगाड़ी, शताब्दी, जनशताब्दी, वंदेभारत जैसी ट्रेनों में वस्तिार हो रहा है, उस हिसाब से लोको पायलटों की संख्या में कमी है। इसका सीधा असर लोको पायलटों की ड्यूटी अवधि पर पड़ रहा है। उन्हें अतिरक्ति समय तक अपनी सेवा देना मजबूरी हो जा रही है। यदि रेलवे मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो रेलवे में कुल स्वीकृत कर्मचारियों की संख्या करीब 14 लाख है, परंतु 3 लाख 20 हजार पद खाली हैं। लोको पायलट के ममाले में स्वीकृत पद संख्या 1 लाख 32 हजार है। इसमें रक्ति पदों की संख्या 22 हजार है।
समस्याएं
1. डीए 50 फीसद तक पहुंचने पर टीए रेट 25 फीसद बढ़ाए गए। रनिंग भत्ता का 70 फीसद टैक्स
2. कम से कम 120 किलोमीटर गारंटीशुदा माइलेज की सुविधा तक उपलब्ध नहीं।
3. 16 घंटे मुख्यालय वश्रिाम के अतिरक्ति 30 घंटे का रेस्ट नहीं दिया जा रहा।
4. सभी तकनीकी टूल उपलब्ध कराने की मांग, महिला रनिंग स्टॉफ को सुविधा नहीं मिल रही।
5. सहायक लोको पायलट से सीनियर सहायक लोको पायलट का प्रमोशन नहीं।
सुझाव
1. टीए के समरूप रनिंग भत्ते में 25 फीसद वृद्धि हो। गारंटीशुदा माइलेज की सुविधा दी जाए।
2. मुख्यालय वश्रिाम की सुविधा मिले, रात्रि सेवा के बाद लगातार रात्रि सेवा न ली जाए।
3. मालगाड़ी और यात्री ट्रेन चलाने की ड्यटी का समय सही से नर्धिारित किया जाए।
4. महिला रनिंग स्टॉफ के लिए ड्यूटी अवधि अनुकूल हो, रेस्ट रूम व्यापक तौर पर हो।
5. लोको पायलट के पदों पर लंबित पड़े प्रमोशन दिए जाएं और रक्ति पदों को भरा जाए।
विरोध-प्रदर्शन का भी असर नहीं
ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टॉफ एसोसिएशन के माध्यम से हमने कई बार अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन किया। लेकिन आज तक हमारी मांगों को सुना नहीं गया। परस्थितिि ऐसी हो गई हैं कि रेलवे की उपेक्षा के कारण लोको पायलट मानसिक उत्पीड़न के अलावा शरीरिक क्षति का दंश भी झेल रहे हैं।
-सीएस कुमार, एलारसा मंडल सचिव।
कई ऐसे लोको पायलट हैं जो 20 घंटे तक ट्रेनों का परिचालन करते हैं। इसके कारण वे एक ट्रेन को एक से दूसरे राज्य तक ले जाते हैं। इसके चलते वापस स्टार्टिंग मुख्यालय तक आकर डस्चिार्ज देने व घर आने में तीन से चार दिन लग जाते हैं। ऐसे में चालक लंबे समय तक अपने परिवार से दूर रहते हैं।
-मदन कुमार, शाखा अध्यक्ष
रेस्ट रूम और पार्किंग से लेकर शौचालय तक नहीं
लोको पायलट के वश्रिाम स्थल में सुविधा बहाल हो। महिला रनिंग स्टॉफकर्मियों के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है। शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिए।
-चितरंजनकांत
लोको पायलट के बच्चों की शक्षिा बेहतर कैसे हो, इस पर रेलवे को पहल करनी चाहिए। क्योंकि लोको पायलट अपना समय रेलवे को देते है, बच्चों पर घ्यान कम होता है।
-एके सन्हिा
कई दिनों तक लोको पायलट परिवार से दूर रहते हैं। परिवार की सुरक्षा, सामाजिक उत्तरदायत्वि का पालन सही ढंग से हो। इसका भी ध्यान रेलवे प्रशासन को रखना चाहिए।
-विरेंद्र कुमार
लंबित बकाया और सुविधा संबंधी भुगतान किया जाना चाहिए। उसे पूरा होने से आर्थिक मदद मिल सकेगी। हमलोग सबसे अधिक अवधि की सेवा रेलवे को
देते हैं।
-अरविंद कुमार
लोको पायलट को समुचित आराम मिलना चाहिए। उच्च समितियों ने सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखकर जितनी देर ट्रेनों का परिचालन करते हैं और नर्धिारित की है, उसका पालन हो।
-दिवेश सागर
हटिया स्टेशन में लोको पायलटों के वाहनों के लिए पार्किंग की समुचित सुविधा नहीं है। इससे वाहन लावारिस व असुरक्षित रहते हैं। पार्किंग में शेड होना चाहिए।
-सुरेंद्र कुमार सिंह
लोको इंजन में जो आधुनिक सुविधा दी जा रही है, वह शीघ्र बहाल हो। ताकि लोको पायलट अधिक दिनों तक इंजन की गर्मी व शौचालय की समस्या को न झेले।
-रंजीत कुमार
लोको पायलट का साप्ताहिक वश्रिाम घटाकर 14 घंटे कर दिया गया है। ऐसा अन्याय नहीं होना चाहिए। इस पर विचार करना चाहिए। इसे 30 घंटे ही रखा जाना चाहिए।
-बीसी शाहा
लोको पायलटों सहित परिवार की नियमित काउंसलिंग होनी चाहिए। तनाव मुक्त कैसे रहे, उसके लिए परिवार के आसपास माहौल व सुविधा मिलनी चाहिए।
-मनीष कुमार गुप्ता
लोको पायलटों की नियमित स्वास्थ्य जांच होनी चाहिए। जांच की रिपोर्ट के अनुसार उस पर ध्यान देना चाहिए। स्वास्थ्य के अनुरूप ही ड्यूटी का आवंटन किया जाना चाहिए।
-अनिरुद्ध कुमार
लोको पायलट के रक्ति पदों को भरा जाए तो कई समस्याओं का समाधान हो जाएगा। प्रमोशन प्रक्रिया भी जल्द शुरू हो। इस दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए।
- दिलीप कुमार
सामान्य रेलवेकर्मी के लिए 8 घंटे ड्यूटी तय है, पर हमलोगों के लिए ड्यूटी अवधि काफी ज्यादा है। 11 घंटे की ड्यूटी का वस्तिार किया गया है। यह अवधि कम होनी चाहिए।
-राजेंद्र रविदास
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