बोले रांची: संस्कृति बचा रहे, हमें भी बचा लीजिए
झारखंड के कलाकारों ने राज्य की मूल संस्कृति को आधुनिक विकास में संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सरकारी कार्यक्रमों में उन्हें कम मानदेय मिलता है और भुगतान में देरी होती है।...
रांची, संवाददाता। झारखंड के कलाकारों ने राज्य की मूल संस्कृति को आधुनिक विकास के युग में संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। कलाकारों ने कहा- वे केवल सरकारी आयोजनों तक ही सीमित हैं। उसके बाद उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है। सरकारी आयोजनों में मानदेय का भुगतान भी समय पर नहीं किया जाता है। कार्यक्रम की समाप्ति के छह से सात माह का समय उनके भुगतान में लग जाता है। साथ ही ईस्टर्न जोन कल्चरल सेंटर (ईजेडसीसी) द्वारा बढ़े हुए मानदेय का भी भुगतान नहीं किया जा रहा है। हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में झारखंड के लोक कलाकारों ने अपनी पीड़ा सुनाई। कलाकारों ने कहा- झारखंड की संस्कृति में राज्य की मधुरता, समरसता, सामूहिक भावना, समानता और आनंद की भावना विद्यमान है। वैश्वीकरण के युग में यह कला-संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर है, जिसे आने वाली पीढ़ी के लिए बचाना आवश्यक है। कलाकारों को सिर्फ आयोजन तक सीमित न रखकर उनके संरक्षण और विकास पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
कलाकारों ने कहा कि सरकारी कार्यक्रमों में वर्तमान में प्रति कलाकार आठ सौ रुपए और उनके मुख्य कलाकार को एक हजार रुपए दिया जाता है। लेकिन, ईजेडसीसी ने प्रति कलाकार तीन हजार और मुख्य कलाकार के लिए छह हजार मानदेय तय किया है। उन्होंने कहा कि आधुनिक विकास, वैश्वीकरण और संरक्षण की कमी के कारण अखरा कला संस्कृति का विघटन हो रहा है और इससे जुड़े लोग बेरोजगार हो रहे हैं। इसलिए, नई पीढ़ी के लिए साम्यवादी, मधुर और आनंदमयी अखरा कला संस्कृति को बचाना बहुत जरूरी है।
अधिकांश कार्यक्रम राज्य के मुख्यालय में : राज्य की विभिन्न जनजातियों के विभिन्न लोक नृत्य और गीत एवं वाद्य यंत्र बजाने वाले तथा जनजातीय चित्रकला के कलाकार मौजूद हैं, मगर उन्हें नियमित रूप से कार्य नहीं मिलता है। कोई ऐसा मंच भी उन्हें नहीं मुहैया कराई जाती है, जिससे झारखंड की जनजातीय लोक कला नृत्य का प्रयास होता रहे। इसका मुख्य कारण अधिकांश सांस्कृतिक कार्यक्रम राज्य के मुख्यालय में होते हैं और उन्हें देखने वाले 10 और 20 की संख्या में होते हैं। एक ही कलाकारों से बार-बार प्रदर्शन कराया जाता है। अगर हमें लोक कलाकारों को जीवित रखना है तो नियमित रूप से किसी न किसी योजना का संचालन करना होगा, जिससे प्रखंड जिला और राज स्तर पर कलाकारों को चिन्हित किया जाए और उन्हें रोटेशन वाइज कार्य दिया जाए। अगर, उन्हें महीने में भी एक-दो बार भी कार्य मिलेंगे तो वह जीवित रहेंगे।
मजबूरी में पलायन कर रहे हैं कलाकार
आज आधुनिकता के कारण ऑडियो विजुअल की दौड़ भी एक बड़ा बाधक है। आज लोक कलाकारों का ऑडियो स्टूडियो में रिकॉर्ड कर लिया जाता है। उसके बाद उन्हें फिर कभी पूछा नहीं जाता है, इसलिए वह मजबूर होकर या तो राज्य छोड़कर दूसरे राज्य में प्लायन कर जाते हैं या फिर राजमिस्त्री, कुली या होटल में काम कर रहे हैं। इसलिए, जरूरी है कि इन सभी कलाकारों को चिन्हित किया जाए और ज्यादा से ज्यादा ग्राम स्तर पर इन सभी कलाकारों के लिए कार्यशाला आयोजित की जाए।
हर जिले में सांस्कृतिक कार्यक्रम होने चाहिए
प्रत्येक जिले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हो। इसमें ज्यादा से ज्यादा जो हमारे पारंपरिक वाद्य यंत्र हैं, उनका निर्माण हो। जब वाद्य यंत्र होंगे, तभी बजाने वाले होंगे। जब बड़ा यंत्र नहीं होगा तो बजाएगा कौन और नाचेगा कौन। इसलिए, वाद्य यंत्र निर्माण की कार्यशाला अधिक से अधिक हो और कुछ ऐसे लुफ्तहांसा लोक विद्या है, जिनका ज्यादा से ज्यादा कार्यक्रम मिले जैसे खरवार लोक नृत्य माल पहाड़ियां, लोक नृत्य शोर पहाड़ियां, लोक नृत्य भूमिज, लोक नृत्य असुर स हति ऐसे जितने जनजातीय लोक नृत्य हैं, उनकी ज्यादा से ज्यादा प्रसूतियां हों। यहां पर केवल एक ही भाषा नागपुरी भाषा के कार्यक्रम किए जाते हैं और बोले जाते हैं, जिसके कारण भी आज छोटी भाषा के कलाकार हैं या छोटी भाषा के जो लोक नृत्य हैं, वह लुप्त हो जा रहे हैं। उसी प्रकार जिस प्रकार एक बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, इसलिए हमें ऐसे गुरुजनों को ढूंढना होगा, जो लोक गायक हों, लोक गायिका हों या लोक नृत्य को जानते हों, उन लोगों का वीडियो डॉक्यूमेंटेशन भी बनाने की जरूरत है।
सनि परब बंद होने से कलाकारों को नुकसान
प्रदेशभर के लोक कलाकारों की प्रतिभा को मंच देने और उन्हें आर्थिक सहयोग देने के लिए 2015-16 में सुबह सवेरे और सनि परब की शुरुआत हुई थी। इसके बंद हो जाने से कलाकारों को मंच की भी कमी हो गई और आर्थिक सहायता भी मिलनी बंद हो गई।
राज्य स्तर से लेकर प्रखंड स्तर पर प्रत्येक शनिवार को यह कार्यक्रम होता था। सुबह सवेरे में भजनों की प्रस्तुति होती थी। वहीं, शाम को सनि परब में लोक नृत्य-संगीत की प्रस्तुति कलाकार देते थे। सनि परब में प्रति कलादल राज्य स्तर पर 15 हजार और जिला स्तर पर 10 हजार रुपए दिए जाते थे। राज्य या जिला में सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र से आनेवाले कलाकारों को यात्रा भत्ता भी दिया जाता था। इससे प्रत्येक सप्ताह 50 से अधिक कलाकारों को आर्थिक मदद मिल पाती थी, लेकिन 2018 के बाद यह आयोजन बंद कर दिया गया। कई प्रयासों के बाद भी विभाग इसे शुरू नहीं कर पाया। कलाकारों का कहना है सनि परब उनके लिए एक ऐसा मंच था, जो आजीविका के साथ हुनर को जिंदा रखता था। कलाकारों ने माग की है कि सरकार को इसे दोबारा शुरू करना चाहिए, जिससे यहां की मूल संस्कृति को बचाने और बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।
ईजेडसीसी के तहत नहीं होता है भुगतान
ईस्टर्न जोन कल्चरल सेंटर (ईजेडसीसी) स्वायत्त संगठन है। इसके अंतर्गत झारखंड के कलाकार आते हैं। कलाकारों ने कहा कि ईजेडसीसी ने कलाकारों को दी जाने वाली राशि में बढ़ोतरी की है, लेकिन अब भी उन्हें पुरानी तय राशि के तहत भुगतान किया जाता है। कलाकारों की मांग है कि उन्हें भी बढ़ा हुआ भुगतान मिले।
कलाकारों के प्रमाण पत्र मान्य नहीं
सभी सरकारी कार्यक्रमों में भाग लेने या किसी प्रतियोगिता में भाग लेने के बाद कलाकारों को भागीदारी सर्टिफिकेट दिया जाता है। लेकिन, इस सर्टिफिकेट की कोई मान्यता नहीं है। कलाकारों ने कहा- जिस तरह खेल प्रतियोगिताओं के सर्टिफिकेट की मान्यता होती है, जिससे नौकरी में सुविधा होती है, वैसी सुविधा कलाकारों को भी मिले।
लोक संस्कृति को पाठ्यक्रम में जोड़ा जाए
कलाकारों ने कहा कि झारखंड को उनकी मूल संस्कृति के रूप में जाना जाता है। लेकिन, आधुनिक विकास एवं ग्लोबलाइजेशन के युग में राज्य की कला संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर आ गई है। अगर, इसे बचाना है तो यहां के स्कूलों के पाठ्यक्रम में मूल कला-संस्कृति को पढ़ाना शुरू किया जाए।
पेंशन की योजना, पर शुरू नहीं
राज्य के श्रेष्ठ, अस्वस्थ/वृद्ध कलाकारों को पेंशन देने की योजना को भी मंजूरी दी गई है, लेकिन अभी तक इसे शुरू नहीं किया जा सका है। कलाकारों का कहना है कि सरकार के फैसले के बाद भी कई सालों से यह मामला चल रहा है, लेकिन फाइल मूवमेंट तक मामला अटका है। योजना के अनुसार, एक वित्तीय वर्ष में 100 कलाकारों को पेंशन दिया जाएगा। इन कलाकारों को हर महीने 4000 रुपये पेंशन देने के प्रस्ताव को सरकार स्तर पर मंजूरी दी गई है। झारखंड सरकार वैसे कलाकारों को पेंशन योजना का लाभ देगी, जिसकी प्रतिमाह 8000 रुपए से कम आय हो। लेकिन, आवेदन आमंत्रित नहीं किया गया।
समस्याएं
1. ईस्टर्न जोन कल्चरल सेंटर (ईजेडसीसी) के तहत नहीं होता है भुगतान
2. सनि परब और सुबह-सवेरे कार्यक्रम बंद होने से कलाकारों को आर्थिक नुकसान
3. लोक कलाकारों को अबतक पेंशन और बीमा योजना का लाभ नहीं मिला
4. स्कूलों के पाठ्यक्रम में लोक कला के विषय को शामिल नहीं गया
5. लोक कलाकारों को मिलने वाले प्रतियोगिता सर्टिफिकेट को नहीं मिलती है मान्यता
सुझाव
1. ईस्टर्न जोन कल्चरल सेंटर (ईजेडसीसी) के तहत बढ़ी हुई राशि का हो भुगतान
2. सनि परब और सुबह-सवेरे जैसे कार्यक्रमों को दोबारा शुरू करे सरकार
3. लोक कलाकारों को पेंशन और बीमा जैसी समाजिक सुरक्षा योजना का मिले लाभ
4. स्कूलों के पाठ्यक्रम में लोक कला के विषय को शामिल किया जाना चाहिए
5. लोक कलाकारों को मिलने वाले प्रतियोगिता सर्टिफिकेट को मान्यता मिलनी चाहिए
बोले लोग :
झारखंड की मूल संस्कृति को बचाने की जम्मिेदारी यहां के मूलवासी के साथ सरकार की भी है। गांवों के अखड़ा के भरोसे परंपरागत संस्कृति को नहीं बचाया जा सकता है। राज्य के शक्षिा पाठ्यक्रम में मूल अखड़ा को जोड़ना चाहिए, जिससे कला के क्षेत्र में काम कर रहे कलाकारों के लिए रोजगार का सृजन हो।
-पद्मश्री मुकुंद नायक
लोक कलाकार सरकारी कार्यक्रमों तक ही सीमित हैं। कलाकारों को कोई सम्मान नहीं मिलता है। सराकरी कार्यक्रमों में काम करने के बाद लगभग छह माह तक भुगतान के लिए इंतजार करना पड़ता है। कलाकारों की आर्थिक स्थिति दयनीय है। भुगतान में देरी होने से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
-किशोर नायक
झारखंड सरकार की ओर से जनजातीय परंपरागत वाद्य यंत्र नर्मिाण, पोशाक नर्मिाण एवं गहने नर्मिाण से जुड़े व्यक्तियों के लिए उद्योग की स्थापना कर सब्सिडी पर ऋण दिया जाना चाहिए।
-लक्ष्मी कच्छप
सरकारी एवं गैर सरकारी नौकरियों में क्षेत्रीय कलाकारों को आरक्षण सुविधा की गारंटी दी जाए। लोक कला को बढ़ावा देने के लिए अलग से बजटीय प्रावधान की व्यवस्था हो।
-देवी कुमारी
जनजातीय एवं क्षेत्रीय कलाकारों को राजकीय एवं राष्ट्रीय सम्मान उचित राशि के साथ विभूषित किया जाए। शक्षिा प्रणाली में लोक कला के पाठ को जोड़ा जाए, जिससे इसका विकास हो।
-आनंद नायक
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संगीत वालों का सामाजिक और कला सांस्कृतिक सर्वेक्षण कराया जाए। साथ ही प्रतियोगिता आयोजित कर कलाकारों को चन्हिति किया जाए। -
रामेश्वर मिंज
झारखंड के जनजातीय एवं क्षेत्रीय वरष्ठि कलाकारों को सामाजिक सुरक्षा के तहत पेंशन दिया जाना चाहिए। वर्तमान में नर्धिारित भुगतान राशि में बढ़ोतरी कर ईजेडसीसी द्वारा तय दर पर भुगतान किया जाना चाहिए।
-दुर्योधन नायक
सद्धिहस्त कलाकारों को राज्य एवं केंद्र सरकार की कला सांस्कृतिक ईकाईयों में अधिक से अधिक कार्यक्रम दिए जाएं। झारखंड सरकार द्वारा वर्तमान में नर्धिारित भुगतान राशि बढ़ाई जाए।
-बलेश्वर नायक
लोक कलाकारों को मिलने वाले प्रतियोगिता सर्टिफिकेट को मान्यता नहीं मिलती है। सरकार को इस पर ठोस कदम उठाते हुए मान्यता प्राप्त सर्टिफिकेट जारी करना चाहिए, जो नौकरी में काम आए।
-बट्टिू महली
अखरा कला सांस्कृतिक नीति तैयार कर अखरा कला सांस्कृतिक विषय पर पाठ्यक्रम तैयार हो। जिसे यहां की शक्षिा में लागू करवाया जाए। गांव में अखरा कला समिति का गठन हो।
-फुलो कच्छप
झारखंड के कलाकारों के लिए सामुदायिक भवन नहीं है, इसका नर्मिाण करवाया जाए। लोक कला को सीखने वाले कलाकारों को आर्थिक सहयोग के लिए सरकार छात्रवृत्ति दे।
-नूतन लकड़ा
प्रशक्षिणार्थियों को छात्रवृत्ति दी जाए, जिससे आर्थिक मदद मिल सके। साथ ही सक्षम शोधार्थियों को रिसर्च फैलोशिप राज्य सरकार द्वारा दिया जाए, जिससे राज्य की मूल कला को आगे बढ़ाया जा सके।
-राजेश महली
झारखंड सरकार की ओर से अखरा कला संस्कृति के संरक्षण के लिए झारखंड अखरा कला सांस्कृतिक संस्थान की स्थापना की जाए, जो लोक कला के क्षेत्र में काम करे।
-अभिषेक कुमार बड़ाईक
झारखंड के जनजातीय एवं क्षेत्रीय गुरुओं एवं प्रशक्षिणार्थियों को चिकत्सिीय सुविधा एवं जीवन बीमा दी जाए। प्रशक्षिण लेने वाले कलाकारों को सरकारी छात्रवृत्ति दी जाय।
-किशोर महली
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