लोहरदगा में सनातन- सरना संस्कृति का अनूठा मिसाल
लोहरदगा के पहाड़ डांडू गांव में 200 वर्षों से पहान ब्राह्मणों द्वारा सरहुल पूजा पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार आयोजित की गई। यह गांव घने जंगलों और तीन नदियों के बीच स्थित है। जितेश्वर गिरी के नेतृत्व...

लोहरदगा, दीपक मुखर्जी। झारखंड के लोहरदगा जिला अंतर्गत पेशरार प्रखंड के पहाड़ डांडू में करीब 200 वर्षों से गांव के पहान (धर्मगुरु) ब्राह्मण हैं। यह इस बात का घोतक है, कि झारखंड में सनातन और सरना समाज की सांस्कृतिक विरासत की जड़ें काफी गहरा है। लोहरदगा जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ डांडू घने जंगलों के बीच स्थित है। यह गांव तीन ओर नदियों से घिरा हुआ है।इस गांव में शुक्रवार को देर शाम सरहुल की पूजा पारंपरिक और जनजातीय रीति रिवाज के अनुसार जितेश्वर गिरी ने संपन्न कराया। खास बात किया है की सरना स्थल में जावाल, ऊपर तुरियाडीह, हेंदेहास, बतरू, हेसाग, खाम,तेतरो, पुंदाग जैसे गांव के लोग चेंगना पूजा करा कर ले जाते हैं। विधान पूर्वक उसे चावल के साथ बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। पहाड़ डांडू रमणिक और खूबसूरत गांव है। इस गांव के तीन ओर नदियां हैं । सघन जंगलों का श्रृंखला है। सरहुल पूजा में शामिल होने के लिए पुंदाग, हेसाग, पहाड़ डांडू आदि गांव के जनजातीय समाज के साथ उसे क्षेत्र में रहने वाले सर्व समाज के लोग भी शामिल होते हैं। जितेश्वर गिरी के मुताबिक उनका परिवार पहनई का काम पिछले 200 सालों से करते आ रहा है। सबसे पहले भूलन गिरी ने इस काम को शुरू किया था। इस परंपरा देवचरण गिरी, दीपेन गिरी, जगन्नाथ गिरी, जितेश्वर गिरी लगातार इसे आगे बढ़ाते आ रहे हैं। इस पूरे क्षेत्र में जितेश्वर गिरी की पहचान बाबा के रूप में है। इन्हें कुरुख भाषा भी की अच्छी जानकारी है। इनका जीवन शैली जनजातीय पर्व त्यौहार में उसी के अनुरुप होता है। इनका पहनावा-ओढावा भी सरहुल के अनुरूप भी होता है।
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