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मवेशियों के इलाज के लिए न पर्याप्त चिकित्सक न ही अस्पताल

रांची में 41.21 लाख मवेशी और पक्षियों के लिए केवल 30 पशु चिकित्सक कार्यरत हैं। पशुपालकों को इलाज में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और बीमा का लाभ भी नहीं मिल रहा है। पशुपालन विभाग ने टॉल फ्री नंबर...

Newswrap हिन्दुस्तान, रांचीFri, 25 April 2025 10:43 PM
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मवेशियों के इलाज के लिए न पर्याप्त चिकित्सक न ही अस्पताल

रांची। वरीय संवाददाता पृथ्वी पर आदिकाल से ही पशु-पक्षी मानव के कुटुम्ब रहे हैं। पशु-पक्षियों से देवताओं का अगाध प्रेम जगजाहिर है। शोध के अनुसार पालतू जीव और पशु-पक्षियों से जिस परिवार का अगाध प्रेम रहा है वहां हिंसक प्रवृत्ति नहीं पनपती है। इसका सीधा असर बच्चों के मनोभाव पर पड़ता है। ऐसे परिवार के बच्चे शाकाहार को अपनाते हैं और जीवन भर उनका तन और मन स्वस्थ रहता है। इसके ठीक उलट जहां पशुओं के साथ क्रूर व्यवहार किया जाता है वहां रहनेवाले लोगों के मन-मस्तिष्क में भी क्रूरता पनपने लगती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, रांची के ग्रामीण क्षेत्र में 41 लाख 21 हजार 529 मवेशी और पक्षी हैं। इनमें से 8.60 लाख दुधारू गाय, बैल और सांड़, 1.16 लाख भैंस-भैंसा, भेड़ 39 हजार, बकरी 7.55 लाख, सूकर 62 हजार, मुर्गी, तीतर-बटेर और अन्य तरह के पक्षी 21.39 लाख और 1.47 लाख बत्तख हैं। दुधारू और कृषि कार्य में शामिल मवेशियों की सबसे ज्यादा संख्या अनगड़ा में 69 हजार है। इसी प्रखंड में पक्षियों में मुर्गी (3.44 लाख) सबसे ज्यादा संख्या में है। वहीं नामकुम में 50 हजार, बुढ़मू में 37 हजार, कांके और तमाड़ में 28 हजार से अधिक मवेशी हैं। इसी तरह सबसे ज्यादा भैंस नामकुम में लगभग 13 हजार हैं। जिले के 18 प्रखंड में भेड़ की संख्या 39 हजार, सूकर 62 हजार है।

जिला में 41.21 लाख मवेशी-पक्षी पर 37 पशु चिकित्सक

रांची जिले के 18 प्रखंडों में 41.21 लाख मवेशी और पक्षियों के बीच केवल 30 पशु चिकित्सक कार्यरत हैं। इन पशु चिकित्सकों के जिम्मे 37 पशु अस्पताल हैं। वहीं चार नए बने प्रखंड नगड़ी, खलारी, राहे और इटकी में पशु चिकित्सा केंद्र प्रभार पर चल रहा है। जिले के 14 प्रखंड में पशुपालन पदाधिकारी का पद स्वीकृत है। इसमें 10 पशु चिकित्सक कार्यरत हैं। रांची में मवेशियों की जनसंख्या और अनुशंसा के अनुसार 220 पशु चिकित्सक होने चाहिए। सभी पशु अस्पताल में अनुसेवक, प्रवैदिक सहायक, रात्रि प्रहरी का पद स्वीकृत है, परंतु अधिसंख्य केंद्र पर पर रिक्त हैं। वहीं सात से अधिक केंद्र किराए के मकान में चल रहे हैं। इसके अतिरिक्त संसाधन की कमी से प्रखंड स्तर पर जरूरी होने पर मवेशियों के पैथोलॉजिकल और रेडियोलॉजी समेत अन्य तरह की जांच और ऑपरेशन की सुविधा बहाल नहीं है। अधिसंख्या पशुपालक ग्रामीण पशु चिकित्सक के झांसे में पड़कर गलत इलाज की वजह से अपने बीमार पशुधन को खो देते हैं। इस मामले में राज्य सरकार आईवीसी एक्ट 1984 एवं कॉस्मेटिक एक्ट के साथ प्रावधान का सख्ती से पालन नहीं करा रही है।

पशु की मौत पर नहीं मिलता है बीमा का लाभ

बीमित मवेशियों की मौत की स्थिति में बीमा कंपनी से पशुपालकों को मुआवजा नहीं मिलता है। इटकी के तिलकसूती गांव के महादेव दास को मुख्यमंत्री पशुधन योजना से चार मादा बकरी और एक बकरा मिला थे। बकरी की मौत के बाद पोस्टमार्टम हुआ, परंतु एक साल बाद भी बीमा का लाभ नहीं मिला। ग्रामीण क्षेत्र के कई अन्य पशुपालक सुसेश्वर गोप, संगीता साहू, जावेद मियां, नजरीन नाज, राजेश सिंह को बकरी और अन्य मवेशियों की मौत के बाद बीमा का लाभ नहीं मिला।

पशुपालक 1962 पर फोन कर घर पर करा सकते हैं बीमार मवेशी का इलाज

पशुपालक अपने बीमार पशु का टॉल फ्री नंबर 1962 पर फोन कर घर पर ही इलाज करा सकते हैं। पशुपालन विभाग की ओर से पशु एंबुलेंस की भी सुविधा बहाल की गई है। इसके बावजूद पशु चिकित्सक और अन्य संसाधन की कमी से घर पर मवेशियों का इलाज पूरी तरह से संभव नहीं हो सका। ओरमांझी के भ्रमणशील पशु चिकित्सा पदाधिकारी डॉ कमलेश कुमार ने बताया कि अस्पताल में जरूरत की सभी दवाएं उपलब्ध है। टीकाकरण भी किया जाता है।

कोट...

टीकाकरण बीमारी के समय नहीं बल्कि बीमार पशु को नहीं हो इसके लिए किया जाता है। राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम में गाय, भैंस में खुरपका -मुंहपका रोग, बरुसेलोसिस, गलाघोटू, लंगड़ा बुखार, बकरी में पीपीआर का टीका केंद्रों पर नि:शुल्क उपलब्ध है। इसके लिए अभियान भी चलता है। पशुपालकों को चाहिए कि वे समय पर स्थानीय पशु चिकित्सक से संपर्क कर सुविधा का लाभ उठाएं।

डॉ शिवानंद कांशी, भ्रमणशील पशु चिकित्सा पदाधिकारी

पशु पालकों ने क्या कहा...

सरकार को चाहिए कि वह पशुपालकों को रबी और खरीफ सीजन में हरा चारा का बीज उपलब्ध कराए। इससे मवेशियों को पोषक तत्व मिलेगा और दूध के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी।

कलावती देवी, हरमू सलोटोली

सोनाहातू प्रखंड में पशु चिकित्सा के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं मिलती है। जिस कारण मवेशियों के बीमार होने पर अपने स्तर से ही इलाज करा लेते हैं।

बीरेन्द्र महतो, पशुपालक, सारमाली गांव

जब पशुओं में संक्रमण जैसी बीमारी होती है तो सरकारी तौर पर कोई इलाज की व्यवस्था नहीं मिलती। सभी दुधारू और कृषि कार्य से जुड़े मवेशी और पक्षियों का बीमा होना चाहिए। इससे किसान आर्थिक नुकसान से बच जाएंगे।

जयनाथ अहीर, गोमियाडीह

दुधारू मवेशी समेत पशुओं के इलाज के लिए प्रखंड स्तर पर ही आदर्श चिकित्सा केंद्र की सुविधा सरकार के स्तर से बहाल नहीं है। जिस कारण किसानों की परेशानी हर समय बढ़ी रहती है।

अशोक महतो, दरहाटांड़

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