बोले रामगढ़ : चाइनीज सामानों से घटी कमाई काम छोड़ रहा कुम्हार समाज
चाइनीज सामानों से घटी कमाई काम छोड़ रहा कुम्हार समाजजिले में कुम्हारों की आबादी लगभग डेढ़ लाख है। इसमें से 80% लोग परंपरागत पेशे से जुड़कर मिट्टी निर
रामगढ़। कुम्हार (कुम्भकार) प्रजापति जाति सपूर्ण भारत में सभी धर्म में पायी जाती है। क्षेत्र व उप-संप्रदायों के आधार पर कुम्हारों को अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस समुदाय का प्रमुख संत श्री संत गोरा कुम्भार है, भगवान विट्ठल और देवी रेणुका माता (येलम्मा मंदिर) की आराधना करते है। कुम्भ का निर्माण करने के कारण इसके निर्माता को कुम्भकार कहा गया। प्राचीन इतिहास में कुलाल शब्द का प्रयोग किया गया है। अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग भाषा होने के कारण इसका उच्चारण समय के साथ अलग होता गया। जैसे मराठी क्षेत्र में कुम्भारे, पश्चिमी क्षेत्र में कुम्भार, राजस्थान में कुमार तो पश्चिमी राजस्थान में कुम्भार, कुम्बार व पंजाब हरियाणा के सटे क्षेत्र में गुमार। कुम्हारों के पारंपरिक मिट्टी से बर्तन बनाने की रचनात्मक कला को सम्मान देने हेतु उन्हें प्रजापति कहा गया। जिस प्रकार ब्रह्मा पंच तत्वों से इस नश्वर सृष्टि की रचना करते हैं, उसी प्रकार से कुम्भार भी मिट्टी के कणों से कई आकर्षक मूर्तियां खिलौने बर्तन आदि का सृजन करता है, इसीलिए इस जाति को प्रजापति की उपमा दी गयी। ये भी माना जाता है कि मनुष्यों मे शिल्प और अभियांत्रिकी की शुरुआत इसी जाति से हुई है।
विभिन्न तरह की मिट्टी के गारे का निर्माण के प्रयोग करते समय ही चूने और खड़ी के प्रयोग का पता चला। इसी चूने खड़ी से चुनाई और भवन निर्माण का कार्य करने वाले चेजारे कहलाते है। ये भी इसी जाति से अधिकतर है। कुम्हारों का आर्थिक उत्थान के लिए पूर्व की रघुवर सरकार ने झारखंड माटी कला बोर्ड का गठन किया था। बोर्ड द्वारा मिट्टी शिल्पकारों को आधुनिक प्रशिक्षण हेतु केंद्र का संचालन रांची जिला अंतर्गत आधार महिला शिल्प उद्योग स्वावलंबी सहयोग समिति लिमिटेड बुंडू, रामगढ़ जिला अंतर्गत झारखंड गवर्नमेंट टूल रूम गोला एवं दुमका जिला अंतर्गत गवर्नमेंट टूल रूम एंड ट्रेनिंग सेंटर दुमका आदि में शुरू किया गया था।
सैकड़ों कुम्हार शिल्पकारों को ट्रेनिंग दी गई। साथ ही साथ मिट्टी शिल्पकारों को आधुनिक तरीके से उत्पादन के लिए विद्युत से चलने वाली चाक, मिट्टी गूथने वाली मशीन पगमिल तथा जिगर-जोली मशीन 95% अनुदान पर दिया जाने लगा, परंतु इस बोर्ड का कार्यकाल मई 2020 को समाप्त हो गया है। नई सरकार ने अभी तक माटी कला बोर्ड के पुनर्गठन की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। इसके कारण उनके परंपरागत रूप में दैनिक सामानों के निर्माण नहीं हो पा रहा है। दुनिया को विकास की राह दिखाने वाले आज खुद विकास से वंचित हैं। माटी कला के पुश्तैनी ज्ञान व हुनर ही कुम्हारों के जीवन यापन का प्रमुख आधार रहा है। कुम्हारों का कहना है कि वर्तमान औद्योगिक विकास के दौर में हमारी मिट्टी कला से निर्मित घड़ा, हांडी पानी का गिलास, चाय की प्याली, दीया-ढकनी, सुराही, खिलौना तथा पूजन सामग्री के रूप में घर में प्रयोग आने वाली छोटी-बड़ी मूर्तियां बनाने की कला संरक्षक के अभाव में बेमौत मर रही है।
कई राज्यों में सरकार के प्रोत्साहन उत्साह वर्धन तथा रोजगार हेतु सब्सिडी युक्त ऋण प्रदान कर कुम्हारों की आधुनिक कला को जीवंत कर मिट्टी का तावा, खिलौना, प्रेशर कुकर, बिरियानी पोट, मिट्टी से निर्मित फ्रिज, कप प्लेट, पानी का बोतल सहित अनेकों दैनिक उपयोग में आने वाली सामानों का निर्माण किया जा रहा है, वरन देश विदेश में व्यापार मेले के माध्यम से इसे आधुनिक ज्ञान और हुनर का प्रदर्शन कर देश का मान सम्मान बढ़ाया जा रहा है। देश के कई राज्यों में वहां की सरकारों ने माटी कला बोर्ड का गठन कर कुम्हार शिल्पकारो के उत्थान हेतु प्रतिवर्ष बजटीय प्रावधान किया है तथा माटी कला बोर्ड के माध्यम से रोजगार भी प्रदान किया है। रोजगार तथा अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है आज जहां केंद्र एवं राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार एवं स्वरोजगार देने हेतु कृत संकल्पित है। वही, मिट्टी के बने सामानों के उपयोग से जहां पर्यावरण की रक्षा होगी। पर्यावरण दूषित करने वाले प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का विकल्प भी है।
प्रस्तुति : नारायणदत्त ब्यास
मानव सभ्यता में कुम्हारों का रहा है महत्वपूर्ण योगदान
कुम्हार भारत, पाकिस्तान और नेपाल में पाया जाने वाला एक जाति या समुदाय है। इनका इतिहास अति प्राचीन और गौरवशाली है। मानव सभ्यता के विकास में कुम्हारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कहा जाता है कि कला का जन्म कुम्हार के घर में ही हुआ है। इन्हें उच्च कोटि का शिल्पकार वर्ग माना गया है। सभ्यता के आरंभ में दैनिक उपयोग के सभी वस्तुओं का निर्माण कुम्हारों द्वारा ही किया जाता रहा है। पारंपरिक रूप से यह मिट्टी के बर्तन, खिलौना, सजावट के सामान और मूर्ति बनाने की कला से जुड़े रहे हैं। यह खुद को वैदिक भगवान प्रजापति का वंशज मानते हैं, इसीलिए ये प्रजापति के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हें प्रजापत, कुंभकार, कुंभार, कुमार, कुभार, भांडे आदि नामों से भी जाना जाता है। भांडे का प्रयोग पश्चिमी उड़ीसा और पूर्वी मध्य प्रदेश के कुम्हारों के कुछ उपजातियों लिए किया जाता है। कश्मीर घाटी में इन्हें कराल के नाम से जाना जाता है।
रामगढ़ के कुम्हारों को दूसरे जिले से मंगानी पड़ती है अच्छी मिट्टी
रामगढ़ जिला में अधिकांश कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने के काम में जुटा है। इस क्रम में उनके समक्ष कई समस्याएं सामने आती है। सबसे बड़ी समस्या बेहतर मिट्टी की है। कुम्हारों को अच्छी मिट्टी अर्थात लाल मिट्टी दूसरे जिले से मंगवानी पड़ती है। क्योंकि अच्छी मिट्टी के बिना अच्छा बर्तन नहीं बन सकता है। दूसरे जिले से मिट्टी मंगवाने में अधिक पैसे खर्च होते है। जबकि, बर्तन बेचने के दौरान खरीदार अच्छी कीमत देना नहीं चाहते है। जिला प्रशासन को चाहिए कुम्हारों के सामानों को बेचने के लिए बाजार उपलब्ध कराए। जहां वे अपने सामानों को अच्छी कीमत में बेच सके। लेकिन जिला प्रशासन ने आज तक ऐसी बाजार की व्यवस्था नहीं की है। फलत: कुम्हारों को कम कीमत में सामान बेचना पड़ता है। जिले के अधिकांश कुम्हारों की आर्थिक स्थिति सही नहीं है।
प्रशिक्षण की हो व्यवस्था
बोर्ड द्वारा मिट्टी शिल्पकारों को आधुनिक प्रशिक्षण हेतु केंद्र का संचालन रामगढ़ जिला अंतर्गत झारखंड गवर्नमेंट टूल रूम गोला में किया गया। सैकड़ों कुम्हार शिल्पकारओं को ट्रेनिंग दी गई। साथ ही साथ मिट्टी शिल्पकारों को आधुनिक तरीके से उत्पादन के लिए विद्युत से चलने वाली चाक, मिट्टी गूथने वाली मशीन पगमिल तथा जिगर-जोली मशीन 95% अनुदान पर दिया जाने लगा। बाद में ट्रेनिंग को खत्म कर दिया गया। इसके बाद कुम्हारों की कोई सूध नहीं ली गई। आज ट्रेनिंग किए हुए कुम्हारों ने कहा कि हमलोगों ने जो ट्रेनिंग ली थी, हमसभी भूल गए है। जिला प्रशासन को चाहिए पुन: सभी को ट्रेनिंग देकर व्यापार करने के लिए सब्सीडिरी युक्त लॉन दे। जिससे कुम्हारों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके।
झारखंड में हमारी स्थिति आदिवासी और दलितों से भी कमजोर है। हमारे बच्चों को आरक्षण भी नहीं मिलता है। इस कारण वे लगातार पिछड़ रहे है। हमारा इस्तेमाल विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की ओर से की जाती है। वर्तमान सरकार यथाशीघ्र माटी कला बोर्ड का पुर्नगठन करें।
-देवनारायण प्रजापति, प्रदेश अध्यक्ष, झारखंड प्रजापति कुम्हार महासंघ
कुम्हारों को 90 % अनुदान पर मिले विद्युत चाक
मिट्टी के लिए जमीन का पट्टा सरकार निर्गत करें। वर्तन बेचने के लिए सरकारी स्तर पर दुकान की व्यवस्था की जाए। विद्युत चक्का की समुचित व्यवस्था कुम्हारों को अनुदानित मूल्य में दिया जाए। साथ ही विद्युत नि:शुल्क दी जाए।
-राधा विनोद प्रजापति, जिलाध्यक्ष, रामगढ़
झारखंड में कुम्हारों की अनेक समस्याएं है। वर्तमान सरकार इनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रही है। इस कारण कुम्हारों को काफी दिक्कत हो रही है। सरकार से मिट्टी के वर्तन बनाने के लिए जमीन का पट्टा नहीं दिया जा रहा है। सामान बेचने के लिए भी बाजार की व्यवस्था नहीं है।
-नितिन कुमार
मिट्टी के वर्तन को बेचने के लिए दुकान की व्यवस्था अभी तक नहीं की गई। कुम्हारों के लगातार हो रहे प्रलायन को रोकने के लिए प्रदेश के प्रत्येक जिला में प्लांट लगाकर सामूहिक रूप वे कुम्हार कारीगरों को वेतन देकर उनसे काम लिया जाए।
-रवि प्रजापति
वेतन मिलने से कुम्हार अपना और अपने परिवार का लालन-पालन आसानी से कर सकता है। झारखंड सरकार कुम्हारों को प्रशिक्षण देकर उनके लिए बाजार की व्यवस्था करें। साथ ही प्रशिक्षण अवधि में दस हजार रुपया मानदेय के रूप में दिया जाए।
-उमेश प्रजापति
विज्ञान काफी आगे बढ़ गया है। अब कुम्हारों को विद्युत चाक की व्यवस्था 90 प्रतिशत अनुदानित मूल्य में दिया जाए। साथ ही नि:शुल्क बिजली की व्यवस्था की जाए। इसके अलावा मिट्टी के सामान बेचने के लिए भी सरकार बाजार उपलब्ध कराएं।
-आयुष कुमार
कुम्हारों को व्यवसाय के लिए ऋण उपलब्ध कराया जाए। कुम्हार गरीब, असहाय एवं विधवा महिलाओं को बोर्ड के माध्यम से नि:शुल्क आवास दिया जाए। इससे वे अपने परिवार के साथ रह सके। साथ ही युवाओं को प्रशिक्षण देने की भी व्यवस्था की जाए।
-राजेंद्र प्रजापति
राज्य सरकार की आरे से ध्यान नहीं दिए जाने के कारण झारखंड में कुम्हारों की आर्थिक स्थिति एकदम खराब है। इस कारण वे अपने व्यापार को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। कुम्हारों के लिए सरकार की तरफ से न कोई योजना है और न ही आरक्षण।
-जितेंद्र राम प्रजापति
झारखंड में कुम्हारों की राजनीतिक गतिविधि नजर नहीं आती है। इसका सबसे बड़ा कारण विभिन्न राजनीतिक पार्टियां कुम्हारों को वोट बैंक समझती है और उनका इस्तेमाल करती है। राजनीति के क्षेत्र में कुम्हार समाज के लोगों को पद मिलने से बात बनेगी।
-अर्जुन कुमार प्रजापति
विज्ञान काफी आगे बढ़ गया है। अब कुम्हारों को विद्युत चाक की व्यवस्था 90 प्रतिशत अनुदानित मूल्य में दिया जाए। साथ ही नि:शुल्क बिजली की व्यवस्था की जाए। इसके अलावा मिट्टी के सामान बेचने के लिए भी सरकार बाजार उपलब्ध कराएं।
-आयुष कुमार
झारखंड की सरकार कुम्हारों को मिट्टी का पट्टा दे।इससे मिट्टी खरीदने के लिए कुम्हारों को दर-दर की ठोकरंे नहीं खानी पड़े। सरकारी स्तर पर दुकान की व्यवस्था करें। समाज के गरीब तबके के लोगों को अनुदान पर विद्युत चाक की व्यवस्था करें।
-गणेश प्रजापति
कुम्हारों को सरकार की ओर से विद्युत चाक की व्यवस्था की जाए, जिससे कुम्हार बिना मेहनत के मिट्टी के सामान बना सके और बेच सकें। साथ ही कुम्हारों को नि:शुल्क विद्युत व्यवस्था करें। तैयार सामान को बेचने के लिए भी बाजार की व्यवस्था की जाए।
-बसंत प्रजापति
राज्य सरकार कुम्हारों को व्यापार के लिए सब्सिडी युक्त ऋण उपलब्ध कराए। इससे कुम्हार अपने तथा अपने परिवार का लालन-पालन कर सके। साथ ही कुम्हार समाज को सरकारी नौकरी में सरकार की ओर से आरक्षण मिले, जिससे वे आगे बढ़ सके।
-बच्चन प्रजापति
गरीब कुम्हार, असहाय और विधवा महिलाओं को बोर्ड के माध्यम से नि:शुल्क आवास दिया जाए। इससे वे अपने परिवार के साथ रह सके। कुम्हार समाज के लिए सरकार अलग से कल्याणकारी योजना की शुरुआत करे जिससे हमें मदद हो।
-रूपलाल प्रजापति
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